नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें उसने कहा था कि विश्वविद्यालयों में फैकल्टी पदों के लिए आरक्षण की गणना विभाग के हिसाब से की जाए, कुल पदों के हिसाब से नहीं। द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, जस्टिस यूयू ललित और इंदिरा बनर्जी की बेंच ने इस मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के 7 अप्रैल, 2017 को दिए गए आदेश को चुनौती देने वाली सरकार की स्पेशल लीव पेटिशन (एसएलपी) को खारिज कर दिया।
यूजीसी (यूनिवर्सिटीज ग्रैंट्स कमिशन) ने 5 मार्च 2018 को आदेश दिया था कि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में आरक्षित फैकल्टी पदों की गणना विभाग के हिसाब से होगी, खाली पड़े कुल पदों के हिसाब से नहीं। यह बदलाव इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर आधारित था। मानव संसाधन मंत्रालय ने इस मामले पर अप्रैल 2018 में एसएलपी दाखिल की थी। केंद्र सरकार ने दलील दी थी कि विभाग के आधार पर आरक्षण की गणना से आरक्षित कैटिगरी के लिए सीटों की संख्या कम जाएगी और इससे आरक्षण व्यवस्था को लागू करने का उद्देश्य पीछे छूट जाएगा।
सरकार ने भर्तियां रोकने के लिए कहा था
सरकार ने यूजीसी के आदेश के बाद सभी विश्वविद्यालयों से भर्ती को तब तक रोकने के लिए कहा, जब तक कि सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी पर फैसला ना आ जाए। इस बीच सरकार ने यूजीसी के आदेश को पलटने के लिए एक बिल का मसौदा तैयार करके कैबिनेट के पास उसकी मंजूरी के लिए भेजा था।
यह था पूरा मामला
फरवरी 2008 में यूजीसी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) को सलाह दी थी कि वह रोस्टर सिस्टम को विभाग के आधार पर लागू करने के बजाय काडर के हिसाब से लागू करे। इसके बाद जुलाई 2016 में बीएचयू ने खाली फैकल्टी पदों के लिए विज्ञापन जारी किया। इसको हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालय को विभाग/विषय को यूनिट मानकर नया रोस्टर बनाने का निर्देश दिया।
मीडिया विजिल में प्रकाशित लक्ष्मण यादव के एक पुराने आर्टिकल से समझें कि कैसे ताज़ा विभागवार (13 प्वाइंट) रोस्टर आरक्षण विरोधी और असंवैधानिक है-
1. विभागवार रोस्टर का पहला खेल समझते हैं. इस विभाजन को अब दो स्तरों से समझें. मसलन किसी नए कॉलेज या विभाग में यदि कुल 3 पद ही होंगे, तो तीनों पद रोस्टर में UR होंगे. यही है पहला और सबसे ख़तरनाक खेल, जिसमें विभागवार रोस्टर बनाने से हमेशा के लिए ये आसानी हो जाएगी कि हर विभाग में 3 या 3 से कम पदों को विज्ञापित किया जाएगा और आरक्षित पदों का क्रम कभी आ ही नहीं सकेगा. अब जिन विश्वविद्यालयों में नए विज्ञापन आ रहे हैं, वे सब इसी विभागवार रोस्टर से आ रहे हैं. जहाँ आरक्षित पद कभी आ ही नहीं सकेंगे. यदि कॉलेज/विश्वविद्यालय को एक इकाई माना जाता, तो यह खेल कभी नहीं संभव होता. क्योंकि तब यह 200 तक चलता और कुल मिलाकर आरक्षण पूरा होता.
2. विभागवार रोस्टर का दूसरा खेल समझते हैं. यदि किसी विभाग में कुल 15 पद स्वीकृत होंगे, तब जाकर वितरण कुछ इस प्रकार होगा- 1 ST, 2 SC, 3 OBC, 9 UR. अब यहाँ भी आरक्षण का कुल प्रतिशत हुआ 15 में 6 पद आरक्षित यानी 40% आरक्षण. इस लिहाज़ से कभी संवैधानिक आरक्षण तो लागू ही नहीं हो सकेगा. यदि कॉलेज/विश्वविद्यालय को एक इकाई माना जाता तो आरक्षण कमोबेश 50% तक मिल तो जाता.
