आवाम की मुक्ति का रास्ता चुनाव नहीं, इंकलाब है

Written by उदय राम | Published on: March 23, 2019
चुनावी आचार सहिंता लग चुकी है। 2019 चुनाव का शंखनाद हो चूका है। देश को चुनावी रंग में रँगा जा रहा है। लोकतंत्र का पर्व और आधार होता है चुनाव, इसकी तैयारिया युद्ध स्तर पर चलाई जा रही है। लोकतंत्र लोगो के द्वारा, लोगो के लिए चुना गया तंत्र। इस तंत्र की सीमा के अंदर आने वाली सारी प्राकृतिक सम्पदायें जल-जंगल-जमीन इस तंत्र की, मतलब तंत्र में आने वाले लोगो की होती है। तंत्र के लोग अपनी मेहनत से कमाये रूपये के एक निश्चित हिस्से को कर के रूप में तंत्र में जमा करवाते हैं वही तंत्र को अलग-अलग स्त्रोतों से पैसा इकठ्ठा होता है।



उन रुपयो से तंत्र अपने लोगो को पानी, शिक्षा-स्वास्थ्य, रोटी-कपड़ा-मकान, सुरक्षा और मुलभुत आवश्यकताए पूरी करने में समय-समय पर मद्दत करता है। इस तंत्र को चलाने के लिए कुछ लोगो को स्पेशल 5 साल के लिए लोगो के वोट से चुना जाता है। ये चुने हुए लोग कसम खाते हैं कि वो इस तंत्र को और इस तंत्र के विचार को बनाये रखेंगे। लेकिन इन चुने हुए प्रतिनिधियों ने लोकतंत्र के विचार से विपरीत बहुमत आवाम से गद्दारी की व एक छोटे से हिस्से को जो लुटेरा है के फायदे के लिए काम किया। तंत्र की पूंजी को इन लुटेरो को लूटने दिया गया। 

चुनाव आते ही देशी-विदेशी पूंजीवादी लुटेरी ताकतों ने धन से भरे महलों के दरवाजे राजनीतिक पार्टियों के लिए खोल दिए है। राजनीतिक पार्टियां भी जो 5 साल मेहनतकश आवाम का शिकार करती रही है, जो बेहरमी से यहां की जनता को अपने बूटों से रौंदती रही है। वोट के लिए अब उन्होंने अपने आपको अलग-अलग रंगों से रंग लिया है। कोई भगवा तो कोई हरा, कोई नीला तो कोई लाल सबने अपने काले कारनामो को ढकने के लिए रंगों का सहारा ले लिया है। 

अपने शिकारी वाले दांतो को छुपा कर जनता को बिना दांतो का जबड़ा दिखा रहे है। वो विश्वास दिला रहे है की हमारे तो दांत ही नही है हम शिकार कैसे कर सकते है न हमारे शिकारी जानवर वाले पंजे है। हम शिकारी नही है। हम तो परमात्मा के भेजे दूत है जो आपकी सेवा के लिए आये है। परमात्मा का दूत साबित करने के लिए कोई मन्दिरो में आरती कर रहा है तो कोई शंक बजा रहा है। कोई गंगा स्नान कर रहा है तो कोई मस्जिद, गुरद्वारों में नाक रगड़ रहा है। माथे पर लम्बा टिका, गले में धर्म का पट्टा पहने ये शिकारी जनता को ठगने के लिए नये-नये नाटक कर रहे है। वैसे परमात्मा का काल्पनिक स्वरूप भी लुटेरी ताकतों ने इसी काम के लिए गढ़ा था। परमात्मा और उसके दूत ये काम बखूबी निभा रहे है। 

सहयोगी मीडिया
मीडिया जिसको लोकतंत्र में चौथा स्तम्भ कहा गया।  जिसको सच्चाई दिखाने के लिए निर्मित किया गया। जिसको आवाम का मानसिक स्तर बढ़ाने के लिए निर्मित किया गया। जिसको जिम्मेदारी तो दी गयी थी की वो अपने कैमरे की आँख से लोकतंत्र के प्रतिनिधियों पर निगरानी रखेगा। गड़बड़ होते ही जनता को सच्चाई बताएगा, लुटेरे की लूट को कैद करके जनता के सामने पेश करेगा। लेकिन मीडिया भी पहले, दूसरे, तीसरे स्तम्भ की तरह लुटेरे पूंजीपतियों की जूठी पतले चाट रहा है।  लुटेरे पूंजीपति की लूट और इन शिकारियों की सच्चाई दिखाने की बजाए, दिन-रात इन्ही के एजेंडे पर काम करता रहा।

