'छपाक' पर बवाल से असली नुकसान किसका हुआ है?

Written by Vikas Trivedi | Published on: January 16, 2020
'छपाक' पर बवाल से असली नुकसान दीपिका या फ़िल्म प्रोड्यूसर्स का नहीं बल्कि आपका हमारा हुआ है। सबसे ज़्यादा नुकसान में रहेगी वो लड़की, जिस पर भविष्य में कोई कमबख्त तेज़ाब फेंक भागेगा। एक अहम टॉपिक पर फ़िल्म बनी, जिसके बाद बात छिड़नी चाहिए थी कि अब भी तेज़ाब क्यों फेंका जा रहा है। जबकि 2003 में सोनाली मुखर्जी और 2005 में लक्ष्मी केस के बाद कई गाइडलाइंस जारी हुईं। फिर भी बाज़ार में तेज़ाब क्यों मिल रहा है। कांग्रेस, बीजेपी, आप या किसी भी राज्य की सरकार गाइडलाइंस क्यों लागू नहीं करवा पा रही हैं। 2018 में 240 से ज़्यादा लोगों पर तेज़ाब फेंका गया। सबसे ज़्यादा औरतें तेज़ाब का शिकार रहीं। अतिरिक्त एक्टिव ममता बनर्जी के बंगाल में सबसे ज़्यादा तेज़ाब फेंकने के केस हुए। एंटी-रोमियो स्कवॉड वाले योगी जी का यूपी एसिड अटैक के मामले में दूसरे नंबर पर हैं। दोनों राज्य कभी आगे, कभी पीछे।



अब क्रोनोलॉजी समझिए। दीपिका जेएनयू गईं। छपाक का बॉयकॉट शुरू हुआ। दो गुट बने। विरोध बनाम समर्थन। कांग्रेस ने दो राज्यों में छपाक को टैक्स फ्री कर दिया। ये सुनते ही बदला लेने की बात करने वाली योगी सरकार ने तानाजी को टैक्स फ्री कर दिया। ये फैसला उस राज्य की सरकार में हुआ, जिसमें एसिड अटैक के सबसे ज़्यादा केस सामने आते हैं।

यानी अगर एक फ़िल्म के ज़रिए जागरुकता फैलने की चवन्नी भर भी संभावना थी। एक भी एसिड अटैक कम होने की उम्मीद थी। उस पर राज्यों की सरकार ने मुद्दे को नहीं, पॉलिटिक्स को चुना। जो फ़िल्म एजेंडे पर फिट बैठी, वो टैक्स फ्री। खुशी होती कि अगर ये वाक़ई मुद्दा देखकर फ़िल्म को टैक्स फ्री करते। बात टैक्स फ्री से टिकट के बचे पैसों की नहीं है, बात है आपकी नियत की।

इंडिया में फ़िल्म एक ऐसी चीज़ है, जिसके ज़रिए आप कठिन से कठिन बात को बहुत आसानी से समझा सकते हैं।

कितने सारे लोग होंगे, जिन्होंने आर्टिकल-15 किताब से नहीं, फ़िल्म से समझा होगा। जिन्होंने जाना होगा कि बाहर कैजुएल्टी में कोई मर रहा हो तो फॉर्म भरना ज़रूरी नहीं है। जो फ़िल्म देखकर किसी को जादू की झप्पी देने लगे होंगे। जब कस्बों के लड़के, चाचा लोग भी Half Hour Man Bleeding Like Woman…they Straight Dying का मतलब समझने लगे।

एसिड अटैक पर बनी फ़िल्म को देखने की संभावनाओं और जागरूकता फैलाने में सरकार का जो योगदान हो सकता था, वो अधूरा और संदिग्ध है। आज जब दीपिका, मेघना गुलज़ार एंड टीम ने अपनी फ़िल्म के प्रचार के लिए एक ज़रूरी वीडियो किया, तब मेरे सामने वो चेहरे दौड़ रहे हैं। जो जब मेट्रो में दाखिल होते हैं, बस में चढ़ते हैं तो लोगों की निगाह कुछ पल के लिए रुक जाती है। अपनी असहजताओं से असहज करने की भारतीय परंपरा को कायम रखते हुए।

आपको हमें फ़िल्म देखनी है तो देखिए। नहीं देखनी है तो मत देखिए। लेकिन एक सवाल सारी पार्टियों की सरकारों से करिए कि आख़िर तेज़ाब क्यों बिक रहा है और रोकने के लिए सबने क्या किया?

क्योंकि।।।'तेज़ाब बिकता है इसलिए फिकता है।'

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