कोविड से ज्यादा अपनी आलोचना दबाने पर ध्यान दे रहे मोदी: द लैंसेट, SC ने कमेटी बनाकर उठाए क्षमता पर सवाल

Written by Navnish Kumar | Published on: May 9, 2021
विदेशी अखबारों के बाद चिकित्सा जगत के दुनिया के मशहूर मेडिकल जर्नल ''द लैंसेट'' ने कोरोना से लड़ने को लेकर पीएम मोदी को फेल करार दिया है। अपने संपादकीय में पीएम मोदी की तीखी आलोचना करते हुए ''द लैंसेट'' ने लिखा है कि उनका (पीएम का) ध्यान ट्विटर पर अपनी आलोचना को दबाने पर ज़्यादा और कोविड-19 महामारी पर काबू पाने पर कम रहा है। जर्नल ने लिखा है कि ऐसे मुश्किल समय में मोदी की अपनी आलोचना और खुली चर्चा को दबाने की कोशिश माफ़ी के काबिल नहीं है। उधर, देश में ऑक्सीजन व दवाइयों आदि वितरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक 12 सदस्यीय कमेटी बनाकर मोदी सरकार की क्षमताओं पर परोक्ष तौर से सवालिया निशान लगाने का ही काम किया है। 



एनडीटीवी और बीबीसी के अनुसार, लैंसेट के मुताबिक़ कोरोना के ख़िलाफ शुरुआती सफलता के बाद से सरकार की टास्क फ़ोर्स अप्रैल तक एक बार भी नहीं नहीं मिली। जिसका नतीजा हमारे सामने है। अब महामारी बढ़ रही है और भारत को नए सिरे से क़दम उठाने होंगे। पत्रिका ने कहा कि संकट के दौरान आलोचना और खुली चर्चा के प्रयास में (पीएम) मोदी का कामकाज माफ करने योग्य नहीं है। लैंसेट के अनुसार, अभी भी कोरोना संकट पर काबू पाने में भारत की सफलता, पीएम मोदी व उनके प्रशासन के द्वारा अपनी गलतियों को स्वीकारने पर ही निर्भर करेगी।

पत्रिका के मुताबिक़ वैज्ञानिक आधार पर पब्लिक हेल्थ से जुड़े क़दम उठाने होंगे। लैंसेट ने सुझाव दिया है कि जब तब टीकाकरण पूरी तेज़ी से नहीं शुरू होता, संक्रमण को रोकने के लिए हर ज़रूरी क़दम उठाने चाहिए। जैसे जैसे मामले बढ़ रहे हैं, सरकार को समय पर सटीक डेटा उपलब्ध कराना चाहिए, हर 15 दिन पर लोगों को बताना चाहिए कि क्या हो रहा है और इस महामारी को कम करने के लिए क्या क़दम उठाने चाहिए। इसमें देशव्यापी लॉकडाउन की संभावना पर भी बात होनी चाहिए। कहा- लोकल स्तर पर सरकारों ने संक्रमण रोकने के लिए क़दम उठाने शुरू कर दिए हैं, लेकिन ये सुनिश्चित करना कि लोग मास्क पहनें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें, भीड़ इकट्ठा न हो, क्वारंटीन और टेस्टिंग हो, इन सब में केंद्र सरकार की अहम भूमिका होती है।

जर्नल में कहा गया है कि टीकाकरण अभियान में तेज़ी लाने की ज़रूरत है। अभी सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं वैक्सीन की सप्लाई को बढ़ाना और इसके लिए डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर बनाना जो कि ग़रीब और ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को तक पहुंचे क्योंकि ये देश की 65 प्रतिशत आबादी है और इन तक स्वास्थ्य सेवाएं नहीं पहुंचतीं। सरकार को लोकल और प्राइमरी स्वास्थ्य केंद्रों के साथ मिलकर काम करना चाहिए।

जर्नल में भारत के अस्पतालों की मौजूदा स्थिति और स्वास्थ्य मंत्री के उस बयान का भी ज़िक्र किया गया है जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत महामारी के अंत की ओर जा रहा है। जर्नल के मुताबिक, कुछ महीनों तक मामलों में कमी आने के बाद सरकार ने दिखाने की कोशिश की कि भारत ने कोविड को हरा दिया है। सरकार ने दूसरी लहर के ख़तरों और नए स्ट्रेन से जुड़ी चेतावनियों को नज़रअंदाज़ किया है।

संपादकीय के अनुसार, चेतावनी के बावजूद सरकार ने धार्मिक आयोजन होने दिए जिनमें लाखों लोग जुटे, इसके अलावा चुनावी रैलियां भी हुईं।

