सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में वर्तमान में राजनीति और लोक प्रशासन की प्रोफेसर, शांतिश्री धूलिपुडी पंडित को सोमवार, 7 फरवरी को भारत के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का नया कुलपति नियुक्त किया गया. वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) की पहली महिला कुलपति होंगी. नियुक्ति के बाद अपने पहले बयान में, उन्होंने अपनी प्राथमिकताओं के रूप में भारत-केंद्रित कथाओं के निर्माण और छात्र-अनुकूल वातावरण को सूचीबद्ध किया. JNU के छात्रों के लिए नफरत और दुर्भावना पाल कर ये किस तरह के कैंपस का निर्माण करेंगी यह किसी से छुपी हुई नहीं है. नवनियुक्त कुलपति संघ की सीढियों से होते हुए एकेडमिक जगत के आखरी पड़ाव तक पहुंची हैं. उन्हें राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा नियुक्त किया गया था. वह अगले पांच वर्षों तक इस पद पर रहेंगी. प्रोफ़ेसर पंडित एम. जगदीश कुमार की जगह लेंगी, जिन्हें JNU को विश्व स्तर पर बदनाम करने, कैंपस में टेंकर लगवाने की कोशिश करने, छात्रों को देशद्रोही बताने, विश्वविद्यालय के माहौल को खराब कर संघ की शाखा में तब्दील करने के उत्कृष्ट कार्य के लिए पुरस्कार स्वरुप पिछले सप्ताह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) का दुर्भाग्य है कि एक शांति पसंद, सेक्युलर, सर्वधर्म समभाव और संविधान के मूल्यों को सर्वोपरि रखने वाले कैंपस में हिंसा पसंद रुढ़िवादी, महिला, व् अल्पसंख्यक विरोधी महिला कुलपति की नियुक्ति हुई है. हालाँकि डॉ. पंडित स्वयं जेएनयू की पूर्व छात्रा भी रह चुकी हैं लेकिन फिर भी यह भरोशा कर पाना मुश्किल है कि लगातार खराब हो रहे माहौल को ये संवारने का काम करेंगी.
उन्होंने JNU के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस से एम.फिल और पीएचडी की पढ़ाई पूरी की, और "भारत में संसद और विदेश नीति - नेहरू वर्ष" पर अपनी डॉक्टरेट थीसिस लिखी. उन्होंने 1992 में पुणे विश्वविद्यालय में जाने से पहले गोवा विश्वविद्यालय में एक व्याख्याता के रूप में अपना शिक्षण करियर शुरू किया, जहां उन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति और अर्थशास्त्र, वैश्विक शासन, सुरक्षा और मानवाधिकार, शांति और संघर्ष अध्ययन और भारत की विदेश नीति पर शिक्षण और शोध पर ध्यान केंद्रित किया. वह वर्तमान में भारतीय राजनीति विज्ञान संघ की अध्यक्ष हैं और पुणे में अकादमिक स्टाफ कॉलेजों और सैन्य खुफिया प्रशिक्षण स्कूल के लिए एक संसाधन व्यक्ति रही हैं, जो एशिया प्रशांत क्षेत्र और भारत की सुरक्षा धारणाओं में अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं.
डॉ पंडित का जन्म तत्कालीन यूएसएसआर में हुआ जहां उनकी मां ने लेनिनग्राद ओरिएंटल फैकल्टी विभाग में तमिल और तेलुगू पढ़ाया था, डॉ पंडित चेन्नई से हैं और मद्रास विश्वविद्यालय के स्वर्ण पदक विजेता स्नातक हैं. वह खुद बहुभाषी हैं, तेलुगु, तमिल, मराठी, हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी बोलती हैं. लेकिन पूर्वाग्रह से ग्रसित शिक्षा भी देश की एकता, अखंडता और धर्म निरपेक्षता को छिन्न भिन्न करने में ही लगायी जा रही है.
