मुंबई के मशहूर बिल्डर हीरानंदानी ग्रुप के संस्थापक सुरेंद्र हीरानंदानी ने भारत की नागरिकता छोड़ दी है। अब वे साइप्रस के नागरिक हो गए हैं। साइप्रस की ख़्याति टैक्स हावेन्स के रूप में है, मतलब जहां कर चुकाने का झंझट कम है।
हीरानंदानी ने कहा है कि इस कारण से उन्होंने नागरिकता नहीं छोड़ी है। भारतीय पासपोर्ट पर वर्क वीज़ा लेना मुश्किल हो जाता है इसलिए नागरिकता छोड़ी है। अब हीरानंदानी जी को किस लिए वर्क वीज़ा चाहिए था, वही बता सकते हैं। उन्होंने मुंबई मिरर से कहा है कि मेरा बेटा हर्ष भारत का नागरिक रहेगा और भारत में कंपनी का काम देखेगा। हर्ष की शादी अभिनेता अक्षय कुमार की बहन से हुई है। फोर्ब्स पत्रिका के अनुसार सुरेंद्र हीरानंदानी भारत के 100 अमीर लोगों में से हैं।
दुनिया भर में अरबपति पलायन करते हैं। चीन के बाद भारत दूसरे नंबर है जिसके अरबपति नागरिकता छोड़ देते हैं। न्यू वर्ल्ड वेल्थ की रिपोर्ट के अनुसार 2017 में 7000 अमीरों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी और दूसरे मुल्क की नागरिकता ले ली। 2016 में 6000, 2015 में 4000 अमीर भारतीयों ने प्यारे भारत का त्याग कर दिया।
सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस (CBDT) ने मार्च के महीने में पांच लोगों की एक कमेटी बनाई है। यह देखने के लिए कि अगर इस तरह से अमीर लोग भारत छोड़ेंगे तो उसका असर कर संग्रह पर क्या पड़ेगा। इस तरह का पलायन एक गंभीर जोखिम है। ऐसे लोग टैक्स के मामले में ख़ुद को ग़ैर भारतीय बन जाएंगे जबकि इनके व्यापारिक हित भारत से जुड़े रहेंगे। यह रिपोर्ट इकोनोमिक टाइम्स में छपी है। इकोनोमिक टाइम्स ने इसे मुंबई मिरर के आधार पर लिखा है।
2015 और 2017 के बीच 17000 अति अमीर भारतीयों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी। हम नहीं जानते कि इन्होंने भारत की नागरिकता क्यों छोड़ी, किसी बात से तंग आ गए थे या दूसरे मुल्क भारत से बेहतर हैं? नौकरी के लिए जाना और दो पैसे कमाने के लिए रूक जाना, यह बात तो समझ आती है मगर जिस देश में आप पैसा कमाते हैं, सुपर अमीर बनते हैं, उसके बाद उसका त्याग कर देते हैं, कम से कम जानना तो चाहिए कि बात क्या हुई? हमारे पास उनका कोई पक्ष नहीं है, पता नहीं अपने दोस्तों के बीच क्या क्या बोलते होंगे? किस बात से फेड अप हो गए?
ऐसे समय में जब प्रधानमंत्री दावा कर रहे हैं कि दुनिया में भारत के पासपोर्ट का वज़न बढ़ गया है, ठीक उसी समय में 17000 अमीर भारतीय भारत के पासपोर्ट का त्याग कर देते हैं, सुन कर अच्छा नहीं लगता है।
इसी साल 22 जनवरी को पासपोर्ट की रैंकिंग को लेकर मैंने कस्बा और अपने फेसबुक पेज पर एक लेख लिखा था। Henley Passport Index हर साल मुल्कों के पासपोर्ट की रैकिंग निकालता है। इसमें यह देखा जाता है कि आप किस देश का पासपोर्ट लेकर बिना वीज़ा के कितने देशों में जा सकते हैं।
जर्मनी का पासपोर्ट हो तो आप 177 देशों में बिना वीज़ा के जा सकते हैं। सिंगापुर का पासपोर्ट हो तो आप 176 देशों में बिना वीज़ा के जा सकते हैं। तीसरे नंबर पर आठ देश हैं जिनका पासपोर्ट होगा तो आप 175 देशों में वीज़ा के बग़ैर यात्रा कर सकते हैं। डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, इटली, जापान, नार्वे, स्वीडन और ब्रिटेन तीसरे नंबर पर हैं। 9 वें नंबर पर माल्टा है और 10 वें पर हंगरी।
एशिया के मुल्कों में सिंगापुर का स्थान पहले नंबर पर है। भारत एशिया के आखिरी तीन देशों में है। दुनिया में भारत के पासपोर्ट का स्थान 86 वें नंबर पर है। 2017 में 87 वें रैंक पर था। भारत का पासपोर्ट है तो आप मात्र 49 देशों में ही वीज़ा के बिना पहुंच सकते हैं।
