सीजेपी और एआईयूएफडब्ल्यूपी की लगातार कोशिशों से जेल में बन्द आदिवासी मानवाधिकार रक्षकों को अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया गया.
आदिवासी मानवाधिकार रक्षकों सुकालो और किस्मतिया गोंड के लिए चलाए गए रिहाई अभियान में सीजेपी और ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फ़ॉरेस्ट वर्किंग पीपल (एआईयूएफडब्लूपी) को महत्वपूर्ण सफलता हासिल हुई है. अलाहाबाद उच्च न्यायलय ने दोनों महिलाओं को न्यायिक सहायता हेतु अपील की इजाज़त प्रदान की है. हमारे द्वारा दायर की गई हबियास कॉर्पस पेटिशन (बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका) के चलते एआईयूएफडब्ल्यूपी की कोषाध्यक्ष सुकालो और वन अधिकार समिति (एफआरसी) की सचिव किस्मतिया गोंड को बीते 7 सितम्बर को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया गया था.
दोनों महिलाओं को झूठे मामलों में फंसाकर लगभग 3 महीने से जेल में बन्द रखा गया है. अब वे ज़मानत के लिए आवेदन दे सकती हैं. याचिकाकर्ताओं सुकालो व किस्मतिया के वकील फ़रमान नकवी ने कहा है कि "चूंकि ये दो महिला नेता न्यायिक हिरासत में हैं, इसलिए वे हबियास कॉर्पस याचिका के लिए लागू कानून के अनुसार अपनी रिहाई की मांग कर सकती हैं."
अदालत ने प्रासंगिक पूछताछ करते हुए दोनों के ही बयान दर्ज किये हैं.पुलिस द्वारा प्रस्तुत हलफ़नामे में अदालत को गुमराह करने की कोशिश किए जाने के कारण स्थानीय पुलिस को कई बार फटकार लगाई गई है. मामले से सम्बंधित राज्य सरकार के अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का मौखिक आदेश देते हुए न्यायधीशों ने कहा कि “ यदि आप अदालत के समक्ष प्रस्तुत शपथपत्र जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ में गड़बड़ी कर अदालत को गुमराह करने जैसा गंभीर दुस्साहस कर रहे हैं तो हम उस भयानक दहशत की कल्पना मात्र कर सकते है जो आप स्थानीय स्तर पर फैलाते होंगे”.
अदालत ने सुकालो और किस्मतिया से उनकी अवैध गिरफ्तारी की अवधि के बारे में पूछा, जिसमें दोनों ने ये जवाब दिया कि उन्हें लगभग तीन महीने से कैद कर के रखा गया है. अदालत ने उनसे पूछा कि क्या उन्हें पहले कभी किसी न्यायाधीश के समक्ष पेश किया गया है, जैसा कि सीआरपीसी की धारा 167 के तहत अनिवार्य है. दोनों महिलाओं ने कहा कि उन्हें "कहीं ले जाया गया था" परन्तु विधिक परामर्श के आभाव के कारण वे यह दावा नहीं कर सकतीं कि वो न्यायाधीश थे या नहीं. अदालत ने उनसे पूछा कि कैद की अवधि के दौरान उनके साथ “उचित बर्ताव” किया गया या नहीं. दोनों ने जवाब दिया कि उनके साथ दुर्व्यवहार नहीं किया गया व भोजन वगैरह नियमित रूप से दिया गया.
वकील फ़रमान नकवी ने अदालत से ये अनुमति मांगी थी कि इन आदिवासी वन नेताओं को उनके परिवारों से मिलने दिया जाए, जिस पर अदालत ने सहमति व्यक्त की और कहा था कि जब तक वे संतोषजनक मानते हैं तब तक वे उनसे मिल सकते हैं. मुलाकात के बाद परिवारों ने कहा कि सुकालो और किस्मतिया ठीक लग रहे थे. हालांकि किस्मतिया थोड़ी परेशान थी क्योंकि इस प्रकार की कैद का ये उसका पहला अनुभव था, सुकालो थोड़ा बेहतर लग रही थी.
न्यायिक जवाबदेही के हमारे अभियान के लिए ये एक अहम घटना है. ये ख़ास इसलिए भी है क्योकि एक लम्बी अवधि तक इन महिलाओं से संपर्क कर पाना मुमकिन नहीं हो पा रहा था. हालांकि, अदालत के हस्तक्षेप के कारण, यूपी पुलिस को उन्हें अदालत के समक्ष पेश करने के लिए मजबूर होना पड़ा. तीन महीने के लम्बे संघर्ष के बाद इन महिलाओं से परिवार की मुलाकात का दृश्य एक बेहद भावनात्मक क्षण था.
आप यहां सुकालो और किस्मतिया की कहानी देख सकते हैं: