छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी को यहां राजनीति का धुरंधर कहते हैं. सत्ता के गलियारों में ऐसी कोई चर्चा नहीं जिसमे अजीत जोगी ज़िक्र न होता हो. इसका एक कारण ये भी है कि जोगी परिवार में तीन सदस्यों का, तीन प्रमुख राजनीतिक दलों से साथ रहा है.
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अजीत जोगी
आइएस और आइपीएस जैसे पदों पर रहे अजीत जोगी ने सन 1986 में राजनीती में प्रवेश किया. सन 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य गठन के साथ वे कांग्रेस की तरफ़ प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने. तब से हमेशा ही छत्तीसगढ़ कांग्रेस के लिए अजीत जोगी ही चेहरा रहे. जोगी को पीछे कर प्रदेश में पार्टी की तरफ़ से मुख्यमंत्री के दावेदार हो सकने वाले लगभग सभी चेहरे, झीरम घाटी हमले में मार दिए गए. तब एक बार फिर अजीत जोगी ही कांग्रेस का अकेला चेहरा रह गए थे. पर पार्टी के साथ चल रही तनातनी और लगातार लग रहे आरोपों के चलते अंततः अजीत जोगी ने कांग्रेस का साथ छोड़ ही दिया.
कभी प्रदेश कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे जोगी छत्तीसगढ़ से राज्यसभा उम्मीदवार बनना चाहते थे, पर पार्टी ने उनकी जगह छाया वर्मा पर दांव लगाया, जिससे वे नाराज हो गए. इसी बीच एक सीडी मामले में भी अनुशासन समिति ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया था. इस मामले में उनके बेटे अमित जोगी को कांग्रेस से निकाल दिया गया था. इसी के बाद जोगी ने कांग्रेस से बगावत कर अपनी अलग पार्टी बनाने का फैसला किया. अब कांग्रेस से दो-दो हाथ करने के लिए उन्होंने बसपा के साथ गठबंधन किया है. राज्य की कुल 90 सीटों में से 35 बसपा 53 जोगी और 2 सीटें सीपीएम को मिली हैं.
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) के अध्यक्ष अजीत जोगी पार्टी चेहरा हैं. अजित जोगी अब अपनी परंम्परागत मरवाही विधान सभा सीट से चुनाव लड़ेंगे. फिलहाल मरवाही विधान सभा सीट से उनके बेटे अमित जोगी बतौर कांग्रेस विधायक काबिज़ है. जबकि जोगी ने पहले कहा था कि वो चुनाव नहीं लड़ेगें.
रेणु जोगी
अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी अपनी परंपरागत सीट कोटा से ही चुनाव मैदान में उतरी हैं चूंकि कोटा विधानसभा सीट मरवाही के पड़ोस में ही है लिहाज़ा यहां जोगी परिवार का असर रहता ही है. कोटा सीट से रेणु जोगी कांग्रेस की टिकट पर तीन बार ऍमएलए रह चुकी हैं. वर्तमान में भी वो कांग्रेस की तरफ़ से ही कोटा की ऍमएलए हैं. 2016 में जनता कांग्रेस बन जाने के बावजूद 2018 तक रेणु जोगी ने कांग्रेस का दामन नहीं छोड़ा था. भरसक कोशिश करने के पर भी जब कांग्रेस प्रत्याशियों की लिस्ट से रेणु जोगी को बाहर ही रखा गया, तब जाकर हाल ही में उन्होंने जनता कांग्रेस की सदस्यता ली है, और अब वे उसी की टिकट पर अपनी पैठ वाली कोटा सीट से चुनाव लड़ रही हैं.
रेणु जोगी के जनता कांग्रेस से चुनाव लड़ने के कारण कांग्रेस के हाथ से इस सीट का निकल जाना तय मन जा रहा है, क्योंकि इस इलाके में भाजपा की कोई ख़ास पकड़ नहीं हैं और कांग्रेस की तरफ़ से रेणु जोगी ही लगातार यहां जीतती आई हैं. पर कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि अपने पारिवारिक गढ़ से चुनाव लड़ने के बावजूद रेणु जोगी के लिए इस बार चुनाव जीतना उतना आसन नहीं होगा, जितना अजीत जोगी के लिए होता है. क्योंकि रेणु जोगी के ख़िलाफ़ कांग्रेस की तरफ़ से पूर्व पुलिस अधिकारी विभोर सिंह चुनाव मैदान में हैं विभोर सिंह के परिवार का ताल्लुक गोंड आदिवासी समुदाय से है, और कोटा विधानसभा क्षेत्र में गोंड आदिवासी मतदाताओं की बड़ी संख्या है. विभोर सिंह पुलिस अधिकारी रह चुके हैं. अनुमान तो ये भी लगाए जा रहे हैं कि इन दोनों के बीच वोटों के बंटवारे का लाभ भाजपा को भी मिल सकता है.
अमित जोगी
अमित जोगी अपनी पिता की पार्टी जनता कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ेंगे. उन्होंने मरवाही सीट पिता के लिए छोड़कर मनेन्द्रगढ़ से उतरने का फैसला किया है. जनता कांग्रेस में पिता अजीत जोगी के बाद अमित जोगी ही सर्वेसर्वा हैं.
ऋचा जोगी
अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी की पत्नी ऋचा जोगी जनता कांग्रेस के बजाय बसपा के टिकट से चुनाव लड़ रही हैं. वे हालाही में बसपा में शामिल हुई हैं. उन्हें बसपा के प्रभारी लालजी वर्मा ने पार्टी की सदस्यता दिलाई. ऋचा जोगी बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर अकलतरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं. अकलतरा सीट से 2008 में बसपा प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी. बता दें कि गठबंधन के तहत अकलतरा और चंद्रपुर दोनों सीटें बसपा के खाते में हैं.
