नीतीश कुमार की वर्चुअल रैली से नदारद रही बिहार की जनता की समस्या और समाधान
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बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो गयी है. जहाँ एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार “निश्चय संवाद” के नाम से तो कांग्रेस पार्टी “बिहार क्रांति महासम्मेलन” नाम से वर्चुअल रैली करके चुनाव का आगाज कर चुके हैं. पहली वर्चुअल रैली में राज्य के मुख्यमंत्री व् भाजपा के सहयोगी नीतीश कुमार जिन्हें विकास पुरुष के नाम से भी संबोधित किया जाता है उन्होंने इस रैली में 15 साल में अपने द्वारा बिहार में किए गए विकास पे कम और 15 साल पहले के सत्ता धारी पार्टियों की कमियों को गिनवाने पर ज्यादा जोर दिया है. हर साल विकास के नाम पर जनता से वोट देने की अपील करने वाले नीतीश कुमार का 15 साल पीछे के इतिहास को झांकना इस चुनाव में उनके डगमगाते भरोसे की तरफ इशारा करता है. ये दीगर बात है कि वर्चुअल रैली में हर बार की तरह झूठ की बुनियाद पर खड़े हो कर सत्ता के कामों को गिनवाया गया और साथ ही आने वाले समय में वोट के लिए जनता को लुभावने सपने भी दिखाए गए.
वर्चुअल रैली में 2005 से पहले के लालू-राबड़ी काल का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि:
* नई पीढ़ी के लोगों को पुरानी बातें बताइए, नहीं तो गड़बड़ लोगों के चक्कर में पड़ जाएगा तो जितना काम हुआ है सब बर्बाद हो जाएगा.
* 'पति-पत्नी के 15 साल के शासन में कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं थी, तब नरसंहार होता था.'
* उस समय शाम के पहले लोग घर लौट जाते थे, गाड़ी में लोग राइफल निकालकर चलते थे.'
* 'पुराना फोटो और आज की फोटो को मिलाइए'
* 'लालू अंदर हैं फिर भी उनके ट्वीट आते हैं'
* पहले बिहार में सड़क नहीं थी, पता नहीं चलता था कि सड़क में गड्ढा था कि गड्ढे में सड़क'
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी ने दावा कि कि उनकी वर्चुअल रैली से सोशल मीडिया और गांव-देहात, और कस्बों में एलईडी स्क्रीन और प्रोजेक्टर्स के ज़रिए क़रीब 25 से 30 लाख लोग जुड़े जबकि आंकड़े बाढ़ और कोरोना से जूझ रहे बिहार के जमीनी हालत व् बदहाल बिहार की तस्वीर को बताते हैं जिसमें राज्य के पैसे के व्यय के बाद भी इस रैली की पहुच 10 लाख लोगों तक रही.
इस वर्चुअल रैली में भाजपा समर्थिक नीतीश सरकार ने अपने शासन काल की जमकर उपलब्धियां भी गिनवाई भले ही जनता से इन उपलब्धियों का कोई वास्ता न रहा हो. उन्होंने दावा किया कि सरकारी अस्पतालों में कोरोना के मरीजों के लिए उन्होंने जरुरत से ज्यादा इंतजाम कर दिया है. घोषणाएं करने में भाजपा के नक्शेकदम पर चल कर उन्होंने यह भी बताया कि लॉकडाउन से परेशान 20 लाख मजदूरों को 1000-1000 रुपए की मदद दी है, 14 करोड़ दिन का रोजगार सृजन किया.
15 साल पहले सत्ता में रहे लालू-राबड़ी राज पर अब बात करने का क्या ओचित्य है?
* क्या इसकी वजह ये है कि लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में वो मजदूरों के बिहार वापसी का विरोध करते दिखे थे?
* क्या वो बिहार के अस्पतालों से कोरोना मरीजों की बदहाली की आती अनगिनत तस्वीरों को याद नहीं करना चाहते?