एक और संस्था की रेटिंग है। Arton Capital , यह भी ग्लोबल रैंकिंग जारी करती है। इसमें भारत का रैंक 72 है। भारतीय पासपोर्ट लेकर आप बिना वीज़ा 55 देशों की यात्रा कर सकते हैं।
इतनी मामूली वृद्धि की मार्केटिंग प्रधानमंत्री मोदी ही कर सकते हैं। उन्हें पता है कि गोदी मीडिया कभी उनकी बात का विश्लेषण करेगा नहीं। उनके बयान को बार बार छापा जाएगा, दिखाया जाएगा, लोग यही समझेंगे कि बात सही कह रहे हैं।
दे दे के आवाज़ कोई हर घड़ी बुलाए...जाए जो उस पार.. कभी लौट के न आए ..है भेद ये कैसा.. कोई कुछ तो बताना...ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना...इन 17000 भारतीयों को बंदिनी फिल्म का यह गाना भेज देना चाहिए।
उनकी वापसी के लिए मनोज कुमार की भी मदद ली जा सकती है। वही इस वक्त दिख रहे हैं जो इइन 17000 भारतीयों की महफिल में पूरब और पश्चिम का गाना गाकर उनकी पार्टी ख़राब कर दें।
जब ज़ीरो दिया भारत ने,,,दुनिया को तब गिनती आई..तारों की भाषा भारत ने दुनिया को पहले सीखलाई....देता न दशमलव भारत तो चांद पर पहुंचना मुश्किल था..क्या पता ये सारे लोग यहां लौट आए। है प्रीत जहां की रीत सदा,मैं गीत वहां के गाता हूं, भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं।
भारत की बात! गाने से कार्यक्रम के लिए मुखड़ा उड़ा लेने से सूरत नहीं बदल जाती है। उन्हें सुनाएं जो छोड़ गए इस प्यारे वतन को। क्या पता उधर से ये 17000 किसी और फिल्म का गाने लग जाएं
हम छोड़ चले हैं महफ़िल को...याद आए कभी तो मत रोना...इस दिल को तसल्ली दे लेना, घबराए कभी तो मत रोना...हम छोड़ चले हैं महफ़िल को..एक ख़्वाब सा देखा था मैंने..जब आंख खुली तो टूट गया....
(ये लेखक के निजी विचार हैं। रवीश कुमार एनडीटीवी से जु़ड़े हैं।)
हीरानंदानी ने कहा है कि इस कारण से उन्होंने नागरिकता नहीं छोड़ी है। भारतीय पासपोर्ट पर वर्क वीज़ा लेना मुश्किल हो जाता है इसलिए नागरिकता छोड़ी है। अब हीरानंदानी जी को किस लिए वर्क वीज़ा चाहिए था, वही बता सकते हैं। उन्होंने मुंबई मिरर से कहा है कि मेरा बेटा हर्ष भारत का नागरिक रहेगा और भारत में कंपनी का काम देखेगा। हर्ष की शादी अभिनेता अक्षय कुमार की बहन से हुई है। फोर्ब्स पत्रिका के अनुसार सुरेंद्र हीरानंदानी भारत के 100 अमीर लोगों में से हैं।
दुनिया भर में अरबपति पलायन करते हैं। चीन के बाद भारत दूसरे नंबर है जिसके अरबपति नागरिकता छोड़ देते हैं। न्यू वर्ल्ड वेल्थ की रिपोर्ट के अनुसार 2017 में 7000 अमीरों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी और दूसरे मुल्क की नागरिकता ले ली। 2016 में 6000, 2015 में 4000 अमीर भारतीयों ने प्यारे भारत का त्याग कर दिया।
सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस (CBDT) ने मार्च के महीने में पांच लोगों की एक कमेटी बनाई है। यह देखने के लिए कि अगर इस तरह से अमीर लोग भारत छोड़ेंगे तो उसका असर कर संग्रह पर क्या पड़ेगा। इस तरह का पलायन एक गंभीर जोखिम है। ऐसे लोग टैक्स के मामले में ख़ुद को ग़ैर भारतीय बन जाएंगे जबकि इनके व्यापारिक हित भारत से जुड़े रहेंगे। यह रिपोर्ट इकोनोमिक टाइम्स में छपी है। इकोनोमिक टाइम्स ने इसे मुंबई मिरर के आधार पर लिखा है।
2015 और 2017 के बीच 17000 अति अमीर भारतीयों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी। हम नहीं जानते कि इन्होंने भारत की नागरिकता क्यों छोड़ी, किसी बात से तंग आ गए थे या दूसरे मुल्क भारत से बेहतर हैं? नौकरी के लिए जाना और दो पैसे कमाने के लिए रूक जाना, यह बात तो समझ आती है मगर जिस देश में आप पैसा कमाते हैं, सुपर अमीर बनते हैं, उसके बाद उसका त्याग कर देते हैं, कम से कम जानना तो चाहिए कि बात क्या हुई? हमारे पास उनका कोई पक्ष नहीं है, पता नहीं अपने दोस्तों के बीच क्या क्या बोलते होंगे? किस बात से फेड अप हो गए?
