अलीगढ़: शनिवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय के छात्रों ने सवर्ण आरक्षण के ख़िलाफ़ अपना विरोध दर्ज करते हुए संविधान संशोधन बिल की प्रतियाँ जलाईं।छात्रों ने बिल का विरोध करते हुए कहा कि 'सवर्ण आरक्षण देने वाला यह बिल संविधान की आस्था के ख़िलाफ़ है, यह बिल बाबासाहेब अम्बेडकर का मज़ाक उड़ाने का प्रयास है और साथ ही संविधानिक सामाजिक न्याय की हत्या करता है'।
राजनीति विज्ञान के छात्र शरजील उस्मानी ने कहा कि 'आरक्षण आर्थिक आधार पर नहीं दिया जा सकता, आरक्षण कोई ग़रीबी हटाओ योजना नहीं है। आरक्षण प्रतिनिधित्व की लड़ाई है, दलितों-शोषितों-वंचितों को मुख्यधारा में लाने की लड़ाई है, उन लोगों को अवसर प्रदान करने की लड़ाई है जिनके पेट और दिमाग पर हजारों साल से ब्राह्मण लात मारते आए हैं। इस बिल के माध्यम से सवर्ण आरक्षण दे कर भाजपा सरकार अपने नागपुर हेडक्वार्टर के एजेंडे को लागू करना चाहती है। इसका विरोध किया जाएगा।
इसी क्रम में अब्दुल्लाह कॉलेज की छात्रसंघ अध्यक्ष ने भी इस बिल का विरोध करते हुए इस बिल को राजनीतिक स्टंट बताया। उन्होंने कहा कि 'भाजपा सरकार जानती है कि इस बिल पर सुप्रीम कोर्ट रोक लगा देगा, यह बिल असंवैधानिक है। मगर भाजपा को राजनीति करनी है। सवर्णों का वोट हासिल करने के लिए भाजपा ने आनन-फानन में यह बिल पास कराया है। सरकार यदि मानती है कि सवर्ण जातियों के लोग ग़रीबी से मर रहे हैं और उन्हें आरक्षण चाहिए तो सरकार बताए कि वे किस रिपोर्ट के आधार पर यह बात कर रहे हैं।
अब्दुल्लाह कॉलेज की छात्रसंघ अध्यक्ष ने आगे कहा कि सरकार यदि सामाजिक न्याय की पक्षधर है तो सच्चर कमिटी रिपोर्ट में बताए गए निर्देशों को क्यों नहीं लागू करती, यह दोहरा व्यहवार क्यों!
आखिर में अपनी बात रखने आए एमएसडब्ल्यू छात्र अब्दुल मतीन ने भी इस बिल का विरोध किया। उन्होंने कहा 'इस बिल को ऐसे समझिए कि एक दुकानदार साबुन 90 परसेंट छूट पर बेच रहा है, मगर वो साबुन ही आउट-ऑफ़-स्टॉक है। इसी तरह सरकार नौकरियों में सवर्ण गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण तो दे रही है मगर नौकरियाँ कहाँ हैं? मोदी ने 2014 में हर साल दो करोड़ नौकरियाँ देने का वादा किया था - और सत्ता में आने के बाद सवर्ण आरक्षण नाम का झुनझुना पकड़ा दिया।
उन्होंने आगे कहा कि मुसलमानों को भी सोचना चाहिए कि कैसे 2 प्रतिशत ब्राह्मण अपनी बात सरकार ने मनवा लेते हैं मगर वहीं मुसलमान 20 प्रतिशत होने के बाद भी दो नम्बर का शहरी बन कर रहने को मजबूर है।
इस विरोध बैठक में छात्रनेता अहमद मुजतबा फ़राज़, शमीम बारी, फैसल नदीम, माहिया, मोहम्मद अनस, आसिफ सऊद आदि मौजूद थे।
राजनीति विज्ञान के छात्र शरजील उस्मानी ने कहा कि 'आरक्षण आर्थिक आधार पर नहीं दिया जा सकता, आरक्षण कोई ग़रीबी हटाओ योजना नहीं है। आरक्षण प्रतिनिधित्व की लड़ाई है, दलितों-शोषितों-वंचितों को मुख्यधारा में लाने की लड़ाई है, उन लोगों को अवसर प्रदान करने की लड़ाई है जिनके पेट और दिमाग पर हजारों साल से ब्राह्मण लात मारते आए हैं। इस बिल के माध्यम से सवर्ण आरक्षण दे कर भाजपा सरकार अपने नागपुर हेडक्वार्टर के एजेंडे को लागू करना चाहती है। इसका विरोध किया जाएगा।
इसी क्रम में अब्दुल्लाह कॉलेज की छात्रसंघ अध्यक्ष ने भी इस बिल का विरोध करते हुए इस बिल को राजनीतिक स्टंट बताया। उन्होंने कहा कि 'भाजपा सरकार जानती है कि इस बिल पर सुप्रीम कोर्ट रोक लगा देगा, यह बिल असंवैधानिक है। मगर भाजपा को राजनीति करनी है। सवर्णों का वोट हासिल करने के लिए भाजपा ने आनन-फानन में यह बिल पास कराया है। सरकार यदि मानती है कि सवर्ण जातियों के लोग ग़रीबी से मर रहे हैं और उन्हें आरक्षण चाहिए तो सरकार बताए कि वे किस रिपोर्ट के आधार पर यह बात कर रहे हैं।
अब्दुल्लाह कॉलेज की छात्रसंघ अध्यक्ष ने आगे कहा कि सरकार यदि सामाजिक न्याय की पक्षधर है तो सच्चर कमिटी रिपोर्ट में बताए गए निर्देशों को क्यों नहीं लागू करती, यह दोहरा व्यहवार क्यों!
आखिर में अपनी बात रखने आए एमएसडब्ल्यू छात्र अब्दुल मतीन ने भी इस बिल का विरोध किया। उन्होंने कहा 'इस बिल को ऐसे समझिए कि एक दुकानदार साबुन 90 परसेंट छूट पर बेच रहा है, मगर वो साबुन ही आउट-ऑफ़-स्टॉक है। इसी तरह सरकार नौकरियों में सवर्ण गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण तो दे रही है मगर नौकरियाँ कहाँ हैं? मोदी ने 2014 में हर साल दो करोड़ नौकरियाँ देने का वादा किया था - और सत्ता में आने के बाद सवर्ण आरक्षण नाम का झुनझुना पकड़ा दिया।
उन्होंने आगे कहा कि मुसलमानों को भी सोचना चाहिए कि कैसे 2 प्रतिशत ब्राह्मण अपनी बात सरकार ने मनवा लेते हैं मगर वहीं मुसलमान 20 प्रतिशत होने के बाद भी दो नम्बर का शहरी बन कर रहने को मजबूर है।
इस विरोध बैठक में छात्रनेता अहमद मुजतबा फ़राज़, शमीम बारी, फैसल नदीम, माहिया, मोहम्मद अनस, आसिफ सऊद आदि मौजूद थे।