छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग ने पुलिस महानिदेशक को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि 25 जुलाई को दुर्ग के जीआरपी थाने में नारायणपुर जिले की तीन महिलाओं और दो ननों के साथ कथित तौर पर धमकाने, यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार करने वाले दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए।

साभार : पीटीआई (स्क्रीनशॉट)
छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग ने गुरुवार, 9 अक्टूबर को डीजीपी अरुण देव गौतम को पत्र लिखकर उन दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की, जिन्होंने 25 जुलाई को दुर्ग स्थित जीआरपी थाने में नारायणपुर जिले की तीन महिलाओं और दो ननों को कथित रूप से धमकाया, उनका यौन उत्पीड़न किया और उनके साथ दुर्व्यवहार किया था।
द वायर ने लिखा कि बजरंग दल कार्यकर्ताओं ने ननों पर मानव तस्करी और तीनों महिलाओं के जबरन धर्मांतरण का आरोप लगाया था, जबकि उनका कहना था कि नन केवल उन्हें नौकरी दिलाने में मदद कर रही थीं। इसके बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और ननों को गिरफ्तार कर लिया, जिन्होंने 2 अगस्त को ज़मानत मिलने तक कई दिन जेल में बिताए।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, महिला आयोग की अध्यक्ष किरणमयी नायक ने गुरुवार को बताया, "इस मामले में हमने तीन बार सुनवाई की, लेकिन हमें सरकारी अधिकारियों से संतोषजनक जवाब नहीं मिला। हमने दुर्ग रेलवे पुलिस स्टेशन की सीसीटीवी फुटेज की मांग की थी, जिसमें बजरंग दल के कार्यकर्ता थाने के भीतर महिलाओं को परेशान करते हुए दिखाई दे रहे हैं। इसी के आधार पर गुरुवार को हमने पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को पत्र लिखकर तीनों पीड़ित महिलाओं द्वारा अपनी व्यक्तिगत शिकायतों में जिन दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं को नामजद किया गया है, उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का अनुरोध किया है।”
नायक ने कहा कि यदि पुलिस 15 दिनों में कार्रवाई नहीं करती है, तो “मैं इस मामले को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में ले जाऊंगी, जहां हम पुलिस से इस मुद्दे पर कार्रवाई न करने के लिए महिलाओं को मुआवजा देने का अनुरोध करेंगे।”
तीनों महिलाओं ने राज्य महिला आयोग की ओर से की गई कार्रवाई पर संतोष जताया है। उन्होंने बताया कि इस घटना के चलते उन्हें वह नौकरी गंवानी पड़ी, जिसमें नन उनकी मदद कर रही थीं। इसके कारण वे अब आर्थिक तंगी का सामना कर रही हैं।
25 जुलाई को ननों की गिरफ़्तारी के बाद विशेष रूप से केरल में, जहां की ये नन थीं, ज़बरदस्त विरोध हुआ। ईसाई संगठनों, कांग्रेस पार्टी और केरल की सत्तारूढ़ वामपंथी गठबंधन सरकार ने इस गिरफ़्तारी की कड़ी निंदा की थी।
ज्ञात हो कि दुर्ग रेलवे स्टेशन स्थित जीआरपी थाने के भीतर के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे।
घटना के बाद तीनों महिलाओं को एक आश्रय गृह भेजा गया और बाद में उन्हें नारायणपुर स्थित अपने घर लौटने की अनुमति दे दी गई। इसके बाद महिलाओं ने नारायणपुर पुलिस के पास दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई, लेकिन उन्हें बताया गया कि चूंकि यह घटना दुर्ग जिले में हुई थी, इसलिए उन्हें वहीं जाकर शिकायत दर्ज करानी होगी। इसके बाद महिलाओं ने अगस्त में राज्य महिला आयोग से संपर्क किया।
न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार, आयोग की अध्यक्ष किरणमयी नायक ने कहा कि जब पुलिस ने युवतियों की शिकायतों पर एफआईआर दर्ज नहीं की, तो तीनों युवतियों ने आयोग से संपर्क किया और आरोप लगाया कि दुर्ग रेलवे स्टेशन पर बजरंग दल के तीन कार्यकर्ताओं ने उन पर हमला किया, गाली-गलौज की, छेड़छाड़ की और जाति-आधारित गालियां दीं।
