विद्रोह की मशाल सावित्रीबाई फुले के परिनिर्वाण दिवस पर श्रद्धांजली

Published on: March 10, 2017
बिना विद्या जीवन व्यर्थ पशु जैसा 
निठल्ले ना बैठे रहो करो विद्या ग्रहण। 
 
चलो, चलें पाठशाला हमें है पढ़ना, नहीं अब वक्त गँवाना
ज्ञान-विद्या प्राप्त करें, चलो हम संकल्प करें
अज्ञानता और गरीबी की गुलामीगिरी चलो, तोड़ डालें 
सदियों का लाचारी भरा जीवन चलो, फेंक दें।

Savitri Bai Phule
 

शिक्षा को ही अपना जीवन बनाने वाली और महिलाओं के हकों की लड़ाई लड़ने वाली क्रांतिकारी सावित्रीबाई फुले का आज परिनिर्वाण दिवस है। सावित्रीबाई फुले का जन्म करुणा त्याग से प्रज्वलित एक मशाल है। सावित्री बाई फुले भारत के इतिहास में एक ऐसा नाम हैं जिन्होंने शिक्षा के महत्व को समझकर अपने जीवन के आखिरी दिन तक महिलाओं और पिछड़ों को शिक्षित करने में लगी रही। उन्होंने पिछड़ों और स्त्रियों की स्वतंत्रता और समानता की पुरजोर वकालत भी की। सावित्री बाई फुले का आधुनिक भारत के निर्माण में बहुत अहम योगदान है।
 
सावित्रीबाई फुले का जन्म ऐसे समय में हुआ जब ब्राह्मणवाद अपने चरमोत्कर्ष पर था। उनका जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले की खंडाला तहसील के नायागांव में 3 जनवरी 1831 को हुआ था। 1840 में 9 वर्ष की उम्र में उनका विवाह जोतिबा फुले के साथ हुआ। उनके पति ज्यातिबा फुले ने उनको शिक्षित किया और शिक्षित होने के बाद उन्होंने महिलाओं के लिए स्कूल खोला। 
 
सावित्रीबाई ने 1 जनवरी 1848 में पुणे में पहला स्कूल खोला जिसकी वह प्रधानाध्यापिका थी। 1 जनवरी 1848 से लेकर 15 मार्च 1852 तक लगातार अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर 18 स्कूल खोले। स्कूल को चलाने के लिए उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा। रूढ़ीवादी लोगों ने उनके इस कदम को धर्म विरोधी ठहराते हुए खूब विरोध किया। जब वह पढ़ाने के लिए जाती थी तो उनका विरोध करने वाले लोग उनपर कीचड़, गोबर और पत्थर फेंकते थे। इस तरह के विरोध के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार संघर्ष करती रही। मनुवादी लोगों का उन्होंने डटकर मुकाबला किया। 


 
भारतीय महिलाओं की दशा सुधारने के लिए उन्होंने 1852 में 'महिला मंडल' का गठन किया और भारतीय महिला आंदोलन की प्रथम अगुआ भी बनी। इस महिला मंडल ने बाल विवाह, विधवा होने के कारण स्त्रियों पर किए जा रहे जुल्मों के खिलाफ महिलाओं को मोर्चाबन्द कर समाजिक बदलाव के लिए संघर्ष किया। विधवाओं के केशवापन जैसी कुरीतियों के खिलाफ सावित्री बाई फूले ने नाईयों के साथ मिलकर आन्दोलन चलाया, जिसमें नाईयों ने विधवा स्त्रियों के बाल न काटने की प्रतिज्ञा ली।  
 
सावित्रीबाई फूले ने भारत का पहला 'बाल हत्या प्रतिबंधक गृह' खोला तथा निराश्रित असहाय महिलाओं के लिए अनाथाश्रम खोला। छुआछूत, सती-प्रथा, पर्दा-प्रथा,  बाल-विवाह, विधवा विवाह निषेध और विधवा केशवापन जैसी अनेक कुप्रथाओं का खुलकर विरोध किया और इन कुप्रथाओं को खत्म करने के लिए आजीवन संघर्ष किया। 1897 में महाराष्ट्र में भयंकर रुप से प्लेग फैला जिसमें वह प्लेग-पीडितों की मदद करती रही। प्लेग पीडित लोगों की मदद करते हुए वह खुद प्लेग पीडित हो गई और 10 मार्च 1897 को सावित्रीबाई फुले का परिनिर्वाण हो गया। ऐसी साहसी, विद्रोही, संग्रामी महिला का परिनिर्वाण दिवस देश की पिछड़ी जातियां 'भारतीय महिला दिवस' के रुप में मनाती हैं। 

सावित्री बाई फुले महान कवयित्री भी थी। उनका कहना था...
 
केवल एक ही शत्रु है अपना, मिलकर निकाल देंगे उसे बाहर
उसके सिवा कोई शत्रु ही नहीं, बताती हूं उस शत्रु का नाम
सुनो ठीक से उस शत्रु का नाम, वह तो है 'अज्ञान'।।

Courtesy: National Dastak
 

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