घटिया क्वालिटी की पटरी बना रहा है स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड, संकट में लघु और मझोले उद्योग

Written by Ravish Kumar | Published on: June 28, 2019
भारतीय रेल ने अमरीका की यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनॉय से एक अध्ययन कराया है। जिसमें पाया गया है कि स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड ख़राब क्वालिटी की पटरियां बना रहा है जो 25 टन के एक्सल लोड वाले वैगनों के लिए उपयुक्त नहीं हैं। रेल मंत्रालय चाहता है कि इस साल से 70 फीसदी रेलवे की मालवाहक ढुलाई अधिक एक्सल लोड वाले वैगनों में होने लगे। रेलवे के इस प्लान का नाम है मिशन 25 टन। रेलवे ने सेल से कहा है कि अगले दो साल के भीतर अधिक भार क्षमता वाली पटरियों का निर्माण शुरू कर दे। बिजनेस स्टैंडर्ड में शाइनी जेकब ने यह रिपोर्ट लिखी है। एक ही सवाल है कि यह अध्ययन तो भारतीय तकनीकि संस्थान भी कर सकते थे। क्या यह समझा जाए कि सेल के दिन लद चुके हैं?



नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कारपोरेशन (NDMC) ने भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स (BHEL) से अपना एक करार रद्द कर दिया है। NDMC छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में एक संयंत्र लगा रहा है ताकि वहां हर साल 30 लाख टन स्टील का उत्पादन हो सके। इस स्टील प्लांट की योजना 2009-10 में ही बन गई थी। इसके लिए कच्चा माल लाने का करार भेल से किया गया। भेल को 2014 तक अपने लक्ष्य को पूरा करना था। कंपनी पूरा नहीं कर सकी। अब NDMC ने भेल से करार रद्द कर दिया। यह ख़बर भी बिजनेस स्टैंडर्ड की है। भेल ने पांच साल की देरी की तो सज़ा तो मिलनी ही चाहिए।

जीवन बीमा निगम को आख़िर चुनौती मिलने ही लगी। कभी बीमा बाज़ार में एल आई सी की धाक हुआ करती थी। बिजनेस स्टैंडर्ड की नम्रता आचार्या की रिपोर्ट है कि भारतीय बीमा नियामक प्राधिकरण (IRDA) के ताज़ा आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले पांच साल में भारतीय जीवन बीमा निगम की हिस्सेदारी तेज़ी से घटी है। 2013-14 में बीमा बाज़ार में इसकी हिस्सेदारी 75.34 प्रतिशत थी जो 2017-18 में घट कर 69.36 प्रतिशत रह गई है। 23 प्राइवेट बीमा कंपनियां हैं जिनके शेयर में इसी दौरान चार प्रतिशत की वृद्धि हुई है। नम्रता आचार्या ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि प्राइवेट बीमा कंपनियों का कहना है कि उन्होंने डिज़िटल टेक्नालजी में काफी निवेश किया है इस कारण बढ़त मिली है। अब सवाल है कि भारत सरकार ने भी तो डिजिटल इंडिया में काफी निवेश किया है तो फिर इसका लाभ जीवन बीमा निगम को क्यों नहीं मिल रहा है।

फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर दिन 183GW (गीगा वॉट) बिजली की मांग होती है मगर उत्पादन की क्षमता इससे दुगनी यानि 357GW है। इसके बाद भी 10 राज्य ऐसे हैं जहां के ग्रामीण क्षेत्रों में 20 घंटे से कम बिजली रहती है। हरियाणा में 15.64 घंटे ही बिजली मिलती है। सबसे कम आपूर्ति जम्मू कश्मीर के गांवों में होती है। यह बयान बिजली मंत्री आर के सिंह का है जिन्होंने सदन में जवाब दिया है। आंध्र प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में औसत आपूर्ति 23.90 घंटे हैं।

लाइव मिट की ख़बर है कि लघु उद्योग संकट में हैं। मांग में कमी के कारण उनकी हालत ख़स्ता है। आटोमोबिल सेक्टर मंदी की चपेट मे है जिसके कारण इस पर निर्भर लघु उद्योग पंचर हालत में हैं। हाल ही में ICICI Securities Ltd ने 3000 लघु उद्योगों का सर्वे किया है। जिससे यह बात निकल कर आई है कि पांच साल से उनका ग्रोथ रुका हुआ है। बिक्री घटती ही जा रही है। छोटी कंपनियां भारी कर्ज़ में हैं। चुका पाने की स्थिति में नहीं हैं। बिजनेस अखबारों में ख़बरें छप रही हैं कि बैंकों से कहा जा रहा है कि वे मझोले उद्योगों को अधिक अधिक से कर्ज़ दें। छोटे उद्योगों को भी कर्ज़ की ज़रूरत है।

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बजट आने वाला है। अखबारों के हर लेख में यही छप रहा है कि अर्थव्यवस्था की हालत ख़राब है।सरकार ऐसा क्या करेगी जिससे इसमें तेज़ी आएगी। ऐसे में देखना चाहिए कि पिछले पांच साल में वित्त मंत्री जी डी पी को लेकर क्या भविष्यवाणी करते रहे, और असल में हुआ क्या।

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