एक साहब कहने लगे, विपक्ष बड़ी नकारा है। राजनीति के आगे उसे कुछ नहीं सूझता। अरे जिस देश मे रहते हो कभी उसका भी सोच लिया करो।
वे बोले- बड़ी निकम्मी विपक्ष है। जब सरकार कह रही है रॉफेल डील के दामों का खुलासा करने पर दुश्मनों को हमारी ताकत का अंदाजा लग जायेगा, यह देश की सुरक्षा का मामला है तो विपक्ष को समझना चाहिए न !
मैंने कहा- चचा विपक्ष बात तो ठीक कर रहा है। आखिर दुश्मन भी तो देखें कि हमारे हथियार में कितना दम है।
चच्चा बिदक गए। बोले- आप भी देशद्रोहियों की भाषा बोलने लगे।
हमनें कहा- चाचा हिसाब मांगना देशद्रोह कैसे हो गया ?
मेरे सवाल के जवाब में चचा ने फिर सवाल किया- तुमनें देश के लिए कुछ किया है ?
मैं सोच में पड़ गया की उनका ये पूछने का उद्देश्य क्या है ? मैंने कहा- चाचा बहुत उम्र तो नहीं है मेरी पर अपने प्रयास भर जो होता है मैं करता हूँ।
वे बोले- टैक्स भरते हो ?
मैंने कहा- जी , आमदनी उतनी नहीं है कि टैक्स भरा जा सके।
उन्होंने गर्व भरे स्वर में कहा- मुझे देखो, मैं इतना टैक्स भरता हूँ, पर देश की सुरक्षा की बात है तो मैं सरकार के साथ हूँ।
मैंने कहा- पर चाचा देश को खतरा किससे है ?
वे बोले- खतरा तो बहुत है बच्चा। देश के भीतर से भी और देश के बाहर भी। देश के भीतर वाला खतरा ज्यादा घातक है ।
मैंने पूछा- देश के भीतर क्या खतरा हो सकता है भला ?
वे बोले- शरीर बड़ा हो गया है तुम्हारा पर दिमाग बचपने वाला ही है। तुम अगल- बगल छुपे लोगों को पहचानों जो खाते तो यहाँ का हैं पर गाते पाकिस्तान का हैं।
मुझे थोड़ी हंसी आयी। मैंने संभलते हुए कहा- चलिए ठीक है कोई पाकिस्तान का गा रहा है पर इससे खतरा क्या है ? कुछ बेहतर चीजें वहां भी हैं जिनकी तारीफ होनी चाहिए। पॉलिटिकल लड़ाई अपनी जगह हैं पर रहते तो वहां भी इंसान ही हैं न। जहां तक खतरे वाली बात है तो आये दिन हमारे देश के भीतर हिंसा होते रहती है। कभी अखला मार दिया जाता है तो कभी पहलू खान, कभी संभु रैगर खूंखार हो जाता है तो कभी ऊना में दलितों की खुली पीठ पर चाबुक गिरता है। आखिर इसके लिए सरकार कुछ क्यों नहीं करती ?
मैं असमंजस में था कि चचा को चंद्रशेखर आजाद 'रावण' खतरनाक नजर आता है। मैंने पूछा- कोर्ट ने तो उसे बरी कर दिया है पर वह देश के लिए खतरनाक नजर आता है और जो आये दिन पांच मिनट में देश मे दंगे कर देने, खुद की सेना से एक धर्म विशेष के लोगों को खत्म कर देने की बात करते हैं, वे खतरनाक नहीं हैं देश के लिए ? उनपर रासुका क्यों नहीं लगता ? असली खतरा तो वही हैं देश के लिए ?
उनके मन मे गुस्सा था। मुझे आश्चर्य हुआ। लोग प्रशासन पर गुस्सा निकालते हैं पर ये आदमी विपक्ष को कोस रहा है, जरूर कुछ बड़ी बात होगी। मैंने उत्सुकता को शांत करने के उद्देश्य से पूछा- चचा क्या हो गया, काहें विपक्ष को लेकर लाल-पीले हो रहे हैं ?
वे बोले- बड़ी निकम्मी विपक्ष है। जब सरकार कह रही है रॉफेल डील के दामों का खुलासा करने पर दुश्मनों को हमारी ताकत का अंदाजा लग जायेगा, यह देश की सुरक्षा का मामला है तो विपक्ष को समझना चाहिए न !
