वाराणसी। लोकसभा चुनाव 2019 में हॉट सीट बनी वाराणसी सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के प्रत्याशी पूर्व जवान तेज बहादुर यादव की वजह से सुर्खियों में आ गई है। गठबंधन ने चुनाव नामांकन के आखिरी दिन तेज बहादुर यादव को प्रत्याशी बनाकर बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दीं। तेज बहादुर यादव बीएसएफ के पूर्व जवान हैं जिन्हें अनुशासनहीनता के आरोप में बर्खास्त किया गया था।
तेज बहादुर यादव का नामांकन रद्द कराने के लिए बीजेपी की एक टीम भी चुनाव आयोग पहुंची जिसमें पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा भी शामिल थे। इस टीम ने तेज बहादुर यादव को चुनाव आयोग से सर्टिफिकेट लाने के लिए समय देने पर आपत्ति जताई थी। इस मामले में भारी उठापटक के बाद आखिर तेज बहादुर यादव का नामांकन रद्द कर दिया गया। दरअसल, चुनाव अधिकारी ने तेज बहादुर यादव को नोटिस जारी कर एक दिन का समय दिया था जिसमें उन्हें चुनाव आयोग से इलेक्शन लड़ने की परमीशन लेनी थी। इस मामले में चुनाव आयोग द्वारा देरी किए जाने के बाद उनका पर्चा कैंसिल कर दिया गया।
तेज बहादुर यादव का पर्चा कैंसिल होने के बाद अब भाजपा पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। तेज बहादुर यादव पर अनुशासनहीनता का आरोप था जो कि मीडिया में भी प्रकाशित हुआ था। लेकिन भाजपा ने 2014 के चुनाव में मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव के सामने ऐसा प्रत्याशी खड़ा किया था जिसकी तुलना तेज बहादुर यादव के केस से हो रही है।
दरअसल बीजेपी ने पिछले लोकसभा चुनाव में मैनपुरी से शत्रुध्न सिंह चौहान को टिकट दिया था। शत्रुघ्न सिंह को 7 जून 1991 में आर्मी एक्ट 163 एवं 38 के तहत कोर्ट मार्शल किया गया था। इसके एक साल बाद उनकी सजा सेनाध्यक्ष द्वारा माफ कर दी गई। इसके साथ किसी भी अतिरिक्त एफिडेविट/हलफनामे की प्रति चुनाव आयोग की साईट पर उपलब्ध नहीं है (इसका मतलब है की उनसे कोई भी एफिडेविट नहीं माँगा गया था)।
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि फिर चुनाव आयोग ने तेज बहादुर से सेक्शन 9 (2) के तहत एफिडेविट क्यों माँगा ? जबकि ये एफिडेविट सिर्फ भ्रष्टाचार (गबन) या गद्दारी के केस में माँगा जाता है। और तेज बहादुर पर सिर्फ अनुशाशनहीनता का आरोप सिद्ध हुआ था (ऐसा सुप्रीम कोर्ट के वकील का कहना है)।
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है कि भाजपा प्रत्याशी शत्रुघ्न सिंह पर 27 किग्रा सोने के गबन का केस था। इसी मामले में उनपर कोर्ट मॉर्शल की कार्रवाई की गई। वहीं, तेज बहादुर का नामांकन रद्द होने के बाद समाजवादी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है। तेज बहादुर यादव ने आरोप लगाया है कि पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने चुनाव आयोग पर दवाब डालकर उनका नामांकन रद्द कराया है।
तेज बहादुर यादव का नामांकन रद्द कराने के लिए बीजेपी की एक टीम भी चुनाव आयोग पहुंची जिसमें पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा भी शामिल थे। इस टीम ने तेज बहादुर यादव को चुनाव आयोग से सर्टिफिकेट लाने के लिए समय देने पर आपत्ति जताई थी। इस मामले में भारी उठापटक के बाद आखिर तेज बहादुर यादव का नामांकन रद्द कर दिया गया। दरअसल, चुनाव अधिकारी ने तेज बहादुर यादव को नोटिस जारी कर एक दिन का समय दिया था जिसमें उन्हें चुनाव आयोग से इलेक्शन लड़ने की परमीशन लेनी थी। इस मामले में चुनाव आयोग द्वारा देरी किए जाने के बाद उनका पर्चा कैंसिल कर दिया गया।
तेज बहादुर यादव का पर्चा कैंसिल होने के बाद अब भाजपा पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। तेज बहादुर यादव पर अनुशासनहीनता का आरोप था जो कि मीडिया में भी प्रकाशित हुआ था। लेकिन भाजपा ने 2014 के चुनाव में मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव के सामने ऐसा प्रत्याशी खड़ा किया था जिसकी तुलना तेज बहादुर यादव के केस से हो रही है।
दरअसल बीजेपी ने पिछले लोकसभा चुनाव में मैनपुरी से शत्रुध्न सिंह चौहान को टिकट दिया था। शत्रुघ्न सिंह को 7 जून 1991 में आर्मी एक्ट 163 एवं 38 के तहत कोर्ट मार्शल किया गया था। इसके एक साल बाद उनकी सजा सेनाध्यक्ष द्वारा माफ कर दी गई। इसके साथ किसी भी अतिरिक्त एफिडेविट/हलफनामे की प्रति चुनाव आयोग की साईट पर उपलब्ध नहीं है (इसका मतलब है की उनसे कोई भी एफिडेविट नहीं माँगा गया था)।
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि फिर चुनाव आयोग ने तेज बहादुर से सेक्शन 9 (2) के तहत एफिडेविट क्यों माँगा ? जबकि ये एफिडेविट सिर्फ भ्रष्टाचार (गबन) या गद्दारी के केस में माँगा जाता है। और तेज बहादुर पर सिर्फ अनुशाशनहीनता का आरोप सिद्ध हुआ था (ऐसा सुप्रीम कोर्ट के वकील का कहना है)।
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है कि भाजपा प्रत्याशी शत्रुघ्न सिंह पर 27 किग्रा सोने के गबन का केस था। इसी मामले में उनपर कोर्ट मॉर्शल की कार्रवाई की गई। वहीं, तेज बहादुर का नामांकन रद्द होने के बाद समाजवादी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है। तेज बहादुर यादव ने आरोप लगाया है कि पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने चुनाव आयोग पर दवाब डालकर उनका नामांकन रद्द कराया है।