उत्तरकाशी के पुरोला में कथित लव जिहाद का मामला सांप्रदायिक रंग लेता नजर आ रहा है। यहां दुकान छोड़कर भागे मुस्लिम व्यापारियों की बंद दुकानों पर पोस्टर चस्पा किए गए हैं कि वे लोग शहर छोड़कर भाग जाएं। पोस्टर्स में मुस्लिम व्यापारियों से 15 जून को होने वाली महापंचायत से पहले दुकानें खाली करने को कहा गया है।
उत्तरकाशी के पुरोला इलाके में कथित 'लव जिहाद' के मामले में तनाव और बढ़ गया है। मामले में दो व्यक्तियों की गिरफ्तारी की गई है, जिनमें से एक अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखता है। बताया गया कि दोनों की गिरफ्तारी के बाद इलाके में हालात और बिगड़े हैं। इस बीच कुछ अज्ञात लोगों ने समुदाय विशेष के लोगों की बंद दुकानों पर पोस्टर चिपकाकर उन्हें अपना कारोबार बंद करके शहर छोड़ देने की धमकी दी है। पुलिस ने मामला संज्ञान में लिया है और अज्ञात लोगों के खिलाफ अलग-अलग धाराओं में केस दर्ज किया है। पुलिस ने दुकानों से पोस्टर्स भी हटा दिए हैं।
मामले को लेकर स्थानीय व्यापारियों में काफी आक्रोश देखने को मिल रहा है। संप्रदाय विशेष की दुकानों के आगे चस्पा धमकी भरे पोस्टर्स में, उन्हें दुकानें खाली करने की चेतावनी दी गई है और ऐसा नहीं करने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई है। उधर, आक्रोशित व्यापारी संगठनों ने आज 6 जून को इस घटना के विरोध में बाजार बंद रखने का आह्वान किया है।
खास है कि उत्तराखंड के उत्तरकाशी शहर में पिछले महीने अल्पसंख्यक समुदाय के एक व्यक्ति सहित दो युवकों द्वारा 14 वर्षीय लड़की के कथित अपहरण के प्रयास को लेकर तनाव व्याप्त है। इस बीच मुस्लिम व्यापारियों को 15 जून तक दुकानें खाली करने की धमकी देने वाले पोस्टर सामने आए हैं। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों युवकों- 24 वर्षीय स्थानीय दुकानदार उबेद खान और 23 वर्षीय मोटर साइकिल मैकेनिक जितेंदर सैनी को कथित अपहरण के प्रयास के लिए बीते 27 मई को गिरफ्तार कर लिया गया था। दक्षिणपंथी संगठनों व स्थानीय निवासियों ने आरोप लगाया कि यह ‘लव जिहाद’ का मामला है। हिंदू महिलाओं को लुभाने और बहकाने के लिए मुस्लिम पुरुषों द्वारा एक कथित साजिश का वर्णन करने के लिए दक्षिणपंथी समूहों द्वारा ‘लव जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि अदालतें और केंद्र सरकार इसे आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं देती हैं।
'द वायर' के अनुसार, उत्तरकाशी के पुरोला मुख्य बाजार में लगे पोस्टरों में मुस्लिम व्यापारियों से 15 जून को होने वाली महापंचायत से पहले अपनी दुकानें खाली करने को कहा गया है। बता दें कि दक्षिणपंथी समूहों की ओर से शनिवार को आयोजित विरोध प्रदर्शन के बाद अज्ञात लोगों ने रविवार को समुदाय विशेष के लोगों की बंद दुकानों पर पोस्टर चिपका दिए। इस पोस्टर के जरिए उन्हें धमकी दी गई कि वे अपना कारोबार बंद कर दें और 15 जून को होने वली महापंचायत से पहले शहर छोड़कर चले जाएं। अन्यथा उन पर ऐक्शन लिया जाएगा। कई जगहों पर कुछ दुकानों को ब्लैक क्रॉस से चिह्नित किया गया था। सोमवार को पोस्टर लगने की जानकारी पुलिस को मिली तो उसने सभी जगहों से ये पोस्टर हटवा दिए।
बड़कोट में भी दुकानों पर लगाए काले क्रॉस
पुरोला से बाहर ऐसी ही एक घटना बड़कोट में शनिवार को देखने को मिली। यहां एक स्थानीय संगठन के नेतृत्व में विरोध रैली के दौरान समुदाय विशेष से संबंधित लोगों की दुकानों पर काले क्रॉस लगा दिए गए। कुछ अज्ञात लोगों ने दुकानों के बोर्ड भी हटा दिए। इस घटना के पीड़ित पुरोला बाजार के एक स्थानीय व्यापारी इमरोज़ ने कहा, 'हमें शहर छोड़ने या कार्रवाई का सामना करने वाले पोस्टर से डराने की कोशिश की जा रही है। 26 मई से ही शहर में 30 से ज्यादा दुकानें बंद हैं।'