वह JNU में एम. जगदीश कुमार की जगह लेंगी, जिनके कार्यकाल में एक तरफ छात्रों और संकाय सदस्यों के बीच और दूसरी तरफ विश्वविद्यालय प्रशासन के बीच अभूतपूर्व झड़पें देखी गईं. कुमार को संकाय नियुक्तियों में पक्षपात और प्रक्रियात्मक उल्लंघन, हिंदुत्व दक्षिणपंथी समूहों के पक्ष में राजनीतिक पूर्वाग्रह, वित्तीय अनियमितताओं, शिक्षकों और संविदा कर्मचारियों के भुगतान में देरी, बड़े पैमाने पर सफाई कर्मचारियों की बर्खास्तगी और चिंताजनक रूप से उच्च संख्या के आरोपों का भी सामना करना पड़ा. छात्र कार्यकर्ताओं के खिलाफ प्रॉक्टरल पूछताछ, महिला से छेड़खानी करने वाले के साथी के तौर पर भी इन्हें जाना जाता है.
वीसी के रूप में उनके अविश्वसनीय रिकॉर्ड ने कैंपस में मुखर हिंदुत्व दक्षिणपंथी छात्र समूहों और अन्य सामाजिक और राजनीतिक संरचनाओं के बीच बड़ी संख्या में हिंसक झड़पें देखीं. उनके कार्यकाल के दौरान ही दिल्ली पुलिस ने जेएनयूएसयू अध्यक्ष कन्हैया कुमार और छात्र कार्यकर्ताओं उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य को 2016 में देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया था.
एक दागी रिकॉर्ड के बावजूद, संघ समर्थित सरकार द्वारा पुरस्कार स्वरुप कुमार को पिछले सप्ताह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के पद पर केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा पदोन्नत किया गया.
विश्वविद्यालय में जगदीश कुमार द्वारा आक्रामक दक्षिणपंथी कामकाज का केंद्र बनाकर सरकार का समर्थन भी जेएनयू में सर्वोच्च प्रशासनिक पद के साथ पंडित को पुरस्कृत करने के निर्णय को दर्शाता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ निकटता के लिए जानी जाने वाली पंडित ने हाल के दिनों में नरसंहार और छात्रों और किसानों पर हमलों का स्पष्ट रूप से समर्थन किया है.
उदाहरण के लिए, पंडित ने टाइम्स नाउ के संपादक राहुल शिवशंकर की टिप्पणी के जवाब में वाम-उदारवादियों पर "जिहादी" के रूप में हमला किया, जिसमें कंगना रनौत के ट्विटर हैंडल को निलंबित करने की निंदा की गई थी, जब उन्होंने भारतीय मुसलमानों के खिलाफ नरसंहार का आह्वान किया था.
उनके ट्वीटर हेंडल को हटाए जाने से पहले के पोस्ट से विदित है कि कुलपति महोदया का समर्पण और सोच किस विचार को लेकर है, व्यक्तिगत विचार रखना प्रत्येक इंसान का अधिकार होता है लेकिन उन विचारों से अगर समाज में द्वेष, घृणा, हिंसा व् नफरत का पसार हो तो वह देशद्रोह की श्रेणी में रखनी चाहिए. डॉ पंडित के अघोषित ट्वीट के कुछ अंश:
जब स्टूडेंट्स, व् पत्रकारों के द्वारा बड़ी संख्यां में उनके पोस्ट का प्रसार होने लगा तो ट्वीटर हेंडल को हटा लिया गया है.
