लखनऊ से उठी आवाज- तीस्ता सेतलवाड़ को रिहा करो

Written by Sabrangindia Staff | Published on: July 9, 2022
वरिष्ठ पत्रकार व मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सेतलवाड़ के समर्थन का दायरा बढ़ता ही जा रहा है। सोशल मीडिया ही नहीं बल्कि जमीनी स्तर पर भी लोग उनके समर्थन में उतर रहे हैं और उनकी तत्काल रिहाई की मांग कर रहे हैं। 



लखनऊ यूनिवर्सिटी की पूर्व कुलपति प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा ने उनकी रिहाई की मांग करते हुए लिखा है, ''मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सेतलवाड़ को शत शत नमन! मैं तीस्ता सेतलवाड़ को 30 से ज्यादा सालों से जानती हूं। वह एक सोलमेट हैं! मानवाधिकारों के लिए एक अडिग सेनानी। समान नागरिकता और कानून के शासन की एक निडर चैंपियन। तीस्ता हमेशा उदार मूल्यों, समान नागरिकता और मिश्रित संस्कृति के लिए खड़ी रही हैं। उन्होंने सभी प्रकार के विभाजनकारी और पिछड़े दिखने वाले आचरण के खिलाफ स्पष्ट आवाज उठाई है।मैं इस बात को करीब से जानती हूं कि पीड़ित की जाति या धर्म की परवाह किए बिना हिंसा के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए उन्होंने अपनी सुरक्षा को किस तरह से जोखिम में डाला है। आज जब वह खुद अन्याय की शिकार हैं, मैं घोषणा करना चाहती हूं कि मैं उनके साथ खड़ी हूं। मैं उनके न्याय, कानून के शासन और लोकतांत्रिक मूल्यों का समर्थन करती हूं। मैं उनके खिलाफ गढ़े गए सभी मामलों को वापस लेने की मांग करती हूं।''

तसनीम फ़ातिमा कहती हैं- तीस्ता सीतलवाड़ हक़ की लड़ाई सालों से लड़ रही हैं। इस काम में उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी लगा दी ताकि मानवाधिकार को ज़िंदा रखा जा सके। हम उनके इस काम की दिल से इज़्ज़त करते हैं, और उनके साथ हो रही नाइंसाफ़ी के ख़िलाफ़ हमारी आवाज़ बुलंद है।

कुलदीप सिंह चौहान कहते हैं- तीस्ता सीतलवाड़ एक जुझारू सामाजिक कार्यकर्ता के साथ साथ एक नेकदिल और सभी के लिए फिक्रमंद रही हैं और हैं। उनके जैसी तरक्की और इंसाफ पसंद और दूसरों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली महिला के साथ हो रही नाइंसाफी की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए उनका समर्थन करता हूँ।

अंकिता मिश्रा का कहना है- सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ काफ़ी लम्बे अरसे से साम्प्रदायिकता के ख़िलाफ़ लड़ रही हैं। वह साझी संस्कृति और अमन के लिए लगातार काम कर रही हैं। उनके इस कार्य से कुछ लोग बहुत भयभीत हैं। इसलिए उनके हौसले को तोड़ा जा रहा है और उनकी आवाज़ को बन्द करने की कोशिश की जा रही है। उनकी इस लड़ाई में हम साथ हैं और उनकी रिहाई की मांग करते हैं, उन्हें जल्द से जल्द रिहा किया जाये।

शावेज़ वारिस कहते हैं- तीस्ता सीतलवाड़ मज़लूमों के साथ हो रही बेइंसाफ़ी के ख़िलाफ़ हमेशा मोर्चाबंद रही हैं। उनका जीवन दूसरों के लिए समर्पित रहा है। आज उन्हें हमारे साथ की बेहद ज़रुरत है। हम उनकी इस लड़ाई में उनके साथ हैं। हम माँग करते हैं कि उनके ऊपर चल रहे फ़र्ज़ी मुक़दमों को ख़त्म करके उन्हें रिहा करें।