एक अन्य दुकान के मालिक ने कहा कि उन्हें अब अपने भविष्य की चिंता सता रही है। वहीं, पुरोला ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बिरजमोहन चौहान ने कहा कि उनके संगठन ने कभी किसी को अपनी दुकानें खाली करने या शहर छोड़ने के लिए नहीं कहा है। उत्तरकाशी के सर्कल अधिकारी अनुज कुमार ने सोमवार को कहा कि हमने तीन दुकानों से पोस्टर हटाए हैं और अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ धारा आईपीसी के 505 और 295 (ए) के तहत मामला दर्ज किया है। सीसीटीवी फुटेज खंगालने के बाद आरोपी की तलाश की जा रही है।
‘देवभूमि रक्षा अभियान’ संगठन द्वारा लगाए गए पोस्टर में लिखा है, ‘लव जिहादियों को सूचित किया जाता है कि दिनांक 15 जून, 2023 को होने वाली महापंचायत से पूर्व अपनी दुकानें खाली कर दें। यदि तुम्हारे द्वारा ऐसा नहीं किया जाता, तो (परिणाम) समय पर निर्भर करेगा।’
दक्षिणपंथी संगठनों के सदस्यों द्वारा बारकोट में विरोध प्रदर्शन करने और कथित तौर पर मुसलमानों की दुकानों और घरों पर हमला करने के दो दिन बाद सोमवार (5 जून) को ये पोस्टर सामने आए हैं। पुलिस ने कहा कि हिंसा में शामिल लोगों की पहचान करने का प्रयास किया जा रहा है। पुलिस ने यह भी कहा कि पोस्टर सोमवार को ही हटा दिए गए और उन्हें चिपकाने वालों की पहचान करने के लिए जांच की जा रही है।
मामले से वाकिफ लोगों के मुताबिक, पुरोला मुख्य बाजार में मोटे तौर पर 650-700 दुकानें हैं और इनमें से करीब 30-40 दुकानें मुस्लिम चलाते हैं। एक स्थानीय विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के नेता ने कहा कि पोस्टर स्थानीय निवासियों द्वारा चिपकाए गए थे।
द वायर के अनुसार, विहिप नेता वीरेंद्र राणा ने कहा, ‘ये पोस्टर स्थानीय निवासियों द्वारा लगाए गए थे, जो चाहते हैं कि एक विशेष समुदाय के लोग शांति और सांप्रदायिक सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए शहर छोड़ दें। वे व्यापार करने के बहाने यहां आए थे, लेकिन हमारे समुदाय की लड़कियों और महिलाओं को निशाना बना रहे हैं।’ रिपोर्ट के अनुसार, इस घटनाक्रम से उपजे तनाव के कारण मुस्लिम समुदाय के लोग अपनी दुकानें बंद रखने के लिए मजबूर हैं और कुछ ने जिला भी छोड़ दिया है।
35 वर्षीय सलीम पुरोला में कपड़े की एक दुकान चलाते हैं। तनाव के मद्देनजर वह देहरादून में अपने भाई के घर भाग गए हैं। उन्होंने कहा, ‘हम लगातार डर में जी रहे हैं और ऐसे माहौल में पुरोला नहीं लौट सकते। अगर वे चाहते हैं कि हम पहाड़ (घर) छोड़ दें, तो अधिकारियों को हमारी संपत्ति के लिए हमें मुआवजा देना चाहिए।’ सोमवार को कुछ मुस्लिम परिवारों ने पुरोला सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें उन्होंने वित्तीय संकट के बारे में जानकारी देने के साथ अपने व्यवसायों को फिर से खोलने के लिए सुरक्षा की मांग की है।
ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि अगर मुसलमानों के साथ कुछ भी अनहोनी होती है तो प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया जाएगा। एसडीएम देवानंद शर्मा ने कहा, ‘कानून और व्यवस्था की स्थिति नियंत्रण में है। हम शहर में शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए घटनाक्रम पर नजर रख रहे हैं।’ रिपोर्ट के अनुसार, बीते 26 मई को उत्तरकाशी में उस समय तनाव व्याप्त हो गया था जब दो युवकों (उबेद खान और जितेंदर सैनी) ने कथित तौर पर एक नाबालिग को अगवा करने का प्रयास किया था। पुलिस ने कहा कि अपहरण की कोशिश विफल होने के बाद आरोपी फरार हो गए थे। अगले दिन उन्हें गिरफ्तार किया गया था।
