कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन में उत्तर प्रदेश के किसानों के शामिल होने के बीच राज्य सरकार ने वरिष्ठ पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों के अमले को मैदान में उतार दिया है। ये अधिकारी तीन दिन तक जिलों में डेरा डालेंगे और 30 दिसंबर को अपनी रिपोर्ट देंगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशानुसार ये अफसर रविवार को जिलों में पहुंच गए हैं। सूत्रों के अनुसार यह अधिकारी, किसान संगठनों के प्रतिनिधियों व नेताओं से वार्ता करेंगे। कृषि कानूनों पर जागरूक करने के साथ ही किसानों की धान व गन्ना खरीद आदि को लेकर समस्याओं का भी समाधान कराने का काम करेंगे।
किसानों के मुद्दे पर मुख्यमंत्री ने प्रत्येक जिले में अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव व सचिव स्तर के अफसरों को नोडल अधिकारी के रूप में नामित करने के निर्देश दिए। इसके तहत अपर मुख्य सचिव पंचायतीराज मनोज कुमार सिंह लखनऊ, अपर मुख्य सचिव चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास संजय एस भूसरेड्डी गोरखपुर और अपर मुख्य सचिव कृषि देवेश चतुर्वेदी वाराणसी व प्रमुख सचिव बीएल मीणा सहारनपुर आदि की लंबी फेहरिस्त हैं।
मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार तिवारी ने अधिकारियों की जिलों में तैनाती के साथ बाकायदा भ्रमण का एजेंडा जारी किया है। हालांकि एजेंडे में किसान आंदोलन का जिक्र नहीं है। पर, किसान संगठनों से वार्ता करने के उल्लेख से माना जा रहा है कि अधिकारी उन्हें केंद्र व राज्य सरकार के स्तर से उनके लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देंगे।
दूसरी ओर, प्रदेश के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई है कि वे पुलिस कर्मियों और राजस्व विभाग के लोगों को गांव-गांव भेजकर लोगों को चिन्हित करें कि कौन कौन किसान आंदोलन में हिस्सा ले रहे हैं या लेने वाले हैं? शासन स्तर से इसके लिए नोडल अधिकारियों की तैनाती की गई है। सभी वरिष्ठ अधिकारियों को एक-एक जिले की जिम्मेदारी दी गई।
शासन की ओर से जारी निर्देश में कहा गया है कि यह अधिकारी संबंधित जिलों में किसान संगठनों से संवाद स्थापित कर उनकी समस्याओं का समाधान करें। जिले के प्रमुख किसान नेताओं की सूची तैयार करें और इन नेताओं से निरंतर संवाद स्थापित करने के लिए जिले के अधिकारियों को लगाया जाए।
आंदोलनकारी किसानों को चिह्नित करने के साथ पुलिस उनकी सूची भी तैयार करेगी। साथ ही चिह्नित धार्मिक स्थलों से जुड़े धार्मिक नेताओं से संवाद स्थापित करने के भी निर्देश हैं। कहा गया हैं कि प्रभावशाली किसान नेताओं के गांवों में वरिष्ठ अधिकारी भ्रमण करें। किसान आंदोलन को लेकर खुफिया तंत्र को मजबूत कर सूचनाएं हासिल करें। विकास विभाग व अन्य विभागों से जुड़े अधिकारी किसानों से संवाद करें।
इसके लिए डीजी से लेकर डीआईजी तक को जिम्मेदारी दी गई है। नोएडा में डीजी जेल आनंद कुमार, बागपत में कमल सक्सेना जैसे वरिष्ठ अफसरों को लगाया गया है तो मेरठ में जोन के एडीजी राजीव सब्बरवाल को जबकि लखनऊ में डीजी होमगार्ड विजय कुमार को जिम्मेदारी दी गई है। सहारनपुर में डीआईजी उपेंद्र अग्रवाल को लगाया गया है।
शासन की ओर से कहा गया है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि सांप्रदायिक, जातीय सद्भाव को बिगाड़ने वाला भड़काऊ भाषण न हो। कोविड के नए स्ट्रेन के खतरे को देखते हुए गाइडलाइन का पालन पूरी तरह से कराया जाए।
अब भले सरकार इसे किसानों से बात कर उनकी समस्याओं के निस्तारण कराने का नाम दें लेकिन कहीं ना कहीं, इसे येन केन प्रकारेण समझा बुझाकर या डरा-धमकाकर जैसे भी किसानों को आंदोलन से दूर रखने की कोशिश के तौर पर, ज्यादा देखा जा रहा है।
