अल-कायदा के सर्वोच्च कमांडर अयमान अल-जवाहिरी ने हाल ही में भारत में हिजाब विवाद पर एक बयान जारी किया है।
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मैं सबसे पहले अल-कायदा प्रमुख अयमान जवाहिरी के नवीनतम बयान की स्पष्ट रूप से निंदा करता हूं। हम भारतीय मुसलमानों ने कभी भी भारतीय संविधान के तहत गारंटीकृत अपने अधिकारों की रक्षा के लिए बाहरी समर्थन नहीं तलाशा है। यह मानव जीवन के मूल्य पर उपदेश देने वाले एक बर्बर हत्यारे की तरह है।
अयमान ज़वाहिरी, आपके धर्मतांत्रिक तानाशाही शासन (जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर गलत धार्मिक आदेशों का आह्वान करते हुए मौत के घाट उतार दिया जाता है) के विपरीत, भारत लोकतंत्र और बहुलवाद का सबसे बड़ा मंदिर है। मेरे देश में उसके आंतरिक अंतर्विरोधों को आत्मसात करने और कम करने के लिए पर्याप्त रम्यता है।
अपनी प्राकृतिक मौत की खबर को गलत साबित करते हुए, अल-कायदा के सर्वोच्च कमांडर अयमान जवाहिरी ने हाल ही में भारत में हिजाब विवाद पर एक बयान जारी किया है। यह बयान एक ऐसी व्यवस्था के मुखिया की ओर से आया है जिसने महिलाओं को स्कूलों से निकालकर उनकी स्वतंत्रता को छीन लिया है। संयम के शुरुआती प्रगतिशील झूठे आश्वासन देने के बाद, अल-कायदा शासन, जो अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी को लेकर उत्साहित था, कट्टरपंथियों के दबाव में स्पष्ट रूप से झुक गया है। इसने एक बार फिर प्रदर्शित किया है कि यह अभी भी पुराने रूढ़िवादी क़बायली इस्लाम के साथ है और इसे नागरिक स्वतंत्रता और अन्य पंथों की आस्था के लिए तनिक भी सम्मान नहीं है।
हालाँकि भारत को पहले ही उसके भाषणों में कुछ संदर्भ मिल चुके हैं, लेकिन केवल एक भारतीय मुद्दे पर उसका प्रसारित संदेश आज आलोचनात्मक ध्यान देने की माँग करता है। इससे पता चलता है कि अल-कायदा ने एशिया के इस क्षेत्र के लोकतंत्र में कभी-कभार होने वाले असंतोष को अपनी विचारधारा और स्वार्थ के लिए दखल देने की योजना तैयार कर ली है। इस्लामी खिलाफत की स्थापना के उसकी कल्पना में, भारत अपनी बड़ी मुस्लिम आबादी के साथ एक महत्वपूर्ण दल रहा है। समुदाय के नेताओं और सुरक्षा विशेषज्ञों को विशेष रूप से साइबर दुनिया में कट्टरवाद के शुरुआती रुझानों को दूर करने के लिए सक्रिय रूप से जुटना चाहिए।
अल-कायदा का इस्लाम संस्करण
अल-कायदा के संदेशों को संदर्भ में बेहतर ढंग से जानने के लिए उसके संकीर्ण विचारों समझना आवश्यक है। अल-कायदा मध्य पूर्व से निर्यात किए गए कट्टर सलाफीवाद द्वारा पोषित क़बायली इस्लामी रूढ़िवाद में विश्वास करता है। यह इस्लाम के अन्य धार्मिक व्याख्याओं के विपरीत है और इस्लामी शरीयत की कट्टरता का अनुसरण करता है, जिसमें धर्म की बुनियादी तालीम तथा सूफीवाद के लिए कोई स्थान नहीं है। पितृसत्ता और युद्ध-लूट के माध्यम से जीविका की क़बायली परंपराओं का पालन करते हुए, वे इस्लाम के कट्टर और विकृत व्याख्याओं में विश्वास करते हैं।
