खुशखबरी: आदिवासियों को 11.5 लाख एकड़ ‘पोडू’ भूमि पर वनाधिकार पट्टे देगी तेलंगाना की KCR सरकार

Written by Navnish Kumar | Published on: February 11, 2023
"मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (KCR) ने शुक्रवार को विधानसभा को बताया कि राज्य सरकार इस महीने के अंतिम हफ्ते से वन अधिकारों की मान्यता (आरओएफआर) कानून के तहत 'पोडू' भूमि अधिकार पट्टों का वितरण करेगी। यह कहते हुए कि वे अब आगे से खेती के लिए और जंगल नहीं काटेंगे, इसके लिए लाभार्थी परिवारों से अंडरटेकिंग ली जाएगी।"



"केसीआर के अनुसार, कुल लगभग 10.5 लाख एकड़ से 11.5 लाख एकड़ वन भूमि 'पोडू' के तहत दी जाएगी, जिससे 66 लाख एकड़ वन भूमि भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित रहेगी।"

सीएम केसीआर ने कहा कि चालू वर्ष के दौरान पोडू भूमि के वितरण के साथ यह मुद्दा हमेशा के लिए बंद हो जाएगा और सरकार वनों की रक्षा के लिए दृढ़ता से काम करेगी। उन्होंने कहा कि जंगलों की सीमा तय करने के बाद, राज्य सरकार सशस्त्र जवानों की पेट्रोलिंग की व्यवस्था करेगी। सभी पट्टा लाभार्थियों को स्पष्ट किया जाएगा कि उन्हें 'पोडू' खेती के लिए दिए गए पट्टे (अधिकार) रद्द कर दिए जाएंगे और उनके खिलाफ आवश्यक कानूनी कार्रवाई की जाएगी, यदि वे इसके बाद भी वनों की कटाई और विनाश करते हैं। संबंधित सरपंच और एमपीटीसी, आदिवासी समुदाय के नेताओं और गाँव/क्षेत्र के सर्वदलीय नेताओं से भी पट्टा देने से पहले यह आश्वासन लिया जाएगा कि वे 'पोडू' भूमि के और विस्तार की मांग नहीं करेंगे। अगर कोई गांव इस तरह का वचन देने के लिए आगे आने में विफल रहता है, तो उन्हें 'पोडू' पट्टा नहीं दिया जाएगा। इस बार दिए गए पट्टे इस तरह की आखिरी कवायद होगी।

द हिंदू के अनुसार, मुख्यमंत्री ने पट्टाधारकों को रायथु बंधु और रायथु बीमा योजनाओं का लाभ देने का भी ऐलान किया। उन्होंने राज्य विधान सभा को बताया कि उनकी सरकार इन जमीनों को जोतने वाले आदिवासियों को न सिर्फ ‘पट्टा’ देगी बल्कि बिजली की आपूर्ति भी करेगी और किसानों के लिए निवेश सहायता योजना और रायथु बंधु के लाभों का विस्तार करेगी। चंद्रशेखर राव ने बताया कि अगर आदिवासी परिवारों के पास इस बार 'पोडू' पट्टा बांटने के बाद भी जमीन नहीं है, तो उन्हें दलित बंधु की तर्ज पर गिरिजन बंधु योजना के तहत मदद की जाएगी।

'पोडू' भूमि के मुद्दे पर बयान देते हुए, जिसे पहले प्रश्नकाल के हिस्से के रूप में भी उठाया गया था, मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार द्वारा हाल ही में चलाए गए अभियान में 'पोडू' भूमि के पट्टे के लिए 4 लाख से अधिक आवेदन प्राप्त हुए थे और उनकी जांच और पुनरीक्षण गांव, मंडल, मंडल स्तर और जिला स्तर की समितियों में किया गया था। कुल लगभग 10.5 लाख एकड़ से 11.5 लाख एकड़ वन भूमि 'पोडू' के तहत दी जाएगी, जिससे 66 लाख एकड़ वन भूमि भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित रहेगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद कोई पोडू भूमि नहीं रहेगी और अगर इसका लाभ पाने वालों ने वन भूमि पर कब्जा करने की कोशिश की तो उनके पट्टे रद्द कर दिए जाएंगे।

मुख्यमंत्री ने कहा कि जिन लोगों को पट्टा दिया जा रहा है उनसे एक लिखित वचन लिया जाएगा कि वे वन भूमि पर आगे कोई दावा नहीं करेंगे। वचनपत्र पर ग्राम समितियों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों के भी हस्ताक्षर लिए जाएंगे। लाभ पाने वाले लोगों को वन रक्षक के तौर पर काम करने के लिए भी कहा जाएगा और उनसे इस संबंध में लिखित तौर पर वायदा लिया जाएगा।

