देश में खोजी पत्रकारिता के लिए चर्चित कोबरापोस्ट न्यूज पोर्टल ने दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉर्पोरेशन (डीएचएफएल) के हजारों करोड़ रुपये के घोटाले का पर्दाफाश किया है. मंगलवार को कोबरापोस्ट के संपादक अनिरुद्ध बहल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि डीएचएफएल ने 31,000 करोड़ के ऐसे संदिग्ध लोन इसके प्रमोटरों से जुड़ी इकाइयों को दिए, जिनके लाभार्थी कोई और नहीं वे खुद हैं.

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कोबरापोस्ट का आरोप है कि गैर-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी डीएचएफएल ने फर्जी कंपनियों के जरिए बैंकों से लोन लिए और खुद के लिए आगे बढ़ा दिए. कोबरापोस्ट ने दावा किया कि इस पैसे का इस्तेमाल विदेश में संपत्ति व शेयर हासिल करने के अलावा श्रीलंका में एक क्रिकेट टीम खरीदने के लिए किया गया. अनिरुद्ध बहल ने इसे ‘सबसे बड़ा वित्तीय घोटाला’ बताया.
इस मामले में भाजपा का नाम भी सामने आया है. कोबरापोस्ट ने दावा किया है कि डीएचएफएल के प्रमोटरों ने तीन कंपनियों के जरिए भाजपा को 19.5 करोड़ रुपये का दान दिया था. उसके मुताबिक यह दान 2014-15 और 2016-17 के दौरान किया गया था. ऐसा करते वक्त कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 182 का उल्लंघन किया गया जो कि राजनीतिक दलों को मिलने वाले कॉर्पोरेट डोनेशन पर नियंत्रण के लिए बनाई गई है.
पोर्टल के मुताबिक भारतीय स्टेट बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा ने डीएचएफएल को क्रमश: 11,000 करोड़ और 4,000 करोड़ रुपये के कर्ज दिए हैं. उसने कहा कि कंपनी ने कई बैंकों और वित्तीय संस्थानों से करीब 90,000 करोड़ का कर्ज ले रखा है. उसका आरोप है कि डीएचएफएल ने जिन कंपनियों को कर्ज दिया है, उन्हें कोई आमदनी नहीं होती. उसने यह भी कहा कि इन कंपनियों के ऑडिटर एक ही हैं जो इनके संदिग्ध लेन-देनों को छिपाने में इनकी मदद करते हैं. वहीं, इनमें से ज्यादातर के पते भी एक ही हैं.
उधर, डीएचएफएल के चेयरमैन कपिल वाधवान ने कोबरापोस्ट के आरोपों को खारिज करते हुए किसी भी गड़बड़ी से इनकार किया है. उनका कहना है कि सारे लेन-देन कानूनी रूप से सही हैं. वाधवान ने कहा, ‘कंपनी का एसेट कवर करीब दोगुना है. इन आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है.’
बता दें कि कोबरापोस्ट खोजी पत्रकारिता के लिए मशहूर है. इससे पहले ऑपरेशन 136, ऑपरेशन दुर्योधन, ऑपरेशन जन्मभूमि समेत कई खुलासे यह न्यूज पोर्टल कर चुका है.
यहां क्लिक कर पढ़ें पूरी रिपोर्ट।

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कोबरापोस्ट का आरोप है कि गैर-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी डीएचएफएल ने फर्जी कंपनियों के जरिए बैंकों से लोन लिए और खुद के लिए आगे बढ़ा दिए. कोबरापोस्ट ने दावा किया कि इस पैसे का इस्तेमाल विदेश में संपत्ति व शेयर हासिल करने के अलावा श्रीलंका में एक क्रिकेट टीम खरीदने के लिए किया गया. अनिरुद्ध बहल ने इसे ‘सबसे बड़ा वित्तीय घोटाला’ बताया.
इस मामले में भाजपा का नाम भी सामने आया है. कोबरापोस्ट ने दावा किया है कि डीएचएफएल के प्रमोटरों ने तीन कंपनियों के जरिए भाजपा को 19.5 करोड़ रुपये का दान दिया था. उसके मुताबिक यह दान 2014-15 और 2016-17 के दौरान किया गया था. ऐसा करते वक्त कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 182 का उल्लंघन किया गया जो कि राजनीतिक दलों को मिलने वाले कॉर्पोरेट डोनेशन पर नियंत्रण के लिए बनाई गई है.
पोर्टल के मुताबिक भारतीय स्टेट बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा ने डीएचएफएल को क्रमश: 11,000 करोड़ और 4,000 करोड़ रुपये के कर्ज दिए हैं. उसने कहा कि कंपनी ने कई बैंकों और वित्तीय संस्थानों से करीब 90,000 करोड़ का कर्ज ले रखा है. उसका आरोप है कि डीएचएफएल ने जिन कंपनियों को कर्ज दिया है, उन्हें कोई आमदनी नहीं होती. उसने यह भी कहा कि इन कंपनियों के ऑडिटर एक ही हैं जो इनके संदिग्ध लेन-देनों को छिपाने में इनकी मदद करते हैं. वहीं, इनमें से ज्यादातर के पते भी एक ही हैं.
उधर, डीएचएफएल के चेयरमैन कपिल वाधवान ने कोबरापोस्ट के आरोपों को खारिज करते हुए किसी भी गड़बड़ी से इनकार किया है. उनका कहना है कि सारे लेन-देन कानूनी रूप से सही हैं. वाधवान ने कहा, ‘कंपनी का एसेट कवर करीब दोगुना है. इन आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है.’
बता दें कि कोबरापोस्ट खोजी पत्रकारिता के लिए मशहूर है. इससे पहले ऑपरेशन 136, ऑपरेशन दुर्योधन, ऑपरेशन जन्मभूमि समेत कई खुलासे यह न्यूज पोर्टल कर चुका है.
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