वो जो कल एक मुस्लिम बच्ची की अस्मत लुटी,
तो तुमने पूछा हिंदू लड़की की भी जब लुटी थी
‘तब तुम कहाँ थे?’
और
जब हिंदू लड़की की लुटी थी तब तुम पूछ रहे थे
दलित लड़की की इज़्ज़त लुटी
‘तब तुम कहाँ थे ?’
जब दलित लड़की के लिए बातें उठी,
तो तुम पूछ रहे थे कि
सवर्न औरत के कपड़े बीच बाज़ार फटे
‘तब तुम कहाँ थे?’
लेकिन जब उस सवर्ण लड़की ले लिए बोल उठ रहे थे,
तब भी तुम पूछ रहे थे कि
उस बूढ़ी औरत के भरे बाज़ार कपड़े उतारे थे,
‘तब तुम कहाँ थे?’
लेकिन कुछेकों ने जब
उस बूढ़ी औरत के लिए सवाल उठाये
तब तुम फिर पूछ थे कि बच्ची की जब इज़्ज़त लुटी
‘तब तुम कहाँ थे ?’
असल में सब यहीं थे, ‘तुम’ भी यहीं थे,
लेकिन कोई नहीं था तो तुम्हारा ज़मीर,
जो आज भी नहीं है,
कल फिर एक लड़की बेआबरू होगी, और ‘तुम’ फिर यही सवाल करोगे, ‘तब तुम कहाँ थे?’
तो तुमने पूछा हिंदू लड़की की भी जब लुटी थी
‘तब तुम कहाँ थे?’
और
जब हिंदू लड़की की लुटी थी तब तुम पूछ रहे थे
दलित लड़की की इज़्ज़त लुटी
‘तब तुम कहाँ थे ?’
जब दलित लड़की के लिए बातें उठी,
तो तुम पूछ रहे थे कि
सवर्न औरत के कपड़े बीच बाज़ार फटे
‘तब तुम कहाँ थे?’
लेकिन जब उस सवर्ण लड़की ले लिए बोल उठ रहे थे,
तब भी तुम पूछ रहे थे कि
उस बूढ़ी औरत के भरे बाज़ार कपड़े उतारे थे,
‘तब तुम कहाँ थे?’
लेकिन कुछेकों ने जब
उस बूढ़ी औरत के लिए सवाल उठाये
तब तुम फिर पूछ थे कि बच्ची की जब इज़्ज़त लुटी
‘तब तुम कहाँ थे ?’
असल में सब यहीं थे, ‘तुम’ भी यहीं थे,
लेकिन कोई नहीं था तो तुम्हारा ज़मीर,
जो आज भी नहीं है,
कल फिर एक लड़की बेआबरू होगी, और ‘तुम’ फिर यही सवाल करोगे, ‘तब तुम कहाँ थे?’