JNU की नव निर्वाचित कुलपति प्रभावशाली एकेडमिक साख रखती हैं. केंद्र सरकार द्वारा यह जोर देकर कहा गया है कि वे JNU की पहली महिला कुलपति होंगी हालाँकि उनके वैचारिक रिकोर्ड को देखते हुए ऐसा लगता है कि विश्व विद्यालय में महिलाओं की स्थिति रूढ़ीवाद की गिरफ्त में जाने वाली है. राजनैतिक रूप से अगर विश्लेषण किया जाए तो यह स्पष्ट है कि महिला कुलपति की नियुक्ति वर्तमान चुनावी समय में मतदाताओं के धुवीकरण का एक मजबूत जरिया है. अगर डॉ पंडित कुलपति के रूप में अपने राजनैतिक विचारों को लेकर आगे बढती हैं तो विश्वविद्यालय के प्रशासनिक पद की गरिमा का शर्मशार होना तय है. साथ ही वर्षों के संघर्ष से बने JNU के वातावरण समेत शैक्षणिक प्रतिष्ठा को और नुकसान पहुंचाने की भी संभावना है.
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जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) का दुर्भाग्य है कि एक शांति पसंद, सेक्युलर, सर्वधर्म समभाव और संविधान के मूल्यों को सर्वोपरि रखने वाले कैंपस में हिंसा पसंद रुढ़िवादी, महिला, व् अल्पसंख्यक विरोधी महिला कुलपति की नियुक्ति हुई है. हालाँकि डॉ. पंडित स्वयं जेएनयू की पूर्व छात्रा भी रह चुकी हैं लेकिन फिर भी यह भरोशा कर पाना मुश्किल है कि लगातार खराब हो रहे माहौल को ये संवारने का काम करेंगी.
उन्होंने JNU के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस से एम.फिल और पीएचडी की पढ़ाई पूरी की, और "भारत में संसद और विदेश नीति - नेहरू वर्ष" पर अपनी डॉक्टरेट थीसिस लिखी. उन्होंने 1992 में पुणे विश्वविद्यालय में जाने से पहले गोवा विश्वविद्यालय में एक व्याख्याता के रूप में अपना शिक्षण करियर शुरू किया, जहां उन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति और अर्थशास्त्र, वैश्विक शासन, सुरक्षा और मानवाधिकार, शांति और संघर्ष अध्ययन और भारत की विदेश नीति पर शिक्षण और शोध पर ध्यान केंद्रित किया. वह वर्तमान में भारतीय राजनीति विज्ञान संघ की अध्यक्ष हैं और पुणे में अकादमिक स्टाफ कॉलेजों और सैन्य खुफिया प्रशिक्षण स्कूल के लिए एक संसाधन व्यक्ति रही हैं, जो एशिया प्रशांत क्षेत्र और भारत की सुरक्षा धारणाओं में अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं.
डॉ पंडित का जन्म तत्कालीन यूएसएसआर में हुआ जहां उनकी मां ने लेनिनग्राद ओरिएंटल फैकल्टी विभाग में तमिल और तेलुगू पढ़ाया था, डॉ पंडित चेन्नई से हैं और मद्रास विश्वविद्यालय के स्वर्ण पदक विजेता स्नातक हैं. वह खुद बहुभाषी हैं, तेलुगु, तमिल, मराठी, हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी बोलती हैं. लेकिन पूर्वाग्रह से ग्रसित शिक्षा भी देश की एकता, अखंडता और धर्म निरपेक्षता को छिन्न भिन्न करने में ही लगायी जा रही है.
वह JNU में एम. जगदीश कुमार की जगह लेंगी, जिनके कार्यकाल में एक तरफ छात्रों और संकाय सदस्यों के बीच और दूसरी तरफ विश्वविद्यालय प्रशासन के बीच अभूतपूर्व झड़पें देखी गईं. कुमार को संकाय नियुक्तियों में पक्षपात और प्रक्रियात्मक उल्लंघन, हिंदुत्व दक्षिणपंथी समूहों के पक्ष में राजनीतिक पूर्वाग्रह, वित्तीय अनियमितताओं, शिक्षकों और संविदा कर्मचारियों के भुगतान में देरी, बड़े पैमाने पर सफाई कर्मचारियों की बर्खास्तगी और चिंताजनक रूप से उच्च संख्या के आरोपों का भी सामना करना पड़ा. छात्र कार्यकर्ताओं के खिलाफ प्रॉक्टरल पूछताछ, महिला से छेड़खानी करने वाले के साथी के तौर पर भी इन्हें जाना जाता है.
