कितनी विचित्र बात है। सवर्णों को आंदोलन करना पड़ रहा है। मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि सवर्णों को आंदोलन नहीं करना चाहिए। बेशक करना चाहिए। लेकिन आंदोलन तो हक के लिए, न्याय के लिए होता है फिर इन सवर्ण भाइयों का हक कौन मार रहा है, उनके साथ अन्याय कौन कर रहा है ? शायद कोई नहीं! फिर ये भाई आंदोलन क्यों कर रहे हैं ?
दरअसल अब समय बदल गया है। पहले शोषण के खिलाफ आंदोलन होते थे, भारत बंद होता था अब शोषण के खिलाफ बने कानूनों को निरस्त करने के लिए आंदोलन होता है।
एक साहब कहने लगे- बड़ा दुरूपयोग होता है इस SC/ST एक्ट का। निरस्त तो होना ही चाहिए।
मैंने कहा- हां साहब, सही कह रहे हैं आप। आये दिन अखबार में छपता है कि दलितों ने ब्राह्मणों को घोड़ी चढ़ने से रोका, सरेआम पीटा, कुँए पर पानी भरने के कारण दलितों ने सवर्ण बच्चे को पीटा, दलितों ने सवर्णों के घर जला दिए। इतने अत्याचार दलित कर रहे हैं फिर क्यों न इस कानून को रद्द कर दिया जाए।
वे कहने लगे- आप तो उलटा ही समझते हैं। मेरे कहने का मतलब ये नहीं था।
मैंने कहा- फिर कहना क्या चाहते हैं ?
वे बोले- मेरे कहने का मतलब इस कानून का दुरुपयोग बढ़ गया है। थोड़ा सा संशोधन होना चाहिए। किसी भी FIR पर तुरंत गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए।
मैंने उनकी बात को बीच में ही काटते हुए कहा- इसे आप थोड़ा संशोधन कहते हैं ? यह जानते हुए भी की शोषण करने वाले की पकड़ थाने से लेकर अदालत तक होती है। शोषण वही करता है जिसे कानून का खौफ न हो, समाज का डर न हो और मानसिकता विकृत हो। दलितों का शोषण करने वाला समाज मे दबदबा रखता है। ऐसे ही नहीं वह बड़ी घटनाओं को अंजाम दे देता है।
वे बोले- लेकिन कानून का दुरुपयोग तो हो रहा है। बदलाव होना चाहिए।
मैंने कहा- सबसे ज्यादा दुरूपयोग तो अफ्सपा का हो रहा है। न जाने कितने निर्दोषों की जानें इस कानून ने ली है। अभी भी सिलसिला जारी है। क्यों नहीं इस कानून के विरोध के लिए आप सड़क पर आते ? उतर आइए सड़क सड़क पर मैं आपके साथ हूँ।
वे बोले- असफा ? ये कौन सा कानून है ?
उनके इस प्रश्न पर मैंने बस इतना ही कहा- आप ठीक हैं। आंदोलन सही है। सबसे ज्यादा पीड़ित सवर्ण ही हैं इस देश में।
उनके अफ्सपा के प्रश्न की नादानी पर मुझे थोड़ी हंसी आयी। पर क्या करें उनकी गलती नहीं है। यह देश सिर्फ जरूरत की चीजें याद रखता है। वही चीजें जिसमें अपना मुनाफा है। कमजोरों के साथ खड़े होने वालों की संख्या कम है। आये दिन अखबारों में छाया रहता है- फला जगह दलितों के घर फूंके गए, दलित युवती के साथ बलात्कार, FIR दर्ज करने से पुलिस ने किया इनकार। ये सब तो अब आम खबरें हो चुकी हैं। ऊना में मरी हुई गाय न उठाने के कारण दलित युवकों को खुली पीठें मार-मारकर लाल कर दी गयी थीं यह घटना कैसे भुलाई जा सकती है।
मैं पूछता हूँ- क्या आपने कभी सुना कि किसी पंडित को सत्यनारायण की पूजा न सुनाने के कारण पीटा गया हो ? या किसी सवर्ण को काम पर लेट पहुंचने के कारण जलील किया गया हो मुंह पर कालिख पोती गयी हो ?
