नई दिल्ली। 80 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने गठबंधन कर सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी है। मायावती और अखिलेश यादव ने जैसे ही संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस कर इस गठबंधन की घोषणा की, राजनीतिक गलियारों में गर्माहट आ गई। मीडिया में भी इस गठबंधन को लेकर पैनल डिस्कसन होने लगे।
यह गठबंधन लोकसभा चुनाव में कितनी सीटें जीत पाएगा इसका प्रिडिक्शन करना बेमानी होगी। क्योंकि यह राजनीति है यहां फेरबदल व उथल पुथल में एक दिन का समय काफी लंबा होता है। आमतौर पर अखिलेश यादव और मायावती खबरों से दूर रहते हैं लेकिन अब दोनों पर चर्चा शुरू हो गई है। मीडिया भी इस गठबंधन को चटखारे लेकर अपने एंगल से कवर कर रहा है। मीडिया ने इस गठबंधन को लेकर अपने कार्यक्रमों में जातिवादी एंगल ऐसा घुसाया है कि देखने वालों के दिमाग में घुस जाए कि यह कितना गलत हो रहा है।
इंडिया टीवी ने कार्यक्रम का नाम दिया है....
यादव के लड़के.... राहुल से 'अड़' के खेल बिगाड़ेंगे?
इसके अलावा एबीपी न्यूज ने कार्यक्रम का नाम दिया....
गठबंधन राज आया, देश पर संकट छाया!
एबीपी न्यूज को शायद इस पर भी कुछ कहना चाहिए था कि यूपी में ही भाजपा के दो सहयोगी हैं। यानि भाजपा अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन में है। लेकिन इन फैक्ट्स को दरकिनार कर मीडिया मोदी को अकेला दिखाने की जुगत में नजर आ रहा है। मीडिया पर यूं ही गोदी मीडिया होने के आरोप नहीं लगे हैं वे इस गठबंधन के होते ही सामने आने लगे हैं।
इस बीच आज तक के एक कार्यक्रम को लेकर सोशल मीडिया पर हंगामा मचा हुआ है। हंगामा इस कार्यक्रम से नहीं बल्कि उसकी हैडलाइन को लेकर बरपा हुआ है। चैनल की मशहूर ने सोमवार को प्रसारित हुए इस कार्यक्रम को टाइटिल दिया है... ''साथ आए हैं यूपी बिहार लूटने''। आज तक के शो के इस टाइटिल को लेकर तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।
भारतीय जनसंचार संस्थान के पूर्व छात्र दीपांकर पटेल लिखते हैं....
मायावती-अखिलेश के गठबंधन को मीडिया इग्नोर तो कर नहीं सकता था तो उसे निगेटिव शेड दे दिया.
अब आप पूछेंगे इस गठबंधन पर बैलेंस TV प्रोग्राम कैसा होगा?
सही तो ये होता कि इस गठबंधन से यूपी की 71लोकसभा सीटों पर काबिज BJP की मुश्किल होने वाली राह का विश्लेषण किया जाता लेकिन "आज तक" ने इस गठबंधन से जनता को डराना शुरू कर दिया है.
आज तक वाले मीडिया एथिक्स का अचार डालकर उसे ऑफिस की छत पर सूखने के लिए डाल आए हैं.
लगता है आजतक में रीलवाली कैसेट पलटकर नब्बे के दशक के गाने सुनने वाला स्क्रिप्ट राइटर आया है.
MeToo पर "तू मैंनू कैंदी नाना-नाना" याद है?
'साथ आए हैं UP-बिहार लूटने' कहने के पीछे आधार क्या है? निर्णय सुनाकर प्रोग्राम शुरू करने का मकसद क्या है?
हल्ला बोल के इन्ट्रो में ही अंजना कहती हैं
"आखिर इस मुलाकात का मतलब क्या है. क्या साथ मिलकर यूपी और बिहार को लूटने की तैयारी है"
लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन है तो जीतने के बाद भी सपा-बसपा उत्तर प्रदेश सरकार तो चलाने वाले हैं नहीं तो UP-बिहार लूटने की संभावना भी कैसे बन रही है? अभी कौन-कौन UP लूट रहा है ABP न्यूज ने स्टिंग करके दिखाया था.
मीडिया कैसे नकारात्मकता फैलाता है, इसका उदाहरण देखिए. क्या गठबंधन पॉलिटिक्स वाले लूट-खसोट करने ही आते हैं. फिर तो इसी तर्क से NDA पूरे देश को लूट रहा है.