वीसी के रूप में उनके अविश्वसनीय रिकॉर्ड ने कैंपस में मुखर हिंदुत्व दक्षिणपंथी छात्र समूहों और अन्य सामाजिक और राजनीतिक संरचनाओं के बीच बड़ी संख्या में हिंसक झड़पें देखीं. उनके कार्यकाल के दौरान ही दिल्ली पुलिस ने जेएनयूएसयू अध्यक्ष कन्हैया कुमार और छात्र कार्यकर्ताओं उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य को 2016 में देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया था.
एक दागी रिकॉर्ड के बावजूद, संघ समर्थित सरकार द्वारा पुरस्कार स्वरुप कुमार को पिछले सप्ताह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के पद पर केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा पदोन्नत किया गया.
विश्वविद्यालय में जगदीश कुमार द्वारा आक्रामक दक्षिणपंथी कामकाज का केंद्र बनाकर सरकार का समर्थन भी जेएनयू में सर्वोच्च प्रशासनिक पद के साथ पंडित को पुरस्कृत करने के निर्णय को दर्शाता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ निकटता के लिए जानी जाने वाली पंडित ने हाल के दिनों में नरसंहार और छात्रों और किसानों पर हमलों का स्पष्ट रूप से समर्थन किया है.
उदाहरण के लिए, पंडित ने टाइम्स नाउ के संपादक राहुल शिवशंकर की टिप्पणी के जवाब में वाम-उदारवादियों पर "जिहादी" के रूप में हमला किया, जिसमें कंगना रनौत के ट्विटर हैंडल को निलंबित करने की निंदा की गई थी, जब उन्होंने भारतीय मुसलमानों के खिलाफ नरसंहार का आह्वान किया था.
उनके ट्वीटर हेंडल को हटाए जाने से पहले के पोस्ट से विदित है कि कुलपति महोदया का समर्पण और सोच किस विचार को लेकर है, व्यक्तिगत विचार रखना प्रत्येक इंसान का अधिकार होता है लेकिन उन विचारों से अगर समाज में द्वेष, घृणा, हिंसा व् नफरत का पसार हो तो वह देशद्रोह की श्रेणी में रखनी चाहिए. डॉ पंडित के अघोषित ट्वीट के कुछ अंश:
जब स्टूडेंट्स, व् पत्रकारों के द्वारा बड़ी संख्यां में उनके पोस्ट का प्रसार होने लगा तो ट्वीटर हेंडल को हटा लिया गया है.
JNU की नव निर्वाचित कुलपति प्रभावशाली एकेडमिक साख रखती हैं. केंद्र सरकार द्वारा यह जोर देकर कहा गया है कि वे JNU की पहली महिला कुलपति होंगी हालाँकि उनके वैचारिक रिकोर्ड को देखते हुए ऐसा लगता है कि विश्व विद्यालय में महिलाओं की स्थिति रूढ़ीवाद की गिरफ्त में जाने वाली है. राजनैतिक रूप से अगर विश्लेषण किया जाए तो यह स्पष्ट है कि महिला कुलपति की नियुक्ति वर्तमान चुनावी समय में मतदाताओं के धुवीकरण का एक मजबूत जरिया है. अगर डॉ पंडित कुलपति के रूप में अपने राजनैतिक विचारों को लेकर आगे बढती हैं तो विश्वविद्यालय के प्रशासनिक पद की गरिमा का शर्मशार होना तय है. साथ ही वर्षों के संघर्ष से बने JNU के वातावरण समेत शैक्षणिक प्रतिष्ठा को और नुकसान पहुंचाने की भी संभावना है.
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