मीडिया ने ही शिकारियों को आम जनता में परमात्मा का दूत, सन्त, मसीहा के रूप में स्थापित किया है। वो सुबह से शाम तक शिकारी के पक्ष में प्राइम टाइम की नोटंकी करता है। जनता की समस्याओं पर चर्चा करने की बजाए, काल्पनिक मुद्दे और हिन्दू-मुस्लिम को लड़ाने का माहौल बनाता है। कश्मीर-कश्मीर, पाकिस्तान-पाकिस्तान चिल्ला कर आम जनता में एक डर विकसित करता है। 

मनोरंजन के माध्यम से बना कलाकार हो, चाहे खिलाड़ी हो, वो भी शिकारियों के पक्ष में माहौल बनाता है। मेहनतकश जनता भी इन रंगे हुए शिकारियों से हर बार की तरह इस बार भी ठगी जा चुकी है। वो शिकारियों की जय-जयकार कर रही है। जो शिकारी जितना बड़ा नाटक करेगा जनता भी उतनी ज्यादा तालियाँ और जयकारे के साथ उनका साथ दे रही है। 

2014 का चुनाव हो या उससे पहले के चुनाव इन शिकारी जानवरो ने ऐसे ही जनता को ठगा। चुनाव होते ही इन्होंने अपना रंग उतार दिया और अपने छुपे हुए दांत व पंजे निकाल कर निकल पड़े शिकार पर….2014 चुनाव से पहले जहां 10 साल कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार रही जिसको डॉ अम्बेडकर का झंडा उठाने का दावा करने वाली दलितों की हितैसी बसपा, लाल टोपी पहन कर समाजवाद का ढोंग करने वाले मुलायम और लाल झंडे को उठाकर मेहनतकश के पक्ष में क्रांति का दावा करने वाले वामपंथी समर्थन देते रहे। 

इन 10 सालो में भारतीय सत्ता ने जनता को लूटने के सारे रिकॉर्ड तोड़ कर एक नया घोटालो का कीर्तिमान बनाया। बेहरमी से आदिवासियों को लूटने का खेल चलता रहा। आदिवासियों और उनके लिए लड़ने वालो का कत्ल होता रहा। जनता द्वारा अर्जित की गयी सरकारी सम्पतियों को कार्पोरेट द्वारा लूटने दिया गया। जनता इनकी लूट से त्राहि-त्राहि करने लगी। जनता में व्यापक गुस्सा उभर रहा था। ये गुस्सा फटने वाला ही था कि लुटेरी पूंजी ने रँगे हुए कलाकारों को मैदान में उतार दिया। लोगो के गुस्से को भुनाने के लिए बड़े-बड़े वादे किए गए।

घोटालेबाजों को जेल में डालकर उनसे जनता की लूटी हुई पाई-पाई बरामद करने की बात की गयी। प्रत्येक जनता के खाते में 15-15 लाख देने का वादा किया गया। बेरोजगारों को प्रत्येक साल 2 करोड़ रोजगार का वादा किया गया। फ्री शिक्षा-स्वास्थ्य का वादा हो या किसान का कर्ज माफ करके उसकी फसलो का उचित दाम देने के सपने दिखाये गये।

वादे तो हजारों किये गए लेकिन जैसे ही सत्ता की कुर्सी आयी वैसे ही शिकारियों ने रंग उतार दिया, शिकारी ने दांत-पंजे बाहर निकाल लिए और फिर वो ही लूट की कहानी जो पिछले लम्बे समय से चली आ रही थी 5 साल तक दोहराही गई। अब वाले सत्तासीन सरदार ने तो दमन और नोटँकी की अति ही कर दी। स्वछता अभियान, मन की बात, सफाई कर्मचारियों के पांव धोने से लेकर चौकीदारों से बात ये सब नोटँकी का ही हिस्सा थी। 