मैंने कहा- चचा विपक्ष बात तो ठीक कर रहा है। आखिर दुश्मन भी तो देखें कि हमारे हथियार में कितना दम है।
चच्चा बिदक गए। बोले- आप भी देशद्रोहियों की भाषा बोलने लगे।
हमनें कहा- चाचा हिसाब मांगना देशद्रोह कैसे हो गया ?
मेरे सवाल के जवाब में चचा ने फिर सवाल किया- तुमनें देश के लिए कुछ किया है ?
मैं सोच में पड़ गया की उनका ये पूछने का उद्देश्य क्या है ? मैंने कहा- चाचा बहुत उम्र तो नहीं है मेरी पर अपने प्रयास भर जो होता है मैं करता हूँ।
वे बोले- टैक्स भरते हो ?
मैंने कहा- जी , आमदनी उतनी नहीं है कि टैक्स भरा जा सके।
उन्होंने गर्व भरे स्वर में कहा- मुझे देखो, मैं इतना टैक्स भरता हूँ, पर देश की सुरक्षा की बात है तो मैं सरकार के साथ हूँ।
मैंने कहा- पर चाचा देश को खतरा किससे है ?
वे बोले- खतरा तो बहुत है बच्चा। देश के भीतर से भी और देश के बाहर भी। देश के भीतर वाला खतरा ज्यादा घातक है ।
मैंने पूछा- देश के भीतर क्या खतरा हो सकता है भला ?
वे बोले- शरीर बड़ा हो गया है तुम्हारा पर दिमाग बचपने वाला ही है। तुम अगल- बगल छुपे लोगों को पहचानों जो खाते तो यहाँ का हैं पर गाते पाकिस्तान का हैं।
मुझे थोड़ी हंसी आयी। मैंने संभलते हुए कहा- चलिए ठीक है कोई पाकिस्तान का गा रहा है पर इससे खतरा क्या है ? कुछ बेहतर चीजें वहां भी हैं जिनकी तारीफ होनी चाहिए। पॉलिटिकल लड़ाई अपनी जगह हैं पर रहते तो वहां भी इंसान ही हैं न। जहां तक खतरे वाली बात है तो आये दिन हमारे देश के भीतर हिंसा होते रहती है। कभी अखला मार दिया जाता है तो कभी पहलू खान, कभी संभु रैगर खूंखार हो जाता है तो कभी ऊना में दलितों की खुली पीठ पर चाबुक गिरता है। आखिर इसके लिए सरकार कुछ क्यों नहीं करती ?
वे बोले- सरकार अपनी तरफ से भरसक प्रयास करती है। अभी हाल ही में कोई चंद्रशेखर आजाद 'रावण' को रासुका के तहत जेल में रखा गया है।
मैं असमंजस में था कि चचा को चंद्रशेखर आजाद 'रावण' खतरनाक नजर आता है। मैंने पूछा- कोर्ट ने तो उसे बरी कर दिया है पर वह देश के लिए खतरनाक नजर आता है और जो आये दिन पांच मिनट में देश मे दंगे कर देने, खुद की सेना से एक धर्म विशेष के लोगों को खत्म कर देने की बात करते हैं, वे खतरनाक नहीं हैं देश के लिए ? उनपर रासुका क्यों नहीं लगता ? असली खतरा तो वही हैं देश के लिए ?
उन्हें कुछ जवाब न सूझा। कहने लगे- सरकार जानती है किसे अंदर रखना है और किसे बाहर।
मुझे लगा मैं गलत आदमी से बहस कर रहा हूँ। चचा सरकारी आदमी हैं जो गलत सही देखकर बात नहीं करते। जिन्हें कोर्ट से बरी आजाद तो खतरनाक लगता है पर दंगे करा देने वाले साधारण लगते हैं।
मैंने बात को खत्म कर देने के उद्देश्य से कहा- चाचा आप ठीक कहते हैं। रॉफेल डील कितने में हुई यह सरकार को आम नहीं करना चाहिए, राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है।
चाचा मेरी बात सुनकर बड़े खुश हुए और ऐसे तृप्त हुए जैसे आषाढ़ में सूखी जमीन को बारिश का पहला पानी मिल गया हो।