तीस्ता सेतलवाड़: देश ही नहीं, विदेश से भी रिहाई की मांग उठ रही है

Written by Sabrangindia Staff | Published on: August 3, 2022
वरिष्ठ पत्रकार, मानवाधिकार रक्षक और समाजसेवी तीस्ता सेतलवाड़ की गिरफ्तारी को एक महीने से ज्यादा का समय हो गया है। उनकी गिरफ्तारी के बाद देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी रिहा करने की मांग उठ रही है। अभी कनाडा में लोगों ने फ्री तीस्ता सेतलवाड़ की पट्टियां लेकर शहीद उधम सिंह की शहादत दिवस पर प्रदर्शन किया। 



तीस्ता और गुजरात के पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार और पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया है क्योंकि वे गुजरात में 2002 को पीड़ित परिवारों को इंसाफ दिलाने की कोशिशों में जुटे थे। तीस्ता सेतलवाड़ को 25 जून को गुजरात एटीएस ने हिरासत में लेने के बाद 26 जून को आधिकारिक तौर पर गिरफ्तार कर लिया था। तीस्ता की गिरफ्तारी के बाद से ही उनके समर्थन का दौर शुरू हो गया क्योंकि उनकी मानवाधिकार के प्रति लगन और संविधान के प्रति निष्ठा और उनके मानवीय कार्यों से सभी वाकिफ हैं। 

तीस्ता की गिरफ्तारी के बाद वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने ट्वीट किया था:
 
20 जुलाई 1924 को बाबा साहब ने मुंबई में बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की। इसके चेयरमैन बाबा साहब खुद बने। और प्रेसिडेंट बने चिमनलाल सेतलवाड। #TeestaSetalvad के अपने परदादा। जब बाबा साहब लॉ मिनिस्टर बने तो उन्होंने उनके बेटे MC सेतलवाड को आज़ाद भारत का पहला अटॉर्नी जनरल बनाया।


 
कितने लोग यह जानते होंगे कि तीस्ता सेतलवाड़ के दादा एमसी सेतलवाड़ देश के पहले अटॉर्नी जनरल थे। उनके परदादा चिमणलाल हरिलाल सेतलवाड़ ने जालियांवाला बाग में 400 हिंदुस्तानियों को मार देने वाले जनरल डायर के खिलाफ ब्रिटिश अदालत में बने हंटर कमीशन के सदस्य थे जिन्होंने जनरल डायर को दोषी करार दिया था यह उनकी तीसरी पीढ़ी है, जिसके नाम के चर्चे आज सारी दुनिया में हैं। गौरतलब है कि 1993 में मुम्बई बम ब्लास्ट में मारे गए हिंदुओं की लड़ाई भी तीस्ता ने ही लड़ी, पीड़ित परिवारों को सरकार से मदद भी दिलाई। यह पूरा परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी आम लोगों की लड़ाई लड़ता रहा है। ये वे लोग हैं, जो देशभक्ति का ढोंग नहीं करते, इनकी तीन पीढ़ियों ने आम लोगों के लिए गोरे अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी है और स्वतंत्रता के बाद की पीढ़ी काले अंग्रेजों से लड़ रही है।
 
तीस्ता सेतलवाड़ ने मुंबई से एक पत्रकार के रूप में अपना करियर शुरू किया। आज उन्हें सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर भी जाना जाता है। तीस्ता को साल 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने पद्मश्री से सम्मानित किया था। साल 2002 में इन्हें राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार दिया गया था। तीस्ता को साल 2003 में नूर्नबर्ग अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार भी मिल चुका है।
 
सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि तीस्ता सेतलवाड़ ने एक जागरूक नागरिक की सशक्त भूमिका निभाई है। उन्होंने इसे गुजरात पुलिस के द्वारा बदले की कार्रवाई और केंद्रीय नेताओं के द्वारा अपने विरुद्ध आवाज उठाने वालों पर अनावश्यक दबाव डालने की कार्रवाई बताया है।
 
एमनेस्टी इंडिया ने कहा- आवाज को दबाने की कोशिश

तीस्ता सेतलवाड़ की गिरफ्तारी को एमनेस्टी इंडिया ने अपने से अलग आवाज को दबाने की कोशिश बताया। संगठन ने ट्वीट कर कहा कि पुलिस ने लोगों के मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाली मानवाधिकार कार्यकर्ता सेतलवाड़ को गिरफ्तार कर लिया है। यह अपने से अलग विचार रखने वाली हर आवाज को दबाने की कोशिश है। संगठन ने कहा है कि इस कार्रवाई से सिविल सोसाइटी के उन लोगों में गलत संदेश जाएगा, जो लोगों के अधिकारों के खिलाफ सरकारों की नाकामयाबी को उजागर करते रहते हैं। एमनेस्टी ने इसे स्वीकार न किए जाने योग्य कार्रवाई बताया है। पूरी खबर यहां क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
 
AMU में भी तीस्ता की गिरफ्तारी का विरोध 
सोशल एक्टिविस्ट तीस्ता सेतलवाड़ को गुजरात एटीएस ने मुंबई से गिरफ्तार किया था। उनकी गिरफ्तारी पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र नेताओं ने विरोध दर्ज कराया। छात्र नेताओं का कहना था कि अगर तीस्ता सेतलवाड़ को रिहा नहीं किया गया तो वे सड़क पर प्रदर्शन करने को मजबूर होंगे। छात्र नेता जानिब हसन ने कहा कि इस मुद्दे पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र शांत नहीं बैठेंगे। लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत विरोध दर्ज कर अपनी बात उठाई जाएगी।
 