3. विभागवार रोस्टर का तीसरा और सबसे खतरनाक खेल देखिये. माना कि एक पुराने हिंदी विभाग में कुल 11 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 8 पदों पर आरक्षण लागू होने का पहले ही नियुक्तियाँ हो चुकी हैं, तो ये सभी सवर्ण यहाँ पढ़ा रहे हैं. अब आरक्षण लागू किया गया, तो इन आठ में से चौथा और आठवाँ पद OBC को और सातवाँ पद SC को जाएगा, जिसपर पहले से कोई सवर्ण पढ़ा रहे हैं. अब नियमतः ये तीनों पद ‘शार्टफ़ॉल’ में जाएगा और आगामी विज्ञप्ति में नव-सृजित नवें, दसवें ग्यारहवें तीनों पद इस ‘शार्टफ़ॉल’ को पूरा करेंगे. लेकिन देश के हर विश्वविद्यालय में मनुवादियों ने शार्टफ़ॉल को लागू ही नहीं किया, और नियम बना दिया कि चौथे, सातवें और आठवें पदों पर काम करने वाले सवर्ण जब सेवानिवृत्त होंगे, तब जाकर इनपर आरक्षित वर्ग के कोटे की नियुक्ति होगी. यानी ‘शार्टफ़ॉल’ लागू ही नहीं किया गया, जिससे आरक्षण कभी पूरा होगा ही नहीं और सीधे हज़ारों आरक्षित पदों पर सवर्णों का ही कब्ज़ा होगा.
4. अंतिम साज़िश ये कि यदि किसी विश्वविद्यालय/कॉलेज में अगर 1997 के बाद से SC-ST की और 2007 के बाद से OBC की कोई नियुक्ति नहीं हुई है और पहली बार 2018 में अगर विज्ञापन आयेगा, तो इस बीच के पदों में जो ‘बैकलाग’ होगा, उन्हें पहले भरा जाएगा. लेकिन जब रोस्टर ही विभागवार बनेगा, तो न तो ‘शार्टफ़ॉल’ लागू होगा और न ‘बैकलाग’. यानी आज की तिथि में ही आरक्षण मिलेगा, जो कभी 49.5% भी पूरा नहीं हो पाएगा.
5. ध्यान रहे कि उच्च शिक्षा में UR कैटेगरी को हमेशा सामान्य माना गया, यानी साक्षात्कार के ज़रिये होने वाली नियुक्तियों में कभी गैर-सवर्ण की नियुक्ति अपवाद ही रही. आसान भाषा में समझें तो 15% सवर्णों के लिए 50.5% आरक्षण. 1931 की जाति-जनगणना और 1980 के मंडल कमीशन के सैम्पल सर्वे से OBC की जनसंख्या 52% है, लेकिन इन्हें आरक्षण 27% ही मिला है. ऐसे में पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्त्व तो कभी पूरा हो ही नहीं सकेगा. ऐसे ही PwD, अल्पसंख्यक और महिलाओं की स्थिति तो और भी भयावह होगी.
तेजस्वी यादव बोले- आरक्षण खत्म
राजद नेता तेजस्वी यादव ने इस आरक्षण प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए लिखा है, ''लंबे संघर्ष के बाद उच्च शिक्षा में हासिल संवैधानिक आरक्षण को मनुवादी मोदी सरकार ने लगभग खत्म कर दिया है। 200 प्वाइंट रोस्टर के लिए सरकार द्वारा दायर कमज़ोर SLP को सुप्रीम कोर्ट में खारिज कर दिया गया है। अब विभागवार आरक्षण यानी 13 प्वाइंट रोस्टर लागू होगा।
SC/ST एक्ट की तरह यहाँ भी सरकार ने धोखा दिया। HRD मंत्री अध्यादेश लाने की बात कर पलट चुके है। सवर्ण आरक्षण चंद घंटों में लाने वाले बहुजनों के साथ धोखाधड़ी कर रहे है। उच्च शिक्षा के दरवाजे अब बहुसंख्यक बहुजन आबादी के लिए बंद हो चुके हैं। विभागवार आरक्षण बंद कर पुराना नियम लागू करो अन्यथा इस देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में बहुजन ढूँढने से भी नहीं मिलेंगे।
नागपुरिया ब्रांड मोदी सरकार सामाजिक न्याय विरोधी है। संविधान विरोधी है। दलित, पिछड़ा, अल्पसंख्यक और बहुजन विरोधी है। आरक्षण विरोधी है। इन्होंने जाँच एजेंसियों और संवैधानिक संस्थाओं का कबाड़ा कर दिया है। ये कट्टर संघी जातिवादी और पूँजीपरस्त लोग देश का बंटाधार कर नफ़रत बोने में लगे है।
मनुवाद मुर्दाबाद!''
