सूचना आयुक्तों की नियुक्तियां न होने पर सुप्रीम कोर्ट नाराज, कहा- काम करने वाले नहीं तो सूचना आयोग बनाने का क्या फायदा

Written by sabrang india | Published on: January 8, 2025
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को फटकार लगाई है। कोर्ट ने पूछा कि जब नियुक्तियां ही नहीं हो रही हैं तो पारदर्शिता लाने वाले इस कानून और संस्थान का क्या फायदा है।



सूचना आयोगों में सूचना आयुक्तों की नियुक्तियों में लगातार हो रही देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 7 जनवरी को केंद्र और राज्यों को फटकार लगाई है। कोर्ट ने पूछा कि जब नियुक्तियां ही नहीं हो रही हैं तो पारदर्शिता लाने वाले इस कानून और संस्थान का क्या फायदा है?

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने बताया कि केंद्रीय सूचना आयोग में सूचना आयुक्तों के आठ पद खाली हैं और करीब 23,000 अपीलें लंबित हैं। कई राज्य सूचना आयोग 2020 से निष्क्रिय हैं और कुछ ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत याचिकाएं स्वीकार करना बंद कर दिया है।

पीठ ने केंद्र सरकार के वकील से कहा, "एक संस्थान बनाया गया है, लेकिन यदि इसके तहत काम करने वाले लोग ही नहीं होंगे, तो इसका क्या उपयोग है?"

याचिकाकर्ता अंजलि भारद्वाज की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि फरवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और 2023 व 2024 में पारित आदेशों के बावजूद समय पर और पारदर्शी तरीके से नियुक्तियां नहीं हो रही हैं। उन्होंने कहा, "कानून को खत्म करने का सबसे आसान तरीका यह है कि सूचना आयोगों को निष्क्रिय कर दिया जाए।"

केंद्र ने जानकारी दी कि अगस्त 2024 में सूचना आयुक्तों के पद के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे, जिनमें कुल 161 आवेदन प्राप्त हुए हैं। हालांकि, चयन प्रक्रिया अभी भी जारी है।

सुप्रीम कोर्ट ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को आदेश दिया है कि वह दो सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दाखिल करे, जिसमें यह स्पष्ट किया जाए कि चयन प्रक्रिया कब पूरी होगी, चयन समिति अपनी सिफारिशें कब अंतिम रूप देगी और आठ सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की अधिसूचना कब जारी की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड की 'विशेष परिस्थिति' पर भी ध्यान दिया, जहां विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की अनुपस्थिति के कारण राज्य सूचना आयोग की नियुक्तियां रोक दी गई हैं। आयोग 2020 से निष्क्रिय पड़ा हुआ है और 8,000 से अधिक अपीलें लंबित हैं। कोर्ट ने झारखंड में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी को निर्देश दिया कि वह चयन समिति के लिए अपने किसी सदस्य को नामित करे और 10 सप्ताह के भीतर नियुक्ति प्रक्रिया को पूरा करे।

शीर्ष कोर्ट ने उन राज्यों को भी आदेश दिया है जिन्होंने चयन प्रक्रिया शुरू तो की है, लेकिन इसे पूरा करने के लिए कोई समयसीमा निर्धारित नहीं की है। कोर्ट ने उन राज्यों से दो हफ्तों के भीतर आवेदकों की सूची और चयन समिति के गठन की जानकारी देने को कहा और चयन प्रक्रिया को कुल आठ सप्ताह में पूरा करने का निर्देश दिया। इसके अलावा, राज्यों के मुख्य सचिवों को अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश भी दिया गया।

बीते साल अक्टूबर महीने में अंजलि भारद्वाज की संस्था 'सतर्क नागरिक संगठन' ने अपनी रिपोर्ट (भारत में सूचना आयोगों के प्रदर्शन पर रिपोर्ट कार्ड, 2023-24) जारी की थी, जिसमें बताया गया था कि सूचना आयोगों में चार लाख से अधिक शिकायतें और अपीलें लंबित हैं। सूचना आयुक्तों के पद खाली पड़े हैं और कई आयोग तो निष्क्रिय हो चुके हैं। कुछ आयोग बिना जवाब दिए ही आवेदन लौटा रहे हैं। हर आयोग को अपनी कार्यान्वयन संबंधी वार्षिक रिपोर्ट तैयार करनी होती है, लेकिन अधिकांश आयोग ऐसा नहीं कर रहे हैं।

सतर्क नागरिक संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, 30 जून, 2024 तक भारत के सभी 29 सूचना आयोगों में लंबित अपीलों और शिकायतों की कुल संख्या 4,05,509 थी। हर साल अपीलों और शिकायतों के बैकलॉग की संख्या बढ़ती जा रही है। 31 मार्च, 2019 तक 26 सूचना आयोगों में कुल 2,18,347 मामले लंबित थे। 30 जून, 2021 तक यह संख्या बढ़कर 2,86,325 हो गई थी और जून 2022 तक लंबित शिकायतों और अपीलों की संख्या तीन लाख को पार कर गई थी।

पिछले साल, 30 जून, 2023 तक अपीलों का बैकलॉग 3,88,886 था। (इन आंकड़ों से पता चलता है कि बीते पांच सालों में लंबित शिकायतों/अपीलों की संख्या 1,87,162 बढ़ गई है।)

अंजलि, बैकलॉग को बेहद गंभीर समस्या मानती हैं। उन्होंने कहा, "मामले लंबित होने से लोगों को बहुत समय तक इंतजार करना पड़ रहा है। हमारी रिपोर्ट बताती है कि अभी जो हालत है, अगर छत्तीसगढ़ और बिहार में एक नया आरटीआई दायर किया जाए तो उसकी सुनवाई का नंबर आने में चार से पांच साल तक का समय लग जाएगा... अगर सूचना इतनी देरी से मिलेगी तो उसका क्या मतलब रह जाएगा। लोग सूचना मांगते हैं भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए, अपने अधिकारों को पाने के लिए, ऐसे में सूचना पाने के लिए पांच-पांच साल इंतजार करना पड़े तो उस सूचना का क्या महत्व रह जाएगा।"

अंजलि, आरटीआई के लिए चलाए गए राष्ट्रीय अभियान की सह-संयोजक रही हैं। उनका संगठन लंबे समय से सूचना के अधिकार का इस्तेमाल कर वंचित समूहों को उनका अधिकार दिलाने का काम कर रहा है।

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