कांग्रेस के एक विधायक पर बलात्कार का आरोप था- कहां हैं जानते हैं?

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: December 14, 2019
भारतीय जनता पार्टी और उसके समर्थक पैसे खर्च करके, राजनीतिक ताकत लगाकर राहुल गांधी को पप्पू साबित करने की कोशिश में लगे रहते हैं और जाने अनजाने राहुल गांधी कुछ ऐसा कर जाते हैं कि भाजपा वाले जो बोलते हैं उसके ही उल्टा काम करते नजर आते हैं। एक तरफ तो यह कहना कि राहुल गांधी को कोई गंभीरता से नहीं लेता है और फिर दूसरी तरफ उनके एक साधारण से बयान से पूरी पार्टी का तिलमिला जाना बताता है कि पार्टी राहुल गांधी (की छवि) से कितना घबराती है। अव्वल तो वे सत्ता में रहे ही नहीं तो उनके खिलाफ वैसे भी कुछ खास नहीं है तो पप्पू साबित करने वालों ने अपने लोगों का पप्पूपना खूब दिखाया है। रेप इन इंडिया पर माफी मांगने के जवाब में उनका बयान उनकी स्पष्टता और दबंगता को और निखारता है।



जहां तक बलात्कार के मामले में कांग्रेस के रुख, भूमिका या राजनीति का मामला है, कांग्रेस में बलात्कारी वैसे नहीं पाए जाते हैं जैसे भाजपा में पाए या देखे गए हैं। एक मामला मुझे मध्य प्रदेश का याद आता है जो 1987 का है। पार्टी तो 70 साल से सत्ता में हैं पर पार्टी के नेताओं के बलात्कार का मामला आनुपातिक रूप से वैसे ही कम है जैसे कल अपने एक लेख में बलबीर पुंज ने यह साबित करने की कोशिश की कि दुनिया भर में बलात्कार होते हैं, भारत में हो रहे हैं तो बहुत चिन्ता की बात नहीं है राहुल गांधी क्यों इसपर बोल रहे हैं आरोप तो उनपर भी हैं। राहुल पर जो आरोप हैं उसकी जांच कराई जानी चाहिए और अगर कोई कार्रवाई जरूरी हो तो जरूर होनी चाहिए। पर कांग्रेस का रिकार्ड अपने लोगों को बचाने का नहीं है।

मामला 15 अप्रैल 1987 के इंडिया टुडे में प्रकाशित हुआ था। प्रकाशित तो और भी जगह हुआ था, लिंक यही मिला है और कमेंट बॉक्स में है। इसके मुताबिक, उस समय 31 साल के एक कांग्रेस विधायक गणपत सिंह धुर्वे और उनके दो सहयोगियों पर बलात्कार का आरोप था। सत्तारूढ़ दल ने उन्हें पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया और कांग्रेस विधायक दल से बर्खास्त कर दिया। वे छिंदवाड़ा जिले के जमई विधनसभा क्षेत्र से 1980 से विधायक थे। उनपर बकायदा बलात्कार की धारा लगी थी। हनीट्रैप या जबरन वसूली का कोई जवाबी मामला नहीं बनाया गया था। मुझे नहीं पता अब वे कहां हैं? कांग्रेस में हों तो बताइए और पूछिए राहुल गांधी से। जो धुर्वे के खिलाफ हुई कार्रवाई को नहीं जानते हैं उनकी बात अलग है पर जानने वाले जो लोग संसद में फालतू का हंगामा कर रहे हैं उनके बारे में क्या कहा जाए।

जहां तक भाजपा का मामला है, बलात्कार और महिला उत्पीड़न के एक-दो नहीं, कई मामलों में चुप रहने वाली पार्टी राहुल गांधी को घेरने की कोशिश इसीलिए कर पाती है कि मीडिया उसके अनुकूल खबरें ही छापता है और निराधार, बे सिर पैर की खबरों को रद्दी की टोकरी के हवाले करने की बजाय सुर्खियों में रखता है। प्रचारकों की पार्टी मीडिया के जरिए अपने पक्ष में हवा बनाती है और मीडिया बाकायदा इस्तेमाल होता है और जहां कहीं जरूरत हो, साथ भी देता है। डबल इंजन वाले उत्तर प्रदेश में भाजपा के विधायक और एक पूर्व सांसद व मंत्री पर बलात्कार के आरोप लगे तो पुलिस-प्रशासन और मीडिया की शर्मनाक भूमिका के बावजूद भाजपा ही ऐसी राजनीतिक पार्टी है जो अपनी महिला नेताओं समेत राहुल गांधी पर एक सामान्य से बयान के लिए हल्लाबोल की व्यवस्था कर लेती है।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में गरीब परिवारों के बच्चों की पढ़ाई के मामले में टैक्स के पैसों का रोना रोने वाले संसद में एक फालतू विषय पर हंगामे में देश के लाखों रुपए बर्बाद किए जाने पर चुप रहते हैं। अव्वल तो राहुल गांधी के बयान में ऐसा कुछ नहीं था कि उसका विरोध किया जाए और उसपर हंगामा मचाया जाए और वह भी तब जब पार्टी अपने नेताओं के बलात्कार के मामलों में महिला नेताओं के साथ बेशर्म चुप्पी साध लेती रही हो। राहुल गांधी ने हिन्दी में कहा था, "नरेन्द्र मोदी ने कहा था मेक इन इंडिया अब आप जहां भी देखो मेक इन इंडिया नहीं भइया, रेप इन इंडिया है। जहां भी देखो रेप इन इंडिया .....।" इसपर यह कहना कि मेक इन इंडिया का मतलब है ... आइए भारत में बनाइए तो रेप इन इंडिया का मतलब क्या हुआ? पूछने वालों की मानसिक योग्यता पर सवाल है।

शर्मनाक यह है कि इस बहाने राहुल गांधी को घेरने के लिए स्मृति ईरानी ने गलतबयानी भी की और एक ऐसे अपराध के लिए राहुल गांधी से माफी मांगने के लिए कहा जाने लगा जो उन्होंने किया ही नहीं है। और अगर बलात्कार पर कांग्रेस की राजनीति ही मुद्दा हो और यह शर्मनाक है कि कल बलबीर पुंज ने अपने लेख में लिखा कि राहुल गांधी पर बलात्कार का आरोप था जो बड़े नाटकीय घटनाक्रम के बाद 2012 में निरस्त हो गया। ठीक है कि बलबीर पुंज भाजपा समर्थक हैं पर फाइनेंशियल एक्सप्रेस में ही सही, पत्रकार भी रहे हैं और निष्पक्षता का तकाजा था कि ऐसे ही दूसरे मामले का जिक्र करते जहां एक लड़की का पीछा सरकारी खर्चे से किया गया और वह लड़की गायब है। नाटकीय घटनाक्रम से ही सही, मामला खत्म हो जाना एक बात है पर लड़की का गायब रहना मामले की गंभीरता ही नहीं बाद की प्रशासनिक अक्षमता और नालायकी भी बताता है।

इसकी पुष्टि जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के छात्र के गायब हो जाने और उसका पता नहीं लगने से भी होती है। यह नेताओं के बलात्कारी होने से आगे उनकी प्रशासनिक अक्षमता भी बताती है। लेकिन उसे भूलकर सिर्फ एक मामले को याद करना पत्रकारिता या लेख लिखना भर नहीं है। क्या है इसपर मैं क्या कहूं। और इसके बाद कल ही संसद में इसपर हंगामा होना, झूठे आरोप लगाना, पार्टी की घटिया राजनीति का नमूना है।
 

बाकी ख़बरें