ठाणे के शाहपुर में एक शौचालय में खून के धब्बे पाए जाने के बाद स्कूल स्टाफ द्वारा 10 साल तक की लड़कियों के कथित तौर पर कपड़े उतरवाए गए और उनकी अपमानजनक तरीके से जांच की गई। इस घटना के सामने आने के बाद गिरफ्तारियां हुईं, विरोध प्रदर्शन हुए और POCSO और भारतीय न्याय संहिता के तहत मामला दर्ज किया गया।

बाल अधिकारों के घोर उल्लंघन के मामले में ठाणे जिले के शाहपुर स्थित एक निजी स्कूल की प्रिंसिपल और एक अटेंडेंट को बुधवार को गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर कक्षा 5 से 10 तक की छात्राओं के एक समूह को कपड़े उतारने के लिए मजबूर करने का आरोप है ताकि स्कूल स्टाफ यह जांच सके कि उन्हें मासिक धर्म तो नहीं हो रहा है। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, चार शिक्षिकाओं और दो ट्रस्टियों सहित छह अन्य लोगों पर भी यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम और भारतीय न्याय संहिता (BNS) की कठोर धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।
इस उत्पीड़न की वजह क्या थी?
यह घटना मंगलवार, 8 जुलाई को तब हुई जब स्कूल स्टाफ को वॉशरूम में खून के धब्बे नजर आए। स्थिति को संवेदनशीलता और गोपनीयता के साथ संभालने के बजाय, स्कूल की प्रिंसिपल ने एक खुले तौर पर और अपमानजनक तरीके से "जांच" शुरू कर दी। द इंडियन एकस्प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस ने बताया कि छात्राओं को स्कूल के कन्वेंशन हॉल में इकट्ठा किया गया, जहां प्रोजेक्टर के जरिए खून के धब्बों की तस्वीरें दिखाकर उनसे पूछा गया कि क्या वे मासिक धर्म (पीरियड) में हैं।
“मासिक धर्म (पीरियड) से कौन है?” - अंगूठे के निशान और कपड़े उतरवाकर तलाशी
जिन लड़कियों ने बताया कि वे मासिक धर्म से गुजर रही हैं तो उनसे अंगूठे के निशान लिए गए। एनडीटीवी के अनुसार, जिन लड़कियों ने बताया कि वे मासिक धर्म से गुजर रही हैं, उन्हें एक-एक करके एक महिला अटेंडेंट शौचालय ले गई और कथित तौर पर उन्हें अपने कपड़े उतारने और शारीरिक जांच के लिए मजबूर किया ताकि यह पता चल सके कि वे सच बोल रही हैं या नहीं। सातवीं कक्षा की एक छात्रा के माता-पिता ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा, “मेरी बेटी कांपती हुई घर आई। उसने मुझे बताया कि उसे शौचालय में दूसरी छात्राओं के सामने कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया गया। यह अनुशासन (डिसिप्लिन) नहीं, बल्कि मानसिक उत्पीड़न है।”
पुलिस कार्रवाई और कानूनी आरोप
ठाणे (ग्रामीण) के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राहुल जालते के अनुसार बुधवार को अभिभावकों ने स्कूल के बाहर विरोध प्रदर्शन किया और इस घटना में शामिल स्कूल स्टाफ के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की। पुलिस ने तुरंत आठ लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की, जिनमें प्रिंसिपल, चार शिक्षक, महिला अटेंडेंट और दो ट्रस्टी शामिल हैं।
आरोपियों पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 74 (महिला की इज्जत को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से हमला या आपराधिक बल का इस्तेमाल) और धारा 76 (महिला के कपड़े उतारने के उद्देश्य से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के साथ साथ POCSO एक्ट की संबंधित धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं। फ्री प्रेस जर्नल ने इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया।
बुधवार शाम को प्रिंसिपल और अटेंडेंट को गिरफ्तार कर लिया गया और स्कूल प्रबंधन ने प्रिंसिपल को उनके पद से हटा दिया, अधिकारियों ने इसकी पुष्टि की। मुंबई मिरर की रिपोर्ट के अनुसार, एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि दोनों महिलाओं को गुरुवार को अदालत में पेश किया जाएगा।
छात्राएं मानसिक रूप से आहत
एक बेहद चौंकाने वाली घटना तब सामने आई जब एक छात्रा, जिसने मासिक धर्म होने से इनकार किया था, उस पर प्रिंसिपल ने झूठ बोलने का आरोप लगाया। कथित रूप से उससे पूछा गया, “अगर तुम मासिक धर्म में नहीं हो तो सैनिटरी पैड क्यों लगा रही हो?” और फिर उस पर दबाव डालकर अंगूठा का निशान देने के लिए मजबूर किया गया।
कई लड़कियां रोती हुई घर लौटीं। वह मानसिक रूप से परेशान थीं। उन्होंने अपने परिवारों को इस घटना के बारे में बताया। अभिभावकों और स्थानीय बाल अधिकार समूहों ने इस घटना को मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न करार दिया है और महाराष्ट्र राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (MSCPCR) से इसके संबंध में और कड़ी कानूनी कार्रवाई और जांच की मांग की है।
ठाणे ग्रामीण पुलिस ने बताया है कि वे इस समय छात्राओं और गवाहों के बयान दर्ज कर रहे हैं। एक जांच अधिकारी ने इंडिया टुडे से बातचीत में कहा, “हम अन्य बच्चों और स्कूल स्टाफ के बयान ले रहे हैं और सभी इलेक्ट्रॉनिक तथा फोरेंसिक साक्ष्य इकट्ठा कर रहे हैं।”
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इस उत्पीड़न की वजह क्या थी?
