क्या कश्मीर में सब 'सामान्य' है? शटडाउन के 108 दिन के बाद भी सरकार के दावे के उलट है वास्तविकता

Written by sabrang india | Published on: November 23, 2019
5 अगस्त, 2019 को, भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 निरस्त कर इसे केंद्रशासित प्रदेश में तब्दील कर दिया। इसके साथ ही संचार की सम्पूर्ण नाकाबंदी की गई, जहाँ टेलीफोन और इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं। नागरिकों पर कर्फ्यू जैसी स्थिति पैदा हो गई।




राज्य से बाहर रह रहे लोगों का यहां रह रहे अपने परिवारों के साथ कोई संपर्क नहीं था, स्वास्थ्य सुविधाओं को निलंबित कर दिया गया था, व्यापार को 10,000 करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ, आईटी क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ, हजारों लोग नौकरी से हाथ धो बैठे, बच्चों को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया, पत्रकारों को जमीनी सच्चाई को कवर करने से रोक दिया गया और कई गैर-स्थानीय लोगों को आतंकवादियों के हमलों के रूप में खो दिया। आज 108 दिनों के बाद भी कश्मीर पर कहर खत्म होता नहीं दिख रहा है।

केसर का उत्पादन
महंगे मसालों में केसर एक विशिष्ट कृषि उपज के रूप में जाना जाता है और श्रीनगर के पास पंपोर में उगाया जाता है। इस वर्ष, शुरुआती, भारी वर्षा के कारण, 40 प्रतिशत फसल को अपरिवर्तनीय क्षति हुई और किसानों को भारी नुकसान हुआ।

अच्छी फसल की उम्मीद कर रहे किसानों ने कहा कि पिछले कुछ सालों में हुई मूसलाधार बारिश से अच्छी पैदावार नहीं हुई। वार्षिक केसर की फसल हर साल 20 अक्टूबर से 10 नवंबर तक चार से पांच चरणों में पूरी होती है। एक जिला अधिकारी ने कहा कि बेमौसम बर्फबारी से 35 से 40 प्रतिशत नुकसान हुआ है। इस तरह खामियाजा किसानों को ही उठाना पड़ा है।

जम्मू और कश्मीर केसर उत्पादक एसोसिएशन के अध्यक्ष अब्दुल मजीदवनी ने कहा कि केसर के फूल काफी नाजुक होते हैं ऐेसे में अधिकांश किसानों ने तीन दौर में फूल तोड़े लिए थे, लेकिन बेमौसम की बर्फबारी ने बाद की फसल को नुकसान पहुंचाया। पिछले दो या तीन वर्षों की तुलना में इस वर्ष अपेक्षित लक्ष्य बहुत अधिक था, किसानों ने भी कहा था कि इस साल की फसल पिछले वर्षों की तुलना में बेहतर थी, लेकिन खराब मौसम ने सब पर पानी फेर दिया। 

ट्रिब्यून इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, कृषि विभाग ने राजस्व विभाग के समन्वय में अपनी टीमों को राज्य आपदा राहत कोष (एसडीआरएफ) के तहत केसर उत्पादकों के नुकसान और मुआवजे की लिमिट का आकलन करने के लिए नियुक्त किया है।

आयकर रिटर्न
पिछले मंगलवार को घाटी में पत्रकारों ने एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें मांग की गई कि सरकार इंटरनेट सेवाओं को बहाल करे और स्थानीय लोगों की समस्याओं को समाप्त करे और समान रूप से उनकी पड़ताल करे। हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड सस्पेंड होने के कारण, पत्रकार समय पर अपनी कहानियां ऑनलाइन पब्लिश नहीं कर पा रहे हैं। इंटरनेट बुकिंग (कालीन व्यापार, होटल बुकिंग आदि) पर भी संचार ठप होने की वजह से व्यापक प्रभाव पड़ा है।

ट्रेड बॉडीज ने कहा है कि वे इंटरनेट शटडाउन के कारण अपनी गुड्स एंड सर्विसेज (जीएसटी) आईटी रिटर्न फाइल करने में असमर्थ हैं। चैंबर ऑफ ट्रेडर्स फेडरेशन (CTF) के अध्यक्ष नीरजअनंद ने कहा है कि बिजनेस कम्यूनिटी को अपना व्यवसाय चलाना बहुत मुश्किल हो गया है। चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने पहले शिकायत की थी कि खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी के कारण टैक्स ऑडिट करना मुश्किल हो रहा है।

सितंबर में, कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) के राष्ट्रीय महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में जुलाई में 164 करोड़ जीएसटी के मुकाबले सितंबर में सिर्फ 25 करोड़ रुपये जीएसटी रिटर्न दायर किया गया।  

