अखबारनामा: साध्वी प्रज्ञा के बचाव के साथ कुछ पुरानी जानकारी जो सभी अखबारों में नहीं है

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: April 20, 2019
साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भोपाल में कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ भाजपा का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद साध्वी का बयान, उसपर प्रतिक्रिया और फिर बयान को वापस लेना, उसपर माफी मांगना, भाजपा द्वारा खुद को बयान से अलग किया जाना और उसे उनकी निजी पीड़ा का असर कहना आज सभी अखबारों में है। इसमें दिलचस्प यह जानना और बताना होता कि साध्वी पर क्या आरोप हैं, उनके खिलाफ क्या सबूत हैं और जांच कहां तक गई और जब जमानत मिली तो स्थिति क्या थी। खासकर इसलिए कि साध्वी ने जो कहा है उसमें शामिल है, ".... करकरे ने कहा कि मैं सबूत लाउंगा। कुछ भी करूंगा। इधर से लाउंगा - उधर से लाउंगा लेकिन साध्वी को नहीं छोड़ूंगा। यह उसकी कुटिलता, देशद्रोह और धर्मविरुद्ध था।"

किसी अभियुक्त या साध्वी या हिन्दू के खिलाफ किसी जांच अधिकारी का सबूत ढूंढ़ना या यह कहना कि कहीं से भी सबूत लाउंगा (गढ़ूंगा नहीं) क्या देशद्रोह और धर्मविरुद्ध है। साध्वी को जमानत मिलने की जांच क्या इस आलोक में नहीं होनी चाहिए। क्या आम पाठकों को यह जानने का हक नहीं है कि भाजपा ने जिसे उम्मीदवार बनाया है उसपर क्या आरोप हैं और कैसे सबूत जुटाना देशद्रोह और धर्मविरुद्ध था और सबूत आखिरकार जुटाए गए कि नहीं। जुटाए गए तो जमानत क्यों मिली और नहीं जुटाए गए तो क्यों। इन सबके बीच सत्तारूढ़ दल से चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिए जाने का कारण क्या हो सकता है। मुझे आज के अखबारों में ऐसी कोई खबर या रिपोर्ट नहीं मिलेगी।

मैं कोशिश करता हूं कि मामले को समझूं और आपको बताने लायक लगा तो बताउंगा भी। फिलहाल उसकी झलक द टेलीग्राफ की एक खबर में है। पेश है उसका अनुवाद। पढ़ने में सहूलियत होती है इसलिए मैं अखबार की बजाय इंटरनेट पर खबर पढ़ना पसंद करता हूं और वहीं से अनुवाद भी। मामूली भिन्नता हो सकती है पर अमूमन खबर वही रहती है। खबर का शीर्षक है, जब मोदी करकरे के घर पहुंचे । उपशीर्षक है, मोदी ने बार-बार करकरे के नेतृत्व वाले एंटी टेरोरिस्ट स्क्वैड पर मालेगांव ब्लास्ट की गिरफ्तारियों के लिए पूर्वग्रह का आरोप लगाया था।

गुजरात के उस समय के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी नवंबर 2008 में हेमंत करकरे के घर गए थे। इससे पहले, शोक मना रहे उनके परिवार ने तीन बार उनके कार्यालय से कहा था कि वे किसी से मिलना नहीं चाहते हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री के दौरे के एक दिन बाद करकरे की विधवा कविता को यह कहते हुए उद्धृत किया गया था, मेहमानों का सत्कार करना हमारी संस्कृति का भाग है और मोदी एक बुजुर्ग व्यक्ति हैं। वे (हमारे) घर आए, थोड़ी देर लिविंग रूम में बैठे ....।"

स्ट्रोक के बाद 2014 में कविता का निधन हो गया था । उन्होंने कोशिश की कि 26/11 के हमलों में मारे गए 14 पुलिस वालों के परिवार को एक करोड़ रुपए देने की मोदी की सार्वजनिक पेशकश को यह कहकर ठुकराने पर विवाद न हो कि मुख्यमंत्री ने उनसे ऐसी कोई पेशकश नहीं की थी। इससे पहले, अग्निसंस्कार के बाद, उनकी रिश्तेदार अमृता करकरे ने कहा था, "दीदी ने किसी राजनेता से मिलने से मना कर दिया है .... उन्होंने मुझसे कहा है, वे हेमंत की जान की कीमत लगा सकते हैं। मैं उन्हें उनकी मौत का उपयोग कर राजनीतिक लाभ नहीं लेने दूंगी।"

करकरे की मौत से कुछ दिन पहले तक मोदी ने बार-बार उनके नेतृत्व वाले महाराष्ट्र एंटी टेरोरिस्ट स्क्वैड पर पूर्वग्रह का आरोप लगाया था। इसी टीम ने मालेगांव ब्लास्ट के पीछे के आंतकी नेटवर्क का पता लगाया था और लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित तथा प्रज्ञा सिंह ठाकुर को गिरफ्तार किया था। उन्होंने गिरफ्तारी को राजनीति से प्रेरित और देशहित के खिलाफ कहा था। अब 11 साल बाद मोदी ने उस संदिग्ध आतंकी को लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार बनाया है जिसे करकरे ने गिरफ्तार किया था जिसने उन्हें मौता का श्राप दिया था।

अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने शुक्रवार को ट्वीट किया, हेमंत करकरे बहादुर थे। साध्वी प्रज्ञा आतंकी है। हम जानते हैं कि भाजपा ने किसका पक्ष लिया है। एक और ट्वीट में श्रीमती करकरे के घर मोदी के दौरे को याद किया गया है और कहा गया है, पता नहीं वह महिला श्राप दे पाती तो क्या होगा।

इंडियन एक्सप्रेस और टाइम्स ऑफ इंडिया ने टाइम्स नाऊ को दिए प्रधानमंत्री के इंटरव्यू का अंश छापा है जिसमें उन्होंने प्रज्ञा को उम्मीदवार बनाने को उचित ठहराया है और पूछा है कि क्या 1984 का दंगा आतंक नहीं था। यही नहीं, यह भी कहा है कि एक महिला, एक साध्वी को यातना दी गई पर किसी ने उंगली तक नहीं उठाई। यही नहीं प्रज्ञा के जमानत पर होने की तुलना उन्होंने राहुल और सोनिया गांधी के जमानत पर होने से की है जो नेशनल हेराल्ड मामले में जमानत पर हैं। पूरे मामले को समझिए आपकी राय महत्वपूर्ण है और अखबार वाले कोशिश में हैं कि आपकी राय अपने हिसाब से बना सकें। इसलिए संभव हो तो पूरा इंटरव्यू भी देखिए।

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