राजस्थान चुनाव में मॉब लिंचिंग, बेरोजगारी आदि मुद्दों पर वोट करेंगे मतदाता

Written by Sabrangindia Staff | Published on: December 7, 2018
नई दिल्ली: राजस्थान में आज विधानसभा चुनावों के लिए वोटिंग चल रही है। चुनाव के नतीजे 11 दिसंबर को घोषित किए जाएंगे। 200 विधानसभा सीटों वाले राजस्थान में सत्ताधारी भाजपा की स्थिति इस बार बेहद पतली दिखाई दे रही है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से जनता की बेरुखी सामने आ रही है। अब तक राजस्थान को लेकर हुए कई सर्वे इस पर मुहर लगाते हैं कि जनता वसुंधरा सरकार से निराश है। राजस्थान चुनाव में इस बार भाजपा के सामने बेरोजगारी से लेकर लिंचिंग तक के मुद्दे खड़े हैं। 

राजस्थान में बेरोजगारी, विकास, महंगाई, मॉब लिंचिंग, एससी एसटी एक्ट, किसान, ध्रुवीकरण आदि ऐसे कई मुद्दे हैं, जिन्हें लेकर जनता बीजेपी से जवाब मांगेगी। लोगों का कहना है कि बेरोजगारी के मुद्दे पर बीजेपी सरकार चुनकर आई थी, लेकिन युवाओं को नौकरी देने में सरकार सफल नहीं रही। राज्य का चहुंमुखी विकास भी नहीं हुआ। इसके अलावा मॉब लिंचिंग, आरक्षण और राजपूत-जाट समाज के लोगों का रूठना भी वसुंधरा सरकार के लिए मुसीबत बना हुआ है

बेरोजगारी
वसुंधरा राजे युवाओं को नौकरी देने का वादा कर सत्ता में आईं थीं। उन्होंने नारा भी दिया था 'लाठी नहीं, नौकरियां दूंगी'। 2013 में अशोक गहलोत सरकार में युवाओं ने सरकारी नौकरियों के लिए प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन के खिलाफ तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने पुलिस बल का प्रयोग किया था, जिससे युवाओं में नाराजगी बढ़ी। हालांकि, अब युवा बीजेपी सरकार से भी ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है कि राजे अपने शब्दों पर खरी नहीं उतरीं। बीजेपी शासन के चार वर्षों में, विभिन्न विभागों में लगभग 157,804 सरकारी नौकरियों की घोषणा की गई थी, लेकिन नियुक्तियां केवल 41,800 थीं। शेष या तो अदालतों में फंस गईं या उनके लिए भर्ती प्रक्रिया अभी तक शुरू नहीं हुई है। चुनाव से पहले ही तीन बेरोजगार युवाओं ने हताश होकर आत्महत्या कर ली थी। 

किसान
वादे पूरे ना करने को लेकर राज्य के किसानों में भी प्रदेश सरकार के खिलाफ असंतोष है। मई 2018 में राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र के पांच किसानों ने बम्पर फसल के कारण लहसुन की कीमत उचित ना मिलने पर आत्महत्या कर ली थी। नतीजतन किसानों को अपनी फसल को कम कीमत पर बेचना पड़ा। बिगड़ते हालातों ने राज्य सरकार को छोटे और सीमांत किसानों के 50,000 रुपए तक के कृषि ऋण को माफ करने के लिए मजबूर किया। लेकिन यह पर्याप्त नहीं था। किसानों की मांग की है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को एमएसपी की गणना के लिए सूत्र में इस्तेमाल किया जाए, क्योंकि इसमें खेत से बाजार में उत्पादन की लागत और भूमि की अनुमानित लागत शामिल थी।

एससी/एसटी एक्ट
इस बार एससी/एसटी एक्ट को लेकर भी सवर्णों में गुस्सा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलकर केंद्र सरकार ने जिस तरह इस कानून को बनाए रखा, उससे उसके सामान्य वर्ग के सर्मथकों में नाराजगी है। सवर्ण इस एक्ट और आरक्षण को लेकर बीजेपी सरकार के खिलाफ जाने या नोटा दबाने का भी मन बना रहे हैं। सवर्णों का कहना है कि केंद्र सरकार ने एससी-एसटी एक्ट को उसके पुराने स्वरूप में बहाल कर उनके साथ अन्याय किया है जबकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही था।  

मॉब लिंचिंग
इन विधानसभा चुनावों में जनता मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं को देखकर भी भाजपा के खिलाफ वोट करने का मन बना सकती है। पिछले 4 सालों में राजस्थान में गो-तस्करी के नाम पर मॉब लिंचिंग के कई मामले सामने आए। वसुंधरा सरकार हर बार कानून व्यवस्था को लेकर सवालों के घेरे में रही। इसी साल जुलाई में अलवर में गौरक्षकों द्वारा रकबर नाम के शख्स की पीट-पीट कर हत्या कर दी। कांग्रेस का आरोप रहा है कि सरकार समाज के ध्रुवीकरण करने के इरादे के चलते गोरक्षकों और भीड़ की हिंसा को अनुमति दे रही है। 

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