नायक ने बताया कि आयोग ने डीजीपी को पत्र भेजकर निर्देश दिया है कि तीनों शिकायतकर्ताओं की अलग-अलग एफआईआर 15 दिनों के भीतर दर्ज की जाएं और उसी अवधि में आयोग को इस संबंध में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए।
ज्ञात हो कि केरल की दो कैथोलिक नन — प्रीति मैरी (55) और वंदना फ्रांसिस (53) — को आदिवासी व्यक्ति सुखमन मंडावी के साथ 25 जुलाई को दुर्ग रेलवे स्टेशन पर राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) ने गिरफ्तार किया था। स्थानीय बजरंग दल के एक पदाधिकारी ने शिकायत दर्ज कराई थी कि इन लोगों ने नारायणपुर की तीन महिलाओं का जबरन धर्मांतरण कराया और उन्हें तस्करी के इरादे से ले जा रहे थे।
बता दें कि सितंबर 2025 में भारत के ईसाई समुदाय के खिलाफ लक्षित उत्पीड़न और नफरत-आधारित हमलों में तेज़ी आई है। ये घटनाएं विशेष रूप से राजस्थान में अधिक देखी गईं। जो कुछ छापों और पुलिस चेतावनियों के रूप में शुरू हुआ था, वह जल्द ही एक संगठित उत्पीड़न अभियान में बदल गया, जिसे “धर्मांतरण-विरोधी निगरानी” के रूप में प्रस्तुत किया गया। यह कोई संयोग नहीं था।
हाल ही में पेश किए गए राजस्थान धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2025 के बाद, विश्व हिंदू परिषद (विहिप), बजरंग दल और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) जैसे दक्षिणपंथी संगठन अत्यंत सक्रिय हो गए। कई बार ये संगठन पुलिस से पहले या उसके साथ मिलकर कार्रवाई करते देखे गए।
चर्चों, हॉस्टलों और प्रार्थना सभाओं पर छापे मारे गए; पादरियों को हिरासत में लिया गया; अनुयायियों को यह लिखने के लिए मजबूर किया गया कि वे न तो प्रार्थना सभाओं में शामिल होंगे और न किसी प्रकार की धार्मिक गतिविधि में भाग लेंगे — और यह सब “धर्मांतरण की जांच” के नाम पर हुआ।
सोशल मीडिया पर झूठे दावे किए गए कि कहीं “जबरन धर्मांतरण” या “धार्मिक गड़बड़ी” हो रही है। इसके बाद तथाकथित सतर्कता समूह सक्रिय हो गए और पुलिस ने हस्तक्षेप किया — लेकिन कार्रवाई हमलावरों के बजाय उन पर की गई जिन पर दूसरों का धर्म बदलवाने का आरोप लगाया गया था।
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साभार : पीटीआई (स्क्रीनशॉट)
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द वायर ने लिखा कि बजरंग दल कार्यकर्ताओं ने ननों पर मानव तस्करी और तीनों महिलाओं के जबरन धर्मांतरण का आरोप लगाया था, जबकि उनका कहना था कि नन केवल उन्हें नौकरी दिलाने में मदद कर रही थीं। इसके बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और ननों को गिरफ्तार कर लिया, जिन्होंने 2 अगस्त को ज़मानत मिलने तक कई दिन जेल में बिताए।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, महिला आयोग की अध्यक्ष किरणमयी नायक ने गुरुवार को बताया, "इस मामले में हमने तीन बार सुनवाई की, लेकिन हमें सरकारी अधिकारियों से संतोषजनक जवाब नहीं मिला। हमने दुर्ग रेलवे पुलिस स्टेशन की सीसीटीवी फुटेज की मांग की थी, जिसमें बजरंग दल के कार्यकर्ता थाने के भीतर महिलाओं को परेशान करते हुए दिखाई दे रहे हैं। इसी के आधार पर गुरुवार को हमने पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को पत्र लिखकर तीनों पीड़ित महिलाओं द्वारा अपनी व्यक्तिगत शिकायतों में जिन दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं को नामजद किया गया है, उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का अनुरोध किया है।”
नायक ने कहा कि यदि पुलिस 15 दिनों में कार्रवाई नहीं करती है, तो “मैं इस मामले को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में ले जाऊंगी, जहां हम पुलिस से इस मुद्दे पर कार्रवाई न करने के लिए महिलाओं को मुआवजा देने का अनुरोध करेंगे।”