तीस्ता सेतलवाड़ सोशल एक्टिविस्ट हैं और करीब तीन दशक से गरीब और मजलूमों की आवाज बनी हैं। तीस्ता को गुजरात दंगों को लेकर सुप्रीम कोर्ट और गृह मंत्री अमित शाह की टिप्पणी के बाद गिरफ्तार किया गया था। तीस्ता कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी की याचिका पर उनकी मदद कर रही थीं। 'सरकार लोगों को दबाने और डराने का काम कर रही'
 
तीस्ता सेतलवाड़ की गिरफ्तारी के मामले को लेकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्र नेता जानिब हसन का कहना है कि उनकी गिरफ्तारी से सरकार की दमनकारी नीति का खुलासा होता है। उन्होंने कहा कि जो जुल्म के खिलाफ आवाज उठाएगा, उस पर अत्याचार किया जाएगा। छात्र नेता ने कहा कि सरकार लोगों को दबाने और डराने का काम कर रही है। अगर वह नहीं डर रहे हैं तो उन्हें जेल में डालने का काम किया जा रहा है। छात्र नेता जानिब हसन ने कहा कि इस मुद्दे पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र शांत नहीं बैठेंगे। एएमयू का छात्र खामोश नहीं बैठेगा। लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत विरोध दर्ज कर अपनी बात उठाई जाएगी। पूरी खबर यहां क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
 
उधर, सोशल एक्टिविस्ट तीस्ता सेतलवाड़ और पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार की गिरफ्तारी के विरोध में इलाहाबाद नागरिक समाज के सदस्यों ने भी सिविल लाइंस धरना स्थल पर प्रदर्शन किया और राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा। इस दौरान वक्ताओं ने दोनों को सामाजिक कार्यकर्ता बताकर उनकी तत्काल रिहाई की मांग उठाई। वक्ताओं ने कहा कि 2002 के गुजरात दंगों के पीड़ितों को न्याय दिलाने का अभियान चलाने वाली तीस्ता और आरबी श्रीकुमार के खिलाफ बदले की भावना से कार्रवाई की गई है। वक्ताओं ने आरोप लगाया कि इन लोगों ने सरकार के खिलाफ आवाज उठाई थी। यही कारण है कि इन पर कार्रवाई की जा रही है।  
 
29 जून को न्यूजलॉन्ड्री के अतुल चौरसिया ने एऩएल टिप्पणी में तीस्ता और जुबैर की गिरफ्तारी पर तंज कसा था। उऩ्होंने लिखा-

ज़ुबैर, तीस्ता की गिरफ्तारी और देश में बुलंद हुआ न्याय का इक़बाल
सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2002 में हुए गुजरात दंगों से पूरी तरह क्लीनचिट दे दी. इस निर्णय से देश में न्याय का वातावरण स्वस्थ और बुलंद हुआ है. यह मामला सबूतों के साथ छेड़छाड़ का था, गैर कानूनी तरीके से कानून के इस्तेमाल करने का था. आम देशवासियों में इस फैसले से त्वरित न्याय मिलने की उम्मीदें मजबूत हो गई हैं.

वरना तो हमारी न्यायपालिका पर हमेशा रईसों के लिए दरवाजा खुला रखने का आरोप लगता रहा है. गैरकानूनी तरीके और भी बहुतेरे लोगों ने बहुत कुछ किया है. ज्यादा दूर क्या जाना. हमें ही देख लीजिए. कानूनन हमारे दफ्तर के लैपटॉप, कंप्यूटर का डाटा कॉपी करना गैरकानूनी है. लेकिन सर्वे करने वाले आयकर विभाग के बंधु जबरिया सबकुछ ले गए.

गोधरा और गुजरात में हुए दंगों से मोदीजी को पाक-साफ बरी करके अदालत ने न्याय के जिस गरिमापूर्ण माहौल की स्थापना की है उसका विस्तार हम तीस्ता सेतलवाड़ और ऑल्ट न्यूज़ के संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ्तारी में देख सकते हैं. उम्मीद है न्याय का यह कारवां आगे बदस्तूर यूं ही चलता रहेगा. मूल लिंक यहां पढ़ सकते हैं।

रविवार, 31 जुलाई को, दक्षिण एशियाई कार्यकर्ता ब्रिटिश कोलंबिया के सरे में भारतीय वीज़ा और पासपोर्ट आवेदन केंद्र के बाहर इकट्ठा हुए। वे कनाडा में पत्रकार और मानवाधिकार रक्षक तीस्ता सेतलवाड़ के समर्थन में आवाज़ उठाने के लिए एक साथ आए।

चूंकि तीस्ता के परदादा चिमन लाल सेतलवाड़ ने 1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग पब्लिक पार्क में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों की हत्या का आदेश देने वाले एक ब्रिटिश सेना अधिकारी से पूछताछ की थी, इसलिए तीस्ता के समर्थन में उधम सिंह के शहादत दिवस पर रैली आयोजित की गई थी।
 
जलियांवाला बाग प्रकरण ने भारत में स्वतंत्रता आंदोलन को तेज कर दिया था। उधम सिंह को 31 जुलाई, 1940 को लंदन में पंजाब के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ' डायर की हत्या के कारण उऩ्हें मार डाला गया था।
 
एक ऑनलाइन पत्रिका रेडिकल देसी में बताया गया है कि रैली की शुरुआत वैंकूवर के कैट नॉरिस की याद में मौन रखने के साथ की गई थी, जो एक स्वदेशी कार्यकर्ता थे, जिनका हाल ही में निधन हो गया। विशेष रूप से, रेडिकल देसी ने जलियांवाला बाग हत्याकांड की 100 वीं वर्षगांठ के करीब 2018 में तीस्ता को कनाडा में आमंत्रित किया था। उस वर्ष सरे में आयोजित एक सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्हें साहस के पदक से सम्मानित किया गया था। पूरा मामला यहां पढ़ा जा सकता है।

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