महाराष्ट्र के स्पीकर राहुल नार्वेकर की ओर से शिवसेना नाम और चुनाव चिन्ह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को देने के बाद अब उद्धव ठाकरे ने जनता की अदालत में जाने का ऐलान किया है। जनता अदालत नामक एक कार्यक्रम में उद्धव ठाकरे ने साल 2013 और साल 2018 में हुए राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दस्तावेज भी पेश किए। यह स्पीकर राहुल नार्वेकर के उस फैसले के खिलाफ जाता है, जिसमें उन्होंने कहा की शिवसेना में 1999 के बाद के कोई दस्तावेज़ ही नहीं हैं। इसके साथ ही उद्धव ठाकरे ने चुनाव आयोग के खिलाफ कारवाई करने की बात भी कही।
मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर द्वारा 10 जनवरी को सुनाए गए फैसले का शिवसेना यूबीटी की तरफ से मंगलवार को सार्वजनिक रूप से पोस्टमार्टम किया गया। वर्ली के एनएससी डोम में आयोजित ‘जनता न्यायालय’ में पार्टी के आम शिवसैनिकों और बड़ी संख्या में जमा मीडिया के सामने जाने-माने एडवोकेट असीम सरोदे, रोहित शर्मा व अनिल परब के बाद खुद पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने स्पीकर के फैसले को अन्यायपूर्ण बताते हुए चौतरफा हमला बोला और इसे बड़ा षड़यंत्र करार दिया। स्पीकर राहुल नार्वेकर ने फैसला सुनाते हुए शिवसेना के 1999 के संविधान को आधार माना था, क्योंकि चुनाव आयोग के पास सिर्फ शिवसेना पार्टी का 1999 का ही संविधान ही रिकॉर्ड पर है। लेकिन जनता की अदालत में उद्धव ठाकरे गुट ने 2013 और 2018 में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठकों उसमें पारित हुए संविधान संशोधनों, पार्टी के अंतर्गत चुनावों की न सिर्फ विस्तार से जानकारी दी, बल्कि दोनों बैठकों के पूरे विडियो भी दिखाए।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उद्धव ठाकरे ने मंगलवार को मुंबई में जनता की अदालत आयोजित कर शिवसेना के संविधान से जुड़े सबूत दिखाए। 2013 और 2018 में संविधान में किए गए संशोधनों, निर्णयों एवं पारित प्रस्तावों की विडियो क्लिप्स भी दिखाईं। अनिल परब, संजय राऊत ने भी लोगों को संबोधित किया। सभी ने विडियो दिखाकर इस बात का सबूत पेश किया कि कैसे उन्होंने संविधान में हुए बदलावों को चुनाव आयोग के सामने पेश किया। जाने-माने वकील असीम सरोदे ने कहा कि परिणाम कितना आसान था और कैसे टाइम पास करके उसे गलत दिखाया गया। भाषण के दौरान उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को खुली चुनौती दी।
उद्धव ठाकरे ने कहा हम स्पीकर के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए हैं। अब सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद है। वहां जो भी फैसला आए, लेकिन लोकतंत्र में जनता की अदालत की सर्वोच्च है। इसीलिए आज हम जनता की अदालत में आए हैं। देश के मतदाता सरकार तय करते हैं। शायद हम दुनिया के एकमात्र या बहुत कम देशों में हैं, जिन्होंने संविधान को लोगों के चरणों में रखा है। इसीलिए जिन बातों को लोगों के सामने लाना जरूरी है, उन्हें हम जनता अदालत के जरिए सामने लाए हैं। उन्होंने स्पीकर राहुल नार्वेकर और शिंदे को चुनौती देते हुए कहा कि बिना किसी पुलिस सुरक्षा के मेरे साथ सड़क पर आएं, जनता उन्हें बता देगी कि शिवसेना किसकी है। कानून और संविधान के साथ किस तरह से मजाक किया जा रहा है, वह जनता देख रही है।
उद्धव ने कहा कि मुझे लगता है कि अब चुनाव आयोग पर भी केस दर्ज करना चाहिए। हमने करीब 19 लाख शपथ-पत्र दिए हैं। रुपये के स्टैंप पेपर पर शपथ-पत्र दिए, क्या चुनाव आयोग उनके गद्दे बनवाकर सो गया? ये पैसे शिवसैनिकों ने खर्च किए हैं। इसकी भरपाई चुनाव आयोग को करनी चाहिए। उद्धव ठाकरे ने कहा कि अगर हमारी पार्टी का कोई संविधान नहीं था, हमारे पास कोई अधिकार नहीं था, कोई दस्तावेज नहीं था, फिर किसके समर्थन पर देवेंद्र फडणवीस पांच साल तक मुख्यमंत्री पद पर रहे? क्यों मोदी के नॉमिनेशन के वक्त मुझे बुलाया गया, 2014 और 2019 में अमित शाह क्यों मेरे पास आए?