यूजीसी (यूनिवर्सिटीज ग्रैंट्स कमिशन) ने 5 मार्च 2018 को आदेश दिया था कि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में आरक्षित फैकल्टी पदों की गणना विभाग के हिसाब से होगी, खाली पड़े कुल पदों के हिसाब से नहीं। यह बदलाव इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर आधारित था। मानव संसाधन मंत्रालय ने इस मामले पर अप्रैल 2018 में एसएलपी दाखिल की थी। केंद्र सरकार ने दलील दी थी कि विभाग के आधार पर आरक्षण की गणना से आरक्षित कैटिगरी के लिए सीटों की संख्या कम जाएगी और इससे आरक्षण व्यवस्था को लागू करने का उद्देश्य पीछे छूट जाएगा।
सरकार ने भर्तियां रोकने के लिए कहा था
सरकार ने यूजीसी के आदेश के बाद सभी विश्वविद्यालयों से भर्ती को तब तक रोकने के लिए कहा, जब तक कि सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी पर फैसला ना आ जाए। इस बीच सरकार ने यूजीसी के आदेश को पलटने के लिए एक बिल का मसौदा तैयार करके कैबिनेट के पास उसकी मंजूरी के लिए भेजा था।
यह था पूरा मामला
फरवरी 2008 में यूजीसी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) को सलाह दी थी कि वह रोस्टर सिस्टम को विभाग के आधार पर लागू करने के बजाय काडर के हिसाब से लागू करे। इसके बाद जुलाई 2016 में बीएचयू ने खाली फैकल्टी पदों के लिए विज्ञापन जारी किया। इसको हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालय को विभाग/विषय को यूनिट मानकर नया रोस्टर बनाने का निर्देश दिया।
मीडिया विजिल में प्रकाशित लक्ष्मण यादव के एक पुराने आर्टिकल से समझें कि कैसे ताज़ा विभागवार (13 प्वाइंट) रोस्टर आरक्षण विरोधी और असंवैधानिक है-
1. विभागवार रोस्टर का पहला खेल समझते हैं. इस विभाजन को अब दो स्तरों से समझें. मसलन किसी नए कॉलेज या विभाग में यदि कुल 3 पद ही होंगे, तो तीनों पद रोस्टर में UR होंगे. यही है पहला और सबसे ख़तरनाक खेल, जिसमें विभागवार रोस्टर बनाने से हमेशा के लिए ये आसानी हो जाएगी कि हर विभाग में 3 या 3 से कम पदों को विज्ञापित किया जाएगा और आरक्षित पदों का क्रम कभी आ ही नहीं सकेगा. अब जिन विश्वविद्यालयों में नए विज्ञापन आ रहे हैं, वे सब इसी विभागवार रोस्टर से आ रहे हैं. जहाँ आरक्षित पद कभी आ ही नहीं सकेंगे. यदि कॉलेज/विश्वविद्यालय को एक इकाई माना जाता, तो यह खेल कभी नहीं संभव होता. क्योंकि तब यह 200 तक चलता और कुल मिलाकर आरक्षण पूरा होता.
2. विभागवार रोस्टर का दूसरा खेल समझते हैं. यदि किसी विभाग में कुल 15 पद स्वीकृत होंगे, तब जाकर वितरण कुछ इस प्रकार होगा- 1 ST, 2 SC, 3 OBC, 9 UR. अब यहाँ भी आरक्षण का कुल प्रतिशत हुआ 15 में 6 पद आरक्षित यानी 40% आरक्षण. इस लिहाज़ से कभी संवैधानिक आरक्षण तो लागू ही नहीं हो सकेगा. यदि कॉलेज/विश्वविद्यालय को एक इकाई माना जाता तो आरक्षण कमोबेश 50% तक मिल तो जाता.
