आदिवासी बहुल इलाकों में जिस तरह से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हो रहा है, उसी तरह से पेड़ों की कटाई भी अवैध कमाई का जरिया बन रही है। इससे पर्यावरण को तो नुकसान पहुंच ही रहा है, साथ ही सरकार को राजस्व का भी नुकसान हो रहा है।

जगदलपुर में डोगरीपारा के करीब 110 एकड़ में फैला चंदन का वन लंबे समय से अवैध कटाई का शिकार हो रहा है। नईदुनिया की खबर के मुताबिक, पिछले दस सालों में तस्करों ने चंदन के लगभग साढ़े 3 हजार पेड़ काट डाले हैं और आज यहां सफेद चंदन की दुर्लभ प्रजाति के तकरीबन 500 पेड़ ही बचे हैं।
वन विभाग चंदन के वन बचाने के नाम पर लाखों की परियोजनाएं भी तैयार करता है, लेकिन वे भी असर नहीं कर रही हैं। इस तरह से सरकार को दोहरा नुकसान हो रहा है।
ग्रामीण जन लंबे समय से चंदन वन को संरक्षित घोषित करने की मांग भी करते रहे हैं, लेकिन वन विभाग ने उनकी मांग पर कभी ध्यान नहीं दिया। अब जो भी पेड़ बचे हुए हैं, वह आरापुर के लोगों की खुद की निगरानी के कारण ही बचे हैं। गांव समिति चंदन के तस्करों को पकड़ने वाले को 500 रुपए का इनाम भी अपनी तरफ से देती है।
कई लोगों की बाड़ियों में भी चंदन के पेड़ हैं, लेकिन उन पर भी मौका लगते ही चंदन तस्कर कुल्हाड़ियां चलवा देते हैं। सात साल पहले गांव वालों ने ढाई क्विंटल चंदन की लकड़ी पकड़ी थी। पुलिस ने भी गीदम नाका पर डेढ़ क्विंटल चंदन पकड़ा था, लेकिन वन विभाग ने उसके बाद भी कोई उपाय नहीं किए।
स्थानीय लोग बताते हैं कि बड़े आरापुर और नानी आरापुर तथा दुगनपाल में दस साल पहले करीब 4000 से ज्यादा चंदन के पेड़ थे जो कि रेल की पटरियों से लेकर नानी आरापुर के नाले के दूसरे किनारे तक फैले थे।
सरकारी अनदेखी का फायदा चंदन तस्करों ने उठाना शुरू किया और देखते ही देखते केवल 500 के लगभग पेड़ बच पाए हैं। रात में गुजरने वाली मालगाडियों के शोर का फायदा उठाकर भी तस्करों ने रात में पेड़ों की कटाई जमकर की।
लोगों की मांग पर चित्रकोट रेंज के तत्कालीन रेंजर ने 2006 में आरापुर के चंदन के पेड़ों की गिनती करके रिपोर्ट वन मंडलाधिकारी को दी थी, लेकिन उस पर कोई काम नहीं हुआ।
सरकारी अनदेखी का आलम तो यहां तक है कि चंदन के वन की इस जमीन को खनिज वाग ने रायकोट की स्पंज आयरन कंपनी को देने का भी फैसला कर लिया था जिसे यहां प्रचुर मात्रा में मौजूद लौह अयस्क की खुदाई करनी थी। हालांकि, ग्रामीणों के कड़े विरोध के कारण ही खनिज विभाग अपने फैसले पर अमल नहीं कर पाया।
फिलहाल चंदन के इन पेड़ों के संरक्षण के लिए वन विभाग ने 12 लाख 38 हजार रुपए की एक परियोजना तैयार की है, लेकिन इस पर कितनी गंभीरता से काम होगा, ये अभी देखना बाकी है।

जगदलपुर में डोगरीपारा के करीब 110 एकड़ में फैला चंदन का वन लंबे समय से अवैध कटाई का शिकार हो रहा है। नईदुनिया की खबर के मुताबिक, पिछले दस सालों में तस्करों ने चंदन के लगभग साढ़े 3 हजार पेड़ काट डाले हैं और आज यहां सफेद चंदन की दुर्लभ प्रजाति के तकरीबन 500 पेड़ ही बचे हैं।
वन विभाग चंदन के वन बचाने के नाम पर लाखों की परियोजनाएं भी तैयार करता है, लेकिन वे भी असर नहीं कर रही हैं। इस तरह से सरकार को दोहरा नुकसान हो रहा है।
ग्रामीण जन लंबे समय से चंदन वन को संरक्षित घोषित करने की मांग भी करते रहे हैं, लेकिन वन विभाग ने उनकी मांग पर कभी ध्यान नहीं दिया। अब जो भी पेड़ बचे हुए हैं, वह आरापुर के लोगों की खुद की निगरानी के कारण ही बचे हैं। गांव समिति चंदन के तस्करों को पकड़ने वाले को 500 रुपए का इनाम भी अपनी तरफ से देती है।
कई लोगों की बाड़ियों में भी चंदन के पेड़ हैं, लेकिन उन पर भी मौका लगते ही चंदन तस्कर कुल्हाड़ियां चलवा देते हैं। सात साल पहले गांव वालों ने ढाई क्विंटल चंदन की लकड़ी पकड़ी थी। पुलिस ने भी गीदम नाका पर डेढ़ क्विंटल चंदन पकड़ा था, लेकिन वन विभाग ने उसके बाद भी कोई उपाय नहीं किए।
स्थानीय लोग बताते हैं कि बड़े आरापुर और नानी आरापुर तथा दुगनपाल में दस साल पहले करीब 4000 से ज्यादा चंदन के पेड़ थे जो कि रेल की पटरियों से लेकर नानी आरापुर के नाले के दूसरे किनारे तक फैले थे।
सरकारी अनदेखी का फायदा चंदन तस्करों ने उठाना शुरू किया और देखते ही देखते केवल 500 के लगभग पेड़ बच पाए हैं। रात में गुजरने वाली मालगाडियों के शोर का फायदा उठाकर भी तस्करों ने रात में पेड़ों की कटाई जमकर की।
लोगों की मांग पर चित्रकोट रेंज के तत्कालीन रेंजर ने 2006 में आरापुर के चंदन के पेड़ों की गिनती करके रिपोर्ट वन मंडलाधिकारी को दी थी, लेकिन उस पर कोई काम नहीं हुआ।
सरकारी अनदेखी का आलम तो यहां तक है कि चंदन के वन की इस जमीन को खनिज वाग ने रायकोट की स्पंज आयरन कंपनी को देने का भी फैसला कर लिया था जिसे यहां प्रचुर मात्रा में मौजूद लौह अयस्क की खुदाई करनी थी। हालांकि, ग्रामीणों के कड़े विरोध के कारण ही खनिज विभाग अपने फैसले पर अमल नहीं कर पाया।
फिलहाल चंदन के इन पेड़ों के संरक्षण के लिए वन विभाग ने 12 लाख 38 हजार रुपए की एक परियोजना तैयार की है, लेकिन इस पर कितनी गंभीरता से काम होगा, ये अभी देखना बाकी है।