जब तक अखिलेश की सरकार थी आजतक और टॉइम्स वाले नोएडा में कुछ जमीन पाने के चक्कर में समाजवादी वंदना करते रहते थे. आज UP लुटवा रहे हैं।।।।
सोशल मीडिया पर सक्रिय सत्येंद्र सत्यार्थी लिखते हैं...
अंजना ॐ कश्यप जी के साथ हमारी गहरी हमदर्दी है ! बेचारी के दुःख को समझा जा सकता है ! अब से लेकर लोकसभा चुनाव तक मैडम को इस तरह के कई सदमों से गुज़रना होगा ! उनका ‘ईश्वर’ उन्हें यह सब देखने-सुनने और सहने की ताक़त प्रदान करे...
आमीन !
जेएनयू के रिसर्च स्कॉलर दिलीप यादव लिखते हैं...
ये जो पत्रकारिता कर रही हैं मैडम जी इनका शो बंद करना चाहिए क्योंकि इनके अंदर जातिवाद का जबरदस्त कीड़ा घुसा हुआ हैं इन्हें दलित पिछड़े आदिवासी लीडर लुटेरे लग रहे बाकी संघी लोग गंगा नहाएं दिख रहे हैं।
अंजना ओम कश्यव जैसे लुटेरे पत्रकार देश की पत्रकारिता के लिए कलंक हैं इन्हें पत्रकारिता नहीं चाटुकारिता आती हैं।
दिलीप यादव ने दूसरी पोस्ट में लिखा है....
भारतीय मीडिया की ये बहुत ही ओछी किस्म की पत्रकारिता हैं। जब मोदी जी ने उधोगपतियों को विदेश भगा दिया तब तो इन पत्रकार महोदया ने मोदी जी के बारे में कुछ नहीं बोला लेकिन जैसे ही उत्तर प्रदेश में सपा बसपा का गठबंधन हुआ और इस गठबंधन पर तेजश्वी यादव जी ने अपनी खुशी जाहिर की तुरंत ही इन महोदया ने गोदी मीडिया भक्ति दिखानी प्रारम्भ कर दी। सच में तरस आता हैं ऐसे पत्रकारों पर जिन्होंने अपने पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान पत्रकारिता की एथिक्स नहीं पढ़ी।
अंजना ओम कश्यव जी को दुवारा पत्रकारिता के कोर्स में एडमिशन ले लेना चाहिए जिससे कम से कम अच्छे से अपनी जॉब के लायक तो हो सके।
ऐसे समय में जब लोगों के पास सोशल मीडिया नाम का टूल है वे पत्रकारिता का मूल्यांकन कर उस पर सवाल उठा रहे हैं।
यह गठबंधन लोकसभा चुनाव में कितनी सीटें जीत पाएगा इसका प्रिडिक्शन करना बेमानी होगी। क्योंकि यह राजनीति है यहां फेरबदल व उथल पुथल में एक दिन का समय काफी लंबा होता है। आमतौर पर अखिलेश यादव और मायावती खबरों से दूर रहते हैं लेकिन अब दोनों पर चर्चा शुरू हो गई है। मीडिया भी इस गठबंधन को चटखारे लेकर अपने एंगल से कवर कर रहा है। मीडिया ने इस गठबंधन को लेकर अपने कार्यक्रमों में जातिवादी एंगल ऐसा घुसाया है कि देखने वालों के दिमाग में घुस जाए कि यह कितना गलत हो रहा है।
इंडिया टीवी ने कार्यक्रम का नाम दिया है....
यादव के लड़के.... राहुल से 'अड़' के खेल बिगाड़ेंगे?
इसके अलावा एबीपी न्यूज ने कार्यक्रम का नाम दिया....
गठबंधन राज आया, देश पर संकट छाया!
एबीपी न्यूज को शायद इस पर भी कुछ कहना चाहिए था कि यूपी में ही भाजपा के दो सहयोगी हैं। यानि भाजपा अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन में है। लेकिन इन फैक्ट्स को दरकिनार कर मीडिया मोदी को अकेला दिखाने की जुगत में नजर आ रहा है। मीडिया पर यूं ही गोदी मीडिया होने के आरोप नहीं लगे हैं वे इस गठबंधन के होते ही सामने आने लगे हैं।
इस बीच आज तक के एक कार्यक्रम को लेकर सोशल मीडिया पर हंगामा मचा हुआ है। हंगामा इस कार्यक्रम से नहीं बल्कि उसकी हैडलाइन को लेकर बरपा हुआ है। चैनल की मशहूर ने सोमवार को प्रसारित हुए इस कार्यक्रम को टाइटिल दिया है... ''साथ आए हैं यूपी बिहार लूटने''। आज तक के शो के इस टाइटिल को लेकर तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।
भारतीय जनसंचार संस्थान के पूर्व छात्र दीपांकर पटेल लिखते हैं....