* कोरोना से हुए लॉकडाउन के समय बिहार लौटे मजदूरों के कोरोना के बीच ही फिर शहरों की तरफ पलायन कर जाने की मजबूरी से ध्यान हटाना चाहते हैं?
* या फिर हर साल की तरह इस बार भी बाढ़ से आई 16 जिलों की तबाही से पल्ला झाड़ना चाहते हैं?
* क्या वे भाजपा के जनविरोधी नीतियाँ, आर्टिकल 370 से लेकर CAA-NRC पर JDU की भूमिका पर बात नहीं करना चाहते?
* मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से मर चुके बच्चों को भुला देना चाहते हैं.
* महिलाओं और बच्चियों पर हो रहे अत्याचार को नजरअंदाज करने की उनकी कोशिश है.
* क्या हर रोज बेरोजगारी की वजह से सड़कों पर उतर रहे नौजवानों की चीत्कार को अनसुना करना चाहते हैं?
बिहार में मुख्यमंत्री के रोजगार दिए जाने के दावों की हकीकत:
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने 2 घंटे 53 मिनट के भाषण में अपने 15 साल के कार्यकाल का ब्यौरा देते हुए कहा कि कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन से बिहार में बेरोज़गारी बढ़ी है. साथ ही नीतीश कुमार ने कहा, "रोज़गार के मामले में राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के द्वारा 5,60,246 योजनाओं में 14,71,50,481 दिवसों का सृजन किया गया है."
उन्होंने बताया कि, ‘अप्रैल महीने के बाद से ही मनरेगा और दूसरी योजनाओं में काम शुरू हुआ जिसके बाद औसतन प्रतिदिन लगभग 10 लाख लोगों को काम मिल रहा है.’
इन आंकड़ों के हिसाब से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रोजाना 10 लाख लोगों को रोजगार मिलने का दावा किया है लेकिन वर्तमान में रोजगार के बदतर हालात पर चर्चा नहीं की जो बिहार के युवाओं के भविष्य को अनिश्चितता की तरफ बढाने का संकेत है.
मनरेगा के किसी भी कार्ड होल्डर को साल भर में 100 दिन काम देना अनिवार्य है. मनरेगा पर नज़र रखने वाली संस्था ‘पीपल्स एक्शन फ़ॉर एम्पलॉयमेंट गारंटी’ के अनुसार, बिहार में 41 लाख से अधिक मनरेगा के कार्डधारक हैं जिनमें से इस साल सिर्फ़ 34.3 लाख कार्डधारकों को ही काम मिला यानी कि 18 फ़ीसदी कार्डधारकों को काम नहीं मिला.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सदी की सबसे भयावह महामारी से प्रभावित होकर देश भर से बिहार पलायन करने वाले मजदूरों के रोजगार की कोई बात नहीं की सिर्फ इतना बोल कर अपना पल्ला झाड़ते दिखे कि जो लोग बाहर से लौटे हैं उनके लिए रोजगार सृजन के बहुत से काम हो रहे हैं. यह मजदूरों की जिन्दगी में लम्बे समय तक बने रहने वाली अनिश्चितता ही तो है.
जनता की आम समस्याओं के साथ साथ आज पूरा देश धार्मिक और जातीय नफरत की आग में झोंका जा रहा है जो उनके सत्ताधारी सहयोगी के सलाहकार संगठनों द्वारा फैलाया जा रहा है. ऐसे वक्त में नीतीश कुमार का यह बयां कि “हम क्राइम, करप्शन और कम्युनलिज्म को बर्दाश्त नहीं कर सकते” हास्यास्पद जान पड़ता है.
कम्युनलिज्म को फैला कर क्राइम पैदा करने वाले लोगों के सामने नतमस्तक होकर बिहार के जनता की जिन्दगी को दांव पर लगाया जा चुका है जिसे अंतिम रूप देने के लिए गठबंधन रूपी चुप्पी का दौर शुरू हो चुका है जिसका लक्ष्य चुनावी परिणाम है.
