मध्यप्रदेश की राजनीति और सहकारिता बैंकों के घोटाले का पुराना साथ है। सहकारिता बैंकों का इस्तेमाल नोटबंदी के दौरान बड़े नेताओं ने अपने पुराने नोटों को बदलने के लिए जिस तरीके से गुजरात समेत बाकी देश में इस्तेमाल किया था, उसी तरीके से मध्यप्रदेश में भी किया। हालांकि मध्यप्रदेश में सहकारिता बैंक और भी कई तरीके से घोटाले करते रहे हैं, जिनमें एक चर्चित घोटाला है वेतन घोटाला।

पत्रिका के अनुसार, मध्यप्रदेश के 27 जिला सहकारी बैंकों में 400 करोड़ रुपए से ज्यादा का वेतन घोटाला हुआ है और इनमें भाजपा के कई नेता और बैंकों के अधिकारी शामिल हैं।
घोटाला बहुत ही सुनियोजित ढंग से किया गया था और इसके लिए संचालक मंडल ने छठे वेतनमान में ही कर्मचारियों का वेतन ज्यादा निर्धारित कर लिया था। इस तरह से सातवें वेतन आयोग का आदेश आने से पहले ही कर्मचारी ज्यादा वेतन लेने लगे थे।
सहकारिता विभाग ने वेतन निर्धारण के आदेश 1 जनवरी 2011 से दिए थे, लेकिन कर्मचारी एक जनवरी 2006 से ही ज्यादा वेतन लेने लगे थे। एक कर्मचारी ने औसतन एक वर्ष में तीन लाख से अधिक वेतन 5 साल तक लिया तो सभी कर्मचारियों ने कुल मिलाकर 405 करोड़ रुपए ज्यादा वेतन लिया होगा। प्रदेश के करीब 38 जिला सहकारी बैंकों में 400 से ज्यादा कर्मचारी काम करते बताए जा रहे हैं।
पूरे मामले का खुलासा तब हुआ जब सहकारिता विभाग ने एक माह पहले इन बैंकों को नोटिस जारी करके कहा कि जिन बैंकों की स्थिति ठीक है, वे सातवां वेतनमान दे सकते हैं, लेकिन इसमें बैंकों को हेड ऑफिस में प्रेजेंटेशन देना होगा। इसी दौरान पता चला कि 38 में से 10 जिला सहकारी बैंक ही मुनाफे में हैं, लेकिन बैंकों के कर्मचारी तो बहुत पहले से ही सातवें वेतनमान के लागू होने से 5 साल पहले से ही उसका लाभ ले रहे हैं।
अब सहकारिता विभाग ने संयुक्त पंजीयक के जरिए बैंकों को धारा 58-बी का नोटिस दिया है जिसके तहत गलत तरीके से वेतन देने वाले संचालक मंडल और बैंक मैनेजरों से वसूली की जाती है और संपत्ति भी कुर्क की जा सकती है। जो जिला सहकारी बैंक इनमें शामिल हैं, उनमें भोपाल, इंदौर, गुना, पन्ना, खरगोन, जबलपुर, बैतूल, झाबुआ, दमोह, धार, राजगढ़, नरसिंहपुर, रायसेन, मंडला, देवास, छतरपुर, शाजापुर, सीहोर सहित 27 बैंक हैं।

पत्रिका के अनुसार, मध्यप्रदेश के 27 जिला सहकारी बैंकों में 400 करोड़ रुपए से ज्यादा का वेतन घोटाला हुआ है और इनमें भाजपा के कई नेता और बैंकों के अधिकारी शामिल हैं।
घोटाला बहुत ही सुनियोजित ढंग से किया गया था और इसके लिए संचालक मंडल ने छठे वेतनमान में ही कर्मचारियों का वेतन ज्यादा निर्धारित कर लिया था। इस तरह से सातवें वेतन आयोग का आदेश आने से पहले ही कर्मचारी ज्यादा वेतन लेने लगे थे।
सहकारिता विभाग ने वेतन निर्धारण के आदेश 1 जनवरी 2011 से दिए थे, लेकिन कर्मचारी एक जनवरी 2006 से ही ज्यादा वेतन लेने लगे थे। एक कर्मचारी ने औसतन एक वर्ष में तीन लाख से अधिक वेतन 5 साल तक लिया तो सभी कर्मचारियों ने कुल मिलाकर 405 करोड़ रुपए ज्यादा वेतन लिया होगा। प्रदेश के करीब 38 जिला सहकारी बैंकों में 400 से ज्यादा कर्मचारी काम करते बताए जा रहे हैं।
पूरे मामले का खुलासा तब हुआ जब सहकारिता विभाग ने एक माह पहले इन बैंकों को नोटिस जारी करके कहा कि जिन बैंकों की स्थिति ठीक है, वे सातवां वेतनमान दे सकते हैं, लेकिन इसमें बैंकों को हेड ऑफिस में प्रेजेंटेशन देना होगा। इसी दौरान पता चला कि 38 में से 10 जिला सहकारी बैंक ही मुनाफे में हैं, लेकिन बैंकों के कर्मचारी तो बहुत पहले से ही सातवें वेतनमान के लागू होने से 5 साल पहले से ही उसका लाभ ले रहे हैं।
अब सहकारिता विभाग ने संयुक्त पंजीयक के जरिए बैंकों को धारा 58-बी का नोटिस दिया है जिसके तहत गलत तरीके से वेतन देने वाले संचालक मंडल और बैंक मैनेजरों से वसूली की जाती है और संपत्ति भी कुर्क की जा सकती है। जो जिला सहकारी बैंक इनमें शामिल हैं, उनमें भोपाल, इंदौर, गुना, पन्ना, खरगोन, जबलपुर, बैतूल, झाबुआ, दमोह, धार, राजगढ़, नरसिंहपुर, रायसेन, मंडला, देवास, छतरपुर, शाजापुर, सीहोर सहित 27 बैंक हैं।