जनता के जनता होने की संभावना बची है या समाप्त हो चुकी है?

Written by Ravish Kumar | Published on: September 15, 2018
जब आँखों पर धर्मांन्धता और धार्मिक गौरव की परतें चढ़ जाती हैं तब चढ़ाने वाले को पता होता है कि अब लोगों को कुछ नहीं दिखेगा। इसीलिए अमित शाह कहते हैं कि बीजेपी पचास साल राज करेगी। कहते हैं कि हम अख़लाक़ के बाद भी जीते। क्या वे किसी की हत्या के लिए किस भीड़ का धन्यवाद ज्ञापन कर रहे हैं? क्या कभी ऐसा हुआ है कि किसी पार्टी के अध्यक्ष ने बोला हो कि हम अख़लाक़ और अवार्ड वापसी के बाद भी जीते। आज तक जे एन यू मामले में चार्जशीट दायर नहीं हुई मगर उस मामले को लेकर राजनीति हो रही है। क्या जनता के रूप में आपने बिल्कुल सोचना बंद कर दिया है?



विजय माल्या को भागने दिया गया। उसके बहुत समय बाद नीरव मोदी और मेहुल को भागने दिया गया। क्या इस सवाल का जवाब आपको मिल रहा है? सरकार इस सवाल को छोड़ बोलने लग जाती है कि माल्या को लोन कब मिला। सरकार दोनों बात बता दे । इतने लोग कैसे भागे और किस किस को किसके राज में कितना लोन मिला और उसका कितना हिस्सा किसके राज में नहीं चुकाया गया। मोदी राज में 2015 में 2.67 लाख करोड़ से 10 लाख करोड़ कैसे हो गया? क्या यह सारा लोन यूपीए के समय का है? फिर क्या यही जवाब है कि यूपीए ने माल्या पर मेहरबानी की थी इसलिए हमने उसे भाग जाने दिया?

एक केंद्रीय मंत्री जिसे इस वक़्त पेट्रोल डीज़ल के बढ़ते दामों को कम करने के लिए प्रयासरत होना चाहिए था तो वह विरोधी पक्ष के एक नेता के ज़मानत के दिन गिन रहा है। भाषा ट्रोल की तरह हो गई है। आप इस ट्विट की भाषा पढ़िए। ज़रूर आप इसकी निंदा करने की जगह दूसरे नेताओं के ट्विट ले आएँगे। क्योंकि आपकी नज़र और सोच ख़त्म हो चुकी है। आप संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की ग़लतियों को इस डर से नहीं देख पा रहे हैं कि उनका चढ़ाया हुआ पर्दा उतर गया तो क्या होगा।

उधर रेल मंत्री को देखना चाहिए था कि नौकरियों के लिए करोड़ों छात्रों को तकलीफ़ न हो, उत्तर पुस्तिका में ग़लतियाँ कैसे आ गईं, कब छात्रों के चार सौ रुपये वापस होंगे, इन सब की कोई परवाह नहीं। रेल मंत्री दूसरे मंत्रालयों के मामले में प्रेस कांफ्रेंस में ज़्यादा दिखते हैं। द वायर में पत्रकार रोहिणी सिंह ने चार अप्रैल को रेल मंत्री की एक स्टोरी छापी थी। कैसे शेयरों को लेकर हेरफेर किया और इसकी जानकारी नहीं दी। उस रिपोर्ट को अब भी पढ़ सकते हैं।

रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण कहती हैं कि हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड के पास 126 रफाल के निर्माण की क्षमता नहीं थी इसलिए 36 लिया गया। क्या वायु सेना को यह पता नहीं होगा? इसके बाद भी वह कई सालों से 126 विमानों की ज़रूरत बताती रही। क्या संख्या कम करने का यही कारण था? फिर कई सालों तक रफाल से बातचीत में एच ए एल क्यों शामिल थी ? नमकीन बिस्कुट और चाय पीने के लिए ?

क्या यह उनका अंतिम बचाव है कि बिल्कुल नई और कम अनुभवी कम्पनी के साथ रफाल का इसलिए क़रार हुआ कि पुरानी सरकारी कंपनी के पास क्षमता नहीं थी? क्या 36 रफाल के लायक भी नहीं थी एचएएल? तो क्या इसलिये 126 से 36 किया गया? अनिल अंबानी की कंपनी पर मेहरबानी की गई? अजय शुक्ला ब्लाग पोस्ट नाम से सर्च करें और इस मामले में इनका लिखा पढ़िए।

क्या वाक़ई रक्षा मंत्री ऐसा सोचती हैं कि जनता ने दिमाग़ से सोचना बंद कर दिया है? जनता ही बता सकती है या फिर इस पोस्ट के बाद आने वाले कमेंट के अध्ययन से पता चल जाएगा कि धर्मांन्धता ने आप जनता का क्या हाल किया है। इन बयानों से यही पता चलता है कि सरकार जनता के बारे में क्या सोच रही है? वो जनता को क्या समझती है? क्या पता जनता भी वही हो गई है जो सरकार उसके बारे में समझने लगी है?

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