दक्षिणपंथ के उभार के साथ तरह-तरह के हेट क्राइम सामने आ रहे हैं। सार्वजनिक तौर पर जुबानी हमले से लेकर क्रूर हत्या तक। मई, 2014 में नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के साथ ही देश में हेट क्राइम और नफरत भरे अभियानों की बाढ़ सी आ गई है। देश में बीफ खाने की अफवाह पर हत्या से लेकर लव जेहाद जैसे नफरत भरे अभियान चलाए जा चुके हैं। ऐसा ही ट्रेंड अब अमेरिका में दिखाई दे रहा है।
अमेरिका में नफरत भरे अभियानों का सिलसिला ट्रंप के चुनावी प्रचार के दौर से ही शुरू हो चुका है और पिछले दिनों इसकी चरम परिणति तब देखने को मिली जब एक भारतीय इंजीनियर श्रीनिवास कुचिभोतला को एक सिरफिरे नस्लवादी ने गोलियों से भून दिया। ये हालात ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के एक महीने के अंदर पैदा हो गए हैं। भारत में हेट क्राइम का चरम तब दिखता है, जब यूपी के दादरी में बीफ खाने की अफवाह में उन्मादी भीड़ मोहम्मद अखलाक को पीट-पीट कर मार डाला जाता है। देश सकते में आ जाता है। अखलाक की हत्या 28 सितंबर 2015 की रात को हुई थी और श्रीनिवास को 23 फरवरी 2017 की रात (भारतीय समय के मुताबिक) को मार डाला गया।
चूंकि हत्या रात को हुई, इसलिए किसी भी भारतीय अखबार ने ने अगले दिन घटना की कवरेज नहीं की। अखलाक को 30 सितंबर, 2015 को पीट-पीट कर मार डाला गया था। जबकि श्रीनिवास की हत्या को 25 फरवरी को भारतीय अखबारों में कवर किया गया।
इस पोस्ट में अखबारों को हम आपके सामने रख एक तुलनात्मक ब्योरा रख रहे हैं कि भारतीय अखबारों ने किस तरह दोनों घटनाओं को कवर किया।
आइए, टाइम्स ऑफ इंडिया से शुरुआत करते हैं। यह अखलाक को मारे जाने के एक दिन के बाद का टाइम्स ऑफ इंडिया का दिल्ली संस्करण है।
30 सितंबर, 2015 के टाइम्स ऑफ इंडिया के दिल्ली संस्करण के पहले पेज पर अखलाक की हत्या को अखबार के बाएं कॉलम में बिल्कुल थोड़ी सी जगह दी गई। अब देखिये श्रीनिवास के मर्डर को टाइम्स ऑफ इंडिया में किस तरह कवर किया गया।
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श्रीनिवास कुचिभोतला की हत्या की टाइम्स ऑफ इंडिया में कवरेज
टाइम्स ऑफ इंडिया ने श्रीनिवास की हत्या को फ्रंट पेज कवरेज दी। इसे पहले पन्ने पर लीड स्टोरी बनाई गई।
अब हिन्दुस्तान टाइम्स के दिल्ली संस्करण को देखते हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स ने भी श्रीनिवास मर्डर केस को अच्छी कवरेज दी और इसे पहले पन्ने पर छापा। अब देखिये कि हिन्दुस्तान टाइम्स ने 30 सितंबर, 2015 को हुई मोहम्मद अखलाक की हत्या की कैसे कवरेज की।
Again, a front page lead story. How did Hindustan Times cover Mohammad Akhlaq’s mob lynching on 30th September 2015?
हिन्दुस्तान टाइम्स को मोहम्मद अखलाक की हत्या को पहले पेज पर जगह नहीं दी। आप देख सकते हैं कि 30 सितंबर, 2015 के संस्करण में हिन्दुस्तान टाइम्स के पहले पेज पर मोहम्मद अखलाक को कोई जगह नहीं मिली। यह खबर तीसरे पेज पर डाल दी गई।
अब बात मेल टुडे की। मेल टुडे चूंकि एक टेबलायड अखबार है। इसलिए 25 फरवरी, 2017 को इसने कुचिभोतला की हत्या को लीड स्टोरी बनाई। लेकिन हिन्दुस्तान टाइम्स की तरह ही मेल टुडे ने भी 30 सितंबर, 2015 के दिन अखलाक की स्टोरी को कोई जगह नहीं दी।
मेल टुडे ने न सिर्फ अखलाक की स्टोरी को पहले पन्ने पे जगह नहीं दी बल्कि उस दिन वह अपने किसी भी पन्ने पर इसे छापने में नाकाम रहा। मेल टुडे ने अखलाक की खबर 1 अक्टूबर 2015 को छापी। और वह भी अंदर के पन्नों पर।
सिर्फ एक अखबार ने हेट क्राइम की खबरों के साथ न्याय किया और वह है इंडियन एक्सप्रेस। इंडियन एक्सप्रेस में अखलाक और श्रीनिवास की हत्या की खबर की कवरेज का तुलनात्मक ब्योरा यहां पेश है।
इंडियन एक्सप्रेस में अखलाक और श्रीनिवास की हत्या की कवरेज
