अवैध रासुका, फर्ज़ी राजद्रोह, आतंक के झूठे मामले जहां लगते हैं वो विश्व गुरु भारत है- रवीश कुमार

Written by Ravish Kumar | Published on: February 12, 2021
आप एक ऐसे देश में रहते हैं जहां किसी सामाजिक कार्यकर्ता, आंदोलनकारी और चिकित्सक पर अवैध रुप से राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाया जा सकता है ताकि ज़मानत न मिले और आप कई महीनों तक जेल में रहें। उसके बाद हाई कोर्ट से आदेश भी आ सकता है कि आपके खिलाफ अवैध रुप से रासुका लगाई गई थी। आपने बिना किसी अपराध के सज़ा काट ली और आपके साथ अपराध करने वाला अफसर मौज करने लगा। 



आप एक ऐसे देश में रहते हैं जहां 2019 में राजद्रोह के 96 मामले दर्ज होते हैं और दो में ही सज़ा होती है। केवल 40 प्रतिशत केस में पुलिस चार्जशीट दायर पाती है। राजद्रोह के केस में 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दायर करनी होती है। बंगलुरु की अमुल्या लियोना को ज़मानत मिलने में चार महीने लग गए। अमूल्या पर भी राजद्रोह का आरोप लगाया गया था। 90 दिन के भीतर बंगलुरू पुलिस चार्जशीट तक दायर नहीं कर पाई। 

आप एक ऐसे देश में रहते हैं जहां 2016-19 के बीच 5992 लोगों को अनलॉ फुल एक्टिविटीज़ प्रिवेंशन एक्ट UAPA के तहत गिरफ्तार किया जाता है और केवल 132 लोगों को सज़ा होती है। सिर्फ 2.2 प्रतिशत केस में सज़ा होती है। ऐसा लगता है कि आतंकवाद की खेती हो रही है। यह जानना चाहिए कि कितने लोग फर्ज़ी फंसाए गए हैं और कितनों को सरकार के विरोध के कारण इन मामलों में गिरफ्तार किया गया है। 

आपने देखा कि आप एक ऐसे देश में रहते हैं जहां किसी पर भी ग़ैर-कानूनी तरीके से रासुका लगाई जा सकती है, राजद्रोह लगाया जा सकता है और आतंक के मामलों में लगने वाली धारा लगाई जा सकती है। बस केस करो, जेल भरो। जांच और साबित करना भूल जाओ। किसी और को पकड़ने निकल जाए। 

भीमा कोरेगांव केस में जिन 16 लोगों को गिरफ्तार किया गया है उनके काम का ट्रैक रिकार्ड देखिए। उनकी उम्र देखिए। केस क्या है, ये लोग प्रधानमंत्री की हत्या की साज़िश कर रहे थे। जून 2018 से ये केस ही चल रहा है। वाशिंगटन पोस्ट की खबर चौंकाने वाली नहीं है। जिस देश में फर्ज़ी राजद्रोह से लेकर अवैध रुप से रासुका की धारा लगाई जा सकती हो वहां फर्ज़ी तरीके से किसी के लैपटॉप में सबूत प्लांट कर किसी को भी आतंक के मामले में गिरफ्तार किया जा सकता है। 

रोना विल्सन के लैपटाप में 13 जून 2016 को लगातार कई ईमेल आते हैं। ईमेल पर वरवरा राव का नाम लिखा है। अंत में रोना किसी एक ईमेल को क्लिक कर देते हैं। उन्हें पता भी नहीं था कि उनके ई-मेल के ज़रिए लैपटॉप में किसी ने एक गुप्तचर छोड़ दिया है। दो साल तक उनके लैपटॉप की निगरानी करता है और ऐसे दस्तावेज़ों की फाइल छोड़ देता है जिससे रोना विल्सन अनजान रहते हैं। 2018 में पुलिस आती है और प्रधानमंत्री की हत्या की साज़िश के आरोप में जेल में बंद कर देती है। 

आप जानते हैं कि जिस तरह इस देश में किसी पर अवैध रुप से रासुका लगाई जा सकती है उसी तरह किसी के ईमेल को हैक किया जा सकता है। आपके परिचित के नाम से कोई ईमेल आए तो आप क्लिक कर ही देंगे। बस हो गया खेल। पता चला कि उस नाम से कोई और ईमेल भेज रहा था। वह सारी जानकारी उड़ा कर चल देता है और उल्टा आपके ही ई-मेल में ऐसे ही दस्तावेज़ों की फाइल छोड़ जाता है जिसे लेकर बाद में पुलिस केस बना सकती है। यह तकनीकि रुप से किया जा सकता है। भीमा कोरेगांव केस में बंद रोना विल्सन और अन्य के साथ यही होने का दावा किया गया है। वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में।

NIA इंकार करती है लेकिन क्या इंकार ही काफी है? क्या हम नहीं जानते कि इस देश में फोरेंसिक लैब और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट तक मैनेज हो जाती है। क्या यही फैसला होगा कि NIA ने इंकार कर दिया तो अब मान लिया जाए। या इस केस को नए सबूतों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए? इस देश में गवाह कैसे बनाए जाते हैं कौन नहीं जानता है।क्या किसी की ज़िंदगी इतनी सस्ती हो चुकी है कि फर्ज़ी ई-मेल भेज कर उसे आतंक के मामले में फंसा दिया जाए? क्या इतना सब आसान हो चुका है?

प्रधानमंत्री को इन बातों से एतराज़ नहीं होता कि ऐसा क्यों होता है, किसान आंदोलन में ऐसे मामलों में फंसाए लोगों की रिहाई की मांग में अपवित्रता नज़र आती है लेकिन स्टेट की इस हिंसा और साज़िशों में उन्हें अपवित्रता नज़र नहीं आती है। क्या यही विश्व गुरु भारत की अवधारणा है? क्या उसमें सत्य और न्याय की जगह है या ख़त्म मान लिया जाए?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं।)

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