अगहनी जुमे की नमाज 29 नवंबर, 2024 यानी शुक्रवारी को अदा की जाएगी। यह नमाज पुराना पुल स्थित पुलकोहना ईदगाह में होगी। मुर्री (कारोबार) बंद कर आगहनी जुमे की नमाज अदा करने की ये रवायत करीब साढ़े चार सौ साल पुरानी है।
प्रतीकात्मक तस्वीर ; साभार : पत्रिका
मुल्क की खुशहाली और कारोबार में तरक्की की दुआ के लिए बनारसी बुनकर बिरादराना तंजीम की ओर से अगहनी जुमे की नमाज 29 नवंबर, 2024 यानी शुक्रवारी को अदा की जाएगी। यह नमाज पुराना पुल स्थित पुलकोहना ईदगाह में होगी। मुर्री (कारोबार) बंद कर आगहनी जुमे की नमाज अदा करने की ये रवायत करीब साढ़े चार सौ साल पुरानी है।
अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, सदर बावनी पंचायत के सरदार हाजी मुख्तार की तरफ से मुर्री बंद का एलान किया गया है। अगहनी जुमे की नमाज पढ़ने के लिए शहर भर के बुनकर बिरादराता तंजीम के लोग ईदगाह में जुटते हैं और मुल्क में अमन-चैन और कारोबार की तरक्की के लिए दुआख्वानी करते हैं। बुनकर बिरादराना तंजीम बावनी के सदर हाजी मुख्तार ने बताया कि यह नमाज सिर्फ बनारस में ही पढ़ी जाती। लगभग 450 साल पहले देश में अकाल पड़ा था।
पुलकोहना ईदगाह में दिन 1:30 बजे मो. जहीर अहमद और चौकाघाट स्थित मस्जिद में 1:30 बजे मो. अल्ताफुर्रहमान नमाज पढ़ाएंगे। हाजी मुख्तार महतो ने बताया कि यह नमाज सिर्फ बनारस में पढ़ी जाती है। लगभग साढ़े चार सौ साल पहले देश मे भयंकर अकाल पड़ा था। खेतीबाड़ी के साथ व्यापार चौपट हो गया था। तब बुनकरों ने इस हालात से उबरने के लिए अगहन महीने के पहले जुमे के दिन ईदगाह में इकट्ठा हुए और बारिश के लिए दुआएं मांगीं। तब से यह परंपरा हर साल मुर्री बंद कर निभाई जाती है।
पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार, इस दिन लोग मुर्री (कारोबार) बंद रखते हैं। नमाज के बाद सभी तंजीमों के सरदार और सदस्य मिलकर बनारस के बुनकारी के कारोबार से जुड़े लोगों के साथ बैठकर कारोबार में हो रही दिक्कतों के बारे में चर्चा करते हैं और उसे कैसे हल किया जाए इसका सल्यूशन निकालते हैं। सभी सरदार अपनी-अपनी तंजीम का प्रतिनिधित्व करते हैं और समस्याओं को रखते हैं। इस बैठक की खास बात यह है कि इसमें मुल्क की तरक्की और खुशहाली के लिए दुआख्वानी के साथ ही साथ आगे की रणनीति भी बनाई जाती है। इस बैठक में जो फैसला होता है उसे सर्वसम्मति से माना जाता है।
बनारस में ऐसा अक्सर देखा जाता है की कोई भी त्यौहार हो इसे हिन्दू मुस्लिम मिलकर मानते है। चाहे ईद हो या दिवाली या फिर होली, उसी तरह आज का ये तारीखी दिन भी हिन्दू मुस्लिम मिलकर मानते है। पिछले साल नमाज के दौरान हजारों के मजमे में कुछ ही देर में कई ट्रक गन्ने की बिक्री हो गई। ईदगाह पुलकोहना के आसपास मेले जैसे माहौल अगर होता है तो ये बुजुर्गों की देन है, न उन्होंने ऐसी परम्परा शुरू की होती और न ही हम लोग उनकी मिल्लत को आगे बढ़ा पाते।
प्रतीकात्मक तस्वीर ; साभार : पत्रिका
मुल्क की खुशहाली और कारोबार में तरक्की की दुआ के लिए बनारसी बुनकर बिरादराना तंजीम की ओर से अगहनी जुमे की नमाज 29 नवंबर, 2024 यानी शुक्रवारी को अदा की जाएगी। यह नमाज पुराना पुल स्थित पुलकोहना ईदगाह में होगी। मुर्री (कारोबार) बंद कर आगहनी जुमे की नमाज अदा करने की ये रवायत करीब साढ़े चार सौ साल पुरानी है।
अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, सदर बावनी पंचायत के सरदार हाजी मुख्तार की तरफ से मुर्री बंद का एलान किया गया है। अगहनी जुमे की नमाज पढ़ने के लिए शहर भर के बुनकर बिरादराता तंजीम के लोग ईदगाह में जुटते हैं और मुल्क में अमन-चैन और कारोबार की तरक्की के लिए दुआख्वानी करते हैं। बुनकर बिरादराना तंजीम बावनी के सदर हाजी मुख्तार ने बताया कि यह नमाज सिर्फ बनारस में ही पढ़ी जाती। लगभग 450 साल पहले देश में अकाल पड़ा था।
पुलकोहना ईदगाह में दिन 1:30 बजे मो. जहीर अहमद और चौकाघाट स्थित मस्जिद में 1:30 बजे मो. अल्ताफुर्रहमान नमाज पढ़ाएंगे। हाजी मुख्तार महतो ने बताया कि यह नमाज सिर्फ बनारस में पढ़ी जाती है। लगभग साढ़े चार सौ साल पहले देश मे भयंकर अकाल पड़ा था। खेतीबाड़ी के साथ व्यापार चौपट हो गया था। तब बुनकरों ने इस हालात से उबरने के लिए अगहन महीने के पहले जुमे के दिन ईदगाह में इकट्ठा हुए और बारिश के लिए दुआएं मांगीं। तब से यह परंपरा हर साल मुर्री बंद कर निभाई जाती है।
पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार, इस दिन लोग मुर्री (कारोबार) बंद रखते हैं। नमाज के बाद सभी तंजीमों के सरदार और सदस्य मिलकर बनारस के बुनकारी के कारोबार से जुड़े लोगों के साथ बैठकर कारोबार में हो रही दिक्कतों के बारे में चर्चा करते हैं और उसे कैसे हल किया जाए इसका सल्यूशन निकालते हैं। सभी सरदार अपनी-अपनी तंजीम का प्रतिनिधित्व करते हैं और समस्याओं को रखते हैं। इस बैठक की खास बात यह है कि इसमें मुल्क की तरक्की और खुशहाली के लिए दुआख्वानी के साथ ही साथ आगे की रणनीति भी बनाई जाती है। इस बैठक में जो फैसला होता है उसे सर्वसम्मति से माना जाता है।
बनारस में ऐसा अक्सर देखा जाता है की कोई भी त्यौहार हो इसे हिन्दू मुस्लिम मिलकर मानते है। चाहे ईद हो या दिवाली या फिर होली, उसी तरह आज का ये तारीखी दिन भी हिन्दू मुस्लिम मिलकर मानते है। पिछले साल नमाज के दौरान हजारों के मजमे में कुछ ही देर में कई ट्रक गन्ने की बिक्री हो गई। ईदगाह पुलकोहना के आसपास मेले जैसे माहौल अगर होता है तो ये बुजुर्गों की देन है, न उन्होंने ऐसी परम्परा शुरू की होती और न ही हम लोग उनकी मिल्लत को आगे बढ़ा पाते।