नई दिल्ली। टूल किट मामले में अभियुक्त पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि ने पिछले महीने ज़मानत पर रिहा होने के बाद शनिवार को पहली बार अपना बयान जारी किया।

अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट किए गए चार पन्नों के बयान में दिशा ने मीडिया की आलोचना की और साथ देने वालों का शुक्रिया अदा किया। उन्होंने कहा "सबकुछ जो सच है, सच से बहुत दूर लगता है: दिल्ली का स्मॉग, पटियाला कोर्ट और तिहाड़ जेल।"
उन्होंने लिखा कि अगर उनसे किसी ने पूछा होता कि अगले पांच साल में वो खुद को कहा देखती हैं, तो उनका जवाब यकीनन "जेल" नहीं होता।
उन्होंने लिखा, "मैं खुद से पूछती रही कि उस वक्त वहां पर होना कैसा लग रहा था, लेकिन मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मुझे लग रहा था कि सिर्फ एक ही तरीका है जिससे मैं इसका सामना कर सकती हूं, खुद को ये समझा के कि ये सब मेरे साथ हो ही नहीं रहा है - पुलिस 13 फ़रवरी 2021 को मेरे दरवाज़े पर नहीं आई थी, उन्होंने मेरा फ़ोन नहीं लिया था, मुझे गिरफ़्तार नहीं किया था, वो मुझे पटियाला हाउस कोर्ट नहीं ले गए थे, मीडिया वाले वहां उस कमरे में अपने लिए जगह नहीं खोज रहे थे।" उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता था कि कोर्ट में क्या बोलना है और जबतक वो कुछ समझ पातीं उन्हें 5 दिन की पुलिस कस्टडी में भेज दिया गया।
"ये आश्चर्य की बात नहीं है कि उसके बाद मेरे अधिकारों का हनन हुआ, मेरी तस्वीरें पूरे मीडिया में फैल गईं, मुझे मुजरिम करार दे दिया गया - कोर्ट के द्वारा नहीं, टीआरपी की चाह वाले टीवी स्क्रीन पर। मैं वहां बैठी रही, इस बात से अनजान कि उनके विचार के हिसाब से मेरे बारे में काल्पनिक बातें गढ़ी गईं।"
इंसानियत की तुलना पर्यावरण से करते हुए उन्होंने लिखा, "कभी न ख़त्म होने वाले इस लालच और उपभोग के खिलाफ़ अगर हमने समय पर कदम नहीं उठाए, तो हम विनाश के क़रीब जा रहे हैं।"
उन्होंने इस दौरान अपने साथ खड़े लोगों का शुक्रिया अदा करते हुए लिखा, "मैं भाग्यशाली थी कि मुझे प्रो-बोनो (जनहित) कानूनी सहायता मिली लेकिन उनका क्या जिन्हें ये नहीं मिलता? उन लोगों का क्या कि जिनकी कहानियों की मार्केटिंग नहीं हो सकती? उन पिछड़े लोगों का क्या जो स्क्रीन टाइम के लायक नहीं हैं?"
"विचार नहीं मरते, और सच चाहे जितना समय ले ले, हमेशा बाहर आता है।"

अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट किए गए चार पन्नों के बयान में दिशा ने मीडिया की आलोचना की और साथ देने वालों का शुक्रिया अदा किया। उन्होंने कहा "सबकुछ जो सच है, सच से बहुत दूर लगता है: दिल्ली का स्मॉग, पटियाला कोर्ट और तिहाड़ जेल।"
उन्होंने लिखा कि अगर उनसे किसी ने पूछा होता कि अगले पांच साल में वो खुद को कहा देखती हैं, तो उनका जवाब यकीनन "जेल" नहीं होता।
उन्होंने लिखा, "मैं खुद से पूछती रही कि उस वक्त वहां पर होना कैसा लग रहा था, लेकिन मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मुझे लग रहा था कि सिर्फ एक ही तरीका है जिससे मैं इसका सामना कर सकती हूं, खुद को ये समझा के कि ये सब मेरे साथ हो ही नहीं रहा है - पुलिस 13 फ़रवरी 2021 को मेरे दरवाज़े पर नहीं आई थी, उन्होंने मेरा फ़ोन नहीं लिया था, मुझे गिरफ़्तार नहीं किया था, वो मुझे पटियाला हाउस कोर्ट नहीं ले गए थे, मीडिया वाले वहां उस कमरे में अपने लिए जगह नहीं खोज रहे थे।" उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता था कि कोर्ट में क्या बोलना है और जबतक वो कुछ समझ पातीं उन्हें 5 दिन की पुलिस कस्टडी में भेज दिया गया।
"ये आश्चर्य की बात नहीं है कि उसके बाद मेरे अधिकारों का हनन हुआ, मेरी तस्वीरें पूरे मीडिया में फैल गईं, मुझे मुजरिम करार दे दिया गया - कोर्ट के द्वारा नहीं, टीआरपी की चाह वाले टीवी स्क्रीन पर। मैं वहां बैठी रही, इस बात से अनजान कि उनके विचार के हिसाब से मेरे बारे में काल्पनिक बातें गढ़ी गईं।"
इंसानियत की तुलना पर्यावरण से करते हुए उन्होंने लिखा, "कभी न ख़त्म होने वाले इस लालच और उपभोग के खिलाफ़ अगर हमने समय पर कदम नहीं उठाए, तो हम विनाश के क़रीब जा रहे हैं।"
उन्होंने इस दौरान अपने साथ खड़े लोगों का शुक्रिया अदा करते हुए लिखा, "मैं भाग्यशाली थी कि मुझे प्रो-बोनो (जनहित) कानूनी सहायता मिली लेकिन उनका क्या जिन्हें ये नहीं मिलता? उन लोगों का क्या कि जिनकी कहानियों की मार्केटिंग नहीं हो सकती? उन पिछड़े लोगों का क्या जो स्क्रीन टाइम के लायक नहीं हैं?"
"विचार नहीं मरते, और सच चाहे जितना समय ले ले, हमेशा बाहर आता है।"