इस्लाम, किसी भी धर्म की तरह, कानूनों और सांस्कृतिक विकास के संदर्भ में परिवर्तनों को अपनाता है। अल-कायदा समाज में समय के अनुसार बदलाव के विरुद्ध है, और उन्हें अपवित्र नवाचारों (बिद्दत) के रूप में बदनाम करता है क्योंकि वह धार्मिक संस्करण के रूढ़िवाद में विश्वास करता है। एक राज्य व्यवस्था की उनकी योजना में, पश्तून जातीयता आधिपत्य से संपन्न है। वे एक अत्यधिक अनुदार पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था का पालन करते हैं और इस प्रकार महिलाओं को सार्वजनिक रूप से सामने आने से रोका जाता है।
वे समाज की अनेकता, बहुलवादी कला, संस्कृति, जो समाज को जोड़ने का काम करती है, उसे 'शिर्क' (अर्थात एकेश्वरवाद के विरुद्ध और निषिद्ध) कह कर नष्ट करने और कलंकित करने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं। यह अल-कायदा की अपनी इस्लाम की व्याख्या में एक शास्त्रगत कट्टरता है। वे आसानी से इस्लाम की बहुल और बहु-सांस्कृतिक शिक्षाओं को भुला देते हैं। उनकी कट्टरपंथी विचारधाराओं को बढ़ावा देने के लिए एक पैन-इस्लामिक खिलाफत स्थापित करना उनके राजनीतिक विचार का केंद्र है। राजनीतिक सलाफीवाद की तरह अल-कायदा के अनुसार भी, इस्लाम, राजनीतिक प्रतिष्ठान के बिना बच नहीं सकता है।
भारतीय मुसलमानों ने अल-कायदा की हठधर्मिता को खारिज किया
अल-कायदा को भारतीय मुसलमानों का मार्गदर्शन करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। अल-कायदा भारतीय लोकतंत्र की प्राथमिक समझ के बिना नुकसान में है। भारतीय लोकतंत्र आंतरिक अंतर्विरोधों की अनुपस्थिति के लिए नहीं जाना जाता है; बल्कि विभिन्न विचारों के समावेश करते हुए साथ चलने के लिए जाना जाता है।
जवाहिरी का संदेश, हालांकि हिजाब मुद्दे पर केंद्रित है, जो लोकतंत्र को बदनाम करने और व्यवस्था को नष्ट करने की साजिश करने के लिए एक भयावह चाल है। इसने वास्तव में स्त्री द्वेषपूर्ण और ईश्वरवादी राजनीतिक संदेशों का प्रचार करने की कोशिश की है। भारतीय लोकतंत्र पर मूर्तिपूजक हिंदू धर्म का समर्थन करने वाला आरोप स्पष्ट रूप से भ्रामक हैं, क्योंकि अल-कायदा जैसा विकृत धर्मतंत्र पारस्परिक सह-अस्तित्व की धारणा को पचा नहीं सकता है।
क्या हिजाब धर्म के लिए आवश्यक है, धर्म के भीतर विवादास्पद है। लेकिन, एक शक्तिशाली पितृसत्तात्मक अल-कायदा के लिए, हिजाब अनिवार्य है- मुस्लिम महिलाओं की दृश्यता को सीमित करने के लिए। अनिवार्य ड्रेस कोड वाले स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने का कर्नाटक उच्च न्यायालय का फैसला, राजनीति में विविध विचारों को समायोजित करने के लिए भारतीय प्रणाली की विविधता को दर्शाता है। भारतीय न्यायिक प्रणाली में शांतिपूर्ण तरीकों से शिकायत निवारण के लिए पर्याप्त जगह है।
दक्षिणपंथी हिंदुत्व के उग्रवादी प्रभुत्व ने राष्ट्र के विचार के लिए अस्तित्व का खतरा पैदा कर दिया है, लेकिन इस तरह के विचलन को आदर्श होने से रोकने के लिए देश के पास पर्याप्त रोकथाम के साधन हैं। जबकि देश में हो रहे बहुसंख्यक राष्ट्रवाद रुपी हालिया बदलाव संदेह पैदा करते हैं, परन्तु राष्ट्र में इतनी चेतना तो है कि संविधान में अंकित धार्मिक संबद्धता के बावजूद समान न्याय की गारंटी लागू हो सके। लेकिन अल-कायदा के सुप्रीमो के इस शरारतपूर्ण विचलन के आधार पर भारतीय राष्ट्रीयता को अपमानित करने का आह्वान सूर्य पर ग्रहण को दोष देने जैसा है। इसने वास्तव में मुस्लिम समुदाय को चोट पहुंचाई है, जो कर्नाटक के गृह मंत्री के बयान से स्पष्ट है, जिन्होंने हिजाब विरोध के लिए 'बाहरी प्रभावों' को जिम्मेदार ठहराया था।