तज़ीन खान का कहना है- यह वो समय है जब लोकतंत्र का हर स्तम्भ लगभग ढहा हुआ है और सच बोलने और सरकार की नीतियों का विरोध करने की सज़ा जेल है। तीस्ता सीतलवाड़ इसी कड़ी में अगला नाम है जिन्होंने हमेशा हक़ की लड़ाई लड़ी है। हम सब जानते हैं कि उन्होंने गुजरात दंगों में किस तरह मजबूती के साथ पीड़ितों की लड़ाई लड़ी है। हम मानवाधिकारों की बहाली के लिए जीवन भर काम करने वाली तीस्ता सीतलवाड़ के साथ हैं। उनके ऊपर चल रहे मुकदमों को वापस लेने और उनकी जल्द से जल्द बिना शर्त रिहाई की माँग करते हैं।

जेएनयू के प्रोफेसर आनंद कुमार ने भी तीस्ता सेतलवाड़ के समर्थन में आवाज उठाई है। उन्होंने कहा- मानवाधिकार आंदोलन के लिए दशकों से समर्पित तीस्ता सीतलवाड की गिरफ़्तारी सरकारी अन्याय के ख़िलाफ़ सामने आनेवाले सभी सरोकारी नागरिकों को आतंकित करने की निन्दनीय कोशिश है। तीसता सीतलवाड ने पिछले कई दशकों से सांप्रदायिक सद्भाव और संवैधानिक आदर्शों के लिए अनुकरणीय योगदान किया है. उनके द्वारा न्यायपालिका के माध्यम से जनसाधारण को अन्यायों से बचाने के लिए किए गए प्रयासों से नागरिक समाज की प्रतिष्ठा और भारतीय लोकतंत्र की गरिमा बढ़ी है. हम अमन की सिपाही और साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए प्रतिबद्ध तीसता सीतलवाड की तत्काल रिहाई की माँग करते हैं.

बता दें कि तीस्ता सेतलवाड़ अपनी जमानत याचिका पर सुनवाई के लिए 8 जुलाई को अहमदाबाद की एक अदालत में पेश हुईं। लेकिन राज्य ने अपना जवाब दाखिल करने के लिए और समय मांगा और इसलिए मामले को 15 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दिया गया। 

मामले की संक्षिप्त पृष्ठभूमि
आपको याद होगा कि 25 जून को, जकिया जाफरी मामले में फैसला सुनाए जाने के ठीक एक दिन बाद, गुजरात आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) की एक इकाई मुंबई में सेतलवाड़ को उनके पैतृक बंगले से हिरासत में लेकर सांताक्रूज पुलिस स्टेशन ले जाने के बाद वहां से गिरफ्तार कर अहमदाबाद ले गयी थी। 
 
जकिया जाफरी मामला मूल रूप से जकिया जाफरी द्वारा पेश किया गया था, जो कांग्रेस के एक सांसद एहसान जाफरी की विधवा हैं, जिनकी 2002 में गुलबर्ग समाज में सांप्रदायिक हिंसा के दौरान बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। सीजेपी की सचिव तीस्ता सेतलवाड़ इस मामले में दूसरी याचिकाकर्ता थीं। मामले में सेतलवाड़ की संलिप्तता को दुर्भावनापूर्ण मानते हुए, अदालत ने अपने फैसले में कहा था, “वास्तव में, प्रक्रिया के इस तरह के दुरुपयोग में शामिल सभी लोगों को कटघरे में रहने और कानून के अनुसार आगे बढ़ने की आवश्यकता है।"
 
सेतलवाड़ के खिलाफ प्राथमिकी में फैसले की एक ही पंक्ति का हवाला दिया गया, जिससे यह पुष्टि हुई कि फैसले में अदालत की टिप्पणियों के कारण गिरफ्तारी हुई थी। उनके साथ-साथ गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) आरबी श्रीकुमार और पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट, दो व्हिसिलब्लोअर जिनके बयानों ने जकिया जाफरी मामले को बनाने में मदद की थी, के खिलाफ जालसाजी और आपराधिक साजिश के आधारहीन आरोप लगाए गए थे।
 
सेतलवाड़ को औपचारिक रूप से 26 जून को गिरफ्तार किया गया था और मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने उन्हें पुलिस हिरासत में भेज दिया था। जब उन्हें अगली बार 2 जुलाई को अदालत के सामने पेश किया गया, तो पुलिस ने कहा कि उन्हें और हिरासत की आवश्यकता नहीं है, और सेतलवाड़ को न्यायिक हिरासत में साबरमती जेल भेज दिया गया।

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