उन्होंने कहा, “इस मुद्दे का अंत होना चाहिए। सरकार एक गज वन भूमि का भी अतिक्रमण नहीं होने देगी क्योंकि अगर हम हरित आवरण खो देते हैं तो पूरे समाज को नुकसान होगा।” यह कहते हुए कि 'पोडू' भूमि के मुद्दे को अतीत में ठीक से नहीं संभाला गया था, उन्होंने कहा कि आगे की गिरावट को रोककर इस मुद्दे को समाप्त करने का समय आ गया है। नरसापुर जंगल, जो शहर के पास है, वन क्षरण का सबसे अच्छा उदाहरण है क्योंकि लोग जानते थे कि इसकी प्राकृतिक सुंदरता के लिए वहां फिल्म की शूटिंग कैसे होती थी। कुछ तत्वों द्वारा छत्तीसगढ़ से गुट्टी कोया लाने और रातों-रात जंगलों को काटने के उदाहरण भी सामने आए हैं।

वहीं प्रश्नकाल के दौरान एक प्रश्न का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ने गुट्टी कोया जनजाति का जिक्र किया, जिसके सदस्य कथित तौर पर पिछले साल नवंबर में भद्राद्री कोठागुडेम जिले में एक वन अधिकारी की हत्या में शामिल थे। केसीआर ने कहा, “गुट्टी कोया हमारे राज्य से नहीं हैं। वे छत्तीसगढ़ से आए थे। अगर उन्हें नहीं रोका गया तो वे जंगलों को नष्ट कर देंगे।” उन्होंने कहा कि पुलिस और वन कर्मियों को आदिवासियों पर हमला नहीं करना चाहिए। संयम बरतना चाहिए। साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि अगर कुछ लोग कानून हाथ में लेकर पुलिस और जंगल पर हमला करते हैं तो सरकार चुप नहीं बैठेगी।

उन्होंने सदन के ध्यान में लाया कि ऐसे भी उदाहरण हैं जहां कई ऊंची जाति के पुरुषों ने आदिवासी लड़कियों से शादी की और आदिवासियों की मदद से 30 से 40 एकड़ तक की जमीन पर कब्जा कर लिया। उन्होंने बताया कि कैसे ग्राम पंचायत स्तर से कठोर उपायों के साथ वनों को फिर से जीवंत करने और हरित क्षेत्र में सुधार करने के लिए हरिता हरम के हस्तक्षेप ने 2014-15 से तेलंगाना में हरित क्षेत्र में 7.8% की वृद्धि में मदद की थी।

क्या है पोडू भूमि का मामला

पोडू खेती आदिवासियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली खेती की एक पारंपरिक प्रणाली है, जिसके तहत फसल लगाने के लिए हर साल जंगल के अलग-अलग हिस्सों को जलाकर साफ किया जाता है। वे एक मौसम में भूमि के एक टुकड़े पर फ़सल उगाते हैं और अगले मौसम में अलग-अलग स्थान पर चले जाते हैं। 

लंबे समय से चले आ रहे इस विवाद के कारण हाल के वर्षों में राज्य में कई जगहों पर आदिवासियों और वन कर्मचारियों के बीच झड़पें हुईं। इस मामले पर कहा गया कि कुछ राजनीतिक दलों ने राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए इस मुद्दे को जीवित रखा लेकिन केसीआर ने कहा कि उनकी सरकार इसे समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। अब लंबे समय से लंबित मुद्दे को हमेशा के लिए निपटाने की आवश्यकता को महसूस करते हुए, राज्य सरकार ने 2021 में पोडू भूमि का दावा करने वाले पात्र लाभार्थियों से आवेदन प्राप्त करने के लिए कवायद शुरू करने का फैसला किया। पोडू भूमि की पहचान पिछले साल किए गए एक राज्यव्यापी सर्वेक्षण के दौरान की गई थी।

अधिकारियों को आदिवासियों और गैर-आदिवासियों दोनों से 4 लाख से अधिक दावे प्राप्त हुए। आदिवासियों और अन्य वनवासियों का दावा है कि पोडू भूमि पर वन विभाग द्वारा वृक्षारोपण अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 (आरओएफआर अधिनियम) के तहत गारंटीकृत उनके अधिकारों का उल्लंघन करता है। ROFR अधिनियम के तहत पट्टा जारी करने के लिए सरकार को 2,845 ग्राम पंचायतों में 4.14 लाख दावे प्राप्त हुए। आदिवासी कल्याण मंत्री सत्यवती राठौर के अनुसार, 68 प्रतिशत आवेदक आदिवासी हैं और बाकी 32 प्रतिशत गैर-आदिवासी हैं। आदिवासी और गैर-आदिवासी किसानों द्वारा 12.49 लाख एकड़ वन भूमि के लिए दावा किया गया था।

हालांकि पहले मुख्यमंत्री ने सुझाव दिया था कि जंगल के भीतर पोडू की खेती में शामिल आदिवासियों को खेती के लिए पास में एक वैकल्पिक सरकारी भूमि दी जानी चाहिए। और अगर कोई सरकारी भूमि उपलब्ध नहीं है तो उन्हें वनभूमि की बाहरी सीमा पर भूमि उपलब्ध कराई जाए।

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