सहारनपुर : दलितों के उभरते हुए नेता जिग्नेश मेवानी लगातार पश्चिम यूपी में सक्रिय हैं. आज मेरठ में जिग्नेश मेवाणी ने चन्द्रशेखर को रिहा करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को ललकारा और 18 फ़रवरी को सहारनपुर में जुटने का आह्वान किया है.
सहारनपुर ‘दलित कैपिटल’ के तौर पर जाना जाता है. मुख्यमंत्री रहते मायावती यहीं हरोड़ा से विधायक चुनी गई थीं. कांशीराम भी यहीं से लोकसभा चुनाव लड़े थे. ठाकुर-दलित संघर्ष के चलते यहां देश भर के दलितों की कड़ी नज़र है. अब यहां जिग्नेश सक्रिय हो गए हैं और इनडोर मीटिंग कर रहे हैं.
जिग्नेश मेवाणी की यहां सक्रियता के कई मतलब निकाले जा रहे हैं. इसे लेकर सबसे ज़्यादा हलचल बसपा में है.
सियासी जानकारों की मानें तो भीम आर्मी सुप्रीमो चंद्रशेखर रावण के साथ जिग्नेश की खिचड़ी पक रही है.
कहा जा रहा है कि दिल्ली में पिछले माह चंद्रशेखर रावण के पक्ष में हुंकार रैली करने के बाद जिग्नेश हर ‘तीसरे दिन’ सहारनपुर पहुंच जाते हैं. हालांकि जेल प्रशासन ने उनकी चन्द्रशेखर से मुलाक़ात नहीं होने दी है, मगर चंद्रशेखर के परिवार के लोग इन दोनों के बीच संवाद सूत्र का काम कर रहे हैं.
ख़ास बात यह भी है कि यहां सक्रिय हुए जिग्नेश मीडिया से पूरी तरह दूरी बनाकर रखे हुए हैं और वो भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं से गोपनीय मीटिंग कर रहे हैं.
जिग्नेश की यहां सक्रियता और चंद्रशेखर से नज़दीकी किसी ख़ास क़दम की ओर इशारा करती है. जानकारी के मुताबिक़ चंद्रशेखर को अगले लोकसभा चुनाव में मैदान में उतारा जा सकता है.
भीम आर्मी के कमल जाटव कहते हैं कि, लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने, सम्मान से रहने और चुनाव लड़ने का हक़ है. हमे हमारे नेतागणों ने छला है. अब समय है कि हम अपना रास्ता खुद बना लें.
दलित मामलों के जानकार रियाज राणा कहते हैं कि, दलित भीम आर्मी प्रकरण में बसपा सुप्रीमो के रुख से निराश हैं. उन्हें लगता है कि चंद्रशेखर के साथ हुए अत्याचार पर मायावती ने सही स्टैंड नहीं लिया. अब इस नाराज़गी के बीच जिग्नेश की सक्रियता दलितों का रास्ता मोड़ सकती है.
इस सक्रियता से बसपा में हड़कंप मच गया है. पुरकाजी से दो बार विधायक रहे अनिल कुमार और ज़िला कोर्डिनेटर पुरषोत्तम को निलंबित कर दिया गया है. इनके निलंबन के कारणों को अनुशासनहीनता बताया गया है, मगर बसपा सूत्रों की मानें तो इन्होंने जिग्नेश मेवानी से गोपनीय मुलाक़ात की थी और ये बात बहन जी को नागवार गुज़री.
बताया जा रहा है कि जिग्नेश की सक्रियता ने मायावती की नींद उड़ा दी है और इसका असर इस पखवाड़े पश्चिम यूपी में पार्टी पदाधिकारियों की अदला-बदली में दिखाई दे रहा है. यही नहीं, जिग्नेश और चंद्रशेखर के बीच बनते समीकरण ने बसपा को 15 जनवरी को सहारनपुर में एक बड़ी रैली करने के लिए भी प्रेरित किया. इस दिन मायावती का लाइव भाषण दिखाया गया और मायावती ने जिग्नेश और चंद्रशेखर पर दलितों को कमज़ोर करने का इल्ज़ाम जड़ दिया.
बसपा के ज़्यादातर नेतागण अब जिग्नेश और चंद्रशेखर के ख़िलाफ़ बोलने लगे हैं, जबकि बसपा में बिना सुप्रीमो की मर्ज़ी के कोई एक ‘शब्द’ नहीं कह सकता.
बसपा की चिंता की एक और वजह है. दलितों का युवा वर्ग लगभग उससे दूर जा रहा है. इसमें चंद्रशेखर और जिग्नेश की लोकप्रियता है और शेष बीजेपी की तरफ़ झुकाव रखता है. मायावती इसके लिए अपने भतीजे आकाश (आंनद पुत्र) को प्रमोट कर रही हैं. आज़मगढ़ रैली में वो मायावती के साथ-साथ रहे.
बसपा में भीम आर्मी की सक्रियता के हड़कंप का आलम यह है कि लोकसभा चुनाव के पश्चिम में तमाम संभावित उम्मीदवारों की बसपा फिर से पड़ताल व सर्वे करा रही है.
बसपा से निष्काषित पूर्व विधायक राव वारिस कहते हैं कि, इसी सर्वे से तो उन्हें हक़ीक़त पता चल रही है. दलित नौजवान अब चंद्रशेखर और जिगनेश पर बात करना पसंद करता है. यह कोर्डिनेटर ज़मीन के नेता नहीं होते. ये चुनाव नहीं लड़ते. ये क्या जाने ज़मीन की हक़ीक़त! इन्हें दलितों की नाराज़गी को पहले बताना चाहिए था. अब बात बड़ी हो चुकी है और बसपा के हाथ से निकल रही है.