जोगी बसपा गटबंधन का छत्तीसगढ़ चुनाव में कैसा होगा असर
छत्तीसगढ़ में बसपा और कांग्रेस के गटबंधन की बात कही जा रही थी. अजीत जोगी और बसपा सुप्रीमो मायावती दोनों ही राजनीति में साहसिक फैसले लेते रहे हैं, पर फिर भी किसी ने ये उम्मीद नहीं की थी कि छत्तीसगढ़ में मायावती और कांग्रेस के बागी अजीत जोगी गटबंधन कर लेंगे.
लखनऊ में अजीत जोगी और मायावती ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस की और यह ऐलान किया कि उन्होंने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के मद्देनजर गठबंधन कर लिया है. मायावती ने यह भी ऐलान किया कि अगर यह गठबंधन सत्ता में आया तो अजीत जोगी ही मुख्यमंत्री होंगे.
छत्तीसगढ़ राज्य 1 नवंबर 2000 को बना था, और साल 2003 के पहले विधानसभा चुनाव में बसपा ने 54 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमे से 2 पर उसने जीत दर्ज की थी. तब पार्टी का वोट प्रतिशत शेयर 4.45 था. साल 2008 के चुनाव में, बसपा ने सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ा और वोट प्रतिशत में बढ़त यानि कुल 6.11 प्रतिशत वोटों के साथ 2 सीटों पर फिर जीत हासिल की. साल 2013 में, बसपा का वोट प्रतिशत घाट कर 4.27 हो गया. 90 विधायकों के मौजूदा सदन में, बसपा के पास फ़िलहाल एकमात्र सदस्य है.
आदिवासी नेता अजीत जोगी की लोकप्रियता पूरे राज्य में हैं, हालांकि उनके आदिवासी होने पर विवाद उठते रहे हैं पर कोर्ट ने उनके पक्ष में फ़ैसला दिया है. दलित, इसाई, और मुसलमान समुदाय में भी जोगी की पैठ है. इतने समय में अजीत जोगी ने मरवाही क्षेत्र को अपने गढ़ की तरह स्थापित कर लिया है. अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस सीट से जोगी ने कांग्रेस के टिकट पर 2003 और 2008 में जीत हासिल की थी. 2013 में उनके बेटे अमित जोगी ने इस सीट पर 40000 वोटों के बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी. अब 2018 में अजीत जोगी बसपा गटबंधन के साथ फिर एक बार यहां से चुनाव मैदान में हैं.
चूंकि पिछले चुनाव में भाजपा-कांग्रेस के बीच मतों का अंतर एक फ़ीसद से भी कम था. तो निष्कर्ष ये निकलता है कि एक ऐसे राज्य में जहां जीत का मार्जिन इतना कम रहता है, जहां मुकाबला हमेशा हेड-टू-हेड रहा है वहां बसपा का ये कम वोट प्रतिशत भी किसी का भाग्य पलटने के लिए पर्याप्त है.
जाती फैक्टर भी करेगा काम
एक दिलचस्प बात ये भी है कि मायावती और जोगी दोनों अनुसूचित जाति के मसीहा होने का दावा करते हैं. छत्तीसगढ़ में एससी के लिए 10 आरक्षित सीटें हैं, जिनमें से बीजेपी ने पिछली बार 9 पर जीत हासिल की थी और कांग्रेस ने सिर्फ़ एक पर. इसलिए गठबंधन बीजेपी को कुछ हद तक नुकसान पहुंचा सकता है.
इसके अलावा, आदिवासियों के लिए 29 सीटें आरक्षित हैं और अन्य सीटों में एससी आबादी 10 प्रतिशत से अधिक है. लेकिन जोगी भी राज्य में एक दर्जन से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में मुस्लिम और ईसाई आबादी पर कुछ वर्चस्व रखते हैं. ये सारे फैक्टर भाजपा और कांग्रेस दोनों के ही वोटों में सेंध लगा सकते हैं.
रमन सिंह के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर
पिछले 15 वर्षों से मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह के ख़िलाफ़ पूरे प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर जैसा माहौल बना हुआ है. मंहगाई, कृषि संकट के चलते किसानों की आत्महत्या, युवाओं में बढ़ती बेरोज़गारी, और भाजपा के नेताओं का गुंडई स्वभाव भी इस सत्ता विरोधी लहर को ख़ूब हवा दे रहा है. इसी का फ़ायदा उठाने के लिए अजीत जोगी की पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में बेरोजगरा ग्रेजुएट युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने, बच्ची पैदा होने पर उसके नाम से एक लाख रुपए का फिक्स्ड डिपॉजिट खोलने का वादा भी किया है. इन वादों से जोगी ने छत्तीसगढ़ के वोटरों को लुभाने में कामयाबी हासिल की है. जोगी बसपा गटबंधन सिर्फ़ अजीत जोगी के लिए ही नहीं बसपा के लिए भी फायदेमन्द हो सकता है. बसपा के पास ये मौका है कि वो राज्य में अपनी ताकत और बढ़ा सके. वहीं इस गठबंधन की मदद से अजीत जोगी एक मजबूत क्षेत्रीय नेता के तौर पर उभर सकेंगे.
खिचड़ी रिज़ल्ट
तीसरा मोर्चा निकल आने के बाद इस बार छत्तीसगढ़ के चुनाव में खिचड़ी रिज़ल्ट आने के भरपूर आसार हैं, यानि इस बार किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलना मुश्किल दिख रहा है. और अगर ये स्थिति सच साबित होती है, तो इसका फ़ाएदा अजीत जोगी को ही ज़्यादा मिलेगा.