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बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो गयी है. जहाँ एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार “निश्चय संवाद” के नाम से तो कांग्रेस पार्टी “बिहार क्रांति महासम्मेलन” नाम से वर्चुअल रैली करके चुनाव का आगाज कर चुके हैं. पहली वर्चुअल रैली में राज्य के मुख्यमंत्री व् भाजपा के सहयोगी नीतीश कुमार जिन्हें विकास पुरुष के नाम से भी संबोधित किया जाता है उन्होंने इस रैली में 15 साल में अपने द्वारा बिहार में किए गए विकास पे कम और 15 साल पहले के सत्ता धारी पार्टियों की कमियों को गिनवाने पर ज्यादा जोर दिया है. हर साल विकास के नाम पर जनता से वोट देने की अपील करने वाले नीतीश कुमार का 15 साल पीछे के इतिहास को झांकना इस चुनाव में उनके डगमगाते भरोसे की तरफ इशारा करता है. ये दीगर बात है कि वर्चुअल रैली में हर बार की तरह झूठ की बुनियाद पर खड़े हो कर सत्ता के कामों को गिनवाया गया और साथ ही आने वाले समय में वोट के लिए जनता को लुभावने सपने भी दिखाए गए.
वर्चुअल रैली में 2005 से पहले के लालू-राबड़ी काल का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि:
* नई पीढ़ी के लोगों को पुरानी बातें बताइए, नहीं तो गड़बड़ लोगों के चक्कर में पड़ जाएगा तो जितना काम हुआ है सब बर्बाद हो जाएगा.
* 'पति-पत्नी के 15 साल के शासन में कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं थी, तब नरसंहार होता था.'
* उस समय शाम के पहले लोग घर लौट जाते थे, गाड़ी में लोग राइफल निकालकर चलते थे.'
* 'पुराना फोटो और आज की फोटो को मिलाइए'
* 'लालू अंदर हैं फिर भी उनके ट्वीट आते हैं'
* पहले बिहार में सड़क नहीं थी, पता नहीं चलता था कि सड़क में गड्ढा था कि गड्ढे में सड़क'
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी ने दावा कि कि उनकी वर्चुअल रैली से सोशल मीडिया और गांव-देहात, और कस्बों में एलईडी स्क्रीन और प्रोजेक्टर्स के ज़रिए क़रीब 25 से 30 लाख लोग जुड़े जबकि आंकड़े बाढ़ और कोरोना से जूझ रहे बिहार के जमीनी हालत व् बदहाल बिहार की तस्वीर को बताते हैं जिसमें राज्य के पैसे के व्यय के बाद भी इस रैली की पहुच 10 लाख लोगों तक रही.
इस वर्चुअल रैली में भाजपा समर्थिक नीतीश सरकार ने अपने शासन काल की जमकर उपलब्धियां भी गिनवाई भले ही जनता से इन उपलब्धियों का कोई वास्ता न रहा हो. उन्होंने दावा किया कि सरकारी अस्पतालों में कोरोना के मरीजों के लिए उन्होंने जरुरत से ज्यादा इंतजाम कर दिया है. घोषणाएं करने में भाजपा के नक्शेकदम पर चल कर उन्होंने यह भी बताया कि लॉकडाउन से परेशान 20 लाख मजदूरों को 1000-1000 रुपए की मदद दी है, 14 करोड़ दिन का रोजगार सृजन किया.
15 साल पहले सत्ता में रहे लालू-राबड़ी राज पर अब बात करने का क्या ओचित्य है?
* क्या इसकी वजह ये है कि लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में वो मजदूरों के बिहार वापसी का विरोध करते दिखे थे?
* क्या वो बिहार के अस्पतालों से कोरोना मरीजों की बदहाली की आती अनगिनत तस्वीरों को याद नहीं करना चाहते?
