लालू परिवार पर घोटाले के इल्जाम से दुखी नीतीश कुमार राफेल पर चुप क्यों?

Written by Rakesh Kayasth | Published on: September 22, 2018
लालू परिवार पर लगे घोटाले के इल्जाम से नीतीश कुमार बहुत दुखी थे। उन्होने इंतज़ार किया लेकिन संतोषजनक सफाई नहीं मिली तो रातो-रात गठबंधन तोड़कर बीजेपी से हाथ मिला लिया। सुशासन बाबू ने कहा था, सिद्धांतों के साथ कोई समझौता नहीं होगा।


भ्रष्टाचार के कुछ छोटे मामले में इस समय भी तैर रहे हैं। मसलन विजय माल्या देश के वित्त मंत्री से मिला। उसके बाद सीबीआई ने मुंबई पुलिस को लिखित आदेश दिया कि माल्या दिखे तो पकड़ने की जरूरत नहीं है। माल्या दिखा और फिर उड़न छू हो गया।

सरकारी बैंकों को चूना लगाकर भागे नीरव मोदी और मेहुल चौकसी जैसे लोग भागने से पहले प्रधानमंत्री के फॉरेन डेलीगेशन और दूसरे कार्यक्रमों में ही नज़र नहीं आये बल्कि पीएम ने उन्हे `हमारे मेहुल भाई` जैसे आत्मीय संबोधनों से सुशोभित किया।

एक छोटा सा मामला यह भी है कि जिन राफेल विमानों की खरीद के लिए फ्रांस से सौदा हुआ था, उसे देश के प्रधानमंत्री ने अपनी पहल पर बदलवा दिया। नई कीमत तीन गुना ज्यादा है। लेकिन रक्षा मंत्रालय का कहना है कि दो सरकारों के बीच हुआ यह समझौता इतना पवित्र है कि इसके बारे में देश की संसद तक में बहस नहीं हो सकती है।

सत्तर साल से एयरक्राफ्ट बना रही हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स से डील छीनकर कई तरह की गंभीर वित्तीय अनियमिताओं में फंसे अनिल अंबानी कंपनी को दे दिया गया। कंपनी भी ऐसी जो नये राफेल सौदे से ठीक दस दिन पहले बनाई गई।

सरकार ने कहा-- यह दो कंपनियों का करार है, हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं है।

अब फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ने कहा है कि अंबानी की कंपनी का नाम भारत सरकार की तरफ से सुझाया गया था। केंद्र सरकार हमेशा की तरह मुंह में दही जमाकर बैठी है और `सिद्धांतों से कभी समझौता ना करने वाले' सुशासन बाबू के मन में कोई सवाल नहीं है।

विपक्षी दलों की आवाज़ भी वैसी नहीं है, जैसी इतनी बड़े मामले में होनी चाहिए। यह ठीक है कि चोर कभी डाकुओं को नैतिकता का पाठ नहीं पढ़ा सकते। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि सवाल उठाने वाले कमजोर हैं, इसलिए डकैती एक पवित्र चीज़ बन जाएगी।

एक पुराना कोट है-- जब राजनेता किसी समस्या का हल नहीं निकाल पाते हैं तो जनता निकाल लेती है। यकीनन हल जनता ही निकालेगी।

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