Courtesy: Two Circles
सहारनपुर ‘दलित कैपिटल’ के तौर पर जाना जाता है. मुख्यमंत्री रहते मायावती यहीं हरोड़ा से विधायक चुनी गई थीं. कांशीराम भी यहीं से लोकसभा चुनाव लड़े थे. ठाकुर-दलित संघर्ष के चलते यहां देश भर के दलितों की कड़ी नज़र है. अब यहां जिग्नेश सक्रिय हो गए हैं और इनडोर मीटिंग कर रहे हैं.
जिग्नेश मेवाणी की यहां सक्रियता के कई मतलब निकाले जा रहे हैं. इसे लेकर सबसे ज़्यादा हलचल बसपा में है.
कहा जा रहा है कि दिल्ली में पिछले माह चंद्रशेखर रावण के पक्ष में हुंकार रैली करने के बाद जिग्नेश हर ‘तीसरे दिन’ सहारनपुर पहुंच जाते हैं. हालांकि जेल प्रशासन ने उनकी चन्द्रशेखर से मुलाक़ात नहीं होने दी है, मगर चंद्रशेखर के परिवार के लोग इन दोनों के बीच संवाद सूत्र का काम कर रहे हैं.
ख़ास बात यह भी है कि यहां सक्रिय हुए जिग्नेश मीडिया से पूरी तरह दूरी बनाकर रखे हुए हैं और वो भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं से गोपनीय मीटिंग कर रहे हैं.
जिग्नेश की यहां सक्रियता और चंद्रशेखर से नज़दीकी किसी ख़ास क़दम की ओर इशारा करती है. जानकारी के मुताबिक़ चंद्रशेखर को अगले लोकसभा चुनाव में मैदान में उतारा जा सकता है.
भीम आर्मी के कमल जाटव कहते हैं कि, लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने, सम्मान से रहने और चुनाव लड़ने का हक़ है. हमे हमारे नेतागणों ने छला है. अब समय है कि हम अपना रास्ता खुद बना लें.
दलित मामलों के जानकार रियाज राणा कहते हैं कि, दलित भीम आर्मी प्रकरण में बसपा सुप्रीमो के रुख से निराश हैं. उन्हें लगता है कि चंद्रशेखर के साथ हुए अत्याचार पर मायावती ने सही स्टैंड नहीं लिया. अब इस नाराज़गी के बीच जिग्नेश की सक्रियता दलितों का रास्ता मोड़ सकती है.
इस सक्रियता से बसपा में हड़कंप मच गया है. पुरकाजी से दो बार विधायक रहे अनिल कुमार और ज़िला कोर्डिनेटर पुरषोत्तम को निलंबित कर दिया गया है. इनके निलंबन के कारणों को अनुशासनहीनता बताया गया है, मगर बसपा सूत्रों की मानें तो इन्होंने जिग्नेश मेवानी से गोपनीय मुलाक़ात की थी और ये बात बहन जी को नागवार गुज़री.
बताया जा रहा है कि जिग्नेश की सक्रियता ने मायावती की नींद उड़ा दी है और इसका असर इस पखवाड़े पश्चिम यूपी में पार्टी पदाधिकारियों की अदला-बदली में दिखाई दे रहा है. यही नहीं, जिग्नेश और चंद्रशेखर के बीच बनते समीकरण ने बसपा को 15 जनवरी को सहारनपुर में एक बड़ी रैली करने के लिए भी प्रेरित किया. इस दिन मायावती का लाइव भाषण दिखाया गया और मायावती ने जिग्नेश और चंद्रशेखर पर दलितों को कमज़ोर करने का इल्ज़ाम जड़ दिया.
बसपा के ज़्यादातर नेतागण अब जिग्नेश और चंद्रशेखर के ख़िलाफ़ बोलने लगे हैं, जबकि बसपा में बिना सुप्रीमो की मर्ज़ी के कोई एक ‘शब्द’ नहीं कह सकता.
बसपा की चिंता की एक और वजह है. दलितों का युवा वर्ग लगभग उससे दूर जा रहा है. इसमें चंद्रशेखर और जिग्नेश की लोकप्रियता है और शेष बीजेपी की तरफ़ झुकाव रखता है. मायावती इसके लिए अपने भतीजे आकाश (आंनद पुत्र) को प्रमोट कर रही हैं. आज़मगढ़ रैली में वो मायावती के साथ-साथ रहे.
बसपा में भीम आर्मी की सक्रियता के हड़कंप का आलम यह है कि लोकसभा चुनाव के पश्चिम में तमाम संभावित उम्मीदवारों की बसपा फिर से पड़ताल व सर्वे करा रही है.
बसपा से निष्काषित पूर्व विधायक राव वारिस कहते हैं कि, इसी सर्वे से तो उन्हें हक़ीक़त पता चल रही है. दलित नौजवान अब चंद्रशेखर और जिगनेश पर बात करना पसंद करता है. यह कोर्डिनेटर ज़मीन के नेता नहीं होते. ये चुनाव नहीं लड़ते. ये क्या जाने ज़मीन की हक़ीक़त! इन्हें दलितों की नाराज़गी को पहले बताना चाहिए था. अब बात बड़ी हो चुकी है और बसपा के हाथ से निकल रही है.
Courtesy: Two Circles