बेगुनाह क़ैदी की कहानी

Published on: July 11, 2017
मुंबई में 10 जुलाई को मराठी पत्रकार संघ में खासी भीड़ थी, कांफ्रेंस हॉल खचाखच भरा था और लोगों को खड़े रह कर अब्दुल वाहिद शेख की आपबीती सुननी पड़ रही थी। अब्दुल वाहिद शेख, जिनको 11 जुलाई, 2006 के मुंबई ट्रेन ब्लास्ट के मामलों में पुलिस ने आतंकी बता कर गिरफ्तार कर लिया था और उनको अपनी बेगुनाही साबित कर के, जेल से रिहा होने में 9 साल लग गए। यह मौका था अब्दुल वाहिद शेख की किताब 'बेगुनाह क़ैदी' के हिंदी संस्करण के विमोचन का। 


 
अब्दुल वाहिद की यह किताब उन 9 सालों का लेखा-जोखा है, जो उन्होंने अपनी बेगुनाही साबित करने के दौरान जेल में गुज़ारे और साथ ही उस प्रक्रिया का भी, जो न केवल बेगुनाह मुस्लिमों पर आतंकी का ठप्पा लगा कर उनको रिहाई तक उम्र के अलग पड़ाव तक ले जाती है। जिस वक़्त अब्दुल वाहिद को गिरफ्तार किया गया, वह एक स्कूल में अध्यापक थे। 80 दिनों तक पूछताछ और टॉर्चर के बाद उनको गिरफ्तार कर लिया गया और बेपनाह यातनाएं झेलते हुए वह 9 साल अपने लिए इंसाफ़ की लड़ाई लड़ते रहे। 9 साल बाद वह तो अदालत से बाइज़्ज़त बरी हो गए, लेकिन 12 और लोग अभी भी सलाखों के पीछे हैं और उनमें से कुछ को आजीवन कारावास तो कुछ तो सज़ा ए मौत सुना दी गई है। 


 
किताब के लोकार्पण के मौके पर वरिष्ठ पत्रकार अजीत साही और छात्र नेता ओमर ख़ालिद भी मौजूद थे। अजीत साही ने इस मौके पर कहा, "यह लड़ाई सिर्फ अब्दुल वाहिद शेख के रिहा हो जाने से ख़त्म नहीं हो जाती है। हमने हाल में अदालतों का बदलता रवैया देखा है और इसलिए ये लड़ाई सिर्फ अदालत में नहीं, बल्कि सड़कों पर जागरुकता के स्तर पर भी होनी चाहिए कि बाकी बचे 12 लोगों को भी इंसाफ़ मिले।" जबकि ओमर ख़ालिद ने अहम सवाल उठाते हुए कहा, "अब्दुल वाहिद, जेल से बाहर आ गए हैं। 12 और बेगुनाह जेल में ही हैं, लेकिन सिर्फ सलाखों के पीछ दिख रही जगह ही जेल नहीं है। यह पूरा देश ही जेल बनता जा रहा है। आप जब सच को बोलने के लिए आज़ाद नहीं हैं, अपनी बात कहने के लिए आज़ाद नहीं हैं तो फिर पूरा देश ही जेल है।"
 
अब्दुल वाहिद की क़िताब के हिंदी संस्करण से पहले इसका उर्दू संस्करण बाज़ार में आ चुका था, लेकिन हिंदी संस्करण से उनको पुलिस द्वारा फ़र्ज़ी तरीके से फंसाने का सच, और ज़्यादा लोगों तक पहुंचेगा। वह कहते हैं, "वो लोग कानूनी और गैरकानूनी दोनों ही तरीकों से नारको टेस्ट करते थे. गैरकानूनी तरीके में वो जेल के डॉक्टर से हमें इंजेक्शन देते और सवाल पूछते. हम बेगुनाह थे तो शुरू में हमें ख़ुशी हुई कि अब सच पता चल जाएगा. लेकिन ऐसा न हुआ. कानूनी टेस्ट में उन्होंने सीडी के साथ ही छेड़छाड़ कर दी. बाकी मुसलमान आतंकी नहीं होता है, अगर होता तो मेरे हाथ में इस समय हथियार की जगह कलम न होती।"
 
क़िताब के हिंदी संस्करण के साथ ही, इनोसेंट नेटवर्क की बेगुनाह क़ैदियों को छुड़ाने की क़ानूनी लड़ाई की मुहिम के तहत वेबसाइट www.theinnocent.in को भी लांच किया गया। अब्दुल वाहिद की क़िताब को फ़ारोस ने प्रकाशित किया है और इस कार्यक्रम का आय़ोजन जमीयतुल उलेमा और इनोसेंट नेटवर्क ने मिल कर किया। 
 
(संवाददाता)

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