भाजपा ने नागरिकता संशोधन विधेयक के बहाने पूर्वोत्तर में जो आग लगाई है वह आसानी से बुझने वाली नही है इस विधेयक से उपजी विसंगतियां पूर्वोत्तर को कश्मीर में बदल देगी,।।।।।।।।।।।आठ जनवरी को लोकसभा में पारित हुआ नागरिकता (संशोधन) विधेयक, बांग्लादेश, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान करता है; भले ही उनके पास कोई वैध दस्तावेज न हों।
विधेयक में प्रावधान है कि ग़ैर-मुस्लिम समुदायों के लोग अगर भारत में छह साल गुज़ार लेते हैं तो वे आसानी से नागरिकता हासिल कर पाएंगे। पहले ये अवधि 11 साल थी!
क्या इसे सरकार द्वारा प्रायोजित सांप्रदायिकता उदाहरण नही मानना चाहिए?
पूर्वोत्तर के राज्यों में इसे लेकर व्यापक असंतोष उभर रहा है, क्योंकि उन्होंने कभी शरणार्थियों की समस्या को हिन्दू मुस्लिम के नजरिए से नहीं देखा उनके लिए मुद्दा स्थानीय बनाम शरणार्थी ही था।
असम के कृषक मुक्ति संग्राम समिति के नेता अखिल गोगोई ने रविवार को कहा कि अगर असम के लोगों को उचित सम्मान नहीं किया जाता है तो ‘हमें सरकार को यह कहने का साहस दिखाना चाहिए कि हम भारत में नहीं रहने पर विचार कर सकते हैं।’ यह बहुत बड़ी बात है लेकिन वोटों की राजनीति करने वाले लोग देश की अखंडता की परवाह ही कहां करते हैं?
अगर असम की बात करें तो 1985 के असम समझौते के मुताबिक 24 मार्च 1971 से पहले राज्य में आए प्रवासी ही भारतीय नागरिकता के पात्र थे। लेकिन नागरिकता (संशोधन) विधेयक में यह तारीख 31 दिसंबर 2014 कर दी गई है और इसके चलते यहां इस विधेयक का सबसे तीखा विरोध देखा जा रहा है। असमिया संगठनों का कहना है कि विधेयक के परिणामस्वरूप अवैध प्रवासियों का बोझ अकेले राज्य पर ही पड़ेगा। पहले से ही यह राज्य गैरकानूनी अप्रवासन का दंश झेल रहा है। असम ही इस बिल से सबसे अधिक प्रभावित होने जा रहा है असम विधानसभा में सोमवार को बजट सत्र के पहले दिन जमकर हंगामा हुआ, इस दौरान विपक्षी पार्टियों ने विवादित नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ खूब नारेबाजी की गयी।
पूर्वोत्तर भारत में इसके खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। लेकिन शेष भारत का मीडिया इन प्रदर्शन को नजरअंदाज कर रहा है, पूर्वोत्तर के लोगों को डर है कि इस विधेयक के कानून बनने के बाद इनके राज्यों में विदेशियों की तादाद अचानक बढ़ जाएगी जिससे यहां की आबादी का अनुपात बदल जाएगा।
सेवन सिस्टर कहे जाने पूर्वोत्तर के हर राज्य में इसके खिलाफ व्यापक असन्तोष है। नगालैंड में भी नागरिकता विधेयक के विरोध में कुछ प्रमुख संगठनों के बहिष्कार के आह्वान के कारण गणतंत्र दिवस समारोह में छात्र-छात्राओं और आम जनता ने समारोहों में भाग नहीं लिया। मिज़ोरम के राज्यपाल कुम्मानम राजशेखरन ने भी 70वें गणतंत्र दिवस पर लगभग खाली पड़े मैदान में अपना संबोधन दिया।
मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथंगा ने बीती 24 जनवरी को कहा कि अगर नागरिकता संशोधन विधेयक को रद्द नहीं किया गया तो सत्ताधारी मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) राजग के साथ गठबंधन तोड़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाएगी।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि यही भाजपा 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले NRC के मुद्दे पर बहुत मुखर थी। यह कहा जा रहा था कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स में जिनके नाम नहीं होंगे उन्हें अवैध नागरिक माना जाएगा लेकिन आपको बता दें कि यदि इस बिल को लागू किया जाता है तो इससे पहले से अपडेटेड नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंश (NRC) बेअसर हो जाएगा।
एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक में परस्पर विरोधाभास है। एनआरसी में धर्म के आधार पर शरणार्थियों को लेकर कोई भेदभाव नहीं है। NRC के मुताबिक, 24 मार्च 1971 के बाद अवैध रूप से देश में घुसे अप्रवासियों को निर्वासित किया जाएगा। चाहे वह किसी जाति धर्म के हो लेकिन इस विधेयक में बीजेपी धर्म के आधार पर शरणार्थियों को नागरिकता देने जा रहीं है जिससे इस क्षेत्र के मूल निवासियों के अधिकारों का हनन होगा ओर एक नया संघर्ष पैदा हो जाएगा।
राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए भाजपा पूर्वोत्तर में एक ऐसे संघर्ष को शुरू कर रही है। जो दूसरी कश्मीर समस्या को जन्म दे देगा और हिंसा और आतंकवाद का एक नया दौर शुरू हो जाएगा जिसकी आग बुझाए से नही बुझेगी।
विधेयक में प्रावधान है कि ग़ैर-मुस्लिम समुदायों के लोग अगर भारत में छह साल गुज़ार लेते हैं तो वे आसानी से नागरिकता हासिल कर पाएंगे। पहले ये अवधि 11 साल थी!