भारतीय इस्लाम, इस्लाम की कई व्याख्याओं में से एक है। यह मौलिक रूप से अल-क़ायदा के रूढ़िवादी हठधर्मिता से से भिन्न है, इसमें समावेशिता, स्थानीयता और मिश्रित संस्कृति और अनेकता में एकता का स्थान है। जैसा किसी भी धर्म को होना चाहिए वैसा है भारतीय इस्लाम समय के साथ विकसित होने वाला शांतिप्रिय और समावेशी है। यह बहुसांस्कृतिक समाज और बहुल सांस्कृतिक लोकाचार में विश्वास को दर्शाता है। भारतीय मुसलमान इतना असहाय नहीं है कि इसे अनिश्चितताओं के उबड़-खाबड़ क्षेत्रों से मार्गदर्शन लेने की आवश्यकता है।
जवाहिरी के हथियारों के आह्वान पर ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि एक स्वयंभू प्रचारक के विलाप के तौर पर खारिज कर दिया जाना चाहिए। यह बहु-धार्मिक समाजों में कट्टरपंथी विद्रोहों को बढ़ावा देने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा है। भारतीय मुसलमानों ने पहले भी काफिर राज्य से लड़ने के लिए ISIS में शामिल होने के आह्वान को ठुकरा दिया था। मुस्लिम समुदाय को 'बाहरी ताकतों' के कट्टरपंथी प्रस्तावों से अतिरिक्त सतर्कता बनाए रखनी होगी। इसके साथ ही सभी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अल्पसंख्यक समुदायों की शिकायतों को दूर करने का संवैधानिक दायित्व सरकारों का है।
*मुबाशीर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन, दिल्ली में पत्रकारिता के छात्र हैं और वर्तमान में सबरंगइंडिया के साथ इंटर्नशिप पर हैं
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मैं सबसे पहले अल-कायदा प्रमुख अयमान जवाहिरी के नवीनतम बयान की स्पष्ट रूप से निंदा करता हूं। हम भारतीय मुसलमानों ने कभी भी भारतीय संविधान के तहत गारंटीकृत अपने अधिकारों की रक्षा के लिए बाहरी समर्थन नहीं तलाशा है। यह मानव जीवन के मूल्य पर उपदेश देने वाले एक बर्बर हत्यारे की तरह है।
अयमान ज़वाहिरी, आपके धर्मतांत्रिक तानाशाही शासन (जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर गलत धार्मिक आदेशों का आह्वान करते हुए मौत के घाट उतार दिया जाता है) के विपरीत, भारत लोकतंत्र और बहुलवाद का सबसे बड़ा मंदिर है। मेरे देश में उसके आंतरिक अंतर्विरोधों को आत्मसात करने और कम करने के लिए पर्याप्त रम्यता है।
अपनी प्राकृतिक मौत की खबर को गलत साबित करते हुए, अल-कायदा के सर्वोच्च कमांडर अयमान जवाहिरी ने हाल ही में भारत में हिजाब विवाद पर एक बयान जारी किया है। यह बयान एक ऐसी व्यवस्था के मुखिया की ओर से आया है जिसने महिलाओं को स्कूलों से निकालकर उनकी स्वतंत्रता को छीन लिया है। संयम के शुरुआती प्रगतिशील झूठे आश्वासन देने के बाद, अल-कायदा शासन, जो अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी को लेकर उत्साहित था, कट्टरपंथियों के दबाव में स्पष्ट रूप से झुक गया है। इसने एक बार फिर प्रदर्शित किया है कि यह अभी भी पुराने रूढ़िवादी क़बायली इस्लाम के साथ है और इसे नागरिक स्वतंत्रता और अन्य पंथों की आस्था के लिए तनिक भी सम्मान नहीं है।