जवाब ना में ही मिलेगा।
दरअसल मामला SC/ST एक्ट के उलंघन का है ही नहीं। आप डरते हैं समाज में बराबरी से। दलित आपके बराबर का हो जाएगा तो आपके खेत कौन जोतेगा? आपके जूते साफ करने वाले कहाँ रह जाएंगे ? गटर नालियां साफ करने वाले कहाँ मिलेंगे ? और तो और मैला उठवाना सरकार ने जुर्म माना है सीवर तो आप दलितों से ही साफ करवाएंगे। वह साफ करने से मना करेगा तो पीटने का अधिकार तो चाहिए ही। यही SC/ST एक्ट पीटने के अधिकार से आपको रोकता है जो आपको विचलित कर जाती है और आप उसके खतम होने के लिए आंदोलन कर बैठते हैं।
दरअसल अब समय बदल गया है। पहले शोषण के खिलाफ आंदोलन होते थे, भारत बंद होता था अब शोषण के खिलाफ बने कानूनों को निरस्त करने के लिए आंदोलन होता है।
एक साहब कहने लगे- बड़ा दुरूपयोग होता है इस SC/ST एक्ट का। निरस्त तो होना ही चाहिए।
मैंने कहा- हां साहब, सही कह रहे हैं आप। आये दिन अखबार में छपता है कि दलितों ने ब्राह्मणों को घोड़ी चढ़ने से रोका, सरेआम पीटा, कुँए पर पानी भरने के कारण दलितों ने सवर्ण बच्चे को पीटा, दलितों ने सवर्णों के घर जला दिए। इतने अत्याचार दलित कर रहे हैं फिर क्यों न इस कानून को रद्द कर दिया जाए।
वे कहने लगे- आप तो उलटा ही समझते हैं। मेरे कहने का मतलब ये नहीं था।
मैंने कहा- फिर कहना क्या चाहते हैं ?
वे बोले- मेरे कहने का मतलब इस कानून का दुरुपयोग बढ़ गया है। थोड़ा सा संशोधन होना चाहिए। किसी भी FIR पर तुरंत गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए।
मैंने उनकी बात को बीच में ही काटते हुए कहा- इसे आप थोड़ा संशोधन कहते हैं ? यह जानते हुए भी की शोषण करने वाले की पकड़ थाने से लेकर अदालत तक होती है। शोषण वही करता है जिसे कानून का खौफ न हो, समाज का डर न हो और मानसिकता विकृत हो। दलितों का शोषण करने वाला समाज मे दबदबा रखता है। ऐसे ही नहीं वह बड़ी घटनाओं को अंजाम दे देता है।
वे बोले- लेकिन कानून का दुरुपयोग तो हो रहा है। बदलाव होना चाहिए।
मैंने कहा- सबसे ज्यादा दुरूपयोग तो अफ्सपा का हो रहा है। न जाने कितने निर्दोषों की जानें इस कानून ने ली है। अभी भी सिलसिला जारी है। क्यों नहीं इस कानून के विरोध के लिए आप सड़क पर आते ? उतर आइए सड़क सड़क पर मैं आपके साथ हूँ।
वे बोले- असफा ? ये कौन सा कानून है ?
उनके इस प्रश्न पर मैंने बस इतना ही कहा- आप ठीक हैं। आंदोलन सही है। सबसे ज्यादा पीड़ित सवर्ण ही हैं इस देश में।
उनके अफ्सपा के प्रश्न की नादानी पर मुझे थोड़ी हंसी आयी। पर क्या करें उनकी गलती नहीं है। यह देश सिर्फ जरूरत की चीजें याद रखता है। वही चीजें जिसमें अपना मुनाफा है। कमजोरों के साथ खड़े होने वालों की संख्या कम है। आये दिन अखबारों में छाया रहता है- फला जगह दलितों के घर फूंके गए, दलित युवती के साथ बलात्कार, FIR दर्ज करने से पुलिस ने किया इनकार। ये सब तो अब आम खबरें हो चुकी हैं। ऊना में मरी हुई गाय न उठाने के कारण दलित युवकों को खुली पीठें मार-मारकर लाल कर दी गयी थीं यह घटना कैसे भुलाई जा सकती है।
मैं पूछता हूँ- क्या आपने कभी सुना कि किसी पंडित को सत्यनारायण की पूजा न सुनाने के कारण पीटा गया हो ? या किसी सवर्ण को काम पर लेट पहुंचने के कारण जलील किया गया हो मुंह पर कालिख पोती गयी हो ?
जवाब ना में ही मिलेगा।
दरअसल मामला SC/ST एक्ट के उलंघन का है ही नहीं। आप डरते हैं समाज में बराबरी से। दलित आपके बराबर का हो जाएगा तो आपके खेत कौन जोतेगा? आपके जूते साफ करने वाले कहाँ रह जाएंगे ? गटर नालियां साफ करने वाले कहाँ मिलेंगे ? और तो और मैला उठवाना सरकार ने जुर्म माना है सीवर तो आप दलितों से ही साफ करवाएंगे। वह साफ करने से मना करेगा तो पीटने का अधिकार तो चाहिए ही। यही SC/ST एक्ट पीटने के अधिकार से आपको रोकता है जो आपको विचलित कर जाती है और आप उसके खतम होने के लिए आंदोलन कर बैठते हैं।