3. विभागवार रोस्टर का तीसरा और सबसे खतरनाक खेल देखिये. माना कि एक पुराने हिंदी विभाग में कुल 11 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 8 पदों पर आरक्षण लागू होने का पहले ही नियुक्तियाँ हो चुकी हैं, तो ये सभी सवर्ण यहाँ पढ़ा रहे हैं. अब आरक्षण लागू किया गया, तो इन आठ में से चौथा और आठवाँ पद OBC को और सातवाँ पद SC को जाएगा, जिसपर पहले से कोई सवर्ण पढ़ा रहे हैं. अब नियमतः ये तीनों पद ‘शार्टफ़ॉल’ में जाएगा और आगामी विज्ञप्ति में नव-सृजित नवें, दसवें ग्यारहवें तीनों पद इस ‘शार्टफ़ॉल’ को पूरा करेंगे. लेकिन देश के हर विश्वविद्यालय में मनुवादियों ने शार्टफ़ॉल को लागू ही नहीं किया, और नियम बना दिया कि चौथे, सातवें और आठवें पदों पर काम करने वाले सवर्ण जब सेवानिवृत्त होंगे, तब जाकर इनपर आरक्षित वर्ग के कोटे की नियुक्ति होगी. यानी ‘शार्टफ़ॉल’ लागू ही नहीं किया गया, जिससे आरक्षण कभी पूरा होगा ही नहीं और सीधे हज़ारों आरक्षित पदों पर सवर्णों का ही कब्ज़ा होगा.
4. अंतिम साज़िश ये कि यदि किसी विश्वविद्यालय/कॉलेज में अगर 1997 के बाद से SC-ST की और 2007 के बाद से OBC की कोई नियुक्ति नहीं हुई है और पहली बार 2018 में अगर विज्ञापन आयेगा, तो इस बीच के पदों में जो ‘बैकलाग’ होगा, उन्हें पहले भरा जाएगा. लेकिन जब रोस्टर ही विभागवार बनेगा, तो न तो ‘शार्टफ़ॉल’ लागू होगा और न ‘बैकलाग’. यानी आज की तिथि में ही आरक्षण मिलेगा, जो कभी 49.5% भी पूरा नहीं हो पाएगा.
5. ध्यान रहे कि उच्च शिक्षा में UR कैटेगरी को हमेशा सामान्य माना गया, यानी साक्षात्कार के ज़रिये होने वाली नियुक्तियों में कभी गैर-सवर्ण की नियुक्ति अपवाद ही रही. आसान भाषा में समझें तो 15% सवर्णों के लिए 50.5% आरक्षण. 1931 की जाति-जनगणना और 1980 के मंडल कमीशन के सैम्पल सर्वे से OBC की जनसंख्या 52% है, लेकिन इन्हें आरक्षण 27% ही मिला है. ऐसे में पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्त्व तो कभी पूरा हो ही नहीं सकेगा. ऐसे ही PwD, अल्पसंख्यक और महिलाओं की स्थिति तो और भी भयावह होगी.
तेजस्वी यादव बोले- आरक्षण खत्म
राजद नेता तेजस्वी यादव ने इस आरक्षण प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए लिखा है, ''लंबे संघर्ष के बाद उच्च शिक्षा में हासिल संवैधानिक आरक्षण को मनुवादी मोदी सरकार ने लगभग खत्म कर दिया है। 200 प्वाइंट रोस्टर के लिए सरकार द्वारा दायर कमज़ोर SLP को सुप्रीम कोर्ट में खारिज कर दिया गया है। अब विभागवार आरक्षण यानी 13 प्वाइंट रोस्टर लागू होगा।
SC/ST एक्ट की तरह यहाँ भी सरकार ने धोखा दिया। HRD मंत्री अध्यादेश लाने की बात कर पलट चुके है। सवर्ण आरक्षण चंद घंटों में लाने वाले बहुजनों के साथ धोखाधड़ी कर रहे है। उच्च शिक्षा के दरवाजे अब बहुसंख्यक बहुजन आबादी के लिए बंद हो चुके हैं। विभागवार आरक्षण बंद कर पुराना नियम लागू करो अन्यथा इस देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में बहुजन ढूँढने से भी नहीं मिलेंगे।
नागपुरिया ब्रांड मोदी सरकार सामाजिक न्याय विरोधी है। संविधान विरोधी है। दलित, पिछड़ा, अल्पसंख्यक और बहुजन विरोधी है। आरक्षण विरोधी है। इन्होंने जाँच एजेंसियों और संवैधानिक संस्थाओं का कबाड़ा कर दिया है। ये कट्टर संघी जातिवादी और पूँजीपरस्त लोग देश का बंटाधार कर नफ़रत बोने में लगे है।
मनुवाद मुर्दाबाद!''