* कोरोना से हुए लॉकडाउन के समय बिहार लौटे मजदूरों के कोरोना के बीच ही फिर शहरों की तरफ पलायन कर जाने की मजबूरी से ध्यान हटाना चाहते हैं?
* या फिर हर साल की तरह इस बार भी बाढ़ से आई 16 जिलों की तबाही से पल्ला झाड़ना चाहते हैं?
* क्या वे भाजपा के जनविरोधी नीतियाँ, आर्टिकल 370 से लेकर CAA-NRC पर JDU की भूमिका पर बात नहीं करना चाहते?
* मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से मर चुके बच्चों को भुला देना चाहते हैं.
* महिलाओं और बच्चियों पर हो रहे अत्याचार को नजरअंदाज करने की उनकी कोशिश है.
* क्या हर रोज बेरोजगारी की वजह से सड़कों पर उतर रहे नौजवानों की चीत्कार को अनसुना करना चाहते हैं?
बिहार में मुख्यमंत्री के रोजगार दिए जाने के दावों की हकीकत:
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने 2 घंटे 53 मिनट के भाषण में अपने 15 साल के कार्यकाल का ब्यौरा देते हुए कहा कि कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन से बिहार में बेरोज़गारी बढ़ी है. साथ ही नीतीश कुमार ने कहा, "रोज़गार के मामले में राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के द्वारा 5,60,246 योजनाओं में 14,71,50,481 दिवसों का सृजन किया गया है."
उन्होंने बताया कि, ‘अप्रैल महीने के बाद से ही मनरेगा और दूसरी योजनाओं में काम शुरू हुआ जिसके बाद औसतन प्रतिदिन लगभग 10 लाख लोगों को काम मिल रहा है.’
इन आंकड़ों के हिसाब से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रोजाना 10 लाख लोगों को रोजगार मिलने का दावा किया है लेकिन वर्तमान में रोजगार के बदतर हालात पर चर्चा नहीं की जो बिहार के युवाओं के भविष्य को अनिश्चितता की तरफ बढाने का संकेत है.
मनरेगा के किसी भी कार्ड होल्डर को साल भर में 100 दिन काम देना अनिवार्य है. मनरेगा पर नज़र रखने वाली संस्था ‘पीपल्स एक्शन फ़ॉर एम्पलॉयमेंट गारंटी’ के अनुसार, बिहार में 41 लाख से अधिक मनरेगा के कार्डधारक हैं जिनमें से इस साल सिर्फ़ 34.3 लाख कार्डधारकों को ही काम मिला यानी कि 18 फ़ीसदी कार्डधारकों को काम नहीं मिला.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सदी की सबसे भयावह महामारी से प्रभावित होकर देश भर से बिहार पलायन करने वाले मजदूरों के रोजगार की कोई बात नहीं की सिर्फ इतना बोल कर अपना पल्ला झाड़ते दिखे कि जो लोग बाहर से लौटे हैं उनके लिए रोजगार सृजन के बहुत से काम हो रहे हैं. यह मजदूरों की जिन्दगी में लम्बे समय तक बने रहने वाली अनिश्चितता ही तो है.
जनता की आम समस्याओं के साथ साथ आज पूरा देश धार्मिक और जातीय नफरत की आग में झोंका जा रहा है जो उनके सत्ताधारी सहयोगी के सलाहकार संगठनों द्वारा फैलाया जा रहा है. ऐसे वक्त में नीतीश कुमार का यह बयां कि “हम क्राइम, करप्शन और कम्युनलिज्म को बर्दाश्त नहीं कर सकते” हास्यास्पद जान पड़ता है.
कम्युनलिज्म को फैला कर क्राइम पैदा करने वाले लोगों के सामने नतमस्तक होकर बिहार के जनता की जिन्दगी को दांव पर लगाया जा चुका है जिसे अंतिम रूप देने के लिए गठबंधन रूपी चुप्पी का दौर शुरू हो चुका है जिसका लक्ष्य चुनावी परिणाम है.