सरकार ने अक्टूबर में घाटी में एक निवेशक शिखर सम्मेलन की योजना बनाई थी, जो रद्द हो गया क्योंकि घाटी में स्थिति अभी तक नहीं सुधरी है। कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (केसीसीआई) एक अरब डॉलर से अधिक के व्यापार घाटे के चलते सरकार पर मुकदमा चलाने पर विचार कर रहा है।

परिवहन बाधित
कश्मीर में प्रवासियों पर हुए आतंकवादी हमलों ने प्रशासन की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है जो अभी तक आतंकवाद खत्म होने का दावा कर शेखी बघार रहा था। अब गैर-स्थानीय ट्रक ड्राइवरों को दक्षिण कश्मीर के गांवों में जाने की अनुमति नहीं देने का फैसला किया गया है। द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, ड्राइवरों को माल लोड कर NH-44 पर अपने ट्रक पार्क करके घाटी छोड़ने के लिए कहा जा रहा है।

7 अक्टूबर के बाद, 10 से अधिक गैर-स्थानीय लोग, जिनमें पांच ट्रक चालक और बंगाल के पांच मजदूर शामिल हैं, ज्यादातर शोपियां और कुलगाम जिलों में मारे गए। सरकार ने अब NH-44 पर ट्रकों के लिए पार्किंग और पिक-अप पॉइंट्स का सीमांकन किया है।

किसानों के एक समूह ने कहा कि “हम नहीं चाहते कि निर्दोष लोग मारे जाएँ। ट्रक ड्राइवरों के जीवन का अत्यधिक महत्व है, व्यापार उसके बाद आता है। दक्षिण कश्मीर के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि यह एक अस्थायी व्यवस्था थी। अधिकारी ने कहा, "हमें उम्मीद है कि चीजें जल्द से जल्द बेहतर हो जाएंगी ताकि ट्रक चालक फिर से इन हिस्सों की यात्रा कर सकें।"

सरकार ने हालांकि, यह बताया कि कश्मीर में 'सब ठीक है'। गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को राज्यसभा में कहा कि कश्मीर में स्थिति पूरी तरह से सामान्य है। उन्होंने दावा किया कि पुलिस की गोलीबारी के कारण एक भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई, जबकि विपक्षी सदस्य खून खराबे की भविष्यवाणी कर रहे थे, जबकि यह भी कह रहे थे कि पिछले साल पत्थरबाजी की घटनाएं इस साल 802 से घटकर 544 हो गई हैं। विपक्ष को पता होना चाहिए कि 544 घटनाएं 0 से अधिक हैं।

जब उनसे इंटरनेट सेवाएं बहाल करने के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने यह कहते हुए मामले को दरकिनार कर दिया कि यह निर्णय स्थानीय प्रशासन के हाथ में है और आतंक के खिलाफ लड़ाई में सरकार स्थानीय प्रशासन की आवश्यकताओं को प्राथमिकता देने की जरुरत समझती है।

सभी को ध्यान देना चाहिए कि विपक्षी सांसदों को अभी भी घाटी की यात्रा करने की अनुमति नहीं है और कई अन्य अभी भी सरकार के अनुसार हिरासत में हैं (राष्ट्रीय सुरक्षा के कारण)। यह तब और भी सोचने वाली बात हो जाती है कि जब सरकार ने खुद यूरोपीय संसद (MEPs) के सदस्यों को कश्मीर में जमीनी हकीकत की गवाही देने के लिए आमंत्रित किया था। जाहिर तौर पर उन्हें आतंकवाद के खतरे का एहसास दिलाने के लिए और "लोगों से संपर्क करने के लिए प्रमोटर और गहरा हो गया"।

हालांकि, शाह के बयानों के एक दिन बाद, घाटी में एक शटडाउन देखा गया, जिसमें सभी दुकानें और प्रतिष्ठान बंद थे और सार्वजनिक परिवहन भी बंद रहा।

हालांकि, किसी भी राजनीतिक दल या अलगाववादी समूह द्वारा दिए गए कॉल के अभाव में यह शटडाउन सहज प्रतीत होता है। मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि घाटी के कुछ हिस्सों में दुकानदारों को अपने क्षेत्रों में दुकान खोलने के खिलाफ चेतावनी वाले पोस्टर दिखाई दिए। 

सत्य को झुठलाने के लिए लगातार झूठी बयानवाजी हमेशा से सत्तापक्ष का औजार रहे हैं। लेकिन हकीकत कुछ और ही नजर आती है।

बाकी ख़बरें