जर्नल में सरकार के टीकाकरण अभियान की भी आलोचना की गई। लैंसेट ने लिखा, केंद्र के स्तर पर टीकाकरण अभियान भी फेल हो गया। केंद्र सरकार ने टीकाकरण को बढ़ाने और 18 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को टीका देने के बारे में राज्यों से सलाह नहीं ली और अचानक पॉलिसी बदल दी जिससे सप्लाई में कमी हुई और अव्यवस्था फैली।

जर्नल के मुताबिक़ महामारी से लड़ने के लिए केरल और ओडिशा जैसे राज्य बेहतर तैयार थे। वो ज़्यादा ऑक्सीजन का उत्पादन कर दूसरे राज्यों की भी मदद कर रहे हैं। वहीं महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश कोरोना की दूसरी लहर के लिए तैयार नहीं थे और इन्हें ऑक्सीजन, अस्पतालों में बेड और दूसरी ज़रूरी मेडिकल सुविधाओं यहां तक की दाह-संस्कार के लिए जगह की कमी से जूझना पड़ रहा है।

लैंसेट ने यह भी लिखा है कि कुछ राज्यों ने बेड और ऑक्सीजन की डिमांड कर रहे लोगों के ख़िलाफ़ देश की सुरक्षा से जुड़े कानूनों का इस्तेमाल किया। अब लैंसेट की इसी रिपोर्ट का हवाला देकर विपक्ष ने सरकार पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। कांग्रेस नेता और पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने ट्विटर पर लिखा, लैंसेट के संपादकीय के बाद, अगर सरकार में शर्म है, तो उन्हें देश से माफ़ी मांगनी चाहिए। चिदंबरम ने स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के इस्तीफ़े की भी मांग की। वहीं, कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने लिखा, सरकार में ढिंढोरा पीटने वाले पहले लैंसेट की रिपोर्ट के संपादकीय का इस्तेमाल अपनी तारीफ़ के कर चुके हैं।

उधर, सुप्रीम कोर्ट ने भी टास्क फोर्स बनाकर सरकार की क्षमता पर परोक्ष सवाल उठाया है। जी हां, कोरोना की दूसरी लहर में देश भर में ऑक्सीजन और दवाइयों की आपूर्ति को लेकर मचे हाहाकार के बीच सुप्रीम कोर्ट ने 12 सदस्यों की एक टास्क फोर्स बनाई है। सर्वोच्च अदालत की बनाई यह टास्क फोर्स दवा और ऑक्सीजन की पूरे देश में आपूर्ति में तालमेल बनाएगी और पूरी प्रक्रिया की निगरानी भी करेगी। इसके अलावा यह टास्क फोर्स आपूर्ति को बेहतर बनाने के सुझाव भी देगी। सभी राज्यों को कैसे उनकी जरूरत के मुताबिक ऑक्सीजन मिले उसका फार्मूला भी इस टास्क फोर्स को तैयार करना है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने शनिवार को इस मामले में सुनवाई करते टास्क फोर्स बनाने का आदेश दिया। इस टास्क फोर्स में जाने-माने डॉक्टरों और चिकित्सा सेवा से जुड़े 10 लोगों के शामिल किया गया है। उनके अलावा दो लोग भारत सरकार के अधिकारी होंगे। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव इसके पदेन सदस्य होंगे और देश के कैबिनेट सचिव को इसका संयोजक बनाया गया है। खास है कि कोरोना की दूसरी लहर में मरीजों की संख्या अचानक तेजी से बढ़ने से देश भर में दवाओं और ऑक्सीजन की कमी हो गई है और कई नामी अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से मरीजों की मौत हुई। भारत में बढ़ते संकट को देखते हुए दुनिया भर के देशों से मेडिकल सामग्री की मदद भारत आ रही है। इन सबके बीच तालमेल बनाने के लिए अब सुप्रीम कोर्ट ने पहल की है और विशेषज्ञों को जिम्मेदारी दी है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने जाने माने चिकित्सकों और स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों को इस टास्क फोर्स में रखा है। नारायणा हेल्थकेयर के डॉक्टर देवी प्रसाद शेट्टी, गंगाराम अस्पताल की प्रबंध समिति के अध्यक्ष डॉ. देवेंद्र सिंह राणा, मेदांता अस्पताल के प्रमुख डॉ. नरेश त्रेहन, क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर की डॉ. गगनदीपर कांग और डॉ. जेवी पीटर, फोर्टिस अस्पताल मुंबई के डॉ. राहुल पंडित, गंगाराम अस्पताल के डॉ, सौमित्र रावत, इंस्टीच्यूट ऑफ लिवर एंड बाइलियरी साइंस के डॉ. शिव कुमार सरीन, जाने-माने चेस्ट फिजिशियन डॉ. जरीर एफ उदवाडिया और वेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइसेंज के पूर्व वाइस चांसलर डॉक्टर भवतोष विश्वास को शामिल किया गया है।

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