हिंदू राष्ट्र - जो धार्मिक राष्ट्रवाद है , इसका सपना दिखाना या देखना ही गैर संविधानिक हैं

Written by Teesta Setalvad | Published on: April 20, 2017
भारत के लिए यह बहुत ही आलोचनात्मक क्षण  है।  केंद्र और ११ राज्यों में  ( गठबंधन में १५ ) सरकार वह ताकत से बनी है जो न भारतीय संविधान में मानती है न उसमें दी हुई एकता , समानता और बराबरी।  आजभी उनके , मतलब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वेबसाइट पर आप चले जाये तो "bunch ऑफ़ thoughts मोजूद है जो म.स.गोलवलकर ने लिखी थी जो आजके लीडरान "गुरूजी " मानते है।  rss ने दूसरी और खतरनाक किताब "We, or Our Nationhood Defined" (१९३९ में लिखी हुई , वहीँ सरसंघचालक गोलवलकर ने, अपने website से हटा दी है. दोनों किताबों में यह सोच विचारधारा के दायरे  स्पस्ट होते है/ भारतीय नागरिकता जो हमारे संविधान में हमें  बुनियादी और  कानूनी स्थर  पर दी हुई है उससे  यह दोनों किताबे नकाररति है. हमारा संविधान हमें , हर भारतीय नागरिक  को बराबरी और समानता का मूल अधिकार देता है. इसके पीछे डॉ बाबासाहेब आंबेडकर, राधाकृष्णन, मौलाना आज़ाद, के टी शाह, जवाहरलाल नेहरू, फ्रैंक अन्थोनी और अन्य लोग जिससे  हम फौन्डिंग fathers (और mothers ) कहते थे , उन सबकी भाग्यदारी थी।  और हमारे कश्मीर बहन भाई की कुर्बानियां , जो उन ज़माने में "शेर ए कश्मीर ", shaikh अब्दुल्लाह के अस्तित्व में शामिल है, यह है हमारा इतिहास.

Hindu rashtra

मगर आज एक भयानक किसम की राष्ट्रीयता जो भारतीयता, भरित्या संविधान और हमारे यह इतिहास को ठुकराता है वह हमारे लोक भान में थोपी जा रही है,. यह किसम की आक्रमणशील राष्ट्रवाद न हमारे संविधान में, कानूनी स्तर से दिया गया है मगर सिर्फ घृणा, नफरत और हिंसा से फैलाया जा रहा है. आरएसएस की शाखा में जाना तो गलत दुश्मनों को बनाने का काम मानसिक स्तर पर हमारे नौजवानों को यह शिकंजे में लाना है. में मानती हूँ की आज एक रकनैतिक रीएजकैशन (परिशिक्षण) की ज़रुरत है जो न सिर्फ हमारे संविधानिक वसूलों और इनके पीछे का लम्बा संगर्शील इतिहास सीखना  और समझाना ज़रूरी है मगर भरित्या आज़ादी का आंदोलन , उस समय के विचार विमर्शों को समझना और समझाना सख्त ज़रूरी है।

यह काम सामाजिक स्थर पर हमें संघटनिक रूप में, new टेक्नोलॉजी को अपना कर करना होगा। tamas जैसा टेलीविज़न serial जो १९८८ में गोविंद निहलानी ने बनाया; जिस serial बनाने में और टीवी पर दिखाने में क्या क्या संघर्ष करना पड़ा, यह तकलीफे क्यों आई। .आखिर tamas एक rss की शाखा के अंदर किस तरह की ज़हरीली  मानसिकता तैयार की जाती है, किस तरह अधूरा, गलत और भ्रामक इतिहास  पढ़ाया जाता है; और उसी का tv पर चित्रण और वर्णन होता है --और यह serial दिखाने के लिए director को क्या तकलीफे होती है.

भीषम साहनी ने यह किताब तामस को १९७५ में लिखी , उसे sahitya academi ka पुरस्कार भी मिला मगर हमारे लोक गीत, लोक संस्कृत्ति और लोक इतिहास में तामस एक हिस्सा'क्यों नहीं बन सका?

राजस्थान में पहलु खान और राजस्थान, हरयाणा , उत्तर प्रदेश , गुजरात , कर्नाटक महाराष्ट्र में हिंसक और गलत प्रचार को लेकर; जिस्में यह बात भी शामिल है की सभी हिन्दुओं ने कभी मॉस नहीं खाया कतल और हटाएँ हुई है जिससे यह साबित होता है की सही ढंग का राजनैतिक और इतिहास/सामाजिक शिक्षण नहीं हो पाया; आरएसएस, विहिप और बजरंग दाल ने उनके शाखा,शिशु मंदिर और एकल विद्यालयों के द्वारा एक खतरनाक जंग  भारत के बीच में, अपने ही नागरिक को दुश्मन टहराहते हुए जारी किया है इस जंग को आप और हमको एक जुट होकर, हिम्मत से सामना करना है।  चुनौती यह है की हमें यह संघर्ष और जंग संबेदनशील रूप में, संविधानिक वसूलों के आधार पर छेड़ना है।  यह याद रख कर की सचाई हमारे हाथ में है।  rss वह ताकत है, जोह आज सरकारों  पर कब्ज़ा कर बैठी है और यह ताकत न भारतीय संविधान न भारतीय कानून व्यवस्था को मानती है । बल्कि हिंदू राष्ट्र की स्थापना करना अपना उद्देश्य मानती हैं जो बात ही -धार्मिक राष्ट्रवाद की गैर संविधानिक हैं।

यह देश में मॉस खाने वाले सब समुदाय है तो फिर हमारे पहलु खान, राबन्नी साब, इम्तियाज़ और उनके चाचा (लातेहार में), मोहम्मद  एख़लाक़ को बली का बकरा क्यों बनाया जा रहा है? हमारी दलित बहन भाइयों को, चाहे वह ऊना के पीड़ित हो या फिर हमारी बहन राधिका वेमुला हो, उनको भी यह तानाशाही और क्रूर तकते नहीं बर्दाश कर सकती है/ उन्होंने रोहित को खोया और आज मोदी सरकार उनपर और भी अपमान बरस रही है..क्या आप वाकेहि दलित है? शर्मनाक राजनीति का दौर है जिस के बीच हमारे आदिवासी बहन भाइयों पर भी हमला है।  कॉर्पोरेट को जन जंगल ज़मीन गैर कानूनी रूप से थोपी जा रही है.

वक़्त है की हम भी समाजिक स्तर पर गठबन्दन बनाये, यह सब संघर्षों का। .
 

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