झारखंड सरकार ने दावा किया है कि सरकार द्वारा तमिलनाडु भेजी गयी जांच टीम ने पाया है कि- तमिलनाडु में झारखंड के सभी मजदूर सुरक्षित हैं।
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : Time News
ताज़ा घटनाक्रम में लगातार सामने आ रही जानकारियों के अनुसार तमिलनाडु में उत्तर भारतीय मजदूरों पर अत्याचार किये जाने सम्बन्धी मामले को लेकर फैलाया गया भ्रम अब लगातार साफ़ होता जा रहा है। यह भी खुलकर आ रहा है कि किस प्रकार से एक राजनीतिक दल विशेष व उसके नेताओं ने सोशल मीडिया और मुख्यधारा की मीडिया का सुनियोजित इस्तेमाल कर “नफ़रत-अविश्वास और विभाजन की राजनीति” की है। “फ़ेक ख़बरों” का सुनियोजित महाजाल फैलाकर उत्तर भारत के व्यापक नागरिक समाज तथा विशेषकर बाहर जाकर रोजी-रोटी कमाने वाले गरीब-मेहनतकश वर्ग के लोगों को आतंकित कर आपस में लड़वाने का सांप्रदायिक कुचक्र रचा। विडंबना है कि “लॉकडाउन आपदा” के बाद एक बार फिर से सत्ता की साजिशों का मुहरा बने बिचारे “प्रवासी ( अपने राज्य से बाहर रोज़ी-रोटी कमाने वाले) ग़रीब मजदूर”।
सत्ता प्रायोजित उक्त कुचक्र के खिलाफ अखिल भारतीय ग्रामीण खेत मज़दूर सभा ने 9 से 15 मार्च तक ‘प्रवासी मज़दूर एकजुटता सप्ताह’ चलाने की घोषणा की है। संगठन के राष्ट्रीय महासचिव के अनुसार पुरे देश में गावों से शहरों तक चलाये जानेवाले इस जन अभियान के माध्यम से तमिलनाडु में उत्तर भारतीय मज़दूरों पर हमला का “फ़ेक वितंडा” खड़ा करने वाले भाजपा-आरएसएस का भंडाफोड़ किया जाएगा। इनके “झूठ, अफ़वाह व मजदूर विरोधी और अडानी-अम्बानी परस्ती का विरोध किया जाएगा। साथ ही केंद्र की सरकार से दूसरे राज्यों में रोज़ी-रोटी कमाने वाले प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा, सम्मान और जीने लायक मज़दूरी की गारंटी के लिए केन्द्रीय कानून बनाने की मांग को लेकर ये ‘प्रवासी मज़दूर एकता सप्ताह’ चलाया जाएगा।
इधर, सोशल मीडिया और मुख्यधारा मीडिया के “भीतरी पन्नों” (फ़ेकहमला की ख़बरें फ्रंट पेज़) में प्रकाशित छोटी सी खबर के अनुसार झारखंड सरकार ने दावा किया है कि सरकार द्वारा तमिलनाडु भेजी गयी जांच टीम ने पाया है कि- तमिलनाडु में झारखंड के सभी मजदूर सुरक्षित हैं। मिडिया से भी अपील है कि कोई भी खबर सत्यापित कर ही प्रकाशित करें।
जांच टीम द्वारा जारी रिपोर्ट को जारी करते हुए झारखंड सरकार ने प्रदेश के निवासियों को आश्वस्त करते हुए कहा है कि उनकी सरकार सभी प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। लोगों से अपील की है कि वह सोशल मिडिया से फैलाई जा रही अफ़वाहों पर ध्यान ना दें। तमिलनाडु गयी जांच टीम ने चेन्नई, इरोड, त्रिपुर व कोयंबटूर जिलों का दौरा कर सत्यापन कर सभी अफ़वाहों को निराधार पाया।
भाकपा माले झारखंड सचिव ने प्रदेश भाजपा के विधायक दल नेता बाबूलाल मरांडी द्वारा 5 मार्च को अपने ट्वीटर से “फ़ेक खबर” वायरल करने का आरोप लगाते कहा है कि- हद दर्ज़े के अफवाह्बाज़ हैं। झारखंड के मजदूरों पर हमला हुआ है, कब और कहाँ ये पता भी नहीं लगाए और शोर मचा दिए।
इस काण्ड में भाजपा से ये सवाल भी किया है कि- विपक्षी राज्यों को आपस में लड़वाने का खेल किसलिए?, प्रवासी मजदूरों को मुहरा बनाकर नफ़रत की राजनीति किसलिए?