मायावती-अखिलेश के गठबंधन को मीडिया इग्नोर तो कर नहीं सकता था तो उसे निगेटिव शेड दे दिया.
अब आप पूछेंगे इस गठबंधन पर बैलेंस TV प्रोग्राम कैसा होगा?
सही तो ये होता कि इस गठबंधन से यूपी की 71लोकसभा सीटों पर काबिज BJP की मुश्किल होने वाली राह का विश्लेषण किया जाता लेकिन "आज तक" ने इस गठबंधन से जनता को डराना शुरू कर दिया है.
आज तक वाले मीडिया एथिक्स का अचार डालकर उसे ऑफिस की छत पर सूखने के लिए डाल आए हैं.
लगता है आजतक में रीलवाली कैसेट पलटकर नब्बे के दशक के गाने सुनने वाला स्क्रिप्ट राइटर आया है.
MeToo पर "तू मैंनू कैंदी नाना-नाना" याद है?
'साथ आए हैं UP-बिहार लूटने' कहने के पीछे आधार क्या है? निर्णय सुनाकर प्रोग्राम शुरू करने का मकसद क्या है?
हल्ला बोल के इन्ट्रो में ही अंजना कहती हैं
"आखिर इस मुलाकात का मतलब क्या है. क्या साथ मिलकर यूपी और बिहार को लूटने की तैयारी है"
लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन है तो जीतने के बाद भी सपा-बसपा उत्तर प्रदेश सरकार तो चलाने वाले हैं नहीं तो UP-बिहार लूटने की संभावना भी कैसे बन रही है? अभी कौन-कौन UP लूट रहा है ABP न्यूज ने स्टिंग करके दिखाया था.
मीडिया कैसे नकारात्मकता फैलाता है, इसका उदाहरण देखिए. क्या गठबंधन पॉलिटिक्स वाले लूट-खसोट करने ही आते हैं. फिर तो इसी तर्क से NDA पूरे देश को लूट रहा है.
जब तक अखिलेश की सरकार थी आजतक और टॉइम्स वाले नोएडा में कुछ जमीन पाने के चक्कर में समाजवादी वंदना करते रहते थे. आज UP लुटवा रहे हैं।।।।
सोशल मीडिया पर सक्रिय सत्येंद्र सत्यार्थी लिखते हैं...
अंजना ॐ कश्यप जी के साथ हमारी गहरी हमदर्दी है ! बेचारी के दुःख को समझा जा सकता है ! अब से लेकर लोकसभा चुनाव तक मैडम को इस तरह के कई सदमों से गुज़रना होगा ! उनका ‘ईश्वर’ उन्हें यह सब देखने-सुनने और सहने की ताक़त प्रदान करे...
आमीन !
जेएनयू के रिसर्च स्कॉलर दिलीप यादव लिखते हैं...
ये जो पत्रकारिता कर रही हैं मैडम जी इनका शो बंद करना चाहिए क्योंकि इनके अंदर जातिवाद का जबरदस्त कीड़ा घुसा हुआ हैं इन्हें दलित पिछड़े आदिवासी लीडर लुटेरे लग रहे बाकी संघी लोग गंगा नहाएं दिख रहे हैं।
अंजना ओम कश्यव जैसे लुटेरे पत्रकार देश की पत्रकारिता के लिए कलंक हैं इन्हें पत्रकारिता नहीं चाटुकारिता आती हैं।
दिलीप यादव ने दूसरी पोस्ट में लिखा है....
भारतीय मीडिया की ये बहुत ही ओछी किस्म की पत्रकारिता हैं। जब मोदी जी ने उधोगपतियों को विदेश भगा दिया तब तो इन पत्रकार महोदया ने मोदी जी के बारे में कुछ नहीं बोला लेकिन जैसे ही उत्तर प्रदेश में सपा बसपा का गठबंधन हुआ और इस गठबंधन पर तेजश्वी यादव जी ने अपनी खुशी जाहिर की तुरंत ही इन महोदया ने गोदी मीडिया भक्ति दिखानी प्रारम्भ कर दी। सच में तरस आता हैं ऐसे पत्रकारों पर जिन्होंने अपने पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान पत्रकारिता की एथिक्स नहीं पढ़ी।
अंजना ओम कश्यव जी को दुवारा पत्रकारिता के कोर्स में एडमिशन ले लेना चाहिए जिससे कम से कम अच्छे से अपनी जॉब के लायक तो हो सके।
ऐसे समय में जब लोगों के पास सोशल मीडिया नाम का टूल है वे पत्रकारिता का मूल्यांकन कर उस पर सवाल उठा रहे हैं।