स्पीकर राहुल नार्वेकर जिन्होंने अपने फैसले में कहा, ‘उद्धव ठाकरे को किसी को पार्टी से निकालने का अधिकार नहीं है। यह अधिकार सिर्फ राष्ट्रीय कार्यकारिणी को है।’ वही राहुल नार्वेकर 2013 में शिवसेना भवन में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में खड़े नज़र आए, जिसमें सर्वसम्मति से उद्धव ठाकरे को पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त कर उन्हें पार्टी के बारे में हर निर्णय लेने यहां तक कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी को बर्खास्त करने का भी अधिकार भी दिया गया था। इसी तरह 2018 में हुई की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उद्धव ठाकरे द्वारा एकनाथ शिंदे को ‘शिवसेना नेता’ पद पर नियुक्त किए जाने की घोषणा के बाद एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे के पैर छूते हुए दिखाई दिए।
अनिल परब ने कहा कि शिंदे गुट के 16 विधायकों की अपात्रता याचिका पर फैसला सुनाते हुए नार्वेकर ने कहा है कि चूंकि 1999 का संविधान ही शिवसेना का आखिरी संविधान है, उसके बाद का कोई रिकॉर्ड नहीं है। 1999 के संविधान में पार्टी में सर्वोच्च अधिकार बालासाहेब ठाकरे को दिया गया था। उनके बाद ये अधिकार किसी और को देने का कोई रिकॉर्ड नहीं है। जबकि, 2013 में शिवसेना के संविधान में संशोधन किया गया था और पार्टी के अंतर्गत चुनाव कराकर उद्धव ठाकरे को पार्टी का प्रमुख नियुक्त किया गया, तब राहुल नार्वेकर भी वहां मौजूद थे, क्योंकि उस वक्त नार्वेकर शिवसेना में थे।
जनता की अदालत में वकील असीम सरोदे ने स्पीकर के फैसले पर महत्वपूर्ण मुद्दे रखे। उन्होंने कहा कि अयोग्यता का मामला सीधे अध्यक्ष के पास नहीं गया। यह सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट में गया। सुप्रीम कोर्ट के पांच अनुभवी और विद्वान न्यायाधीशों की बेंच ने इसे सुना। इसके बाद दिशा-निर्देश के साथ यह केस स्पीकर को फैसले के लिए सौंपा गया। कोई भी कानून यह नहीं कहता कि अपनी मनमर्जी से व्याख्या करो। हमें सिखाया जाता है कि कानून की व्याख्या कैसे की जाए? हम मैक्सवेल की पुस्तक का संदर्भ लेते हैं। कानून वैसा ही है, जैसा वह कहता है। दल-बदल विरोधी कानून का उद्देश्य दल-बदल को रोकना है। संविधान के उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए।
सरोदे ने कहा कि किसी पार्टी का विधायक दल मूल राजनीतिक पार्टी से बड़ा नहीं होता। क्योंकि, विधायकों की समय सीमा 5 साल या विधानसभा रहने तक होती है। लेकिन राजनीतिक पार्टी का एक कानूनी अस्तित्व चुनाव से पहले और चुनाव के बाद भी रहता है। किसी को अयोग्य न ठहराना सुप्रीम कोर्ट का घोर अपमान है। क्योंकि, यह मामला दल बदल पर रोक लगाने वाले कानून के तौर पर चलाया गया था। पांच वरिष्ठ न्यायाधीश मामले की सुनवाई करते हैं और आप कहते हैं कि यह 10वीं अनुसूची का मामला नहीं है, ये पार्टी के अंदर का विवाद है।
नीचे दिए गए वीडियो पर विस्तृत जानकारी देख सकते हैं
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उद्धव ठाकरे ने मंगलवार को मुंबई में जनता की अदालत आयोजित कर शिवसेना के संविधान से जुड़े सबूत दिखाए। 2013 और 2018 में संविधान में किए गए संशोधनों, निर्णयों एवं पारित प्रस्तावों की विडियो क्लिप्स भी दिखाईं। अनिल परब, संजय राऊत ने भी लोगों को संबोधित किया। सभी ने विडियो दिखाकर इस बात का सबूत पेश किया कि कैसे उन्होंने संविधान में हुए बदलावों को चुनाव आयोग के सामने पेश किया। जाने-माने वकील असीम सरोदे ने कहा कि परिणाम कितना आसान था और कैसे टाइम पास करके उसे गलत दिखाया गया। भाषण के दौरान उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को खुली चुनौती दी।
उद्धव ठाकरे ने कहा हम स्पीकर के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए हैं। अब सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद है। वहां जो भी फैसला आए, लेकिन लोकतंत्र में जनता की अदालत की सर्वोच्च है। इसीलिए आज हम जनता की अदालत में आए हैं। देश के मतदाता सरकार तय करते हैं। शायद हम दुनिया के एकमात्र या बहुत कम देशों में हैं, जिन्होंने संविधान को लोगों के चरणों में रखा है। इसीलिए जिन बातों को लोगों के सामने लाना जरूरी है, उन्हें हम जनता अदालत के जरिए सामने लाए हैं। उन्होंने स्पीकर राहुल नार्वेकर और शिंदे को चुनौती देते हुए कहा कि बिना किसी पुलिस सुरक्षा के मेरे साथ सड़क पर आएं, जनता उन्हें बता देगी कि शिवसेना किसकी है। कानून और संविधान के साथ किस तरह से मजाक किया जा रहा है, वह जनता देख रही है।
उद्धव ने कहा कि मुझे लगता है कि अब चुनाव आयोग पर भी केस दर्ज करना चाहिए। हमने करीब 19 लाख शपथ-पत्र दिए हैं। रुपये के स्टैंप पेपर पर शपथ-पत्र दिए, क्या चुनाव आयोग उनके गद्दे बनवाकर सो गया? ये पैसे शिवसैनिकों ने खर्च किए हैं। इसकी भरपाई चुनाव आयोग को करनी चाहिए। उद्धव ठाकरे ने कहा कि अगर हमारी पार्टी का कोई संविधान नहीं था, हमारे पास कोई अधिकार नहीं था, कोई दस्तावेज नहीं था, फिर किसके समर्थन पर देवेंद्र फडणवीस पांच साल तक मुख्यमंत्री पद पर रहे? क्यों मोदी के नॉमिनेशन के वक्त मुझे बुलाया गया, 2014 और 2019 में अमित शाह क्यों मेरे पास आए?
