एनडीटीवी पर 23 फ़रवरी का प्राइम टाइम वाक़ई ख़ास था। इसके लिए रवीश कुमार की तारीफ़ करनी ही पड़ेगी। जब मीडिया का बड़ा हिस्सा दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में छात्रों और सेमिनार पर पुलिस के संरक्षण पर हुए हमले को “देशद्रोही नारों को लेकर आइसा और एबीवीपी में झड़प”, या “दिल्ली विश्वविद्यालय को देशद्रोह का अड्डा नहीं बनने देंगे” जैसी हेडलाइन चलाकर भगवा शिविर का काम आसान कर रहे थे, रवीश ने बताया कि रामजस कॉलेज मेें रद्द किए गए सेमिनार में आख़िर बात क्या होनी थी।
‘प्रतिरोध की संस्कृति’ के सिलसिले में आयोजित इस सेमिनार में जिन्हें बोलना था, और नहीं बोल पाए, उन्हें रवीश ने अपने कार्यक्रम में बुलवाया। वे बता सके कि आख़िर सेमिनार में वे क्या बोलना चाहते थे। एबीवीपी की कोर्ट में ‘देशद्रोही’ ठहराए जा चुके उमर ख़ालिद जब छत्तीसगढ़ पर अपनी बात रखते हैं तो समझ में आता है कि वह देश के हित में कितनी ज़रूरी बात कर रहे हैं। वैसे भी मीडिया की यह बुनियादी ज़िम्मेदारी है कि जिन्हें सत्ता या शक्ति के दबाव में बेज़ुबान बना दिया गया हो, उन्हें ज़बान दे।
इस कार्यक्रम को एबीवीपी कार्यकर्ताओं को भी देखना चाहिए था। शायद वे समझ पाते कि क्यों ‘भारत माता की जय’ के बाद वे सीधे ‘जूता मारो सालों को’ पर उतर आते हैं…उनकी युवा ऊर्जा का इस्तेमाल पृथ्वी को शेषनाग के फन पर बनाए रखने के लिए किया जा रहा है जबकि गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत कई सौ साल पहले सिद्ध हो चुका है।
यह कहना भी ज़रूरी है कि ऐसे दौर में जब ज़्यादातर टीवी संपादकों ने लाखों-करोड़ों के पैकेज के बदले इतिहास के कूड़ेदान में जाना स्वीकार कर लिया है, रवीश कुमार एक संवेदनशील पत्रकार होने का मतलब बताते हैं।
रवीश कुमार को एक बार फिर बधाई।
‘प्रतिरोध की संस्कृति’ के सिलसिले में आयोजित इस सेमिनार में जिन्हें बोलना था, और नहीं बोल पाए, उन्हें रवीश ने अपने कार्यक्रम में बुलवाया। वे बता सके कि आख़िर सेमिनार में वे क्या बोलना चाहते थे। एबीवीपी की कोर्ट में ‘देशद्रोही’ ठहराए जा चुके उमर ख़ालिद जब छत्तीसगढ़ पर अपनी बात रखते हैं तो समझ में आता है कि वह देश के हित में कितनी ज़रूरी बात कर रहे हैं। वैसे भी मीडिया की यह बुनियादी ज़िम्मेदारी है कि जिन्हें सत्ता या शक्ति के दबाव में बेज़ुबान बना दिया गया हो, उन्हें ज़बान दे।
इस कार्यक्रम को एबीवीपी कार्यकर्ताओं को भी देखना चाहिए था। शायद वे समझ पाते कि क्यों ‘भारत माता की जय’ के बाद वे सीधे ‘जूता मारो सालों को’ पर उतर आते हैं…उनकी युवा ऊर्जा का इस्तेमाल पृथ्वी को शेषनाग के फन पर बनाए रखने के लिए किया जा रहा है जबकि गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत कई सौ साल पहले सिद्ध हो चुका है।
यह कहना भी ज़रूरी है कि ऐसे दौर में जब ज़्यादातर टीवी संपादकों ने लाखों-करोड़ों के पैकेज के बदले इतिहास के कूड़ेदान में जाना स्वीकार कर लिया है, रवीश कुमार एक संवेदनशील पत्रकार होने का मतलब बताते हैं।
रवीश कुमार को एक बार फिर बधाई।