बिहार में भी लगभग ऐसा ही मामला देखा जा रहा है। जहां हमले की “फ़ेक ख़बर” पर त्वरित संज्ञान लेते हुए प्रदेश की सरकार ने उच्च अधिकारियों की चार सदस्यीय जांच टीम फ़ौरन तमिलनाडु रवाना कर दिया था। जिसने वहां के सभी प्रभावित इलाकों का दौरा कर बिहारी मजदूरों से मिलकर पूरी वस्तुस्थिति की जानकारी ली। जिससे यही तथ्य सामने आया कि- हिंदी बोलनेवाले मजदूरों पार कथित हमले की बात सरासर अफ़वाह है। सोशल मिडिया पर वायरल हुए सभी वीडियो सीधे तौर पर “फ़ेक” हैं और अफवाहों को संपुष्ट करनेवाले मजदूरों के इंटरव्यू जारी किये गए हैं।
कहने को तो सुनियोजित काण्ड के कुछ दोषियों को चिन्हित कर पुलिस ने उनपर केस कर दिया है, जिनमें से एक शक्श भाजपा का स्थानीय प्रवक्ता भी है। एक अन्य के बारे में पुलिस का कहना है कि चंद दिनों पूर्व छपरा में हुए एक ह्त्या-काण्ड को लेकर सोशल मिडिया पर “फ़ेक न्यूज़” जारी करने का वह आरोपी है। लेकिन असल सवाल तो यही उठ रहें हैं कि- इतना संगठित अफ़वाहबाज़ी कौन कर रहा है और उसकी असली मंशा क्या है?
ताज़ा ख़बरों में बिहार के उपमुख्य मंत्री तेजस्वी ने ट्वीट जारी कर कहा है कि- आखिरकार भाजपा तमिलनाडु इकाई ने मान लिया है कि बिहार के बीजेपी नेताओं द्वारा तामिलनाडू में बिहारियों पर जो हमले की खबर फ़ेक, है। झूठी, भ्रामक ख़बरे व अफ़वाह फैलाकर बिहारी श्रमवीरों में भय उत्पन्न किया है। इस कृत्य के लिए बिहार भाजपा, नेता प्रतिपक्ष बिहार विधान सभा और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को बिहार की जनता से माफ़ी मांगनी चाहिए।
सोशल मीडिया के कई पोस्ट में “फ़ेक ख़बर” काण्ड के जिम्मेवार भाजपा नेताओं व मिडिया पर आपराधिक मुक़दमे दर्ज़ करने की पुरजोर मांग की जा रही है। इन पोस्टों में यह भी आरोप लगाया जा रह है कि- यह सब कुछ आसन्न लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र अंजाम दिए जा रहे हैं। जिसके माध्यम से दो गैर भाजपा शासन वाले प्रदेशों को आपस में लड़वाने और अंतरप्रांतीय विद्वेष फ़ैलाने की चाल चली गयी। जिसका असर ये हुआ कि इससे दहशत और अविश्वास का ऐसा भयावह माहौल बना कि अफ़वाहों के शिकार कई कामगार वापस घर लौटने को मजबूर हो गए।
चर्चा में यह भी है कि- सर्वविदित है कि बिहार से बाहर कमाने-खाने गए प्रवासी मजदूर हर साल छठ पूजा और होली में त्यौहार मनाने के लिए घर आते है। इसलिए इस बार होली का भी राजनितिक इस्तेमाल करने की तिकड़म लगाकर- कई वीडियो में ट्रेनों में सवार त्यौहार मनाने घर लौट रहे कई मजदूरों को पीड़ित दिखाकर वायरल कर दिया गया।
बहरहाल, तामिलनाडू-प्रकरण के कई साक्ष्य अभी भी आ रहें हैं और आगे भी आयेंगे लेकिन इस वाकये ने एक सन्देश साफ़ तौर से दे दिया है कि- आसन्न लोकसभा चुनाव का जनादेश हड़पने के लिए तथा मोदी कुशासन के खिलाफ एकजुट हो रहे विपक्ष की व्यापक एकता को तहस-नहस करने के लिए इस राज में “कहीं भी, कभी भी-कुछ भी हो सकता है”। जिसका खामियाज़ा अंतिम तौर से इस देश और जनता को ही भुगतना होगा।
Courtesy: Newsclick