यह घटना मंगलवार, 8 जुलाई को तब हुई जब स्कूल स्टाफ को वॉशरूम में खून के धब्बे नजर आए। स्थिति को संवेदनशीलता और गोपनीयता के साथ संभालने के बजाय, स्कूल की प्रिंसिपल ने एक खुले तौर पर और अपमानजनक तरीके से "जांच" शुरू कर दी। द इंडियन एकस्प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस ने बताया कि छात्राओं को स्कूल के कन्वेंशन हॉल में इकट्ठा किया गया, जहां प्रोजेक्टर के जरिए खून के धब्बों की तस्वीरें दिखाकर उनसे पूछा गया कि क्या वे मासिक धर्म (पीरियड) में हैं।
“मासिक धर्म (पीरियड) से कौन है?” - अंगूठे के निशान और कपड़े उतरवाकर तलाशी
जिन लड़कियों ने बताया कि वे मासिक धर्म से गुजर रही हैं तो उनसे अंगूठे के निशान लिए गए। एनडीटीवी के अनुसार, जिन लड़कियों ने बताया कि वे मासिक धर्म से गुजर रही हैं, उन्हें एक-एक करके एक महिला अटेंडेंट शौचालय ले गई और कथित तौर पर उन्हें अपने कपड़े उतारने और शारीरिक जांच के लिए मजबूर किया ताकि यह पता चल सके कि वे सच बोल रही हैं या नहीं। सातवीं कक्षा की एक छात्रा के माता-पिता ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा, “मेरी बेटी कांपती हुई घर आई। उसने मुझे बताया कि उसे शौचालय में दूसरी छात्राओं के सामने कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया गया। यह अनुशासन (डिसिप्लिन) नहीं, बल्कि मानसिक उत्पीड़न है।”
पुलिस कार्रवाई और कानूनी आरोप
ठाणे (ग्रामीण) के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राहुल जालते के अनुसार बुधवार को अभिभावकों ने स्कूल के बाहर विरोध प्रदर्शन किया और इस घटना में शामिल स्कूल स्टाफ के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की। पुलिस ने तुरंत आठ लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की, जिनमें प्रिंसिपल, चार शिक्षक, महिला अटेंडेंट और दो ट्रस्टी शामिल हैं।
आरोपियों पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 74 (महिला की इज्जत को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से हमला या आपराधिक बल का इस्तेमाल) और धारा 76 (महिला के कपड़े उतारने के उद्देश्य से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के साथ साथ POCSO एक्ट की संबंधित धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं। फ्री प्रेस जर्नल ने इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया।
बुधवार शाम को प्रिंसिपल और अटेंडेंट को गिरफ्तार कर लिया गया और स्कूल प्रबंधन ने प्रिंसिपल को उनके पद से हटा दिया, अधिकारियों ने इसकी पुष्टि की। मुंबई मिरर की रिपोर्ट के अनुसार, एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि दोनों महिलाओं को गुरुवार को अदालत में पेश किया जाएगा।
छात्राएं मानसिक रूप से आहत
एक बेहद चौंकाने वाली घटना तब सामने आई जब एक छात्रा, जिसने मासिक धर्म होने से इनकार किया था, उस पर प्रिंसिपल ने झूठ बोलने का आरोप लगाया। कथित रूप से उससे पूछा गया, “अगर तुम मासिक धर्म में नहीं हो तो सैनिटरी पैड क्यों लगा रही हो?” और फिर उस पर दबाव डालकर अंगूठा का निशान देने के लिए मजबूर किया गया।
कई लड़कियां रोती हुई घर लौटीं। वह मानसिक रूप से परेशान थीं। उन्होंने अपने परिवारों को इस घटना के बारे में बताया। अभिभावकों और स्थानीय बाल अधिकार समूहों ने इस घटना को मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न करार दिया है और महाराष्ट्र राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (MSCPCR) से इसके संबंध में और कड़ी कानूनी कार्रवाई और जांच की मांग की है।
ठाणे ग्रामीण पुलिस ने बताया है कि वे इस समय छात्राओं और गवाहों के बयान दर्ज कर रहे हैं। एक जांच अधिकारी ने इंडिया टुडे से बातचीत में कहा, “हम अन्य बच्चों और स्कूल स्टाफ के बयान ले रहे हैं और सभी इलेक्ट्रॉनिक तथा फोरेंसिक साक्ष्य इकट्ठा कर रहे हैं।”
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