स्पीकर राहुल नार्वेकर जिन्होंने अपने फैसले में कहा, ‘उद्धव ठाकरे को किसी को पार्टी से निकालने का अधिकार नहीं है। यह अधिकार सिर्फ राष्ट्रीय कार्यकारिणी को है।’ वही राहुल नार्वेकर 2013 में शिवसेना भवन में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में खड़े नज़र आए, जिसमें सर्वसम्मति से उद्धव ठाकरे को पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त कर उन्हें पार्टी के बारे में हर निर्णय लेने यहां तक कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी को बर्खास्त करने का भी अधिकार भी दिया गया था। इसी तरह 2018 में हुई की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उद्धव ठाकरे द्वारा एकनाथ शिंदे को ‘शिवसेना नेता’ पद पर नियुक्त किए जाने की घोषणा के बाद एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे के पैर छूते हुए दिखाई दिए।
अनिल परब ने कहा कि शिंदे गुट के 16 विधायकों की अपात्रता याचिका पर फैसला सुनाते हुए नार्वेकर ने कहा है कि चूंकि 1999 का संविधान ही शिवसेना का आखिरी संविधान है, उसके बाद का कोई रिकॉर्ड नहीं है। 1999 के संविधान में पार्टी में सर्वोच्च अधिकार बालासाहेब ठाकरे को दिया गया था। उनके बाद ये अधिकार किसी और को देने का कोई रिकॉर्ड नहीं है। जबकि, 2013 में शिवसेना के संविधान में संशोधन किया गया था और पार्टी के अंतर्गत चुनाव कराकर उद्धव ठाकरे को पार्टी का प्रमुख नियुक्त किया गया, तब राहुल नार्वेकर भी वहां मौजूद थे, क्योंकि उस वक्त नार्वेकर शिवसेना में थे।
जनता की अदालत में वकील असीम सरोदे ने स्पीकर के फैसले पर महत्वपूर्ण मुद्दे रखे। उन्होंने कहा कि अयोग्यता का मामला सीधे अध्यक्ष के पास नहीं गया। यह सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट में गया। सुप्रीम कोर्ट के पांच अनुभवी और विद्वान न्यायाधीशों की बेंच ने इसे सुना। इसके बाद दिशा-निर्देश के साथ यह केस स्पीकर को फैसले के लिए सौंपा गया। कोई भी कानून यह नहीं कहता कि अपनी मनमर्जी से व्याख्या करो। हमें सिखाया जाता है कि कानून की व्याख्या कैसे की जाए? हम मैक्सवेल की पुस्तक का संदर्भ लेते हैं। कानून वैसा ही है, जैसा वह कहता है। दल-बदल विरोधी कानून का उद्देश्य दल-बदल को रोकना है। संविधान के उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए।
सरोदे ने कहा कि किसी पार्टी का विधायक दल मूल राजनीतिक पार्टी से बड़ा नहीं होता। क्योंकि, विधायकों की समय सीमा 5 साल या विधानसभा रहने तक होती है। लेकिन राजनीतिक पार्टी का एक कानूनी अस्तित्व चुनाव से पहले और चुनाव के बाद भी रहता है। किसी को अयोग्य न ठहराना सुप्रीम कोर्ट का घोर अपमान है। क्योंकि, यह मामला दल बदल पर रोक लगाने वाले कानून के तौर पर चलाया गया था। पांच वरिष्ठ न्यायाधीश मामले की सुनवाई करते हैं और आप कहते हैं कि यह 10वीं अनुसूची का मामला नहीं है, ये पार्टी के अंदर का विवाद है।
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