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : Time News
ताज़ा घटनाक्रम में लगातार सामने आ रही जानकारियों के अनुसार तमिलनाडु में उत्तर भारतीय मजदूरों पर अत्याचार किये जाने सम्बन्धी मामले को लेकर फैलाया गया भ्रम अब लगातार साफ़ होता जा रहा है। यह भी खुलकर आ रहा है कि किस प्रकार से एक राजनीतिक दल विशेष व उसके नेताओं ने सोशल मीडिया और मुख्यधारा की मीडिया का सुनियोजित इस्तेमाल कर “नफ़रत-अविश्वास और विभाजन की राजनीति” की है। “फ़ेक ख़बरों” का सुनियोजित महाजाल फैलाकर उत्तर भारत के व्यापक नागरिक समाज तथा विशेषकर बाहर जाकर रोजी-रोटी कमाने वाले गरीब-मेहनतकश वर्ग के लोगों को आतंकित कर आपस में लड़वाने का सांप्रदायिक कुचक्र रचा। विडंबना है कि “लॉकडाउन आपदा” के बाद एक बार फिर से सत्ता की साजिशों का मुहरा बने बिचारे “प्रवासी ( अपने राज्य से बाहर रोज़ी-रोटी कमाने वाले) ग़रीब मजदूर”।
सत्ता प्रायोजित उक्त कुचक्र के खिलाफ अखिल भारतीय ग्रामीण खेत मज़दूर सभा ने 9 से 15 मार्च तक ‘प्रवासी मज़दूर एकजुटता सप्ताह’ चलाने की घोषणा की है। संगठन के राष्ट्रीय महासचिव के अनुसार पुरे देश में गावों से शहरों तक चलाये जानेवाले इस जन अभियान के माध्यम से तमिलनाडु में उत्तर भारतीय मज़दूरों पर हमला का “फ़ेक वितंडा” खड़ा करने वाले भाजपा-आरएसएस का भंडाफोड़ किया जाएगा। इनके “झूठ, अफ़वाह व मजदूर विरोधी और अडानी-अम्बानी परस्ती का विरोध किया जाएगा। साथ ही केंद्र की सरकार से दूसरे राज्यों में रोज़ी-रोटी कमाने वाले प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा, सम्मान और जीने लायक मज़दूरी की गारंटी के लिए केन्द्रीय कानून बनाने की मांग को लेकर ये ‘प्रवासी मज़दूर एकता सप्ताह’ चलाया जाएगा।
इधर, सोशल मीडिया और मुख्यधारा मीडिया के “भीतरी पन्नों” (फ़ेकहमला की ख़बरें फ्रंट पेज़) में प्रकाशित छोटी सी खबर के अनुसार झारखंड सरकार ने दावा किया है कि सरकार द्वारा तमिलनाडु भेजी गयी जांच टीम ने पाया है कि- तमिलनाडु में झारखंड के सभी मजदूर सुरक्षित हैं। मिडिया से भी अपील है कि कोई भी खबर सत्यापित कर ही प्रकाशित करें।
जांच टीम द्वारा जारी रिपोर्ट को जारी करते हुए झारखंड सरकार ने प्रदेश के निवासियों को आश्वस्त करते हुए कहा है कि उनकी सरकार सभी प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। लोगों से अपील की है कि वह सोशल मिडिया से फैलाई जा रही अफ़वाहों पर ध्यान ना दें। तमिलनाडु गयी जांच टीम ने चेन्नई, इरोड, त्रिपुर व कोयंबटूर जिलों का दौरा कर सत्यापन कर सभी अफ़वाहों को निराधार पाया।
भाकपा माले झारखंड सचिव ने प्रदेश भाजपा के विधायक दल नेता बाबूलाल मरांडी द्वारा 5 मार्च को अपने ट्वीटर से “फ़ेक खबर” वायरल करने का आरोप लगाते कहा है कि- हद दर्ज़े के अफवाह्बाज़ हैं। झारखंड के मजदूरों पर हमला हुआ है, कब और कहाँ ये पता भी नहीं लगाए और शोर मचा दिए।
इस काण्ड में भाजपा से ये सवाल भी किया है कि- विपक्षी राज्यों को आपस में लड़वाने का खेल किसलिए?, प्रवासी मजदूरों को मुहरा बनाकर नफ़रत की राजनीति किसलिए?