लूट के खिलाफ जिसने भी आवाज निकालेने की कोशिश की उसकी आवाज बन्द कर दी गयी, जिसने हाथ उठाने की जरूरत की उसके हाथों में बेड़िया पहना कर जेल में डाल दिया गया। सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, गौतम नवलखा, प्रो. जीएन साईंबाबा, अनिर्बाण, शेहला रसीद कितने ही जनता के क्रांतिकारी लेखको, बुद्विजीवियों, कलाकारों को जेल में डाल दिया गया। गौरी लंकेश की हत्या हो या रोहित वेमुला की, हत्याओं की लिस्ट भी बहुत लंबी है। 

पत्रकार रवीश कुमार, पूण्य प्रसून वाजपेयी, अभिसार शर्मा या कोई दूसरा जिसने भी लोकतंत्र को बचाने की कोशिश की उसका दमन सबके सामने है। लोकतंत्र मर रहा है। क्योकि लोकतंत्र पर पूंजीपतियों का कब्जा है। लोकतंत्र का आधार चुनाव इतना महंगा हो चूका है कि इसकी कल्पना करना भी बैमानी है कि चुनाव के सहारे मेहनतकश आवाम संसद में जाकर मेहनतकश के पक्ष में नीतियां बना सके। इस सड़े हुए लोकतंत्र में प्रतिनिधि चुनना और सोचना की ये हमारे लिए काम करेंगे। ये बिल्ली को दूध की रखवाली बैठाना है।

देश का किसान नंगा होकर प्रदर्शन कर रहा था और हमारा सरदार जापान के सरदार के साथ उन नंगे किसानों को ओर ज्यादा कैसे लूटा जाये ये समझौता कर रहा था। लोकतंत्र को मार कर प्रधानमंत्री मोदी तानशाही को स्थापित करने की तरफ बढ़ रहे है।

ये लूट और दमन का खेल बरसो से चला आ रहा है और भविष्य में भी लंबे समय तक चलने वाला है क्योंकि ऐसी ताकत अभी कमजोर है जो इन शिकारियों की गर्दन मरोङ कर इनके जबड़े में अपना फौलादी हाथ डाल के इनके शिकारी वाले दांत जनता के सामने तोड़ सके व साथ में जनता को इनके शिकार बनने से बचाने का विश्वास दिला सके। ऐसी ताकत अभी कमजोर है वो अभी भ्रूण की अवस्था में है, लेकिन है जरूर। उसी भ्रूण से ये शिकारी कंपकपाये हुए है। उसी भ्रूण से भविष्य की आशा है कि वो सुबह तो कभी आएगी। वो सुबह जरूर आएगी।

जिस सुबह का सपना शहीद-ऐ-आजम भगत सिंह और उसके साथियों ने देखा था, जिस सुबह का सपना हमारे अनगिनत क्रांतिकारियों ने अपने अनमोल जीवन की सहादत देते हुए, जेलो में असहनीय यातनाये सहते हुए देखा था। वो सुबह…….जिस सुबह में प्राकृतिक संसाधनों जल-जंगल-जमीन बहुमत लोगो की होगी। जंहा न कोई अछूत, न कोई गरीब होगा। किसी अख़लाक़, पहलू खान, जुनैद, रकबर को इसलिए नही मारा जायेगा क्योकि वो मुस्लिम है, किसी मजदूर की बस्ती इसलिए नही जलाई जायेगी क्योकि वो दलित है। किसी इंसान को इसलिए आत्महत्या नही करनी पड़ेगी क्योकि वो किसान है न ही उस नई सुबह में किसी महिला को पेट भरने के लिए अपने आपको जानवरो के सामने परसोने की जरूरत नही होगी। 

उस सुबह में सामाजिक, राजनितिक और आर्थिक असमानता की बेड़ियां टूट कर समानता आएगी। उस सुबह के लिए और उस भ्रूण को जिन्दा रखने व् मंजिल तक पहुंचाने के लिए आज भी देश व पुरे विश्व में इंक़लाबी ताकते लड़ रही है। वो सभी दमन सहते हुए आगे बढ़ रही है। रोजाना सहादत दे रही है। आइये इस लड़ाई का हिस्सा बनिये।

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