किसान नेता व भाकियू के सहारनपुर मंडल महासचिव अरुण राणा कहते हैं कि सरकार अधिकारियों के माध्यम से किसानों को समझाने बुझाने का प्रयास कर रही हैं कि कम से कम लोग आंदोलन में शिरकत करें लेकिन किसान जागरूक हैं। वह यह सब भी समझता हैं और अपना हित भी बखूबी समझता हैं। संगठन भी उसी के अनुसार अपनी रणनीति बनाकर चल रहे हैं।
किसानों के मुद्दे पर मुख्यमंत्री ने प्रत्येक जिले में अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव व सचिव स्तर के अफसरों को नोडल अधिकारी के रूप में नामित करने के निर्देश दिए। इसके तहत अपर मुख्य सचिव पंचायतीराज मनोज कुमार सिंह लखनऊ, अपर मुख्य सचिव चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास संजय एस भूसरेड्डी गोरखपुर और अपर मुख्य सचिव कृषि देवेश चतुर्वेदी वाराणसी व प्रमुख सचिव बीएल मीणा सहारनपुर आदि की लंबी फेहरिस्त हैं।
मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार तिवारी ने अधिकारियों की जिलों में तैनाती के साथ बाकायदा भ्रमण का एजेंडा जारी किया है। हालांकि एजेंडे में किसान आंदोलन का जिक्र नहीं है। पर, किसान संगठनों से वार्ता करने के उल्लेख से माना जा रहा है कि अधिकारी उन्हें केंद्र व राज्य सरकार के स्तर से उनके लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देंगे।
दूसरी ओर, प्रदेश के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई है कि वे पुलिस कर्मियों और राजस्व विभाग के लोगों को गांव-गांव भेजकर लोगों को चिन्हित करें कि कौन कौन किसान आंदोलन में हिस्सा ले रहे हैं या लेने वाले हैं? शासन स्तर से इसके लिए नोडल अधिकारियों की तैनाती की गई है। सभी वरिष्ठ अधिकारियों को एक-एक जिले की जिम्मेदारी दी गई।
शासन की ओर से जारी निर्देश में कहा गया है कि यह अधिकारी संबंधित जिलों में किसान संगठनों से संवाद स्थापित कर उनकी समस्याओं का समाधान करें। जिले के प्रमुख किसान नेताओं की सूची तैयार करें और इन नेताओं से निरंतर संवाद स्थापित करने के लिए जिले के अधिकारियों को लगाया जाए।
आंदोलनकारी किसानों को चिह्नित करने के साथ पुलिस उनकी सूची भी तैयार करेगी। साथ ही चिह्नित धार्मिक स्थलों से जुड़े धार्मिक नेताओं से संवाद स्थापित करने के भी निर्देश हैं। कहा गया हैं कि प्रभावशाली किसान नेताओं के गांवों में वरिष्ठ अधिकारी भ्रमण करें। किसान आंदोलन को लेकर खुफिया तंत्र को मजबूत कर सूचनाएं हासिल करें। विकास विभाग व अन्य विभागों से जुड़े अधिकारी किसानों से संवाद करें।
इसके लिए डीजी से लेकर डीआईजी तक को जिम्मेदारी दी गई है। नोएडा में डीजी जेल आनंद कुमार, बागपत में कमल सक्सेना जैसे वरिष्ठ अफसरों को लगाया गया है तो मेरठ में जोन के एडीजी राजीव सब्बरवाल को जबकि लखनऊ में डीजी होमगार्ड विजय कुमार को जिम्मेदारी दी गई है। सहारनपुर में डीआईजी उपेंद्र अग्रवाल को लगाया गया है।
शासन की ओर से कहा गया है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि सांप्रदायिक, जातीय सद्भाव को बिगाड़ने वाला भड़काऊ भाषण न हो। कोविड के नए स्ट्रेन के खतरे को देखते हुए गाइडलाइन का पालन पूरी तरह से कराया जाए।
अब भले सरकार इसे किसानों से बात कर उनकी समस्याओं के निस्तारण कराने का नाम दें लेकिन कहीं ना कहीं, इसे येन केन प्रकारेण समझा बुझाकर या डरा-धमकाकर जैसे भी किसानों को आंदोलन से दूर रखने की कोशिश के तौर पर, ज्यादा देखा जा रहा है।
किसान नेता व भाकियू के सहारनपुर मंडल महासचिव अरुण राणा कहते हैं कि सरकार अधिकारियों के माध्यम से किसानों को समझाने बुझाने का प्रयास कर रही हैं कि कम से कम लोग आंदोलन में शिरकत करें लेकिन किसान जागरूक हैं। वह यह सब भी समझता हैं और अपना हित भी बखूबी समझता हैं। संगठन भी उसी के अनुसार अपनी रणनीति बनाकर चल रहे हैं।