ऊपर के उदाहरणों से साफ पता चलता है कि मोहम्मद अखलाक बनाम श्रीनिवास कुचिभोतला की हत्या की कवरेज में मीडिया ने किस कदर पूर्वाग्रह से काम लिया। आखिर यह पूर्वाग्रह क्यों। भारतीय मीडिया ने अखलाक की हत्या पर देश भर में रोष उमड़ने के बाद कवरेज दी। आखिकार जिस दिन उसकी हत्या हुई उस दिन इस घटना की कवरेज क्यो नहीं हुई। क्या भारतीय मीडिया दक्षिणपंथियों के हेट क्राइम को सामने लाने से हिचकता है। ये कुछ सुलगते सवाल हैं, जिनके जवाब भारतीय मीडिया को देने हैं।
अमेरिका में नफरत भरे अभियानों का सिलसिला ट्रंप के चुनावी प्रचार के दौर से ही शुरू हो चुका है और पिछले दिनों इसकी चरम परिणति तब देखने को मिली जब एक भारतीय इंजीनियर श्रीनिवास कुचिभोतला को एक सिरफिरे नस्लवादी ने गोलियों से भून दिया। ये हालात ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के एक महीने के अंदर पैदा हो गए हैं। भारत में हेट क्राइम का चरम तब दिखता है, जब यूपी के दादरी में बीफ खाने की अफवाह में उन्मादी भीड़ मोहम्मद अखलाक को पीट-पीट कर मार डाला जाता है। देश सकते में आ जाता है। अखलाक की हत्या 28 सितंबर 2015 की रात को हुई थी और श्रीनिवास को 23 फरवरी 2017 की रात (भारतीय समय के मुताबिक) को मार डाला गया।
चूंकि हत्या रात को हुई, इसलिए किसी भी भारतीय अखबार ने ने अगले दिन घटना की कवरेज नहीं की। अखलाक को 30 सितंबर, 2015 को पीट-पीट कर मार डाला गया था। जबकि श्रीनिवास की हत्या को 25 फरवरी को भारतीय अखबारों में कवर किया गया।
इस पोस्ट में अखबारों को हम आपके सामने रख एक तुलनात्मक ब्योरा रख रहे हैं कि भारतीय अखबारों ने किस तरह दोनों घटनाओं को कवर किया।
आइए, टाइम्स ऑफ इंडिया से शुरुआत करते हैं। यह अखलाक को मारे जाने के एक दिन के बाद का टाइम्स ऑफ इंडिया का दिल्ली संस्करण है।
30 सितंबर, 2015 के टाइम्स ऑफ इंडिया के दिल्ली संस्करण के पहले पेज पर अखलाक की हत्या को अखबार के बाएं कॉलम में बिल्कुल थोड़ी सी जगह दी गई। अब देखिये श्रीनिवास के मर्डर को टाइम्स ऑफ इंडिया में किस तरह कवर किया गया।
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श्रीनिवास कुचिभोतला की हत्या की टाइम्स ऑफ इंडिया में कवरेज
टाइम्स ऑफ इंडिया ने श्रीनिवास की हत्या को फ्रंट पेज कवरेज दी। इसे पहले पन्ने पर लीड स्टोरी बनाई गई।
अब हिन्दुस्तान टाइम्स के दिल्ली संस्करण को देखते हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स ने भी श्रीनिवास मर्डर केस को अच्छी कवरेज दी और इसे पहले पन्ने पर छापा। अब देखिये कि हिन्दुस्तान टाइम्स ने 30 सितंबर, 2015 को हुई मोहम्मद अखलाक की हत्या की कैसे कवरेज की।
Again, a front page lead story. How did Hindustan Times cover Mohammad Akhlaq’s mob lynching on 30th September 2015?
हिन्दुस्तान टाइम्स को मोहम्मद अखलाक की हत्या को पहले पेज पर जगह नहीं दी। आप देख सकते हैं कि 30 सितंबर, 2015 के संस्करण में हिन्दुस्तान टाइम्स के पहले पेज पर मोहम्मद अखलाक को कोई जगह नहीं मिली। यह खबर तीसरे पेज पर डाल दी गई।
अब बात मेल टुडे की। मेल टुडे चूंकि एक टेबलायड अखबार है। इसलिए 25 फरवरी, 2017 को इसने कुचिभोतला की हत्या को लीड स्टोरी बनाई। लेकिन हिन्दुस्तान टाइम्स की तरह ही मेल टुडे ने भी 30 सितंबर, 2015 के दिन अखलाक की स्टोरी को कोई जगह नहीं दी।
मेल टुडे ने न सिर्फ अखलाक की स्टोरी को पहले पन्ने पे जगह नहीं दी बल्कि उस दिन वह अपने किसी भी पन्ने पर इसे छापने में नाकाम रहा। मेल टुडे ने अखलाक की खबर 1 अक्टूबर 2015 को छापी। और वह भी अंदर के पन्नों पर।
सिर्फ एक अखबार ने हेट क्राइम की खबरों के साथ न्याय किया और वह है इंडियन एक्सप्रेस। इंडियन एक्सप्रेस में अखलाक और श्रीनिवास की हत्या की खबर की कवरेज का तुलनात्मक ब्योरा यहां पेश है।
ऊपर के उदाहरणों से साफ पता चलता है कि मोहम्मद अखलाक बनाम श्रीनिवास कुचिभोतला की हत्या की कवरेज में मीडिया ने किस कदर पूर्वाग्रह से काम लिया। आखिर यह पूर्वाग्रह क्यों। भारतीय मीडिया ने अखलाक की हत्या पर देश भर में रोष उमड़ने के बाद कवरेज दी। आखिकार जिस दिन उसकी हत्या हुई उस दिन इस घटना की कवरेज क्यो नहीं हुई। क्या भारतीय मीडिया दक्षिणपंथियों के हेट क्राइम को सामने लाने से हिचकता है। ये कुछ सुलगते सवाल हैं, जिनके जवाब भारतीय मीडिया को देने हैं।