अत्याचार के विरुद्ध आवाज बुलंद करने वाले सचिन माली और उनके साथियों को मिली बेल

Published on: January 4, 2017
मुंबई। कबीर कला मंच के सचिन माली सहित अन्य साथियों को सुप्रीम कोर्ट से बेल मिल गयी है। आनंद पटवर्धन की चर्चित फिल्म जयभीम कामरेड को आपने देखा होगा। कबीर कला मंच से पीढि़तों के लिए लोक गीत गाने वाले शीतल और उनके साथियों को कला और साहित्य के माध्यम से इस व्यवस्था को जवाब देने के लिए उन्हें जेलों में बंद रखा गया था। यह अच्छी बात है कि सावित्रीबाई फुले जयंती के दिन उनकी रिहाई संभव हो पाई है। शीतल के नेतृत्व में उनके अन्य साथी इनकी रिहाई के लिए गीतों के साथ लगातार रोहित वेमुला और जेएनयू के छात्रों के पक्ष में गाने गाते रहे हैं।

Sheetal Sathe

शीतल महाराष्ट्र से हैं लेकिन बिहार के मज़दूरों, पंजाब के किसानों से लेकर देश के हर वंचित तबके का दर्द उनकी आवाज और गायन में झलकता है। शीतल देश और दुनिया में फैली असमानता और शोषण को खत्म करने के लिए जनता को जगाने के लिए निरंतर गाती रही हैं। पुणे की एक दलित बस्ती कासेवाड़ी में जन्मी शीतल के गीतों के बोल अंधेरों को चुनौती देते हैं।  
 
शीतल और उनके साथियों का जीवन बेहद संघर्ष का रहा है इसके बावजूद इन्होंने कला, विचार और इंसानियत को लगातार समृद्ध किया है। मशहूर डॉक्यूमेंटरी फिल्ममेकर आंनद पटवर्धन का मानना है कि शीतल और उनके साथियों के आवाज की भारतीय लोकतंत्र को बेहद जरूरत है। हमारे समाज और लोकतंत्र इनके गानों और कविताओं के बिना अधूरा है। 
 
पटवर्धन की फिल्म, ‘जय भीम कॉमरेड’ से शीतल और उनके साथियों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली थी। फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार और महराष्ट्र राज्य का पुरस्कार मिला। पुरस्कार की राशि से कबीर कला मंच डिफेन्स कमेटी का गठन किया गया। शीतल और उनके पति सचिन माली और उनके 15 साथियों को नक्सली गतिविधियों का समर्थन करने के इल्जाम में 2011 में महाराष्ट्र एटीएस ने भगोड़ा घोषित कर दिया था।
 
इसके अलावा इन दोनों समेत अन्य साथियों पर गैर-कानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम की कई अन्य धाराओं के तहत आरोप भी लगाए गए हैं। जब शीतल गिरफ्तार हुई, तब वे गर्भवती थी। बाद में शीतल को कोर्ट ने मानवीय आधार पर जमानत दी ताकि वे बच्चे को जन्म दे सकें। शीतल ने अपने बच्चे का नाम अभंग रखा है। 

शीतल ने उच्च शिक्षा की पढ़ाई पूणे के फर्ग्यूसन कॉलेज से की है लेकिन कालेज में जाने से पहले ही लोक गीतों को गाना शुरू कर दिया था। इस बीच में सचिन और कबीर कला मंच के साथियों के संपर्क में आई। शुरू-शुरू में उनका कोई वैचारिक रूझान नहीं था। वह सिर्फ संगीत की दुनिया में कुछ करना चाहती थी लेकिन सचिन और उनके मंच ने उनके व्यक्तित्व के विकास में मदद किया है। उनके गाने हजारों सुइयों की तरह चुभते हैं। वे सामंतवादी, ब्राह्मणवादी और पूंजीवादी सत्ता के लिए सहज चुनौती बन जाते हैं। उनके गाने हथियार भी है और वार भी हैं।
 

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