हालाँकि भारत को पहले ही उसके भाषणों में कुछ संदर्भ मिल चुके हैं, लेकिन केवल एक भारतीय मुद्दे पर उसका प्रसारित संदेश आज आलोचनात्मक ध्यान देने की माँग करता है। इससे पता चलता है कि अल-कायदा ने एशिया के इस क्षेत्र के लोकतंत्र में कभी-कभार होने वाले असंतोष को अपनी विचारधारा और स्वार्थ के लिए दखल देने की योजना तैयार कर ली है। इस्लामी खिलाफत की स्थापना के उसकी कल्पना में, भारत अपनी बड़ी मुस्लिम आबादी के साथ एक महत्वपूर्ण दल रहा है। समुदाय के नेताओं और सुरक्षा विशेषज्ञों को विशेष रूप से साइबर दुनिया में कट्टरवाद के शुरुआती रुझानों को दूर करने के लिए सक्रिय रूप से जुटना चाहिए।
अल-कायदा का इस्लाम संस्करण
अल-कायदा के संदेशों को संदर्भ में बेहतर ढंग से जानने के लिए उसके संकीर्ण विचारों समझना आवश्यक है। अल-कायदा मध्य पूर्व से निर्यात किए गए कट्टर सलाफीवाद द्वारा पोषित क़बायली इस्लामी रूढ़िवाद में विश्वास करता है। यह इस्लाम के अन्य धार्मिक व्याख्याओं के विपरीत है और इस्लामी शरीयत की कट्टरता का अनुसरण करता है, जिसमें धर्म की बुनियादी तालीम तथा सूफीवाद के लिए कोई स्थान नहीं है। पितृसत्ता और युद्ध-लूट के माध्यम से जीविका की क़बायली परंपराओं का पालन करते हुए, वे इस्लाम के कट्टर और विकृत व्याख्याओं में विश्वास करते हैं।
इस्लाम, किसी भी धर्म की तरह, कानूनों और सांस्कृतिक विकास के संदर्भ में परिवर्तनों को अपनाता है। अल-कायदा समाज में समय के अनुसार बदलाव के विरुद्ध है, और उन्हें अपवित्र नवाचारों (बिद्दत) के रूप में बदनाम करता है क्योंकि वह धार्मिक संस्करण के रूढ़िवाद में विश्वास करता है। एक राज्य व्यवस्था की उनकी योजना में, पश्तून जातीयता आधिपत्य से संपन्न है। वे एक अत्यधिक अनुदार पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था का पालन करते हैं और इस प्रकार महिलाओं को सार्वजनिक रूप से सामने आने से रोका जाता है।
वे समाज की अनेकता, बहुलवादी कला, संस्कृति, जो समाज को जोड़ने का काम करती है, उसे 'शिर्क' (अर्थात एकेश्वरवाद के विरुद्ध और निषिद्ध) कह कर नष्ट करने और कलंकित करने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं। यह अल-कायदा की अपनी इस्लाम की व्याख्या में एक शास्त्रगत कट्टरता है। वे आसानी से इस्लाम की बहुल और बहु-सांस्कृतिक शिक्षाओं को भुला देते हैं। उनकी कट्टरपंथी विचारधाराओं को बढ़ावा देने के लिए एक पैन-इस्लामिक खिलाफत स्थापित करना उनके राजनीतिक विचार का केंद्र है। राजनीतिक सलाफीवाद की तरह अल-कायदा के अनुसार भी, इस्लाम, राजनीतिक प्रतिष्ठान के बिना बच नहीं सकता है।
भारतीय मुसलमानों ने अल-कायदा की हठधर्मिता को खारिज किया
अल-कायदा को भारतीय मुसलमानों का मार्गदर्शन करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। अल-कायदा भारतीय लोकतंत्र की प्राथमिक समझ के बिना नुकसान में है। भारतीय लोकतंत्र आंतरिक अंतर्विरोधों की अनुपस्थिति के लिए नहीं जाना जाता है; बल्कि विभिन्न विचारों के समावेश करते हुए साथ चलने के लिए जाना जाता है।
