40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में सिर्फ सहायक प्रोफेसर के पद तक आरक्षित वर्ग को लाभ, 1 भी OBC प्रोफेसर नहीं

Written by Sabrangindia Staff | Published on: January 17, 2019
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने हालिया संविधान संशोधन के माध्यम से सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के उन लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था कर दी जिन्हें मौजूदा आरक्षण की व्यवस्था का लाभ नहीं मिल रहा था. सरकार द्वारा अनरिजर्व कैटेगरी को दिए गए रिजर्वेशन को लेकर काफी सवाल उठ रहे हैं। इसका विरोध भी हो रहा है। यह सवाल भी मुंहबाये खड़ा है कि जब नौकरियां ही नहीं हैं तो अपर कास्ट को रिजर्वेशन देकर सरकार क्या साबित करना चाहती है। हालांकि मोदी सरकार ने लॉन्ग टर्म के लिए आरक्षण में सेंध लगा दी है। 

वहीं दूसरी ओर, इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट से आरक्षित वर्ग की नौकरी में उपेक्षा और बदहाली का मामला सामने आया है। इस रिपोर्ट में ये जानकारी सामने आई है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों के साथ सरकार के उच्च विभागों में ग्रुप-ए और ग्रुप-बी तथा अधिकतर संस्थानों में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और खासकर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का प्रतिनिधित्व कम है। मालूम हो कि सरकारी पदों में एससी के लिए 15 फीसदी, एसटी के लिए 7.5 फीसदी और ओबीसी के लए 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था है।

सूचना का अधिकार (आरटीआई) आवेदन के तहत प्राप्त की गई जानकारी के मुताबिक 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में सहायक प्रोफेसर के स्तर पर निर्धारित सीमा की तुलना में ओबीसी वर्ग का प्रतिनिधित्व लगभग आधा (14.38 फीसदी) है. इसके अलावा ये जानकारी भी सामने आई है कि ओबीसी के लिए आरक्षण की व्यवस्था केवल सहायक प्रोफेसर स्तर पर ही है।

ओबीसी आरक्षण के तहत नियुक्त होने वाले प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर की संख्या शून्य है. आरटीआई के तहत मिले आंकड़ों से पता चलता है कि 15.2 फीसदी प्रोफेसर, 12.9 फीसदी एसोसिएट प्रोफेसर और 66.27 फीसदी असिस्टेंट प्रोफेसर सामान्य वर्ग के हैं। इसमें एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के वे लोग भी शामिल हो सकते हैं जिन्होंने आरक्षण का लाभ नहीं लिया है।

इसी तरह केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुल 1125 प्रोफेसर हैं, जिनमें एससी प्रोफेसरों की संख्या मात्र 39 (3.47 फीसदी) है, वहीं एसटी प्रोफेसरों की संख्या केवल (0.7 फीसदी) है। इसी तरह अगर असिस्टेंट प्रोफेसरों की बात करें तो 7741 में से 939 (12.02 फीसदी) एससी, 423 (5.46 फीसदी) एससी और 1113 (14.38 फीसदी) ओबीसी हैं।

आरक्षण के आधार पर निर्धारित सीमा से कम प्रतनिधित्व का मामला केवल शिक्षकों के साथ ही नहीं है बल्कि गैर-शिक्षक कमर्चारियों में भी है। आंकड़े बताते हैं कि गैर-शिक्षक कर्मचारियों में एससी की संख्या केवल 8.96 फीसदी, एसटी की संख्या 4.25 फीसदी और ओबीसी की संख्या 10.17 है, जबकि सामान्य वर्ग के लोगों की संख्या 76.14 फीसदी है।

आंकड़ों से पता चलता है कि मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय (एमएचआरडी), उससे जुड़े और उसके अधिनस्थ कार्यालयों में ग्रुप-ए और ग्रुप-बी के कुल 665 अधिकारी हैं। इनमें से 440 (66.17 फीसदी) सामान्य वर्ग के हैं जबकि 126 (18.14 फीसदी) एससी, 43 (6.47 फीसदी) एसटी और केवल 56 (8.42 फीसदी) ओबीसी वर्ग के हैं।

वहीं कार्मिक एव प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के आंकड़े बताते हैं कि ग्रुप-ए और ग्रुप-बी में आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व बहुत कम है।

केंद्र सरकार के अन्य विभागों की बात करें तो देश के सबसे बड़े रोजगार प्रदाता माने जाने वाले रेलवे के ग्रुप-ए और ग्रुप-बी में ओबीसी का प्रतिनिधित्व बहुत खराब है। आंकड़े से पता चलका है कि ग्रुप ए और ग्रुप बी के 16381 अधिकारियों में से केवल 1311 (8.05 फीसदी) ओबीसी वर्ग के हैं।

सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार के तहत 33.02 लाख लोग कार्यरत हैं जिनमें ग्रुप बी में 8 फीसदी और ग्रुप ए में 3 फीसदी की गिरावट हुई है।

आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी में केंद्रीय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए 1 अप्रैल, 2018 तक के आंकड़े, मानव संसाधन एवं विकास (एचआरडी) मंत्रालय ने अपने कमर्चारियों के 1 जनवरी, 2018 तक के आंकड़े, रेलवे ने 1 जनवरी, 2017 तक के आंकड़े और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने सरकारी विभागों के लिए साल 2015 तक के आंकड़े मुहैया कराए हैं।

बाकी ख़बरें