क्या इसे सरकार द्वारा प्रायोजित सांप्रदायिकता उदाहरण नही मानना चाहिए?
पूर्वोत्तर के राज्यों में इसे लेकर व्यापक असंतोष उभर रहा है, क्योंकि उन्होंने कभी शरणार्थियों की समस्या को हिन्दू मुस्लिम के नजरिए से नहीं देखा उनके लिए मुद्दा स्थानीय बनाम शरणार्थी ही था।
असम के कृषक मुक्ति संग्राम समिति के नेता अखिल गोगोई ने रविवार को कहा कि अगर असम के लोगों को उचित सम्मान नहीं किया जाता है तो ‘हमें सरकार को यह कहने का साहस दिखाना चाहिए कि हम भारत में नहीं रहने पर विचार कर सकते हैं।’ यह बहुत बड़ी बात है लेकिन वोटों की राजनीति करने वाले लोग देश की अखंडता की परवाह ही कहां करते हैं?
अगर असम की बात करें तो 1985 के असम समझौते के मुताबिक 24 मार्च 1971 से पहले राज्य में आए प्रवासी ही भारतीय नागरिकता के पात्र थे। लेकिन नागरिकता (संशोधन) विधेयक में यह तारीख 31 दिसंबर 2014 कर दी गई है और इसके चलते यहां इस विधेयक का सबसे तीखा विरोध देखा जा रहा है। असमिया संगठनों का कहना है कि विधेयक के परिणामस्वरूप अवैध प्रवासियों का बोझ अकेले राज्य पर ही पड़ेगा। पहले से ही यह राज्य गैरकानूनी अप्रवासन का दंश झेल रहा है। असम ही इस बिल से सबसे अधिक प्रभावित होने जा रहा है असम विधानसभा में सोमवार को बजट सत्र के पहले दिन जमकर हंगामा हुआ, इस दौरान विपक्षी पार्टियों ने विवादित नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ खूब नारेबाजी की गयी।
पूर्वोत्तर भारत में इसके खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। लेकिन शेष भारत का मीडिया इन प्रदर्शन को नजरअंदाज कर रहा है, पूर्वोत्तर के लोगों को डर है कि इस विधेयक के कानून बनने के बाद इनके राज्यों में विदेशियों की तादाद अचानक बढ़ जाएगी जिससे यहां की आबादी का अनुपात बदल जाएगा।
सेवन सिस्टर कहे जाने पूर्वोत्तर के हर राज्य में इसके खिलाफ व्यापक असन्तोष है। नगालैंड में भी नागरिकता विधेयक के विरोध में कुछ प्रमुख संगठनों के बहिष्कार के आह्वान के कारण गणतंत्र दिवस समारोह में छात्र-छात्राओं और आम जनता ने समारोहों में भाग नहीं लिया। मिज़ोरम के राज्यपाल कुम्मानम राजशेखरन ने भी 70वें गणतंत्र दिवस पर लगभग खाली पड़े मैदान में अपना संबोधन दिया।
मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथंगा ने बीती 24 जनवरी को कहा कि अगर नागरिकता संशोधन विधेयक को रद्द नहीं किया गया तो सत्ताधारी मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) राजग के साथ गठबंधन तोड़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाएगी।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि यही भाजपा 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले NRC के मुद्दे पर बहुत मुखर थी। यह कहा जा रहा था कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स में जिनके नाम नहीं होंगे उन्हें अवैध नागरिक माना जाएगा लेकिन आपको बता दें कि यदि इस बिल को लागू किया जाता है तो इससे पहले से अपडेटेड नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंश (NRC) बेअसर हो जाएगा।
एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक में परस्पर विरोधाभास है। एनआरसी में धर्म के आधार पर शरणार्थियों को लेकर कोई भेदभाव नहीं है। NRC के मुताबिक, 24 मार्च 1971 के बाद अवैध रूप से देश में घुसे अप्रवासियों को निर्वासित किया जाएगा। चाहे वह किसी जाति धर्म के हो लेकिन इस विधेयक में बीजेपी धर्म के आधार पर शरणार्थियों को नागरिकता देने जा रहीं है जिससे इस क्षेत्र के मूल निवासियों के अधिकारों का हनन होगा ओर एक नया संघर्ष पैदा हो जाएगा।
राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए भाजपा पूर्वोत्तर में एक ऐसे संघर्ष को शुरू कर रही है। जो दूसरी कश्मीर समस्या को जन्म दे देगा और हिंसा और आतंकवाद का एक नया दौर शुरू हो जाएगा जिसकी आग बुझाए से नही बुझेगी।