जवाहिरी का संदेश, हालांकि हिजाब मुद्दे पर केंद्रित है, जो लोकतंत्र को बदनाम करने और व्यवस्था को नष्ट करने की साजिश करने के लिए एक भयावह चाल है। इसने वास्तव में स्त्री द्वेषपूर्ण और ईश्वरवादी राजनीतिक संदेशों का प्रचार करने की कोशिश की है। भारतीय लोकतंत्र पर मूर्तिपूजक हिंदू धर्म का समर्थन करने वाला आरोप स्पष्ट रूप से भ्रामक हैं, क्योंकि अल-कायदा जैसा विकृत धर्मतंत्र पारस्परिक सह-अस्तित्व की धारणा को पचा नहीं सकता है।
क्या हिजाब धर्म के लिए आवश्यक है, धर्म के भीतर विवादास्पद है। लेकिन, एक शक्तिशाली पितृसत्तात्मक अल-कायदा के लिए, हिजाब अनिवार्य है- मुस्लिम महिलाओं की दृश्यता को सीमित करने के लिए। अनिवार्य ड्रेस कोड वाले स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने का कर्नाटक उच्च न्यायालय का फैसला, राजनीति में विविध विचारों को समायोजित करने के लिए भारतीय प्रणाली की विविधता को दर्शाता है। भारतीय न्यायिक प्रणाली में शांतिपूर्ण तरीकों से शिकायत निवारण के लिए पर्याप्त जगह है।
दक्षिणपंथी हिंदुत्व के उग्रवादी प्रभुत्व ने राष्ट्र के विचार के लिए अस्तित्व का खतरा पैदा कर दिया है, लेकिन इस तरह के विचलन को आदर्श होने से रोकने के लिए देश के पास पर्याप्त रोकथाम के साधन हैं। जबकि देश में हो रहे बहुसंख्यक राष्ट्रवाद रुपी हालिया बदलाव संदेह पैदा करते हैं, परन्तु राष्ट्र में इतनी चेतना तो है कि संविधान में अंकित धार्मिक संबद्धता के बावजूद समान न्याय की गारंटी लागू हो सके। लेकिन अल-कायदा के सुप्रीमो के इस शरारतपूर्ण विचलन के आधार पर भारतीय राष्ट्रीयता को अपमानित करने का आह्वान सूर्य पर ग्रहण को दोष देने जैसा है। इसने वास्तव में मुस्लिम समुदाय को चोट पहुंचाई है, जो कर्नाटक के गृह मंत्री के बयान से स्पष्ट है, जिन्होंने हिजाब विरोध के लिए 'बाहरी प्रभावों' को जिम्मेदार ठहराया था।
भारतीय इस्लाम, इस्लाम की कई व्याख्याओं में से एक है। यह मौलिक रूप से अल-क़ायदा के रूढ़िवादी हठधर्मिता से से भिन्न है, इसमें समावेशिता, स्थानीयता और मिश्रित संस्कृति और अनेकता में एकता का स्थान है। जैसा किसी भी धर्म को होना चाहिए वैसा है भारतीय इस्लाम समय के साथ विकसित होने वाला शांतिप्रिय और समावेशी है। यह बहुसांस्कृतिक समाज और बहुल सांस्कृतिक लोकाचार में विश्वास को दर्शाता है। भारतीय मुसलमान इतना असहाय नहीं है कि इसे अनिश्चितताओं के उबड़-खाबड़ क्षेत्रों से मार्गदर्शन लेने की आवश्यकता है।
जवाहिरी के हथियारों के आह्वान पर ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि एक स्वयंभू प्रचारक के विलाप के तौर पर खारिज कर दिया जाना चाहिए। यह बहु-धार्मिक समाजों में कट्टरपंथी विद्रोहों को बढ़ावा देने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा है। भारतीय मुसलमानों ने पहले भी काफिर राज्य से लड़ने के लिए ISIS में शामिल होने के आह्वान को ठुकरा दिया था। मुस्लिम समुदाय को 'बाहरी ताकतों' के कट्टरपंथी प्रस्तावों से अतिरिक्त सतर्कता बनाए रखनी होगी। इसके साथ ही सभी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अल्पसंख्यक समुदायों की शिकायतों को दूर करने का संवैधानिक दायित्व सरकारों का है।
*मुबाशीर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन, दिल्ली में पत्रकारिता के छात्र हैं और वर्तमान में सबरंगइंडिया के साथ इंटर्नशिप पर हैं
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