ऐसे समय में जब प्रधानमंत्री दावा कर रहे हैं कि दुनिया में भारत के पासपोर्ट का वज़न बढ़ गया है, ठीक उसी समय में 17000 अमीर भारतीय भारत के पासपोर्ट का त्याग कर देते हैं, सुन कर अच्छा नहीं लगता है।
इसी साल 22 जनवरी को पासपोर्ट की रैंकिंग को लेकर मैंने कस्बा और अपने फेसबुक पेज पर एक लेख लिखा था। Henley Passport Index हर साल मुल्कों के पासपोर्ट की रैकिंग निकालता है। इसमें यह देखा जाता है कि आप किस देश का पासपोर्ट लेकर बिना वीज़ा के कितने देशों में जा सकते हैं।
जर्मनी का पासपोर्ट हो तो आप 177 देशों में बिना वीज़ा के जा सकते हैं। सिंगापुर का पासपोर्ट हो तो आप 176 देशों में बिना वीज़ा के जा सकते हैं। तीसरे नंबर पर आठ देश हैं जिनका पासपोर्ट होगा तो आप 175 देशों में वीज़ा के बग़ैर यात्रा कर सकते हैं। डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, इटली, जापान, नार्वे, स्वीडन और ब्रिटेन तीसरे नंबर पर हैं। 9 वें नंबर पर माल्टा है और 10 वें पर हंगरी।
एशिया के मुल्कों में सिंगापुर का स्थान पहले नंबर पर है। भारत एशिया के आखिरी तीन देशों में है। दुनिया में भारत के पासपोर्ट का स्थान 86 वें नंबर पर है। 2017 में 87 वें रैंक पर था। भारत का पासपोर्ट है तो आप मात्र 49 देशों में ही वीज़ा के बिना पहुंच सकते हैं।
एक और संस्था की रेटिंग है। Arton Capital , यह भी ग्लोबल रैंकिंग जारी करती है। इसमें भारत का रैंक 72 है। भारतीय पासपोर्ट लेकर आप बिना वीज़ा 55 देशों की यात्रा कर सकते हैं।
इतनी मामूली वृद्धि की मार्केटिंग प्रधानमंत्री मोदी ही कर सकते हैं। उन्हें पता है कि गोदी मीडिया कभी उनकी बात का विश्लेषण करेगा नहीं। उनके बयान को बार बार छापा जाएगा, दिखाया जाएगा, लोग यही समझेंगे कि बात सही कह रहे हैं।
दे दे के आवाज़ कोई हर घड़ी बुलाए...जाए जो उस पार.. कभी लौट के न आए ..है भेद ये कैसा.. कोई कुछ तो बताना...ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना...इन 17000 भारतीयों को बंदिनी फिल्म का यह गाना भेज देना चाहिए।
उनकी वापसी के लिए मनोज कुमार की भी मदद ली जा सकती है। वही इस वक्त दिख रहे हैं जो इइन 17000 भारतीयों की महफिल में पूरब और पश्चिम का गाना गाकर उनकी पार्टी ख़राब कर दें।
जब ज़ीरो दिया भारत ने,,,दुनिया को तब गिनती आई..तारों की भाषा भारत ने दुनिया को पहले सीखलाई....देता न दशमलव भारत तो चांद पर पहुंचना मुश्किल था..क्या पता ये सारे लोग यहां लौट आए। है प्रीत जहां की रीत सदा,मैं गीत वहां के गाता हूं, भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं।
भारत की बात! गाने से कार्यक्रम के लिए मुखड़ा उड़ा लेने से सूरत नहीं बदल जाती है। उन्हें सुनाएं जो छोड़ गए इस प्यारे वतन को। क्या पता उधर से ये 17000 किसी और फिल्म का गाने लग जाएं
हम छोड़ चले हैं महफ़िल को...याद आए कभी तो मत रोना...इस दिल को तसल्ली दे लेना, घबराए कभी तो मत रोना...हम छोड़ चले हैं महफ़िल को..एक ख़्वाब सा देखा था मैंने..जब आंख खुली तो टूट गया....
(ये लेखक के निजी विचार हैं। रवीश कुमार एनडीटीवी से जु़ड़े हैं।)