बिहार में भी लगभग ऐसा ही मामला देखा जा रहा है। जहां हमले की “फ़ेक ख़बर” पर त्वरित संज्ञान लेते हुए प्रदेश की सरकार ने उच्च अधिकारियों की चार सदस्यीय जांच टीम फ़ौरन तमिलनाडु रवाना कर दिया था। जिसने वहां के सभी प्रभावित इलाकों का दौरा कर बिहारी मजदूरों से मिलकर पूरी वस्तुस्थिति की जानकारी ली। जिससे यही तथ्य सामने आया कि- हिंदी बोलनेवाले मजदूरों पार कथित हमले की बात सरासर अफ़वाह है। सोशल मिडिया पर वायरल हुए सभी वीडियो सीधे तौर पर “फ़ेक” हैं और अफवाहों को संपुष्ट करनेवाले मजदूरों के इंटरव्यू जारी किये गए हैं।
कहने को तो सुनियोजित काण्ड के कुछ दोषियों को चिन्हित कर पुलिस ने उनपर केस कर दिया है, जिनमें से एक शक्श भाजपा का स्थानीय प्रवक्ता भी है। एक अन्य के बारे में पुलिस का कहना है कि चंद दिनों पूर्व छपरा में हुए एक ह्त्या-काण्ड को लेकर सोशल मिडिया पर “फ़ेक न्यूज़” जारी करने का वह आरोपी है। लेकिन असल सवाल तो यही उठ रहें हैं कि- इतना संगठित अफ़वाहबाज़ी कौन कर रहा है और उसकी असली मंशा क्या है?
ताज़ा ख़बरों में बिहार के उपमुख्य मंत्री तेजस्वी ने ट्वीट जारी कर कहा है कि- आखिरकार भाजपा तमिलनाडु इकाई ने मान लिया है कि बिहार के बीजेपी नेताओं द्वारा तामिलनाडू में बिहारियों पर जो हमले की खबर फ़ेक, है। झूठी, भ्रामक ख़बरे व अफ़वाह फैलाकर बिहारी श्रमवीरों में भय उत्पन्न किया है। इस कृत्य के लिए बिहार भाजपा, नेता प्रतिपक्ष बिहार विधान सभा और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को बिहार की जनता से माफ़ी मांगनी चाहिए।
सोशल मीडिया के कई पोस्ट में “फ़ेक ख़बर” काण्ड के जिम्मेवार भाजपा नेताओं व मिडिया पर आपराधिक मुक़दमे दर्ज़ करने की पुरजोर मांग की जा रही है। इन पोस्टों में यह भी आरोप लगाया जा रह है कि- यह सब कुछ आसन्न लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र अंजाम दिए जा रहे हैं। जिसके माध्यम से दो गैर भाजपा शासन वाले प्रदेशों को आपस में लड़वाने और अंतरप्रांतीय विद्वेष फ़ैलाने की चाल चली गयी। जिसका असर ये हुआ कि इससे दहशत और अविश्वास का ऐसा भयावह माहौल बना कि अफ़वाहों के शिकार कई कामगार वापस घर लौटने को मजबूर हो गए।
चर्चा में यह भी है कि- सर्वविदित है कि बिहार से बाहर कमाने-खाने गए प्रवासी मजदूर हर साल छठ पूजा और होली में त्यौहार मनाने के लिए घर आते है। इसलिए इस बार होली का भी राजनितिक इस्तेमाल करने की तिकड़म लगाकर- कई वीडियो में ट्रेनों में सवार त्यौहार मनाने घर लौट रहे कई मजदूरों को पीड़ित दिखाकर वायरल कर दिया गया।
बहरहाल, तामिलनाडू-प्रकरण के कई साक्ष्य अभी भी आ रहें हैं और आगे भी आयेंगे लेकिन इस वाकये ने एक सन्देश साफ़ तौर से दे दिया है कि- आसन्न लोकसभा चुनाव का जनादेश हड़पने के लिए तथा मोदी कुशासन के खिलाफ एकजुट हो रहे विपक्ष की व्यापक एकता को तहस-नहस करने के लिए इस राज में “कहीं भी, कभी भी-कुछ भी हो सकता है”। जिसका खामियाज़ा अंतिम तौर से इस देश और जनता को ही भुगतना होगा।
Courtesy: Newsclick