कुछ कहानियाँ बिना आहट के घट जाती हैं। जनरल बी सी खंडूड़ी रक्षा मामलों की संसदीय समिति के अध्यक्ष थे। पत्रकार अदिति फड़णवीस ने बिज़नेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि आज तक किसी को भी संसदीय समिति के चेयरमैनी से नहीं हटाया गया। वे लोकसभा के कार्यकाल समाप्त होने तक चेयरमैन बने रहते हैं जब तक कि ने ख़ुद इस्तीफ़ा न दे दें। पार्टी से निकाल न दिए जाएँ या मंत्री न बन जाएँ।
इस महीने बीजेपी ने लोकसभा की अध्यक्ष को सूचित किया कि वह बी सी खंडूड़ी की जगह कलराज मिश्र को चेयरमैन बना रही है जिन्हें पिछले दिनों मंत्री पद से हटा दिया था। लोकसभा का कार्यकाल बाक़ी है, खंडूडी साहब अपने आप रिटायर हो जाते। वाजपेयी सरकार में भूतल परिवहन मंत्री के तौर पर सड़कों का जाल बिछाने के लिए उन्हें याद किया जाता है।
अब आते हैं कि क्यों हटाया गया। अदिति फडणविस लिखती हैं कि इस साल मार्च में संसदीय समिति अपनी रिपोर्ट पेश करती है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि रक्षा मंत्रालय को इतना कम पैसा दिया जा रहा है कि वह अनिवार्य ज़रूरतों को मुश्किल से पूरा कर पा रही है। सेना को आधुनिक बनाने के लिए 21,338 करोड़ दिया गया है जो कि बहुत कम है।सेना के जो 125 प्रोजेक्ट चल रहे हैं उन्हीं पर 29,033 करोड़ का ख़र्च होना है। नौ सेना का बजट मात्र 2.84 प्रतिशत बढ़ा है। यह राशि मुद्रा स्फीति के साथ समायोजित करने पर कुछ भी नहीं है। एक तरह से पहले की तुलना में कम हो जाती है।
यह सब बी सी खंडूडी को सपने में नहीं आया था। समिति के सामने सेना के अफ़सरान ने उन्हें बताया है। उनका कहना है कि सेना को जो बजट मिलता है उसका मात्र 14 प्रतिशत आधुनिक बनाने के काम के लिए होता है जबकि यह 22-24 प्रतिशत होना चाहिए। ज़ाहिर है जो ख़ुद भी सेना से आया हो, वह इन तथ्यों के साथ कैसे बेईमानी करता। वित्त और रक्षा मंत्रालय को झकझोरने के लिए खंडूडी साहब ने रिपोर्ट में सारी बातें जस की तस रख दी। बीजेपी को कहाँ तो रिपोर्पट पर एक्शन लेना था लेकिन एक्शन ले लिया खंडूडी के ख़िलाफ़।
शायद डर रहा होगा कि इस रिपोर्ट के आधार पर विपक्ष सरकार को घेरेगा। मीडिया लंबे लंबे लेख लिखेगा। जनता सवाल करेगी कि जब टैक्स और राजस्व वसूली का दावा करते हैं तो फिर सेना का बजट कैसे कम हो गया या अपर्याप्त रह गया। प्रेस कांफ्रेंस में मंत्री गाल फुला फुला कर बोल रहे हैं कि रक्षा से समझौता नहीं करेंगे लेकिन वही एक सच्ची रिपोर्ट लिखने वाले सेना के जनरल को चुपके से हटा दिया जाता है।
आप उस रिपोर्ट के बारे में जानना चाहते हैं तो लोकसभा की साइट पर जाकर पढ़ें। इंटरनेट में सर्च कीजिए कि इस बारे में कितनी ख़बरें छपी हैं। याद रखिए लोकतंत्र में वोटर होने के लिए बहुत मेहनत करनी होती है। पढ़ना पड़ता है। वर्ना फिर कोई आँधी आएगी और खर-पतवार की तरह उड़ा ले जाएगी। गोदी मीडिया के दौर में नागरिक और मतदाता दोनों का कर्तव्य बनता है कि वह जानने के लिए परिश्रम करे।
इस महीने बीजेपी ने लोकसभा की अध्यक्ष को सूचित किया कि वह बी सी खंडूड़ी की जगह कलराज मिश्र को चेयरमैन बना रही है जिन्हें पिछले दिनों मंत्री पद से हटा दिया था। लोकसभा का कार्यकाल बाक़ी है, खंडूडी साहब अपने आप रिटायर हो जाते। वाजपेयी सरकार में भूतल परिवहन मंत्री के तौर पर सड़कों का जाल बिछाने के लिए उन्हें याद किया जाता है।
अब आते हैं कि क्यों हटाया गया। अदिति फडणविस लिखती हैं कि इस साल मार्च में संसदीय समिति अपनी रिपोर्ट पेश करती है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि रक्षा मंत्रालय को इतना कम पैसा दिया जा रहा है कि वह अनिवार्य ज़रूरतों को मुश्किल से पूरा कर पा रही है। सेना को आधुनिक बनाने के लिए 21,338 करोड़ दिया गया है जो कि बहुत कम है।सेना के जो 125 प्रोजेक्ट चल रहे हैं उन्हीं पर 29,033 करोड़ का ख़र्च होना है। नौ सेना का बजट मात्र 2.84 प्रतिशत बढ़ा है। यह राशि मुद्रा स्फीति के साथ समायोजित करने पर कुछ भी नहीं है। एक तरह से पहले की तुलना में कम हो जाती है।
यह सब बी सी खंडूडी को सपने में नहीं आया था। समिति के सामने सेना के अफ़सरान ने उन्हें बताया है। उनका कहना है कि सेना को जो बजट मिलता है उसका मात्र 14 प्रतिशत आधुनिक बनाने के काम के लिए होता है जबकि यह 22-24 प्रतिशत होना चाहिए। ज़ाहिर है जो ख़ुद भी सेना से आया हो, वह इन तथ्यों के साथ कैसे बेईमानी करता। वित्त और रक्षा मंत्रालय को झकझोरने के लिए खंडूडी साहब ने रिपोर्ट में सारी बातें जस की तस रख दी। बीजेपी को कहाँ तो रिपोर्पट पर एक्शन लेना था लेकिन एक्शन ले लिया खंडूडी के ख़िलाफ़।
शायद डर रहा होगा कि इस रिपोर्ट के आधार पर विपक्ष सरकार को घेरेगा। मीडिया लंबे लंबे लेख लिखेगा। जनता सवाल करेगी कि जब टैक्स और राजस्व वसूली का दावा करते हैं तो फिर सेना का बजट कैसे कम हो गया या अपर्याप्त रह गया। प्रेस कांफ्रेंस में मंत्री गाल फुला फुला कर बोल रहे हैं कि रक्षा से समझौता नहीं करेंगे लेकिन वही एक सच्ची रिपोर्ट लिखने वाले सेना के जनरल को चुपके से हटा दिया जाता है।
आप उस रिपोर्ट के बारे में जानना चाहते हैं तो लोकसभा की साइट पर जाकर पढ़ें। इंटरनेट में सर्च कीजिए कि इस बारे में कितनी ख़बरें छपी हैं। याद रखिए लोकतंत्र में वोटर होने के लिए बहुत मेहनत करनी होती है। पढ़ना पड़ता है। वर्ना फिर कोई आँधी आएगी और खर-पतवार की तरह उड़ा ले जाएगी। गोदी मीडिया के दौर में नागरिक और मतदाता दोनों का कर्तव्य बनता है कि वह जानने के लिए परिश्रम करे।