29 मई को पुरोला में एक विरोध मार्च उस समय हिंसक हो गया था, जब कुछ आंदोलनकारियों ने मुसलमानों की दुकानों और प्रतिष्ठानों पर हमला कर दिया। यमुना घाटी हिंदू जागृति संगठन के बैनर तले शनिवार (3 जून) को भी इसी तरह का विरोध प्रदर्शन किया गया। आंदोलन में करीब 900 लोगों ने हिस्सा लिया। प्रदर्शनकारियों ने कस्बे में व्यवसाय करने के लिए बाहर से आने वाले लोगों का सत्यापन कराने की मांग को लेकर एसडीएम को ज्ञापन भी सौंपा था।
ज्ञापन में कहा गया था, ‘शहर में व्यवसाय करने की आड़ में एक विशेष समुदाय के कुछ लोग अनैतिक गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं, जिससे वातावरण प्रदूषित हो रहा है।’ इस घटनाक्रम के बाद मुसलमानों द्वारा संचालित कई दुकानें 29 मई से बंद हैं।
पुरोला व्यापार मंडल के अध्यक्ष बृजमोहन चौहान ने कहा, ‘सभी मुस्लिम व्यापारियों और दुकानदारों का सत्यापन अभियान चलाया जाना चाहिए। जो अपराधी किस्म के हैं, उन्हें शहर में रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। अन्य स्वतंत्र रूप से काम कर सकते हैं।’ पुरोला से भाजपा विधायक दुर्गेश्वर लाल ने कहा कि वह इस मामले पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से चर्चा करेंगे।
प्रणालीगत घृणा-बहिष्कार और सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार के इस संकेत को टीओआई की रिपोर्ट द्वारा सबसे अच्छा अभिव्यक्त किया गया था। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में, पेज 7, मुंबई संस्करण में, एक ठोस संपादकीय टिप्पणी है:
"टाइम्स व्यू: एक समुदाय को शहर छोड़ने के लिए पोस्टर लगाना एक खतरनाक चलन है जिसे रोकने की जरूरत है। अधिकारियों को तुरंत कदम उठाना चाहिए और ऐसे दुष्ट तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए जो एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राज्य की जड़ पर प्रहार करते हैं।"
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मामले को लेकर स्थानीय व्यापारियों में काफी आक्रोश देखने को मिल रहा है। संप्रदाय विशेष की दुकानों के आगे चस्पा धमकी भरे पोस्टर्स में, उन्हें दुकानें खाली करने की चेतावनी दी गई है और ऐसा नहीं करने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई है। उधर, आक्रोशित व्यापारी संगठनों ने आज 6 जून को इस घटना के विरोध में बाजार बंद रखने का आह्वान किया है।
खास है कि उत्तराखंड के उत्तरकाशी शहर में पिछले महीने अल्पसंख्यक समुदाय के एक व्यक्ति सहित दो युवकों द्वारा 14 वर्षीय लड़की के कथित अपहरण के प्रयास को लेकर तनाव व्याप्त है। इस बीच मुस्लिम व्यापारियों को 15 जून तक दुकानें खाली करने की धमकी देने वाले पोस्टर सामने आए हैं। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों युवकों- 24 वर्षीय स्थानीय दुकानदार उबेद खान और 23 वर्षीय मोटर साइकिल मैकेनिक जितेंदर सैनी को कथित अपहरण के प्रयास के लिए बीते 27 मई को गिरफ्तार कर लिया गया था। दक्षिणपंथी संगठनों व स्थानीय निवासियों ने आरोप लगाया कि यह ‘लव जिहाद’ का मामला है। हिंदू महिलाओं को लुभाने और बहकाने के लिए मुस्लिम पुरुषों द्वारा एक कथित साजिश का वर्णन करने के लिए दक्षिणपंथी समूहों द्वारा ‘लव जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि अदालतें और केंद्र सरकार इसे आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं देती हैं।
