सरकार के अलावा थोड़ा बाज़ार पर, तेल के दाम पर भी नज़र रखिए

Written by Ravish Kumar | Published on: April 26, 2019
अंतर्राष्ट्रीय कारणों से कच्चे तेल के दाम फिर से बढ़ने लगे हैं लेकिन भारत में दाम नहीं बढ़ रहे हैं। अमरीका ने ईरान से तेल ख़रीदने पर प्रतिबंध लगाया है। भारत को इस प्रतिबंध से छूट मिली थी। तब इसे विदेश नीति की सफलता के रूप में प्रचारित किया गया था। 



अमरिका ने उस छूट को वापस ले लिया है। 2 मई के बाद से भारत ईरान से तेल आयात नहीं कर सकेगा। रूस ने अपना निर्यात कम कर दिया है। इन कारणों से अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल का दाम 75 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया है। अक्तूबर के बाद पहली बार इस स्तर तक पहुंचा है। पिछले साल याद कीजिए। भारत में तेल के दाम 90 रुपये प्रति लीटर से अधिक हो गए थे। 

इस बार भी कच्चे तेल का दाम बढ़ रहा है लेकिन भारत में तेल के दाम नहीं बढ़ रहे हैं। चुनाव हैं। दाम पर अंत में सरकार का ही नियंत्रण होता है। 23 मई के बाद तेल कंपनियां अपना घाटा पूरा करने के लिए पेट्रोल के दाम में कितनी वृद्धि करेंगी इसका अंदाज़ा आप लगा सकते हैं।

पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतों से सरकारी नियंत्रण इसलिए हटाया गया था ताकि जनता में यह समझ बने कि इनके दाम बाहरी तत्वों से प्रभावित होते हैं। अब जब चुनावी मजबूरियों के कारण इनके दाम पर रोक लगेगी तो फिर जनता तो यही समझेगी कि दाम सरकार की मर्ज़ी से घटते-बढ़ते हैं। कर्नाटक चुनाव के समय भी दामों को बढ़ने नहीं दिया गया था। जनता के लिए तो यह अच्छा है मगर सरकार की दलीलों में समानता रहनी चाहिए। उसे चुनाव के बाद भी दाम नहीं बढ़ाना चाहिए। 

बिजनेस स्टैंडर्ड ने अपने संपादकीय में लिखा है कि पिछले छह हफ्ते में कच्चे तेल के दाम में 10 डॉलर प्रति बैरल वृद्धि हो गई है। इस लिहाज़ से भारत में पेट्रोल और डीज़ल के दाम में 10 और 15 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होनी चाहिए थी। अगर हालात बेहतर नहीं हुए तो चुनाव के बाद अचानक होने वाली वृद्धि के लिए तैयार रहें।

क्या ऑटोमोबिल सेक्टर की रफ़्तार में गिरावट आने लगी है? दो बातें हमें जाननी चाहिए। क्या ऑटोमोबिल सेक्टर पहले की तरह ही रोज़गार दे रहा है या रोबोट टेक्नॉलजी के कारण कमी आई है? मारुति ने अप्रैल से शुरू हो रहे अपने नए कारोबारी साल के लिए उत्पादन में वृद्धि का लक्ष्य 4 प्रतिशत ही रखा है। बिक्री का लक्ष्य 8 प्रतिशत है। पिछले साल के लक्ष्य भी घटाने पड़े थे। पांच साल में मारुति का यह सबसे कमज़ोर अनुमान है। 

भारत में बिकने वाली हर दूसरी कार मारुति की होती है। वैसे कारों ने दुनिया को बदसूरत बना दिया है। हम सब कार चलाने को मजबूर हैं लेकिन आप शहरों के मोहल्लों में जाकर देखिए। हर ख़ाली जगह पर नई पुरानी कार खड़ी है। बदसूरती का आलम है। जाम तो है ही।

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