तीनों महिलाओं ने राज्य महिला आयोग की ओर से की गई कार्रवाई पर संतोष जताया है। उन्होंने बताया कि इस घटना के चलते उन्हें वह नौकरी गंवानी पड़ी, जिसमें नन उनकी मदद कर रही थीं। इसके कारण वे अब आर्थिक तंगी का सामना कर रही हैं।
25 जुलाई को ननों की गिरफ़्तारी के बाद विशेष रूप से केरल में, जहां की ये नन थीं, ज़बरदस्त विरोध हुआ। ईसाई संगठनों, कांग्रेस पार्टी और केरल की सत्तारूढ़ वामपंथी गठबंधन सरकार ने इस गिरफ़्तारी की कड़ी निंदा की थी।
ज्ञात हो कि दुर्ग रेलवे स्टेशन स्थित जीआरपी थाने के भीतर के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे।
घटना के बाद तीनों महिलाओं को एक आश्रय गृह भेजा गया और बाद में उन्हें नारायणपुर स्थित अपने घर लौटने की अनुमति दे दी गई। इसके बाद महिलाओं ने नारायणपुर पुलिस के पास दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई, लेकिन उन्हें बताया गया कि चूंकि यह घटना दुर्ग जिले में हुई थी, इसलिए उन्हें वहीं जाकर शिकायत दर्ज करानी होगी। इसके बाद महिलाओं ने अगस्त में राज्य महिला आयोग से संपर्क किया।
न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार, आयोग की अध्यक्ष किरणमयी नायक ने कहा कि जब पुलिस ने युवतियों की शिकायतों पर एफआईआर दर्ज नहीं की, तो तीनों युवतियों ने आयोग से संपर्क किया और आरोप लगाया कि दुर्ग रेलवे स्टेशन पर बजरंग दल के तीन कार्यकर्ताओं ने उन पर हमला किया, गाली-गलौज की, छेड़छाड़ की और जाति-आधारित गालियां दीं।
नायक ने बताया कि आयोग ने डीजीपी को पत्र भेजकर निर्देश दिया है कि तीनों शिकायतकर्ताओं की अलग-अलग एफआईआर 15 दिनों के भीतर दर्ज की जाएं और उसी अवधि में आयोग को इस संबंध में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए।
ज्ञात हो कि केरल की दो कैथोलिक नन — प्रीति मैरी (55) और वंदना फ्रांसिस (53) — को आदिवासी व्यक्ति सुखमन मंडावी के साथ 25 जुलाई को दुर्ग रेलवे स्टेशन पर राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) ने गिरफ्तार किया था। स्थानीय बजरंग दल के एक पदाधिकारी ने शिकायत दर्ज कराई थी कि इन लोगों ने नारायणपुर की तीन महिलाओं का जबरन धर्मांतरण कराया और उन्हें तस्करी के इरादे से ले जा रहे थे।
बता दें कि सितंबर 2025 में भारत के ईसाई समुदाय के खिलाफ लक्षित उत्पीड़न और नफरत-आधारित हमलों में तेज़ी आई है। ये घटनाएं विशेष रूप से राजस्थान में अधिक देखी गईं। जो कुछ छापों और पुलिस चेतावनियों के रूप में शुरू हुआ था, वह जल्द ही एक संगठित उत्पीड़न अभियान में बदल गया, जिसे “धर्मांतरण-विरोधी निगरानी” के रूप में प्रस्तुत किया गया। यह कोई संयोग नहीं था।
हाल ही में पेश किए गए राजस्थान धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2025 के बाद, विश्व हिंदू परिषद (विहिप), बजरंग दल और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) जैसे दक्षिणपंथी संगठन अत्यंत सक्रिय हो गए। कई बार ये संगठन पुलिस से पहले या उसके साथ मिलकर कार्रवाई करते देखे गए।
चर्चों, हॉस्टलों और प्रार्थना सभाओं पर छापे मारे गए; पादरियों को हिरासत में लिया गया; अनुयायियों को यह लिखने के लिए मजबूर किया गया कि वे न तो प्रार्थना सभाओं में शामिल होंगे और न किसी प्रकार की धार्मिक गतिविधि में भाग लेंगे — और यह सब “धर्मांतरण की जांच” के नाम पर हुआ।
सोशल मीडिया पर झूठे दावे किए गए कि कहीं “जबरन धर्मांतरण” या “धार्मिक गड़बड़ी” हो रही है। इसके बाद तथाकथित सतर्कता समूह सक्रिय हो गए और पुलिस ने हस्तक्षेप किया — लेकिन कार्रवाई हमलावरों के बजाय उन पर की गई जिन पर दूसरों का धर्म बदलवाने का आरोप लगाया गया था।
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