'द वायर' के अनुसार, उत्तरकाशी के पुरोला मुख्य बाजार में लगे पोस्टरों में मुस्लिम व्यापारियों से 15 जून को होने वाली महापंचायत से पहले अपनी दुकानें खाली करने को कहा गया है। बता दें कि दक्षिणपंथी समूहों की ओर से शनिवार को आयोजित विरोध प्रदर्शन के बाद अज्ञात लोगों ने रविवार को समुदाय विशेष के लोगों की बंद दुकानों पर पोस्टर चिपका दिए। इस पोस्टर के जरिए उन्हें धमकी दी गई कि वे अपना कारोबार बंद कर दें और 15 जून को होने वली महापंचायत से पहले शहर छोड़कर चले जाएं। अन्यथा उन पर ऐक्शन लिया जाएगा। कई जगहों पर कुछ दुकानों को ब्लैक क्रॉस से चिह्नित किया गया था। सोमवार को पोस्टर लगने की जानकारी पुलिस को मिली तो उसने सभी जगहों से ये पोस्टर हटवा दिए।
बड़कोट में भी दुकानों पर लगाए काले क्रॉस
पुरोला से बाहर ऐसी ही एक घटना बड़कोट में शनिवार को देखने को मिली। यहां एक स्थानीय संगठन के नेतृत्व में विरोध रैली के दौरान समुदाय विशेष से संबंधित लोगों की दुकानों पर काले क्रॉस लगा दिए गए। कुछ अज्ञात लोगों ने दुकानों के बोर्ड भी हटा दिए। इस घटना के पीड़ित पुरोला बाजार के एक स्थानीय व्यापारी इमरोज़ ने कहा, 'हमें शहर छोड़ने या कार्रवाई का सामना करने वाले पोस्टर से डराने की कोशिश की जा रही है। 26 मई से ही शहर में 30 से ज्यादा दुकानें बंद हैं।'
एक अन्य दुकान के मालिक ने कहा कि उन्हें अब अपने भविष्य की चिंता सता रही है। वहीं, पुरोला ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बिरजमोहन चौहान ने कहा कि उनके संगठन ने कभी किसी को अपनी दुकानें खाली करने या शहर छोड़ने के लिए नहीं कहा है। उत्तरकाशी के सर्कल अधिकारी अनुज कुमार ने सोमवार को कहा कि हमने तीन दुकानों से पोस्टर हटाए हैं और अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ धारा आईपीसी के 505 और 295 (ए) के तहत मामला दर्ज किया है। सीसीटीवी फुटेज खंगालने के बाद आरोपी की तलाश की जा रही है।
‘देवभूमि रक्षा अभियान’ संगठन द्वारा लगाए गए पोस्टर में लिखा है, ‘लव जिहादियों को सूचित किया जाता है कि दिनांक 15 जून, 2023 को होने वाली महापंचायत से पूर्व अपनी दुकानें खाली कर दें। यदि तुम्हारे द्वारा ऐसा नहीं किया जाता, तो (परिणाम) समय पर निर्भर करेगा।’
दक्षिणपंथी संगठनों के सदस्यों द्वारा बारकोट में विरोध प्रदर्शन करने और कथित तौर पर मुसलमानों की दुकानों और घरों पर हमला करने के दो दिन बाद सोमवार (5 जून) को ये पोस्टर सामने आए हैं। पुलिस ने कहा कि हिंसा में शामिल लोगों की पहचान करने का प्रयास किया जा रहा है। पुलिस ने यह भी कहा कि पोस्टर सोमवार को ही हटा दिए गए और उन्हें चिपकाने वालों की पहचान करने के लिए जांच की जा रही है।
मामले से वाकिफ लोगों के मुताबिक, पुरोला मुख्य बाजार में मोटे तौर पर 650-700 दुकानें हैं और इनमें से करीब 30-40 दुकानें मुस्लिम चलाते हैं। एक स्थानीय विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के नेता ने कहा कि पोस्टर स्थानीय निवासियों द्वारा चिपकाए गए थे।
द वायर के अनुसार, विहिप नेता वीरेंद्र राणा ने कहा, ‘ये पोस्टर स्थानीय निवासियों द्वारा लगाए गए थे, जो चाहते हैं कि एक विशेष समुदाय के लोग शांति और सांप्रदायिक सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए शहर छोड़ दें। वे व्यापार करने के बहाने यहां आए थे, लेकिन हमारे समुदाय की लड़कियों और महिलाओं को निशाना बना रहे हैं।’ रिपोर्ट के अनुसार, इस घटनाक्रम से उपजे तनाव के कारण मुस्लिम समुदाय के लोग अपनी दुकानें बंद रखने के लिए मजबूर हैं और कुछ ने जिला भी छोड़ दिया है।
35 वर्षीय सलीम पुरोला में कपड़े की एक दुकान चलाते हैं। तनाव के मद्देनजर वह देहरादून में अपने भाई के घर भाग गए हैं। उन्होंने कहा, ‘हम लगातार डर में जी रहे हैं और ऐसे माहौल में पुरोला नहीं लौट सकते। अगर वे चाहते हैं कि हम पहाड़ (घर) छोड़ दें, तो अधिकारियों को हमारी संपत्ति के लिए हमें मुआवजा देना चाहिए।’ सोमवार को कुछ मुस्लिम परिवारों ने पुरोला सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें उन्होंने वित्तीय संकट के बारे में जानकारी देने के साथ अपने व्यवसायों को फिर से खोलने के लिए सुरक्षा की मांग की है।
ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि अगर मुसलमानों के साथ कुछ भी अनहोनी होती है तो प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया जाएगा। एसडीएम देवानंद शर्मा ने कहा, ‘कानून और व्यवस्था की स्थिति नियंत्रण में है। हम शहर में शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए घटनाक्रम पर नजर रख रहे हैं।’ रिपोर्ट के अनुसार, बीते 26 मई को उत्तरकाशी में उस समय तनाव व्याप्त हो गया था जब दो युवकों (उबेद खान और जितेंदर सैनी) ने कथित तौर पर एक नाबालिग को अगवा करने का प्रयास किया था। पुलिस ने कहा कि अपहरण की कोशिश विफल होने के बाद आरोपी फरार हो गए थे। अगले दिन उन्हें गिरफ्तार किया गया था।
29 मई को पुरोला में एक विरोध मार्च उस समय हिंसक हो गया था, जब कुछ आंदोलनकारियों ने मुसलमानों की दुकानों और प्रतिष्ठानों पर हमला कर दिया। यमुना घाटी हिंदू जागृति संगठन के बैनर तले शनिवार (3 जून) को भी इसी तरह का विरोध प्रदर्शन किया गया। आंदोलन में करीब 900 लोगों ने हिस्सा लिया। प्रदर्शनकारियों ने कस्बे में व्यवसाय करने के लिए बाहर से आने वाले लोगों का सत्यापन कराने की मांग को लेकर एसडीएम को ज्ञापन भी सौंपा था।
ज्ञापन में कहा गया था, ‘शहर में व्यवसाय करने की आड़ में एक विशेष समुदाय के कुछ लोग अनैतिक गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं, जिससे वातावरण प्रदूषित हो रहा है।’ इस घटनाक्रम के बाद मुसलमानों द्वारा संचालित कई दुकानें 29 मई से बंद हैं।
पुरोला व्यापार मंडल के अध्यक्ष बृजमोहन चौहान ने कहा, ‘सभी मुस्लिम व्यापारियों और दुकानदारों का सत्यापन अभियान चलाया जाना चाहिए। जो अपराधी किस्म के हैं, उन्हें शहर में रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। अन्य स्वतंत्र रूप से काम कर सकते हैं।’ पुरोला से भाजपा विधायक दुर्गेश्वर लाल ने कहा कि वह इस मामले पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से चर्चा करेंगे।
प्रणालीगत घृणा-बहिष्कार और सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार के इस संकेत को टीओआई की रिपोर्ट द्वारा सबसे अच्छा अभिव्यक्त किया गया था। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में, पेज 7, मुंबई संस्करण में, एक ठोस संपादकीय टिप्पणी है:
"टाइम्स व्यू: एक समुदाय को शहर छोड़ने के लिए पोस्टर लगाना एक खतरनाक चलन है जिसे रोकने की जरूरत है। अधिकारियों को तुरंत कदम उठाना चाहिए और ऐसे दुष्ट तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए जो एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राज्य की जड़ पर प्रहार करते हैं।"
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